सोमवार, 16 अगस्त 2010

'जलियाँ वाला बाग़', अमृतसर (पंजाब)

क्विज संचालन ---- प्रकाश गोविन्द


जय हिंद - जय भारत
आप सभी को नमस्कार !

क्रियेटिव मंच आप सभी का स्वागत करता है !
आप सभी प्रतियोगियों एवं पाठकों को बहुत-बहुत बधाई जिन्होने इस पहेली मे हिस्सा लिया ! कल क्विज के दूसरे राउंड की पहली क्विज यानी C.M.Quiz -36 के अंतर्गत हमने एक स्मारक का चित्र दिखाया था और प्रतियोगियों से उसे पहचानने को कहा था ! क्विज का जवाब था - "जलियाँ वाला बाग़" अमृतसर, पंजाब !

सबसे पहले सही जवाब देकर क्रमशः मोहसिन जी, अल्पना वर्मा जी और राजेंद्र स्वर्णकार जी ने प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान हासिल किया !

सभी विजेताओं को हमारी तरफ से बहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं

अब आईये C.M.Quiz -36 में दिखाए गए स्मारक के सम्बन्ध में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करते हैं और प्रतियोगिता का परिणाम/विजेताओं के नाम देखते हैं :--
जलियाँ वाला बाग़ स्मारक
[Jallianwala Bagh, Amritsar, Punjab]
पंजाब के अमृतसर नगर में जलियांवाला बाग़ स्थान पर अंग्रेजी हुकूमत ने भारतीय प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चलाकर बड़ी संख्या में उनकी हत्या कर दी थी। यह घटना 13 अप्रैल 1919 को हुई । इस घटना के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। उस दिन वैशाखी का त्योहार था । भारत की ब्रिटिश सरकार ने रॉलेट एक्ट का शांतिपूर्वक विरोध करने पर जननेता पहले ही गिरफ्तार कर लिए थे । इस गिरफ्तारी की निंदा करने और पहले हुए गोली कांड की भर्त्सना करने के लिए जलियांवाला बाग़ में शांतिपूर्वक एक सभा आयोजित की गयी थी ।
तीसरे पहर दस हज़ार से भी ज़्यादा निहत्थे स्त्री, पुरुष और बच्चे जनसभा करने पर प्रतिबंध होने के बावजूद अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में विरोध सभा के लिए एकत्र हुए । 13 अप्रैल 1919 का वह रविवार का दिन था और आसपास के गांवों के अनेक किसान हिंदुओं तथा सिक्खों का उत्सव ‘बैसाखी’ बनाने अमृतसर आए थे । यह बाग़ चारों ओर से घिरा हुआ था। अंदर जाने का केवल एक ही रास्ता था। जनरल आर. . एच. डायर ने अपने सिपाहियों को बाग़ के एकमात्र तंग प्रवेशमार्ग पर तैनात किया था । डायर ने बिना किसी चेतावनी के 50 सैनिकों को गोलियां चलाने का आदेश दिया और चीख़ते, आतंकित भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों की भीड़ पर 10-15 मिनट में 1650 गोलियां दाग़ दी गई । जिनमें से कुछ लोग अपनी जान बचाने की कोशिश करने में लगे लोगों की भगदड़ में कुचल कर मर गए ।
जनरल डायर ने अपनी कार्यवाही को सही ठहराने के लिए तर्क दिये और कहा कि ‘नैतिक और दूरगामी प्रभाव’ के लिए यह ज़रूरी था। इसलिए उन्होंने गोली चलवाई। डायर ने स्वीकार कर कहा कि अगर और कारतूस होते, तो फ़ायरिंग ज़ारी रहती । निहत्थे नर-नारी, बालक-वृद्धों पर अंग्रेजी सेना तब तक गोली चलाती रही जब तक कि उनके पास गोलियां समाप्त नहीं हो गईं । सैकड़ों ज़िंदा व्यक्ति कुँए में कूद गये थे । गोलियां भारतीय सिपाहियों से चलवाई गयीं थीं और उनके पीछे संगीनें तानें गोरे सिपाई खड़े थे । इस हत्याकांड की सब जगह निंदा हुई
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जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के समय उधम सिंह जलियांवाला बाग़ में थे। उन्होंने इसका बदला लेने के लिए 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में बम विस्फोट किया। इस घटना के समय ब्रिटिश लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर मायकल डायर को गोली से मार डाला। ऊधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को फाँसी दे दी गयी।
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आज़ादी के बाद अमेरिकी डिज़ाइनर बेंजामिन पोक ने जलियाँवाला बाग स्मारक का डिज़ाइन तैयार किया, जिसका उदघाटन 13 अप्रैल 1961 को किया गया।
भारत क्यों तेरी साँसों के, स्वर आहत से लगते हैं,
अभी जियाले परवानों में, आग बहुत-सी बाकी है।
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प्रतियोगिता का परिणाम

