शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

निर्मला कपिला जी की श्रेष्ठ रचनाएं

प्रस्तुति :- प्रकाश गोविन्द



परिचय


स्वास्थ कल्यान विभाग मे चीफ फार्मासिस्ट के पद से सेवानिवृ्त् होने के बाद लेखन कार्य के लिये समर्पित हैं ! 'कला साहित्य प्रचार मंच’ की अध्य़क्ष हैं !

2004 से विधिवत लेखन प्रारंभ ! अनेक पत्र पत्रिकायों मे प्रकाशन, विविध-भारती जालंधर से कहानी का प्रसारण !
तीन पुस्तकें प्रकाशित व अन्य दो पुस्तकें प्रकाशन की दिशा में अग्रसर
1. सुबह से पहले---कविता संग्रह
2. वीरबहुटी---कहानी संग्रह
3. प्रेम सेतु---कहानी संग्रह

सम्मान : पँजाब सहित्य कला अकादमी जालन्धर से सम्मान, ग्वालियर सहित्य अकादमी ग्वालियर की से ‘शब्द-माधुरी’ सम्मान, ‘शब्द भारती सम्मान व विशिष्ठ सम्मान, इसके अतिरिक्त कई कवि सम्मेलनो़ मे सम्मानित ! अंतरजाल पर निरंतर सक्रिय हैं और ब्लॉग संचालन भी करती हैं !

मेरी तलाश

मुझे तलाश थी एक प्यास थी
तुम मे आत्मसात हो जाने की
डूबते सूरज की एक किरण को
आत्मा मे संजोये निकली थी
तुम्हें ढूँढने / मैने देखा
कई बडे बडे देवों मुनियों को
किन्हीं अपसराओं मेनकाओं पर
आसक्त होते
तेरे नाम पर लडते झगडते
लूटते और लुटते तेरे नाम पर
खून की नदियाँ बहाते
अब कई साधु सँतों की दुकानों पर
तेरा नाम भी बिकने लगा है
फिर मन मे सवाल उठते
कैसे तुम भरमाते हो जानती हूँ
मेरी प्यास के लिये भी
तुम नित नये कूयेँ दिखा देते हो
डूबती नित मगर प्यास
फिर भी शेष रहती
तुम्हें पाने की तुम मे
आत्मसात हो जाने की
इसलिये तुम्हारी सब तस्वीरों को
राम-कृ्ष्ण-खुदा-गाड
सब को एक फ्रेम मे
बँद कर दिया है
ताकि तुम आपस मे
सुलझ लो और खुद लौट आयी हूँ
अपने अन्तस मे
और यहाँ आ कर मैने जाना की
तेरे किसी रूप को चेतना नहीं है
बल्कि तुम सब की सी
चेतना को चेतना है
तुझे पूजना नहीं है
तुम सा जूझना है
त्तुम्हें जपना नहीं
तुम सा तपना है
तुम्हारी साधना नहीं
खुद को साधना है
कितना सुन्दर है
धर्म से अध्यात्म का पथ
जहाँ तू मैं सब एक है
और अब मेरी प्यास शाँत हो गयी है !!
****************


क्या पाया

ये कैसा शँख नाद, कैसा निनाद
नारी मुक्ति का
उसे पाना है अपना स्वाभिमान
उसे मुक्त होना है
पुरुष की वर्जनाओ़ से
पर मुक्ति मिली क्या?
स्वाभिमान पाया क्या?
हाँ मुक्ति मिली बँधनों से
मर्यादायों से कर्तव्य से...
सहनशीलता..सहिष्णुता से...
सृ्ष्टि सृ्जन के कर्तव्यबोध से..
स्नेहिल भावनाँओं से
मगर पाया क्या
स्वाभिमान या अभिमान
गर्व या दर्प
जीत या हार
सम्मान या अपमान
इस पर हो विचार क्यों कि
कुछ गुमराह बेटियाँ
भावोतिरेक मे
अपने आवेश मे
दुर्योधनो की भीड मे
खुद नँगा नाच दिखा रही हैँ
मदिरोन्मुक्त जीवन को
धूयें मे उडा रही हैं
पारिवारिक मर्यादा भुला रही हैं
देवालय से मदिरालय का सफर
क्या यही है तेरी उडान
डृ्ग्स देह व्यापार
अभद्रता खलनायिका
क्या यही है तेरी पह्चान
क्या तेरी संपदायें
पुरुष पर लुटाने को हैँ
क्या तेरा लक्ष्य
केवल उसे लुभाने मे है
उठ उन षडयँत्रकारियों को पहचान
जो नहीं चाहते
समाज मे हो तेरा सम्मान
बस अब अपनी गरिमा को पहचान
और पा ले अपना स्वाभिमान
बँद कर ये शँखनाद
बँद कर ये निनाद् !!
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अमर कवितायें

