शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

शबनम शर्मा जी की भावपूर्ण कवितायें

प्रस्तुति :- प्रकाश गोविन्द


शबनम शर्माshabnam_sharma परिचय -
जन्म तिथि : 20 जनवरी 1956 को नाहन में।
शिक्षा : बी.ए., बी.एड.
संप्रति : अध्यापन।
प्रकाशित रचनाएँ : अनमोल रत्न तथा काव्य कुंज दो कविता संग्रह प्रकाशित।
कार्यक्षेत्र : अध्यापन व लेखन। ग़ज़लें, कविताएँ, लेख, कहानियों व लघुकथाओं सहित लगभग 600 रचनाएँ प्रकाशित।

आकाशवाणी शिमला व दूरदर्शन से ग़ज़लें व कविताएँ प्रसारित। भारत के अनेक कवि सम्मेलनों में भागीदारी।

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प्रश्न
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मैं भी तुम्हारी तरह
सुबह से शाम तक खटती, nothing-to-something
देखती कई उतार-चढ़ाव,
सहती अनगिनत अप्रिय शब्द,
लौटती घर पूरी तरह
निचोड़ी गई किसी चूनरी की तरह,
पर शायद तुम ज़्यादा थक जाते,
निच्छावर करती संपूर्ण अस्तित्व
तुम्हें खुश रखने हेतू,
बनना चाहती अच्छी माँ, पत्नि, बहन,
एक अच्छी व्यवसायिका भी,
परंतु एक सवाल सदैव झंझोड़ता
कि तुम मुझसे ज़्यादा क्यों थकते हो,
शायद समाज का बोझ तुम पर ज़्यादा है,
और तुम अबला कह कर,
मुझे कितनी सबला बना, पीस जाते हो
समाज की लोह चक्की में।
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बेटियाँ
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शायद पल भर में ही KwanYinIIIBBNNBB
सयानी हो जाती हैं - बेटियाँ,
घर के अंदर से
दहलीज़ तक कब
आ जाती हैं बेटियाँ
कभी कमसिन, कभी
लक्ष्मी-सी दिखती हैं – बेटियाँ।
पर हर घर की तकदीर,
इक सुंदर तस्वीर होती हैं – बेटियाँ।
हृदय में लिए उफान,
कई प्रश्न, अनजाने
घर चल देती हैं बेटियाँ,
घर की, ईंट-ईंट पर,
दरवाज़ों की चौखट पर
सदैव दस्तक देती हैं – बेटियाँ।
पर अफ़सोस क्यों सदैव
हम संग रहती नहीं - ये बेटियाँ।
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मुसाफ़िर
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ममता, फ़र्ज़ और समय के द्वंद्व में
किस तरह मैंने अपनी कश्ती खींची।
कई बार ममता के थपेड़ों
को पीछे हटा फ़र्ज़ निभाया,
समय का पहिया
घूमता रहा अपना धुरी पर
कई कष्ट झेले हैं
मेरी अंदर की औरत ने,
मेरी माँ रोई है कई बार,
मेरी औरत तड़पती है अँधेरी रातों में,
परंतु समय के पतवार
अपने चप्पू चलाते रहे,
कश्ती लिए किनारे तक
आ ही गई, उतर गए मुसाफ़िर,
चल दिए मंज़िलों की तरफ़,
कह कर कि कश्ती का सफ़र भी कोई सफ़र था।
इल्ज़ाम
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मैं चल रही हूँ
या वक्त खड़ा है
दोनों ही सवाल
सही हैं
शायद बलवान है वक्त,
जो मेरी ज़िंदगी के
हिंडोले को कभी
हल्का-सा हिलाता
तो कभी झिंझोड़ जाता।
महसूस करती वक्त
के थपेड़ों को मैं
कभी हँसकर तो कभी रो कर
इल्ज़ाम देती कि वक्त
ख़राब है शायद इसलिए
कि अपने सिर इल्ज़ाम
लेना इंसान की
फ़ितरत नहीं।
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बाबूजी के बाद
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घर का दरवाज़ा खुलते ही
ठिठकते कदम, रात गहराई
पी भी ली थोड़ी ज़्यदा,
बाबूजी की डाँट
फिर बहू से कहना
''मत देना इसे खाना,
निकाल दे घर से बाहर''
व खुद ही खाँसते-खाँसते
साँकल भी चढ़ा देना।
तिरछी निगाहों से
देख भी जाना, कि
खाकर सोया भी हूँ,
सुबह रूठा-सा चेहरा बनाना
और बड़बड़ाते रहना,
बच्चा-सा बना देता था मुझे।
आज, खाली कुरसी, खाली कमरा,
देखते ही बरस पड़े हैं मेरे नयन।
बड़ा हो गया हूँ मैं,
महसूस कर सकता हूँ
उनकी छटपटाहट जब
आज मेरा नन्हा बेटा
काग़ज़ को मरोड़
सिगरेट का कश भरता है
और कोकाकोला गिलास में भरकर
चियर्स कहता है तोतले शब्दों में।