द्वितीय
स्थान :
अल्पना वर्मा जी
प्रथम स्थान :
मोहसिन जी
अन्य सही जवाब देने वाले विजेताओं के क्रम इस प्रकार हैं :

चौथा स्थान :
दिनेश सरोज जी

पांचवां स्थान :
अभिषेक जैन जी

सातवाँ स्थान
:
अदिति चौहान जी

आठवां स्थान :

जमीर जी

नवां स्थान :

मनोज जी

दसवां स्थान :

दर्शन बवेजा जी

ग्यारहवां स्थान :

इंदु अरोड़ा जी
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applause applause applause समस्त
विजताओं को बधाईयाँ
applause applause applause
applause applause applause applause applause applause applause applause applause
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आशा है जो इस बार सफल नहीं हुए वो आगामी क्विज में अवश्य सफल होंगे

आप लोगों ने प्रतियोगिता में शामिल होकर
इस आयोजन को सफल बनाया जिसकी हमें बेहद ख़ुशी है

अभिनव साथी जी, शिवेंद्र सिन्हा जी, अदिति चौहान जी, इशिता जी,
मोहसिन जी, अल्पना वर्मा जी, शेखर जी, निर्मला कपिला जी,
राजेन्द्र स्वर्णकार जी, राज भाटिया जी, दिनेश सरोज जी, रवि राजभर जी,
अभिषेक जैन जी, रजनीश परिहार जी, ज़मीर जी, मनोज कुमार जी,
दर्शन लाल बावेजा जी, इंदु अरोड़ा जी, आशीष मिश्र जी, बबली जी, सविता जी

आप सभी लोगों का हार्दिक धन्यवाद
यह आयोजन हम सब के लिये मनोरंजन ओर ज्ञानवर्धन का माध्यम है !
आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें जरूर ई-मेल करें!
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का आभार व्यक्त करते हैं
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया
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22 अगस्त 2010, रविवार को हम ' प्रातः दस बजे' एक नई क्विज के साथ यहीं मिलेंगे !

सधन्यवाद
क्रियेटिवमंच
creativemanch@gmail.com
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The End

रविवार, 15 अगस्त 2010

C.M.Quiz- 36 [यह कौन सा स्मारक है और कहाँ स्थित है ?]

सी.एम.क्विज - द्वितीय चक्र
क्विज संचालन ---- प्रकाश गोविन्द



स्वाधीनता दिवस के पावन अवसर पर क्रिएटिव मंच की तरफ से आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं

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जय हिंद
जय भारत


मौसम बदला, रुत बदली है, ऐसे नही दिलशाद हुए
हिंदू-मुस्लिम एक हुए जब, तब जाकर आज़ाद हुए !
हाथ बढ़ाओ , गले लगाओ, भेद भाव अब जाने दो
नमन हमारा हो उनको, जो भारत की बुनियाद हुए !!
आप सभी को नमस्कार !
क्रियेटिव मंच आप सभी का 'सी.एम.क्विज' के
दूसरे राउंड में स्वागत करता है!


रविवार (Sunday) को सवेरे 10 बजे पूछी जाने वाली
क्विज में एक बार हम फिर हाजिर हैं !
सुस्वागतम
Welcome
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15 अगस्त 2009 को क्रिएटिव मंच की पहली पोस्ट "स्वतंत्रता संग्राम का जब्त साहित्य" प्रकाशित हुयी थी !
इस तरह क्रिएटिव मंच को आज एक वर्ष पूरे हो गए ! इस एक वर्ष में हमारी 111 पोस्ट आयीं जो फीचर,
कला और संस्कृति, श्रेष्ठ कवितायें, उत्क्रष्ट लेख, क्विज प्रतियोगिता, श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता पर आधारित थीं ! आपका स्नेह-प्रेम और अपनापन हमको निरंतर प्राप्त होता रहा ! इसके लिए हम हमेशा आप सबके आभारी रहेंगे !