कुछ कवितायें कहीं लिखी नहीं जाती
कही नहीं जाती
बस महसूस की जाती हैं
किसी कोख मे
वो कवियत्री सीख् लेती है
कुछ शब्द उकेरने
भाई की कापी किताब से
जमीन पर उंगलियों से
खींच कर कुछ लकीरें
लिखना चाह्ती है कविता
बिठा दी जाती है डोली मे
दहेज मे नहीं मिलती कलम
मिलता है सिर्फ फर्ज़ो का संदूक
फिर जब कुलबुलाते हैं
कुछ शब्द उसके ज़ेहन मे
ढुढती है कलम
दिख जाता है घर मे
बिखरा कचरा,कुछ धूल
और कविता कर्तव्य बन समा जाती है
झाडू मे और सजा देती है
घर के कोने कोने को
उन शब्दों से फिर आते हैं कुछ शब्द
कलम ढूढती है पर दिख जाती हैं
दो बूढी बीमार आँखें
दवा के इंतजार मे
बन जाती है कविता करुणा
समा जाते हैं शब्द
दवा की बोतल मे
जीवनदाता बन कर
शब्द तो हर पल कुलबुलाते
कसमसाते रहते हैं
पर बनाना है खाना
काटने लगती है प्याज़
बह जाते हैं शब्द
प्याज की कडुवाहट मे
ऐसे ही कुछ शब्द बर्तनों की
टकराहत मे हो जाते है घायल
बाकी धूँए की परत से धुंधला जाते हैं
सुबह से शाम तक चलता रहता है
ये शब्दों का सफर्
रात में थकचूर कर
कुछ शब्द बिस्तर की सलवटों
मे पडे कराहते तोड देते हैं दम
पर नहीं मिलती कलम
नही मिलता वक्त
बरसों तक चलता रहता है
ये शब्दों का सफर
बेटे को सरहद पर भेज
फुरसत मे लिखना चाहती है
वीर रस मे
दहकती सी कोई कविता
पर तभी आ जाती है
सरहद पर शहीद बेटे की लाश
मूक हो जाते हैं शब्द
मर जाती है कविता एक माँ की
अंतस मे समेटे शहादत
की गरिमा ऐसे ही
कितनी ही कवियत्रियों को
नहीं मिलती कलम
नहीं मिलता वक्त
नहीं मिलता नसीब
हाथ की लकीरों पर ही
तोड देती हैं दम जन्म से पहले
जो ना लिखी जाती हैं, ना पढी जाती हैं
बस महसूस की जाती हैं
शायद यही हैं वो अमर कवितायें !!
**********************************

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

पांच फिल्मों के नाम

क्विज संचालन :- - प्रकाश गोविन्द


नमस्कार !
क्रियेटिव मंच आप सभी लोगों का स्वागत करता है !

आप सभी को बहुत-बहुत बधाई जिन्होने इस पहेली मे हिस्सा लिया !
कल C.M. Quiz – 10 में जिन पांच फिल्मों के नाम पूछे गए थे,


उनके सही नाम हैं :

1 - बाप नंबरी बेटा दस नंबरी
2 - दिल है कि मानता नहीं
3 - एक चादर मैली सी
4 - जैसी करनी वैसी भरनी
5 - रूप की रानी चोरो का राजा

क्विज रिजल्ट
एक बार फिर पता चल गया कि प्रतियोगियों का फिल्मी ज्ञान बहुत अच्छा है ! आप लोगों को समय-समय पर इसी तरह क्विज के विभिन्न रूप देखने को मिलते रहेंगे !