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The End
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गुरुवार, 17 सितंबर 2009

हजरतबल मस्जिद - श्रीनगर

क्विज संचालन :- प्रकाश गोविन्द


नमस्कार !
क्रियेटिव मंच आप सभी लोगों का स्वागत करता है !

आप सभी को बहुत-बहुत बधाई जिन्होने इस पहेली मे हिस्सा लिया !
कल C.M. Quiz – में जो सवाल पूछा गया था, उसका सही जवाब है :
हजरतबल मस्जिद - श्रीनगर
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हजरतबल मस्जिद, श्रीनगर
हजरतबल मस्जिद श्रीनगर में स्थित प्रसिद्ध डल झील के किनारे स्थित है। इसका निर्माण पैगम्बर मोहम्मद मोई-ए-मुक्कादस के सम्मान में करवाया गया था। इस मस्जिद को कई अन्य नामों जैसे हजरतबल, अस्सार-ए-शरीफ, मादिनात-ऊस-सेनी, दरगाह शरीफ और दरगाह आदि के नाम से भी जाना जाता है। इस मस्जिद के समीप ही एक खूबसूरत बगीचा और इश्‍रातत महल है।

जिसका निर्माण 1623 ई. में सादिक खान ने करवाया था। विश्व प्रसिद्ध हजरतबल दरगाह की तरफ। ये एक खूबसूरत मस्जिद है जो डल झील के किनारे बनी है। डल इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है। इस मस्जिद में हजरत मोहम्मद की दाढी का बाल [मोय ऐ मुक़्क़्द्दस] रखा गया है, इसलिए इसे बेहद पवित्र माना जाता है। साल में एक बार इस बाल के दर्शन आम जनता को करवाये जाते है।

पूरी इमारत सफेद संगमरमर से बनी है। अन्दर मुख्य हाल में लकडी का सुन्दर काम किया गया है। मस्जिद का पूरबी छोर डल झील की तरफ है। इस ओर से देखने पर मस्जिद की विशालता नजर आती है। यहां से शिकारा लेकर चार चिनार देखने के लिए जाया जा सकता है।

क्विज रिजल्ट
इस बार की क्विज का चयन रमजान के पवित्र माह को देखते हुए किया गया था ! उम्मीद थी की प्रतियोगी आसानी से पहचान लेंगे ! ऐसा ही हुआ भी ... अल्पना जी और सीमा जी ने आते ही इमारत को पहचानने में कोई गलती नहीं की !

आज बहुत ही थोड़े समय से सीमा जी चूक गयीं ! सीमा जी अभी भी "चैम्पियन" के खिताब से एक जीत दूर हैं ! तीसरे नंबर पर विजेता बनीं "शुभम जैन जी !

इस तरह नारी शक्ति ने एक बार फिर से परचम लहराकर अपना वर्चस्व कायम रखा है ! आशा है जो इस बार सफल नहीं हुए, अगली बार अवश्य सफल होंगे !


आईये देखते हैं प्रतियोगिता का पूरा परिणाम :
alp final
द्वितीय स्थान : - सुश्री सीमा गुप्ता जी
seema gupta
तृतीय स्थान : - सुश्री शुभम जैन जी
चौथा स्थान : - श्री विजय पाटनी जी
vijay patni
पांचवा स्थान : - सुश्री श्रद्धा जैन जी
shrddha
छठा स्थान : - दिगम्बर नासवा जी
applauseapplause विजेताओं को बधाईयाँapplauseapplause
applauseapplauseapplauseapplause


सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई !
सभी प्रतियोगियों और पाठकों को शुभकामनाएं !

