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महाश्वेता देवी जी | संदीप पाण्डेय जी | मेधा पाटकर जी | सुन्दरलाल बहुगुणा जी | बाबा आम्टे जी |
आप सभी को नमस्कार ! क्रियेटिव मंच आप सभी का स्वागत करता है ! आप सभी प्रतियोगियों एवं पाठकों को बहुत-बहुत बधाई जिन्होने इस पहेली मे हिस्सा लिया ! कल C.M.Quiz -26 के अंतर्गत हमने पांच समाज सेवियों के चित्र दिखाए थे और प्रतियोगियों से उन्हें पहचानने को कहा था ! अपने लिए तो सभी जीते हैं पर असली नायक वे होते हैं जो दूसरों के लिए संघर्ष करते हैं ! इस बार हम चाहते थे कि शत-प्रतिशत प्रतियोगियों के सही जवाब प्राप्त हों किन्तु ऐसा न हो सका ! सिर्फ पांच प्रतियोगियों द्वारा ही पूर्णतयः सही जवाब प्राप्त हुए ! आदरणीय संगीता जी ने एक बार पुनः अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए सबको पीछे छोड़ दिया ! उनकी जीत इस मायने में भी ख़ास है क्योंकि उन्होंने हिंट आने के पहले ही सही जवाब प्रेषित कर दिया और C.M.Quiz-26 की प्रथम विजेता बन गयीं ! उसके उपरान्त हमें रेखा प्रहलाद जी और अल्पना वर्मा जी का सही जवाब एक ही समय पर प्राप्त हुआ ! इस बार अल्पना जी ने बहुत मेहनत की ! उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि वो बहुगुणा जी की जगह विनोबा भावे लिखकर आश्वस्त हो गयी ! सचमुच बहुत करीब आकर अल्पना जी चूक गयीं ! रेखा जी और अल्पना जी का समय एक ही होने के कारण दोनों को ही द्वितीय स्थान हासिल हुआ ! रामकृष्ण गौतम जी को भी गलतफहमी हो गयी और उन्होंने संदीप पाण्डेय जी को राजेन्द्र सिंह समझ लिया ! हालांकि इस क्विज में राजेन्द्र सिंह जी को भी शामिल किया जाना था ! सभी विजेताओं को हमारी तरफ से बहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं आईये चित्र में दिए गए समाज सेवियों के बारे में संक्षिप जानकारी लेते हैं और क्विज का शेष परिणाम देखते हैं : |
महाश्वेता देवी का जन्म 14 जनवरी 1942 को ढाका में हुआ था। इनके पिता मनीष घटक एक कवि और एक उपन्यासकार थे, और आपकी माता धारीत्री देवी भी लेखिका और एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। महाश्वेता जी ने शांतिनिकेतन से बी.ए.(Hons) अंग्रेजी में किया, और फिर कोलकाता विश्वविद्यालय में एम.ए. अंग्रेजी में किया। कोलकाता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर की डिग्री प्राप्त करने के बाद एक शिक्षक और पत्रकार के रूप में अपना जीवन शुरू किया। तदुपरांत कलकत्ता विश्वविद्यालय में अंग्रेजी व्याख्याता के रूप में नौकरी भी की। 1984 में सेवानिवृत्त ले ली।
महाश्वेता देवी एक बांग्ला साहित्यकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं । इन्हें 1996 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। एक पत्रकार, लेखक, साहित्यकार और आंदोलनधर्मी के रूप में अपार ख्याति प्राप्त की। ‘झाँसी की रानी’ महाश्वेता देवी की प्रथम रचना है। जो 1956 में प्रकाशन में आया। उनकी कुछ महत्वपूर्ण कृतियों में 'अग्निगर्भ' 'जंगल के दावेदार' और '1084 की मां', माहेश्वर, ग्राम बांग्ला हैं। पिछले चालीस वर्षों में, आपकी छोटी-छोटी कहानियों के बीस संग्रह प्रकाशित किये जा चुके हैं और सौ उपन्यासों के करीब (सभी बंगला भाषा में) प्रकाशित हो चुकी है।
महाश्वेता देवी की कृतियों पर फिल्में भी बनीं। 1968 में 'संघर्ष', 1993 में 'रूदाली', 1998 में 'हजार चौरासी की माँ', 2006 में 'माटी माई'। महाश्वेता देवी को 1979 में बंगाली भाषा का 'साहित्य अकादमी अवार्ड', 1986 में 'पद्मश्री', 1996 में 'ज्ञानपीठ', 1997 में 'रमन मैगसेसे पुरस्कार', 2006 में 'पद्म विभूषण' सम्मान मिला है।