सुश्री अल्पना जी ने यह पाँचवीं विजय हासिल की है ! इस तरह वो अब "सुपर चैम्पियन" के खिताब से महज एक जीत दूर हैं ! उधर सुश्री सीमा जी “चैम्पियन” का खिताब पाने से एक बार पुनः चूक गयीं ! आज सुश्री शुभम जैन जी ने बेहतरीन प्रयास किया था, उन्होंने चार नाम बता भी दिए थे, पांचवां नाम वो आखिर तक नहीं बता पायीं ! हरकीरत जी को क्विज में शामिल देख बहुत ख़ुशी हुयी, वो न सिर्फ शामिल हुयीं बल्कि विजेताओं की लिस्ट में अपना नाम भी दर्ज करवाया !

आप लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण सूचना है :-

बहुत ही शीघ्र क्रियेटिव मंच एक सृजनात्मक प्रतियोगिता की शुरुआत करने जा रहा है ! उसमें समय का कोई झंझट नहीं रहेगा ! उसमें आपके पास दस दिन का समय होगा ! उसमें प्रथम, द्वितीत और तृतीय पुरस्कार का चयन सिर्फ मौलिकता और श्रेष्ठता देखकर किया जाएगा ! आशा है आप लोग पसंद करेंगे और उसमें शामिल होंगे

आशा है जो इस बार क्विज में सफल नहीं हुए, अगली बार अवश्य सफल होंगे !
प्रतियोगिता का पूरा परिणाम :
चौथा स्थान : -
पांचवां स्थान : -
जिन्होंने सराहनीय सराहनीय प्रयास किया -

सुश्री शुभम जैन जी / सुश्री इशिता जी / श्री शिवेंद्र सिन्हा जी

applauseapplause applause विजेताओं को बधाईयाँ applause applause applause applause applause applause applause applause applause
सभी प्रतियोगियों और पाठकों को शुभकामनाएं !

सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई !

आप लोगों ने उम्मीद से बढ़कर प्रतियोगिता में शामिल होकर

इस आयोजन को सफल बनाया, जिसकी हमें बेहद ख़ुशी है !

Purnima Ji, शुभम आर्य जी, Nirmila Kapila ji ,
Ishita ji, Sada ji, राज भाटिय़ा जी, Anand Sagar ji,
Shivendra Sinha ji, shilpi jain ji, MANOJ KUMAR ji,

Seema Gupta ji , अल्पना वर्मा जी, शुभम जैन जी,
Harkirat Haqeer ji, सागर नाहर, Vivek Rastogi ji

Murari Pareek ji
आप सभी लोगों का धन्यवाद,


यह आयोजन हम सब के लिये मनोरंजन ओर ज्ञानवर्धन का माध्यम है !
आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें जरूर ई-मेल करें !

अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का आभार व्यक्त करते हैं,
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया !

अगले बुधवार को एक नयी क्विज़ के साथ हम यहीं मिलेंगे !

सधन्यवाद क्रियेटिव मंच
creativemanch@gmail.com


बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

C.M.Quiz -10 [पांच फिल्मों के नाम खोजिये]

क्विज संचालन :- - प्रकाश गोविन्द


आप सभी को नमस्कार !
क्रियेटिव मंच आप सभी का स्वागत करता है !
बुधवार को सवेरे 9.00 बजे पूछी जाने वाली
क्विज में एक बार हम फिर हाजिर हैं !

सुस्वागतम
WELCOME

लीजिये
एक बहुत ही आसान क्विज आपके सामने है ! हमने पांच जानी-पहचानी फिल्मों के नामों के अक्षरो के क्रम को आगे पीछे कर दिया है ! आपको सभी अक्षरो की सहायता से फिल्म का नाम पहचानना है ...
याद रहे कि कोई भी अक्षर बचा रहे !
उदाहरण के तौर पर देखिये :
हमने नीचे एक फिल्म के नाम के अक्षरो का क्रम बदल दिया है
www
इसका सही जवाब होगा : - “दिल तो पागल है
आशा है आप लोग समझ गए होंगे !
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नीचे दिए गए बॉक्स में

पांच फिल्मों के नामों को तलाशिये !

films name

तो बस जल्दी से पांच फिल्मों के नाम बताईये और बन जाईये
C.M. Quiz - 10 के विजेता !