आप लोगों ने उम्मीद से बढ़कर प्रतियोगिता में शामिल
होकर इस आयोजन को सफल बनाया, जिसकी हमें बेहद ख़ुशी है !



Seema Gupta ji , अल्पना वर्मा जी, Shivendra Sinha ji,
शुभम जैन जी, Purnima Ji, Mithilesh Dubey ji, Shilpi Jain ,

Ram Ji, विजय पाटनी जई, राज भाटिय़ा जी, Shrddha Ji,
Pt.डी.के.शर्मा"वत्स"जी !!!

आप सभी लोगों का धन्यवाद,
यह आयोजन हम सब के लिये मनोरंजन ओर ज्ञानवर्धन का माध्यम है !
आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें जरूर ई-मेल करें !
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का आभार व्यक्त करते हैं,
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया !

अगले बुधवार को एक नयी क्विज़ के साथ हम यहीं मिलेंगे !

सधन्यवाद
क्रियेटिव मंच
creativemanch@gmail.com

बुधवार, 16 सितंबर 2009

C.M.Quiz -5 [इस प्रसिद्द ईमारत को पहचानिए]

क्विज संचालन :- प्रकाश गोविन्द


आप सभी को नमस्कार !
क्रियेटिव मंच आप सभी का स्वागत करता है !

बुधवार को सवेरे 9.00 बजे पूछी जाने वाली क्विज में
एक बार हम फिर हाजिर हैं !

सुस्वागतम
WELCOME



लीजिये फिर एक बार आसान सी क्विज है आपके सामने !
नीचे तस्वीर को ध्यान से देखिये और पहचानिये
इस इमारत को और बताईये कि -

यह क्या है और कहाँ है ???
quiz - 5
[आपको इमारत का नाम और जगह बतानी है]
तो बस जल्दी से जवाब दीजिये और बन जाईये
आज के C.M. Quiz विजेता !
सूचना :

माडरेशन ऑन रखा गया है इसलिए आपकी टिप्पणियों को प्रकाशित होने में समय लग सकता है ! सभी प्रतियोगियों के जवाब देने की समय सीमा रात 9.00 तक है ! क्विज का परिणाम कल सवेरे 9.00 बजे घोषित किया जाएगा !

---- क्रियेटिव मंच


विशेष सूचना :

क्रियेटिव मंच की टीम ने निर्णय लिया है कि विजताओं को प्रमाणपत्र तीन श्रेणी में दिए जायेंगे ! कोई भी प्रतियोगी तीन बार प्रथम विजेता बनता है तो उसे 'चैम्पियन' का प्रमाण पत्र दिया जाएगा ! इसी तरह अगर कोई प्रतियोगी छह बार प्रथम विजेता बनता है तो उसे 'सुपर चैम्पियन' का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा ! किसी प्रतियोगी के दस बार प्रथम विजेता बनने पर क्रियेटिव मंच की तरफ से 'जीनियस' का प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा !

C.M.Quiz के अंतर्गत अलग-अलग तीन राउंड (चक्र) होंगे ! प्रत्येक राउंड में 35 क्विज पूछी जायेंगी ! प्रतियोगियों को अपना लक्ष्य इसी नियत चक्र में ही पूरा करना होगा !

--- क्रियेटिव मंच

रविवार, 13 सितंबर 2009

ठहाका एक्सप्रेस - 3

vijay patani
इस बार 'ठहाका एक्सप्रेस- 3' के पायलट हैं -
Laughter is the Best Medicine
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एक युवक शॉपिंग माल में खरीदारी कर रहा था कि तभी उसने लक्ष्य किया एक बूढ़ी औरत काफी देर से लगातार उसके साथ साथ चल रही है और बीच बीच में उसे घूर भी रही है।