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आप सब जानते हैं कि - आज सी.एम.क्विज़ के दूसरे राउंड की यह पहली क्विज है !
क्विज प्रकाशित होने के एक घंटे के भीतर अगर सही जवाब प्राप्त नहीं होता है तो हिंट दिया जाएगा !

सी.एम.क्विज़ का दूसरा राउंड भी 35 क्विज का होगा ! बाकी सभी नियम व शर्तें पूर्व की तरह ही रहेंगी,
जिसे नए प्रतियोगी नीचे बॉक्स में पढ़ सकते हैं !
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लीजिये अब प्रस्तुत है दूसरे राउंड की पहली क्विज
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C.M.Quiz- 36
इस जगह को पहचानिए!
यह कौन सा स्मारक है और कहाँ स्थित है ??
तो बस जल्दी से जवाब दीजिये और बन जाईये

C.M. Quiz - 36 के विजेता !
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पूर्णतयः सही जवाब न मिलने की स्थिति में अधिकतम सही जवाब देने वाले प्रतियोगी को विजेता माना जाएगा ! जवाब देने की समय सीमा आज यानि 15 अगस्त रात्रि 10 बजे तक है ! उसके बाद आये हुए जवाब को प्रकाशित तो किया जाएगा किन्तु परिणाम में शामिल करना संभव नहीं होगा !
---- क्रियेटिव मंच
सूचना :
आपका जवाब आपको यहां न दिखे तो कृपया परेशान ना हों. माडरेशन ऑन रखा गया है, इसलिए केवल ग़लत जवाब ही प्रकाशित किए जाएँगे. सही जवाबों को समय सीमा से पूर्व प्रकाशित नहीं किया जाएगा. क्विज का परिणाम कल यानि 16 अगस्त को प्रातः 10 बजे घोषित किया जाएगा !


विशेष सूचना :
क्रियेटिव मंच की तरफ से विजताओं को प्रमाणपत्र तीन श्रेणी में दिए जायेंगे ! कोई प्रतियोगी तीन बार प्रथम विजेता ( हैट्रिक होना जरूरी नहीं है ) बनता है तो उसे "चैम्पियन " का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा

इसी तरह अगर कोई प्रतियोगी छह बार प्रथम विजेता बनता है तो उसे "सुपर चैम्पियन" का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा !

किसी प्रतियोगी के दस बार प्रथम विजेता बनने पर क्रियेटिव मंच की तरफ से 'जीनियस' का प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा

C.M.Quiz के अंतर्गत अलग-अलग तीन राउंड (चक्र) होंगे !
प्रत्येक
राउंड में 35 क्विज पूछी जायेंगी ! प्रतियोगियों को अपना लक्ष्य इसी नियत चक्र में ही पूरा करना होगा !
---- क्रियेटिव मंच
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जिन लोगों ने क्विज का जवाब दे दिया हो या जिन लोगों को क्विज में शामिल होने का आज मन न हो वो देश भक्ति के रंग में सराबोर होकर ये वीडिओ देखें और गीत सुनें ! पेश है मेरी पसंद के छह गीत :
है प्रीत जहाँ की...
फ़िल्म-पूरब और पश्चिम
मेरा रंग दे बसंती चोला
फ़िल्म- शहीद
जिन्दगी मौत न...
फ़िल्म - सरफरोश
कर चले हम फ़िदा
फ़िल्म- हकीकत
चक दे ..चक दे
फ़िल्म- चक दे इंडिया
भारत हमको जान से..
फ़िल्म- रोजा
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बुधवार, 19 मई 2010

हे परमपुरूषों बख्शो..., अब मुझे बख्शो... -- सुश्री अरूणा राय

क्रिएटिव मंच पर आपका स्वागत है !