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बेहतर होगा कि पाँचों फिल्मों के नामों को एक साथ बताएं
अन्यथा जवाब अलग-अलग देने पर आखिरी सही जवाब के
समय को ही दर्ज किया जाएगा !
पूर्णतयः सही जवाब न मिलने की स्थिति में अधिकतम सही जवाब
देने वाले प्रतियोगी को विजयी माना जाएगा !

सूचना :
माडरेशन ऑन रखा गया है इसलिए आपकी टिप्पणियों को प्रकाशित होने में समय लग सकता है ! सभी प्रतियोगियों के जवाब देने की समय सीमा रात 9.00 तक है ! क्विज का परिणाम कल सवेरे 9.00 बजे घोषित किया जाएगा !

---- क्रियेटिव मंच


विशेष सूचना :

क्रियेटिव मंच की टीम ने निर्णय लिया है कि विजताओं को प्रमाणपत्र तीन श्रेणी में दिए जायेंगे ! कोई भी प्रतियोगी तीन बार प्रथम विजेता बनता है तो उसे 'चैम्पियन' का प्रमाण पत्र दिया जाएगा ! इसी तरह अगर कोई प्रतियोगी छह बार प्रथम विजेता बनता है तो उसे 'सुपर चैम्पियन' का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा ! किसी प्रतियोगी के दस बार प्रथम विजेता बनने पर क्रियेटिव मंच की तरफ से 'जीनियस' का प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा !

C.M.Quiz के अंतर्गत अलग-अलग तीन राउंड (चक्र) होंगे ! प्रत्येक राउंड में 35 क्विज पूछी जायेंगी ! प्रतियोगियों को अपना लक्ष्य इसी नियत चक्र में ही पूरा करना होगा !

---- क्रियेटिव मंच

सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

ठहाका एक्सप्रेस - 7

Shivendra Sinha
इस बार 'ठहाका एक्सप्रेस- 7' के पायलट हैं -
Laughter is the Best Medicine
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एक नवोदित फिल्म अभिनेत्री एक फिल्म निर्माता द्वारा उसके साथ किए गए दुर्व्यवहार की शिकायत लेकर पुलिस थाने पहुंची।
उसने रोते-रोते पुलिस इंस्पेक्टर को बताया - अमुक निर्माता बहुत नीच आदमी है। कल रात उसने मुझे अपने घर बुलाया और मेरा शारीरिक शोषण किया।
पुलिस इंस्पेक्टर ने बीच में ही टोका - तो आपने उसी वक्त शोर क्यों नहीं मचाया ?
अभिनेत्री ने सुबकते हुए कहा - उस वक्त मुझे पता नहीं था कि वह इतना नीच आदमी है।
पुलिस इंस्पेक्टर ने आगे पूछा - तो फिर यह आपको कब पता चला ?
- यह तो मुझे तब पता चला जब सुबह उसने बिना कोई कोई साइनिंग एमाउंट दिए मुझे चलता कर दिया ......

रूपये मिलते ही संता अपना सेविंग बैंक अकाउंट खुलवाने बैंक गया ! वहां क्लर्क ने संता को एक फार्म दिया और कहा - "इसे भरकर लाओ !"
संता ने फार्म को पढ़ा और तत्काल दिल्ली रवाना हो गया !
मालूम क्यों ?
फार्म में लिखा जो था - "कैपिटल में भरिये"

एक कवि-सम्मेलन में एक कवि महोदय को बड़े दिनों बाद मंच के ज़रिए क्रांति लाने का मौका मिला था...
सो हुजूर आ गए फॉर्म में..दो घंटे तक उन्होंने कविता के नाम पर अपनी बेकार की तुकबंदियों से श्रोताओं को अच्छी तरह पका दिया तो एक बुज़ुर्गवार मंच के पास आकर लाठी ठकठकाते हुए इधर से उधर घूमने लगे...
मंच से कवि महोदय को ये देखकर बेचैनी हुई...पूछा...बड़े मियां, क्या कोई परेशानी है...?