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डॉ संदीप पाण्डेय जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय समन्वयक हैं, लोक राजनीति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्षीय मंडल के सदस्य हैं, और 'रमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इस छात्र ने केलिफोर्निया से PhD की डिग्री लेने के बाद I.I.T. में अध्यापन का कार्य किया। बाद में पूरा समय सामाजिक सेवा में लगाने के भाव से यह पद भार छोड़ दिया । सन् 2002 में 'रमन मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित आईआईटी,कानपुर के पूर्व प्रोफेसर डॉ. संदीप पाण्डेय को गरीबों के उत्थान और गरीब बच्चों के लिए शिक्षा सहायता की पहल के लिए प्रतिबद्ध नेता और सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में देखा जाता है। गांधीवाद को मानने वाले डॉ. संदीप ने लखनऊ के पास लालपुर में 'आशा' नामक स्वयंसेवी संस्था की स्थापना की. प्रजातंत्र को मजबूत करने की दिशा में सभी नागरिकों को 'सूचना का अधिकार' मिले इसके लिए भी उन्होंने कार्य किया। स्थानीय क्षेत्रों में सरकारी भ्रष्टाचार ,जातिवाद ,दलित शोषण के खिलाफ उन्होंने मुहीम चलायीं। 2005 में उन्होंने दिल्ली [भारत] से मुल्तान [पाकिस्तान] तक 'मैत्री यात्रा' भी की. 1999 में पोखरन से सारनाथ तक की पैदल यात्रा परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए एक सन्देश थी. आजकल वे आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विरोध और परमाणु निरस्त्रीकरण के पक्ष में आन्दोलन करने के कारण चर्चित हैं। |
मेघा पाटकर का जन्म 1 दिसम्बर 1954 में मुबंई के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. मेधा पाटकर को नर्मदा घाटी की आवाज़ के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है. मेधा पाटकर ने सामाजिक अध्ययन के क्षेत्र में गहन शोध कार्य किया है. गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित मेधा पाटकर ने सरदार सरोवर परियोजना से प्रभावित होने वाले लगभग 37 हज़ार गांवों के लोगों को अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ी है. बाद में वे विस्थापितों के आंदोलन का भी नेतृत्व करने लगीं. लेकिन वे चुनावी राजनीति से हमेशा दूर रही। उत्पीडि़तों और विस्थापितों के लिए समर्पित मेधा पाटकर का जीवन शक्ति, उर्जा और वैचारिक उदात्तता की जीती-जागती मिसाल है। उनके संघर्षशील जीवन ने उन्हें पूरे विश्व के महत्वपूर्ण शख्सियतों में शुमार किया है। उन्होंने 16 साल नर्मदा घाटी में बिताए हैं. कई ऐसे मौक़े आए हैं जब जनता ने मेधा का जुझारू रूप देखा है. 1991 में 22 दिनों का अनशन करके वे लगभग मौत के मुंह में चली गई थीं. इसके अलावा वे नर्मदा घाटी के लोगों के लिए कम से कम दस बार जेल जा चुकी हैं। मेधा पाटकर को कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं जिनमें गोल्डमैन एनवायरमेंट अवार्ड भी शामिल है। उनके संगठन ने बुनियादी शिक्षा, स्वास्थ्य और पेयजल की स्थिति में सुधार के लिए काफ़ी काम किया है। मेधा पाटकर ने भारत के सभी जनांदोलनों को एक-दूसरे से जोड़ने की पहल भी की है, उन्होंने एक नेटवर्क की शुरूआत की जिसका नाम है- नेशनल एलांयस फॉर पीपुल्स मूवमेंट. मेधा पाटकर देश में जनांदोलन को एक नई परिभाषा देने वाली नेताओं में हैं। |
चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी, सन 1927 को उत्तराखंड के सिलयारा नामक स्थान पर हुआ । प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. किए । सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी की।
दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया। सिलयारा में ही 'पर्वतीय नवजीवन मण्डल' की स्थापना की । 1971 में सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए । बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड आफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में इनको पुरस्कृत किया । इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया । पर्यावरण को स्थाई सम्पति मानने वाला यह महापुरुष 'पर्यावरण गाँधी' बन गया। अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता के रूप में 1981 में स्टाकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार मिला। 1981 में पद्मश्री पुरस्कार को यह कह कर स्वीकार नहीं किया कि जब तक पेड़ों की कटाई जारी है, मैं अपने को इस सम्मान के योग्य नहीं समझता हूँ। 1985 में जमनालाल बजाज पुरस्कार। 1987 में चिपको आन्दोलन के लिए राइट लाइवलीहुड पुरस्कार। 1987 में शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार। 1987 में सरस्वती सम्मान। 1998 में पहल सम्मान। 1999 में गाँधी सेवा सम्मान। 2000 में सांसदों के फोरम द्वारा सत्यपाल मित्तल एवार्ड।
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बाबा आमटे का जन्म 26 दिसम्बर 1914 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले में हुआ. वकालत की शिक्षा पुरी करने के बाद उन्होंने महात्मा गाँधी के साथ उनके सेवाग्राम के आश्रम में वक्त बिताया। बापू ने "अभय-साधक" की उपलब्धि दी थी। बाबा आमटे ने अपना पूरा जीवन कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों की सेवा और पुनर्वास में बिता दिया। जिन लोगों को उन्होंने इस रोग से मुक्ति दिलाई, उनके लिए बाबा आमटे भगवान से कम नही रहे। बाबा आमटे ने 1985 में कन्याकुमारी से कश्मीर तक "भारत जोडो" आन्दोलन शुरू किया था. समाज से परित्यक्त लोगों और कुष्ठ रोगियों के लिये उन्होंने अनेक आश्रमों और समुदायों की स्थापना की। इनमें चन्द्रपुर, महाराष्ट्र स्थित आनंदवन का नाम प्रसिद्ध है। बाबा ने अनेक अन्य सामाजिक कार्यों, जिनमें वन्य जीवन संरक्षण तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया।
वड़ोरा के पास घने जंगल में अपनी पत्नी साधनाताई, दो पुत्रों, एक गाय एवं सात रोगियों के साथ आनंद वन की स्थापना की। यही आनंद वन आज बाबा आमटे और उनके सहयोगियों के कठिन श्रम से आज हताश और निराश कुष्ठ रोगियों के लिए आशा, जीवन और सम्मानजनक जीवन का केंद्र बन चुका है। किसी समय 14 रुपये में शुरु हुआ "आनन्दवन" का बजट आज करोड़ों में है। 180 हेक्टेयर जमीन पर फैला आनन्दवन अपनी आवश्यकता की हर वस्तु स्वयं पैदा कर रहा है। बाबा ने आनन्दवन के अलावा और भी कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की। 9 फरवरी, 2008 को बाबा का 94 साल की आयु में चन्द्रपुर जिले के वड़ोरा स्थित अपने निवास में निधन हो गया।
महत्वपूर्ण सम्मान एवं पुरस्कार : 1983 में अमेरिका का डेमियन डट्टन पुरस्कार। 1985 में मैगसेसे पुरस्कार । 1988 में घनश्यामदास बिड़ला अंतरराष्ट्रीय सम्मान। 1988 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार सम्मान। 1990 में अमेरिकी टेम्पलटन पुरस्कार। 1991 में ग्लोबल 500 संयुक्त राष्ट्र सम्मान। 1992 में राइट लाइवलीहुड सम्मान। भारत सरकार द्वारा 1971 में पद्मश्री। 1986 में पद्मभूषण दिया। 2004 में महाराष्ट्र भूषण सम्मान। 1999 में गाँधी शांति पुरस्कार। |
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तृतीय स्थान : शुभम जैन जी | |
विजताओं को बधाईयाँ | ||||||
जिन्होंने सराहनीय प्रयास किया और विजेता बनने के करीब पहुंचे : |
इस आयोजन को सफल बनाया जिसकी हमें बेहद ख़ुशी है
आनंद सागर जी, विवेक रस्तोगी जी, संगीता पुरी जी, रेखा प्रह्लाद जी,
राज रंजन जी, पूर्णिमा जी, गगन शर्मा जी, पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी
मोहसिन जी, रामकृष्ण गौतम जी, अदिति चौहान जी, शाहीन जी
आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें जरूर ई-मेल करें!
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का आभार व्यक्त करते हैं
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया
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The End |