इस मंच के शुरआती दौर से ही हमने हिंदी व् अन्य भाषाओँ के चर्चित लेखक / लेखिका की चुनिन्दा रचनाएँ आप के समक्ष प्रस्तुत करते रहे हैं ! इसी श्रृंखला के अंतर्गत आज प्रस्तुत हैं -'सुश्री अरुणा राय की छह बेहतरीन कवितायें'

आशा है आप का सहयोग एवं सराहना हमें पूर्ववत मिलता रहेगा और प्रस्तुत रचनाओं पर आप के विचारों की प्रतीक्षा रहेगी !
प्रस्तुति :- -प्रकाश गोविन्द


सुश्री अरूणा राय

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परिचय

उपनाम : रोज
जन्‍म : इलाहाबाद
तिथि : 18 नवंबर 1986


प्रकाशन : छोटी उम्र से सक्रिय लेखन,
शीर्षस्थ पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन !


fantasy
कितना छोटा है जीवन
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जीने के लिए
कितनी छोटी है दुनिया
चलने के लिए
कि आदमी पांवों से कम
हवाओं पे चलता है ज्‍यादाIMG_0015
भावों में कम
अभावों में पलता है ज्‍यादा
और बाकी रह जाते हैं सपने
बाकी रह जाता है जीना

एक एक सपने को
सच करने में लग जाते हैं
कई कई युग
पर सपने हैं कि दम नहीं तोडते कभी
अभाव के व्‍यंग्‍य से
जूते चबाता आदमी
देखता रहता है सपने
जीता रहता है सपने
और सच क्‍या है
उस स्‍वप्‍न के सिवा
जो आदमी की नींद में पलता है
जिसके लिए जगकर वह
मीलो मील चलता है
फिर थककर उसी सपने का हो रहता है !
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कुछ तो है हमारे बीच
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कुछ तो है हमारे बीच
कि हमारी निगाहें मिलती हैं
और दिशाओं में आग लग जाती है

कुछ तो है
कि हमारे संवादों पर
निगाह रखते हैं रंगे लोग
और समवेत स्‍वर में
करने लगते हैं विरोध

कुछ तो है कि रूखों पर पोती गयी कालिख
जलकर राख हो जाती है banner-artemis-detail2-DS-BA-024_t

कुछ तो है हमारे मध्‍य
कि हर बार निकल आते हैं हम
निर्दोष, अवध्‍य

कुछ तो है
जिसे गगन में घटता-बढता चांद
फैलाता-समेटता है
जिसे तारे गुनगुनाते हैं मद्धिम लय में
कुछ तो है कि जिसकी आहट पा
झरने लगते हैं हरसिंगार
कुछ है कि मासूमियत को
हमपे आता है प्‍यार...
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अदृश्य परदे के पीछे से
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अदृश्य परदे के पीछे से
दर्ज़ कराती जाती हूँ मै
अपनी शामतें
जो आती रहती हैं बारहा

अक्सर
उन शामतों की शक्लें होती हैं
अंतिरंजित मिठास से सनी
इन शक्लों की शुरूआत
अक्सर कवित्वपूर्ण होती है
और अभिभूत हो जाती हूँ मै3801_symposium_200_tn
कि अभी भी करूणा,स्नेह,वात्सल्य से
खाली नहीं हुई है दुनिया

खाली नहीं हुई है वह
सो हुलसकर गले मिलती हूँ मै
पर मिलते ही बोध होता है
कि गले पड़ना चाहती हैं वे शक्लें
कि यही रिवाज है परंपरा है

कि जिसने मेरे शौर्य और साहस को
सलाम भेजा था
वह कॉपीराइट चाहता है
अपनी सहृदयता का, न्यायप्रियता का
उस उल्लास का
जिससे मुझे हुलसाया था

और ठमक जाती हूँ मै
सोचती हुई-
क्या चेहरे की चमक
मेरे निगाहों की निर्दोषिता
काफ़ी नहीं जीने के लिए

सोच ही रही होती हूँ कि
फ़ैसला आ जाता है परमपिताओं का
और चीख़ उठती हूँ -
हे परमपुरूषों बख्शो..., अब मुझे बख्शो!
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अभी तूने वह कविता कहाँ लिखी है, जानेमन
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अभी तूने वह कविता कहाँ लिखी है, जानेमन
मैंने कहाँ पढ़ी है वह कविता
अभी तो तूने मेरी आँखें लिखीं हैं, होंठ लिखे हैं
कंधे लिखे हैं उठान लिए
और मेरी सुरीली आवाज लिखी है

पर मेरी रूह फ़ना करते
उस शोर की बाबत कहाँ लिखा कुछ तूने
जो मेरे सरकारी जिरह-बख़्तर के बावजूद
मुझे अंधेरे बंद कमरे में
एक झूठी तस्सलीबख़्श नींद में ग़र्क रखता है Giacomo_Balla-Mercury_Passing_Before_the_Sun-Tempera_on_Canvas_Board-1914