बड़े मियां का जवाब था...
नहीं जनाब, तुमसे क्या परेशानी...तुम तो हमारे मेहमान हो, इसलिए चालू रहो....मैं तो उसे ढूंढ रहा हूं, जिसने तुम्हें यहां आने के लिए न्योता भेजा था...

पंजाब की आजादी को लेकर दस-बारह सरदारों की मीटिंग चल रही थी ! गरमा गर्म बहस होने लगी ! एक सरदार ने सवाल उठाया- "चलो ... मान लो हमने भारत से पंजाब ले लिया ...लेकिन इसका डेवलपमेंट कैसे करेंगे ?"
यह सुनकर खामोशी छा गयी ! सब एक-दुसरे का मुह देखने लगे ! अचानक बंता ने दिमाग दौड़ाया- "कोई समस्या नहीं है ! हम अमेरिका पर हमला कर देंगे ! अब देख लो जहाँ-जहाँ अमेरिका ने हमला किया वहां जीतने के बाद सब विकास कार्य अपने हाथ में ले लिए ! है कि नहीं ?"

यह सुनकर वहां बैठे सब सरदार प्रसन्न हो गए कि इतनी आसानी से समस्या सुलझ गयी !

लेकिन संता सिंह सरदार कोने में चुपचाप बैठा था ! वो खुश देखाई नहीं दे रहा था ! सबने कारण पूछा !

तब संता ने चुप्पी तोड़ते हुए सवाल दागा - सारी बातें तो ठीक हैं लेकिन अगर हमने अमेरिका को हरा दिया तो ?

साइकिल वाले की टक्कर से पैदल चलने वाला युवक लुढ़क गया,
किन्तु साइकिल वाला प्रसन्नचित्त बोला - 'यह तुम्हारे लिए भाग्यशाली दिन है !'

अपने हाथों से घुटनों को सहलाता हुआ वह आदमी झुंझलाया - 'वह कैसे ?'

'क्योंकि आज मेरी छुट्टी है, नहीं तो मैं ट्रक चला रहा होता'

एक विदेशी पर्यटक घुमते हुए एक बहुत छोटे शहर में टिका ! वहां उसका कुत्ता खो गया ! उसने एक लोकल अखबार में विज्ञापन दिया - 'जो मेरे कुत्ते को खोजकर लाएगा, उसे एक हजार डालर इनाम मिलेगा !'

दूसरे दिन सवेरे तक अखबार नहीं छपा ! वह पर्यटक महाशय अखबार के कार्यालय पहुंचे ! वहां देखा तो केवल चौकीदार मिला ! पूछा - 'भाई अखबार छापने वाले कहाँ गये हैं ?'

चौकीदार ने कहा - 'किसी जेंटिलमैन का कुत्ता खो गया था ! उसने विज्ञापन दिया था जो उसके कुत्ते को ढूंढ लाएगा, उसे एक हजार डालर रुपये का इनाम मिलेगा, तो सभी कुत्ते की तलाश में गये हुए हैं ! आज कार्यालय नहीं आये ! वे चाहते हैं कि जब तक विज्ञापन अखबार में छपे, उससे पहले ही वे कुत्ते को लाकर इनाम पा लें !'

गाँव की एक लड़की अपने घर के बाहर बैठी गाय का दूध निकाल रही थी ! भीतर बैठी माँ को बाहर से किसी आदमी के बोलने की आवाज आई !
'बिटिया~~' ! माँ ने आवाज देकर पूछा - 'बाहर कौन है ?'
'अम्मा'
! बेटी ने जवाब दिया - 'बाहर कोई शहर का आदमी है, एक गिलास दूध मांग रहा है !'
'तुम फौरन भीतर आ जाओ !'
माँ ने आदेश दिया !
'लेकिन माँ, यह कहता है कि मैं नेता हूँ !'
'तो जल्दी से गाय को भी अपने साथ भीतर ले आओ !'