''होगी कोई! मुझे क्या ...?'' उसने सोचा और आगे बढ़ गया।
जब वह भुगतान करने के लिये बिल काउंटर की ओर बढ़ा तो वह महिला एकदम से उसके पास गई और बोली - ''बेटा, तुम सोच रहे होगे कि यह औरत मुझे इस तरह क्यों देख रही है ? दरअसल तुम्हें देखकर मुझे अपने बेटे की याद गई जो पिछले साल एक दुर्घटना में मारा गया।'' कहने के साथ बुढ़िया की आंखे छलछला आईं।

लड़का द्रवीभूत हो गया। बोला - ''मांजी, आप मुझे अपना बेटा ही समझिये। कहिये, मैं आपकी कुछ मदद करूं ?''
बुढ़िया ने बिल काउंटर से अपना सामान उठाते हुये कहा - ''नहीं, नहीं बेटा ! मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस तुमने अपने मुंह से मां कह दिया यही बहुत है।'' यह कहकर बुढ़िया चलने लगी।
लड़का भावुक होकर उसकी ओर देखता रहा।
दरवाजे के पास जाकर बुढ़िया ने लड़के की तरफ हाथ हिलाया और बोली - ''अच्छा बेटा, जाती हूं।''
''ठीक है मांजी जाइए। अपना खयाल रखना।'' लड़के ने जोर से कहा। बुढ़िया चली गई।
अब लड़का बिल काउंटर की तरफ मुड़ा।
''कितना हुआ'', उसने पूछा।
''तीन हजार सात सौ रुपये'', क्लर्क ने बताया।
''क्या ? .... पर मेरे सामान की कीमत पांच सौ रुपये से ज्यादा नहीं है !'' लड़का जोर से बोला।
''बिलकुल ! आप सही कह रहे हैं। पर आपकी माँजी बत्तीस सौ रुपये का सामान ले गई हैं।'' क्लर्क ने स्पष्ट किया।


मेजर - ''इतना ज्यादा क्यों पीते हो ? तुम्हें खबर है कि अगर तुम्हारा रिकार्ड अच्छा रहा होता तो अब तक तुम सूबेदार हो गये होते।''

जवान - ''माफ कीजिये सर, मगर बात यह है कि जब दो घूंट मेरे अन्दर पहुंच जाते हैं तो मैं अपने आपको कर्नल समझने लगता हूं।''


एक हवाईजहाज में चार लोग सवार थे - पायलट, एक किशोर, एक बुजुर्ग और एक दार्शनिक। उड़ान के दौरान अचानक विमान के इंजन में खराबी गई पायलट ने घोषणा की कि अब इस विमान का बचना संभव नहीं है और विमान में सिर्फ तीन ही पैराशूट हैं। किसी एक को तो अवश्य ही मरना होगा।

इतना कहकर पायलट फुर्ती से अपने केबिन से निकला और बोला - चूंकि मुझे इस खराबी से संबंधित जानकारी हेडक्वार्टर को देनी होगी अत: मेरा बचना जरूरी है। इतना कहकर उसने एक पैराशूट उठाया और कूद गया

अब दो पैराशूट बचे। दार्शनिक महोदय अपने स्थान से उठे और बोले - मैंने ऑक्सफोर्ड और केम्ब्रिज में पढ़ाई की है। ढेर सारी किताबें लिखीं हैं। मेरे जैसे विद्वान दुनिया में कम ही हैं अभी दुनिया को मेरी विद्वता की बहुत जरूरत है अत: मेरा बचना बहुत जरूरी है इतना कहकर उन्होंने भी एक पैराशूट उठाया और कूद गए।

अब सिर्फ एक पैराशूट बचा था। बुजुर्ग सज्जन ने किशोर की ओर देखा और कहा बेटा मैं अपनी जिंदगी जी चुका हूं और दो-चार साल में वैसे भी मर जाने वाला हूं तुम्हारे सामने अभी पूरी जिंदगी पड़ी है तुम यह पैराशूट उठाओ और कूद जाओ

किशोर बोला - चिन्ता मत करो, हम दोनों ही बच जाएंगे। दुनिया के सबसे बड़े विद्वान व्यक्ति पैराशूट की जगह मेरा कपड़ों का बैग उठाकर कूद गए हैं ......