अभी तो बस सुरमयी आँखें लिखीं हैं तूने
उनमें थक्कों में जमते दिन-ब-दिन
जिबह किए जाते मेरे ख़ाबों का रक्त
कहाँ लिखा है तूने

अभी तो बस तारीफ़ की है
मेरे तुकों की लय पर प्रकट किया है विस्मय
पर वह क्षय कहाँ लिखा है
जो मेरी निग़ाहों से उठती स्वर-लहरियों को
बारहा जज़्ब किए जा रहा है

अभी तो बस कमनीयता लिखी है तूने मेरी
नाज़ुकी लिखी है लबों की
वह बाँकपन कहाँ लिखा है तूने
जिसने हज़ारों को पीछे छोड़ा है
और फिर भी जिसके नाख़ून और सींग
नहीं उगे हैं

अभी तो बस
रंगीन परदों, तकिए के गिलाफ़ और क्रोशिए की
कढ़ाई का ज़िक्र किया है तूने
मेरे जीवन की लड़ाई और चढ़ाई का ज़िक्र
तो बाक़ी है अभी...

अभी तुझे वह कविता लिखनी है, जानेमन...
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आखिर हम आदमी थे
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इक्कीसवीं सदी के
आरंभ में भी
प्यार था
वैसा ही आदिम
शबरी के जमाने सा
तन्मयता वैसी ही थी
मद्धिम था स्पर्श
गुनगुना...
आखिर हम आदमी थे
इक्कीसवीं सदी में भी..
कि अपना ख़ुदा होना
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ग़ुलामों की
ज़ुबान नही होती
सपने नही होते
इश्क तो दूर
जीने की
बात नही होती
मैं कैसे भूल जाऊँ
अपनी ग़ुलामी
कि अपना ख़ुदा होना
कभी भूलता नहीं तू...
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The End
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बुधवार, 12 मई 2010

मत बांधिए उसके अन्दर की आग को -- 'ऋतु पल्लवी'

क्रिएटिव मंच पर आप का स्वागत है !

इस मंच के शुरआती दौर से ही हमने हिंदी व् अन्य भाषाओँ के चर्चित लेखक / लेखिका की चुनिन्दा रचनाएँ आप के समक्ष प्रस्तुत करते रहे हैं ! इसी श्रृंखला के अंतर्गत आज प्रस्तुत हैं -'डा० ऋतु पल्लवी की पांच बेहतरीन कवितायें'

आशा है आप का सहयोग एवं सराहना हमें पूर्ववत मिलता रहेगा और प्रस्तुत रचनाओं पर आप के विचारों की प्रतीक्षा रहेगी !
प्रस्तुति :- -प्रकाश गोविन्द


डॉ. ऋतु पल्लवी
Ritu Pallavi
परिचय

जन्म : 16 अक्तूबर 1978
जन्म स्थान : सीतामढी (बिहार)
शिक्षा- 'निर्मल वर्मा के उपन्यासों में चरित्र एवं परिवेश' पर शोध कार्य।
व्यवसाय- केंद्रीय विद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षिका हिंदी।
प्रकाशन- 'कादम्बिनी' में कविता, पूर्वग्रह (भारत भवन प्र.) में लेख, के.वि. त्रैमासिक पत्रिका में समय-समय पर लेख, कविता आदि। नेट पत्रिका 'अनुभूति' पर कविताएँ और 'अभिव्यक्ति' पर पुस्तक समीक्षा प्रकाशित।
रुचि- साहित्यिक पठन-पाठन एवं लेखन।

fire-storm-peter-shor
औरत
=====
पेचीदा, उलझी हुई राहों का सफ़र है
कहीं बेवज़ह सहारा तो कहीं खौफ़नाक अकेलापन है
कभी सख्त रूढि़यों की दीवार से बाहर की लड़ाई है...
..तो कभी घर की ही छत तले अस्तित्व की खोज है
समझौतों की बुनियाद पर खड़ा ये सारा जीवन
जैसे-जैसे अपने होने को घटाता है...
दुनिया की नज़रों में बड़ा होता जाता है
...कहीं मरियम तो कहीं देवी की महिमा का स्वरूप पाता है!
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जीने भी दो
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महानगर में ऊँचे पद की नौकरी
अच्छा-सा जीवन साथी और हवादार घर
यही रूपरेखा है-
युवा वर्ग की समस्याओं का और यही निदान भी। Fan-Death-II-500