एस एम एस फंडा

मुझे जला देना या दफना देना
जब मर जाऊं एक घूँट व्हिस्की ओंठों पे लगा देना
मैं ताजमहल तो नहीं मांगता यारों
बस मेरी कब्र पर एक गर्ल्स हास्टल बनवा देना


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आप भी अगर कोई जोक्स, हास्य कविता या दिलचस्प संस्मरण भेजना चाहते हैं तो हमें मेल कर सकते हैं ,,,, आपका स्वागत है ! रचना को आपके नाम व परिचय के साथ प्रकाशित किया जाएगा !
क्रियेटिव मंच
creativemanch@gmail.com

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

इला जी की उत्कृष्ट कवितायें

प्रस्तुति :- प्रकाश गोविन्द


सुश्री इला कुमार


परिचय


1
मार्च 1956 को मुज़फ्फरपुर - बिहार में जन्म. एम्. एससी. (फिजिक्स), बी.एड. तथा एल.एल.बी. कुछ वर्षो तक अध्यापन. तीन वर्ष सिंहभूम के आदिवासी जन-जीवन का विशेष अध्ययन. कविताओं और कहानियों के अलावा शैक्षिक, सामाजिक तथा वेदान्तिक विषयों पर सक्रिय लेखन. शीर्षस्थ पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन. कुछ कविताएँ बंगला, पंजाबी, अंग्रेज़ी में अनुदित

fantasy

तुम्हारा नाम


लिखा, मिटाया
फिर लिखा, फिर मिटाया,
पता नहीं कितनी बार
नंगी चट्टान की इस रुखी कठोर छाती पर
तुम्हारा नाम
वही नाम
जो हमारे बीच के स्वप्निल पलों के बीच पला,
संबंधों के गुलाबी दायरों के बीच दौड़ा
आंखो के जादू में समाया समाया,
आखिर एक दिन
किसी नाजुक से समय में
मेरे होठों से फिसल पड़ा था,
और तुमने सदा-सदा के लिए
उसे अपने लिए सहेज लिया था
वही नाम
जो आज तुम्हारे लिए है,

शायद इसलिए ही इतना प्यारा है

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फूल, चाँद और रात

अब कोई नहीं लिखता
कविता फूलों की सुगन्ध भरी
रात नहाई हो निमिष भर भी
चांदनी में
फूलों के संग
पर कोई नहीं कहता
उस निर्विद्ध निमिष की बात
जो अब भी टिका है
पावस की चम्पई भोर के किनारे
चांदनी की बात
झरते हुए हारसिंगार तले
बैठकर रचे गए विश्वरूप
श्रंगार की बात
अभी अभी साथ की सड़क पर गुजरा है
मां के साथ
मृग के छौने सरीखा
रह रहकर किलकता हुआ बालक
चलता है वह नन्हे पग भरता
बीच बीच में फुदकना
उसकी प्रकृति है
कोई नहीं करता प्रकृति की बात
फूल चांद और रात की बात।
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माँ की तस्वीर

मम्मी माँ मम्मा अम्मा, मइया माई
जब जैसे पुकारा, माँ अवश्य आई
कहा सब ने माँ ऐसी होती है माँ वैसी होती है
पर सच में, माँ कैसी होती है
सुबह सवेरे, नहा धोकर, ठाकुर को दिया जलातीं
हमारी शरारतों पर भी थोड़ा मुस्काती
फिर से झुक कर पाठ के श्लोक उच्चारती
माँ की यह तस्वीर कितनी पवित्र होती है
शाम ढले, चूल्हा की लपकती कौंध से जगमगाता मुखड़ा
सने हाथों से अगली रोटी के, आटे का टुकड़ा
गीली हथेली की पीठ से,
उलझे बालों की लट को सरकाती
माँ की यह भंगिमा क्या ग़रीब होती है ?
रोज-रोज, पहले मिनिट में पराँठा सेंकती
दूसरे क्षण, नाश्ते की तश्तरी भरती
तेज क़दमों से, सारे घर में,
फिरकनी सी घूमती
साथ-साथ, अधखाई रोटी,
जल्दी-जल्दी अपने मुँह में ठूसती
माँ की यह तस्वीर क्या इतनी व्यस्त होती है ?
इन सब से परे, हमारे मानस में रची बसी
सभी संवेदनाओं के कण-कण में घुली मिली
हमारे व्यक्तित्व के रेशे से हर पल झाँकती

हम सब की माँ, कुछ कुछ ऐसी ही होती है।

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तुम कहो

तुम कहो
एक बार
वही बात
जो मैंने कही नहीं है
तुमने सुनी है
बार बार
वही बात
तुम कहो !!!

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