एक भिखारी भीख मांगने के प्रयोजन से एक घर के दरवाजे पहुंचा और दस्तक दी। अन्दर से एक 46-47 की उम्र की महिला आई।

भिखारी बोला - माताजी, भूखे को रोटी दो।

महिला बोली - शरम नहीं आती, इतने हट्टे-कट्टे हो, कुछ कामधाम किया करो। दो-दो हाथ हैं, पैर हैं, आंखें हैं फिर भी भीख मांगते हो !

अब भिखारी ने भी सुर बदला और बोला - मैडम, आप भी इतनी खूबसूरत है, गोरी-चिट्टी हैं, गजब का फिगर है और अभी आपकी उम्र ही क्या है ? आप मुंबई जाकर हीरोइन क्यों नहीं बन जाती ? घर पर बेकार बैठी हो

महिला बोली - जरा रुको, मैं अभी तुम्हारे लिए हलवा-पूरी लाती हूं।

एक मशहूर समाचार पत्र में छपने वाले साप्ताहिक भविष्यफल की बानगी :

प्रथम सप्ताह - इस हफ्ते आपके जीवन में कोई अनोखी खुशी दस्तक देने वाली है। अचानक धनप्राप्ति के भी योग बन रहे हैं। पूरा सप्ताह मौजमस्ती में गुजरेगा। स्वास्थ्य उत्तम रहेगा।

द्वितीय सप्ताह - इस सप्ताह आप एक नई और अद्भुत शक्ति अपने भीतर महसूस करेंगे। वाणी पर नियंत्रण रखने से शत्रुपक्ष की पराजय सुनिश्चित है। प्रेम के मामले में भाग्यशाली रहेंगे।

तृतीय सप्ताह -
रोमांस के लिए यह समय आपके लिए शुभ रहेगा। इस हफ्ते कोई सुंदरी आपके जीवन में प्रवेश करने वाली है। इस सुंदरी का सानिध्य आपके लिए सफलताओं के नए द्वार खोल सकता है।

चतुर्थ सप्ताह - इस समय आप स्वयं को ठगा-सा महसूस करेंगे। आपको अचानक आभास होगा कि कोई लगातार पिछले तीन सप्ताह से आपको बेवकूफ बना रहा है।




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The End
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गुरुवार, 10 सितंबर 2009

राजेश जोशी की कविताओं का जादू

प्रस्तुति :- प्रकाश गोविन्द


राजेश जोशी


परिचय -
जन्म : 18 जुलाई 1946,
जन्म स्थान : नरसिंहगढ़ (मध्य प्रदेश)

कुछ प्रमुख कृतियाँ :
समरगाथा (लम्बी कविता),
एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा,
दो पंक्तियों के बीच (कविता संग्रह),
पतलून पहना आदमी , धरती का कल्पतरु !

विविध कविता संग्रह "दो पंक्तियों के बीच" के लिये 2002 का साहित्य अकादमी पुरस्कार।

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शासक होने की इच्छा
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वहाँ एक पेड़ था
उस पर कुछ परिंदे रहते थे
पेड़ उनकी आदत बन चुका था

फिर एक दिन जब परिंदे आसमान नापकर लौटे
तो पेड़ वहाँ नहीं था
फिर एक दिन परिंदों को एक दरवाजा दिखा
परिंदे उस दरवाजे से आने-जाने लगे
फिर एक दिन परिंदों को एक मेज दिखी
परिंदे उस मेज पर बैठकर सुस्ताने लगे

फिर परिंदों को एक दिन एक कुर्सी दिखी
परिंदे कुर्सी पर बैठे
तो उन्हें तरह-तरह के दिवास्वप्न दिखने लगे

और एक दिन उनमें
शासक बनने की इच्छा जगने लगी !

बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
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कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह

बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह

काम पर क्‍यों जा रहे हैं बच्‍चे?
क्‍या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्‍या दीमकों ने खा लिया हैं
सारी रंग बिरंगी किताबों को

क्‍या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्‍या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्‍या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्‍म हो गए हैं एकाएक

तो फिर बचा ही क्‍या है इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्‍यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्‍बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजते हुए
बच्‍चे, बहुत छोटे छोटे बच्‍चे
काम पर जा रहे हैं।

माँ कहती है

हम हर रात
पैर धोकर सोते है

करवट होकर।
छाती पर हाथ बाँधकर
चित्त हम कभी नहीं सोते।

सोने से पहले माँ
टुइयाँ के तकिये के नीचे
सरौता रख देती है बिना नागा।

माँ कहती है
डरावने सपने इससे
डर जाते है।

दिन-भर फिरकनी-सी खटती माँ
हमारे सपनों के लिए
कितनी चिन्तित है!