इस समस्या को कभी आप तितली,
फूल और गंध से जोड़ते हैं,
रूमानी खाका खींचते हैं,
उसके सपनों, उम्मीदों-महत्वाकांक्षाओं का।

कभी प्रगतिवाद, मार्क्सवाद, सर्ववाद से जोड़कर
मीमांसा करते हैं उसके अन्तर्द्वन्द्व
साहस और संघर्ष की।
छात्र आन्दोलनों, युवा रैलियों, राजनीति से जोड़ते हैं
कभी उसके अन्दर के
विद्रोह, क्रान्ति और सृजन को।

मत बांधिए उसके अन्दर की आग को इन परिभाषाओं में
जिन से जुड़कर वह केवल
वाद, डंडों और मोर्चों का होकर रह जाता है।


जीने दीजिये उसे अपना नितांत निजी जीवन
अपने सपने, अपना संघर्ष
अपनी समस्याएँ, अपना निदान!
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वेश्या
=====
मैं पवित्रता की कसौटी पर पवित्रतम हूँpainting 001
क्योंकि मैं तुम्हारे समाज को
अपवित्र होने से बचाती हूँ।

सारे बनैले-खूंखार भावों को भरती हूँ
कोमलतम भावनाओं को पुख्ता करती हूँ।

मानव के भीतर की उस गाँठ को खोलती हूँ
जो इस सामाजिक तंत्र को उलझा देता
जो घर को, घर नहीं
द्रौपदी के चीरहरण का सभालय बना देता।

मैं अपने अस्तित्व को तुम्हारे कल्याण के लिए खोती हूँ
स्वयं टूटकर भी, समाज को टूटने से बचाती हूँ
और तुम मेरे लिए नित्य नयी
दीवार खड़ी करते हो।
'बियर बार' और ' क्लब' जैसे शब्दों के प्रश्न
संसद मैं बरी करते हो।

अगर सचमुच तुम्हे मेरे काम पर शर्म आती है
तो रोको उस दीवार पार करते व्यक्ति को
जो तुम्हारा ही अभिन्न साथी है।
मैं तो यहाँ स्वाभिमान के साथ
तलवार की नोंक पर रहकर भी,
तन बेचकर, मन की पवित्रता को बचा लेती हूँ

पर क्या कहोगे अपने उस मित्र को
जो माँ-बहन, पत्नी, पड़ोसियों से नज़रें बचाकर
सारे तंत्र की मर्यादा को ताक पर रखकर
रोज़ यहाँ मन बेचने चला आता है।
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क्यों नहीं
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नीला आकाश, सुनहरी धूप, हरे खेत
पीले पत्ते ही क्यों उपमान बनते हैं !

कभी बेरंग रेगिस्तान में क्यों
गुलाबी फूलों की बात नहीं होती ? Painting_P3_04.246162826

रूप की रोशनी ,तारों की रिमझिम,
फूलों की शबनमी को ही क्यों सराहते हैं लोग!

कभी अनमनी अमावस की रात में क्यों
चाँद की चांदनी नहीं सजती ?

नेताओं के नारे ,पत्रकारों के व्यक्तव्य
कवि के भवितव्य ही क्यों सजते हैं अखबारों में!

कभी आम आदमी की संवेदना का सम्पादन
क्यों नहीं छपता इन प्रसारों में ?

मैं तुम्हें प्रेम भरी पाती ,संवेदनशील कविता,सन्देश,आवेश
या आक्रोश कुछ भी न भेजूं!

फिर भी मुखरित हो जाए मेरी हर बात
कभी क्यों नहीं होता ऐसा शब्दों पर,मौन का आघात..?
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मृत्यु
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जब विकृत हो जाता है,हाड़-मांस का शरीर
निचुड़ा हुआ निस्सार489
खाली हो जाता है
संवेदना का हर आधार..
सोख लेता है वक्त भावनाओं को,
सिखा देते हैं रिश्ते अकेले रहना (परिवार में)
अनुराग,ऊष्मा,उल्लास,ऊर्जा,गति
सबका एक-एक करके हिस्सा बाँट लेते हैं हम
और आँख बंद कर लेते हैं.
पूरे कर लेते हैं-अपने सारे सरोकार
और निरर्थकता के बोझ तले
दबा देते हैं उसके अस्तित्व को
तब वह व्यक्ति मर जाता है,अपने सारे प्रतिदान देकर
और हमारे केवल कुछ अश्रु लेकर..

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The End