आदिवासी लड़की की इच्छा

लड़की की इच्छा है
छोटी-सी इच्छा
हाट इमलिया जाने की।
सौदा-सूत कुछ नहीं लेना
तनिक-सी इच्छा है-- काजर की
बिन्दिया की।

सौदा-सूत कुछ नहीं लेना
तनिक-सी इच्छा है-- तोड़े की
बिछिया की।
सौदा-सूत कुछ नहीं लेना
तनिक-सी इच्छा है-- सुग्गे की
फुग्गे की।
फुग्गा उड़ने वाला हो
सुग्गा ख़ूब बातूनी हो ।
लड़की की इच्छा है
छोटी-सी।

पेड़ की तरह
==========
पेड़ की तरह
सोचता हूँ
पेड़ भर
ऊँचा उठकर।

पेड़ भर सोचता हूँ
पेड़ भर
चौड़ा होकर।

इसी से
जंगल नाराज़ है।

गेंद
=========
एक बच्चा
करीब सात-आठ के लगभग।

अपनी छोटी हथेलियों में
गोल-गोल घुमाता
एक बड़ी गेंद

इधर ही चला आ रहा है
और लो...
उसने गेंद को
हवा में उछाल दिया ! सूरज !
तुम्हारी उम्र
क्या रही होगी उस वक़्त ?

प्रौद्योगिकी की माया
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अचानक ही बिजली गुल हो गयी
और बंद हो गया माइक
ओह उस वक्ता की आवाज का जादू
जो इतनी देर से अपनी गिरफ्त में बांधे हुए था मुझे
कितनी कमजोर और धीमी थी वह आवाज
एकाएक तभी मैंने जाना
उसकी आवाज का शासन खत्म हुआ
तो उधड़ने लगी अब तक उसके बोले गये की परतें

एक कवि कहता है
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नामुमकिन है यह बतलाना कि एक कवि
कविता के भीतर कितना और कितना रहता है

एक कवि है
जिसका चेहरा-मोहरा, ढाल-चाल और बातों का ढब भी
उसकी कविता से इतना ज्यादा मिलता-जुलता सा है
कि लगता है कि जैसे अभी-अभी दरवाजा खोल कर
अपनी कविता से बाहर निकला है

एक कवि जो अक्सर मुझसे कहता है
कि सोते समय उसके पांव अक्सर चादर
और मुहावरों से बाहर निकल आते हैं
सुबह-सुबह जब पांव पर मच्छरों के काटने की शिकायत करता है
दिक्कत यह है कि पांव अगर चादर में सिकोड़ कर सोये
तो उसकी पगथलियां गरम हो जाती हैं
उसे हमेशा डर लगा रहता है कि सपने में एकाएक
अगर उसे कहीं जाना पड़ा
तो हड़बड़ी में वह चादर में उलझ कर गिर जायेगा

मुहावरे इसी तरह क्षमताओं का पूरा प्रयोग करने से
आदमी को रोकते हैं
और मच्छरों द्वारा कवियों के काम में पैदा की गयी
अड़चनों के बारे में
अभी तक आलोचना में विचार नहीं किया गया
ले देकर अब कवियों से ही कुछ उम्मीद बची है
कि वे कविता की कई अलक्षित खूबियों
और दिक्कतों के बारे में भी सोचें
जिन पर आलोचना के खांचे के भीतर
सोचना निषिद्ध है
एक कवि जो अक्सर नाराज रहता है
बार-बार यह ही कहता है
बचो, बचो, बचो
ऐसे क्लास रूम के अगल-बगल से भी मत गुजरो
जहां हिंदी का अध्यापक कविता पढ़ा रहा हो
और कविता के बारे में राजेंद्र यादव की बात तो
बिलकुल मत सुनो.



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The End
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