सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

आचार्य रजनीश ओशो और संत मोरारी बापू

क्विज संचालन ---- प्रकाश गोविन्द


प्रिय साथियों
नमस्कार !!!
हम आप सभी का क्रिएटिव मंच पर अभिनन्दन करते हैं।
'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 10' आयोजन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों और विजेताओं को बधाई। जैसा कि हमने शुरू में ही कहा था इस क्विज श्रंखला में आपको विविधताएं मिलेंगी। हर बार फ़िल्म से जुडी क्विज़ हो ये आवश्यक नहीं है। इस बार हमने अध्यात्मिक जगत से जुडी दो शख्सियतों- रजनीश 'ओशो' और 'संत मोरारी बापू' की आवाजें सुनवाई थीं और प्रतियोगियों से उनका नाम पूछा था।

वर्तमान में बहुत से संत आये और गए मगर ये दोनों संत अपना विशेष स्थान रखते हैं। अगर युवा पीढ़ी को इनमें रूचि नहीं है तो कोई बात नहीं लेकिन जीवन दर्शन से रूबरू होना कुछ गलत नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने ये दो क्लिप सुनवाई और आज इन दोनों महान गुरुओं का परिचय और उनके कुछ विचार आप के सामने रखे हैं।

इस बार हमको बहुत ही कम लोगों के सही जवाब प्राप्त हुए। सबसे पहले दर्शन बवेजा जी ने सही जवाब भेजा और प्रथम स्थान हासिल किया। उसके उपरान्त क्रमशः शुभम जैन जी और आशीष मिश्रा जी ने सही जवाब देकर द्वितीय व तृतीय स्थान प्राप्त किया।

आप सभी अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखिये। आप की प्रतिक्रिया और सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी। अब अगले रविवार को "सी.एम.ऑडियो क्विज़-11" में आपसे पुनः यहीं मुलाकात होगी।

समस्त विजेताओं व प्रतिभागियों को
एक बार पुनः बहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।

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अब आईये -
''सी.एम.ऑडियो क्विज-10' के पूरे परिणाम के साथ ही क्विज में पूछे गए दोनों प्रबुद्ध व्यक्तित्व के बारे में बहुत संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करते हैं :
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1- आचार्य रजनीश 'ओशो' [Osho]
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11 दिसंबर 1931 को जब मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गाँव (रायसेन जिला) में ओशो का जन्म हुआ तो कहते हैं कि पहले तीन दिन न वे रोए, न दूध ‍पिया। उनकी नानी ने एक ज्योतिषी से ओशो की कुंडली बनवाई, जो अपने आप में काफी अद्‍भुत थी। कुंडली पढ़ने के बाद ज्योतिषी ने कहा- 'यदि यह बच्चा सात वर्ष जिंदा रह जाता है, उसके बाद ही मैं इसकी पूर्ण कुंडली बनाऊँगा- क्योंक‍ि इसके लिए सात वर्ष से अधिक जीवित रहना असंभव ही लगता है। ज्योतिष ने साथ ही यह भी कहा था कि 7 वर्ष की उम्र में बच गया तो 21 में मरना तय है, लेकिन यदि 21 में भी बच गया तो यह विश्व विख्यात होगा।'

osho-meditation-music-free-download सात वर्ष की उम्र में ओशो के नाना की मृत्यु हो गई तब ओशो अपने नाना से इस कदर जुड़े थे कि उनकी मृत्यु उन्हें अपनी मृत्यु लग रही थी वे सुन्न और चुप हो गए थे लगभग मृतप्राय। लेकिन वे बच गए और सात वर्ष की उम्र में उन्हें मृत्यु का गहरा अनुभव हुआ। 14 वर्ष की उम्र में उनके शरीर पर एक जहरिला सर्प बहुत देर तक लिपटा रहा। फिर 21 वर्ष की उम्र में उनके शरीर और मन में जबरदस्त परिवर्तन होने लगे उन्हें लगा कि वे अब मरने वाले हैं तो एक वृक्ष के नीचे जाकर बैठ गए, जहाँ उन्हें संबोधि घटित हो गई।

ओशो ने हर एक पाखंड पर चोट की। सन्यास की अवधारणा को उन्होंने osho8भारत की विश्व को अनुपम देन बताते हुए सन्यास के नाम पर भगवा कपड़े पहनने वाले पाखंडियों को खूब लताड़ा। ओशो ने सम्यक सन्यास को पुनर्जीवित किया है। ओशो ने पुनः उसे बुद्ध का ध्यान, कृष्ण की बांसुरी, मीरा के घुंघरू और कबीर की मस्ती दी है। ओशो की नजर में सन्यासी वह है जो अपने घर-संसार, पत्नी और बच्चों के साथ रहकर पारिवारिक, सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए ध्यान और सत्संग का जीवन जिए। ओशो कहते हैं-

osho-rajneesh1 'आपने घर-परिवार छोड़ दिया, भगवे वस्त्र पहन लिए, चल पड़े जंगल की ओर। यह जीवन से भगोड़ापन है, और आसान भी है। भगवे वस्त्रधारी संन्यासी की पूजा होती आई है। वह दरअसल उसकी नहीं, उसके वस्त्रों की पूजा है। वह सन्यास आसान है क्योंकि आप संसार से भाग खड़े हुए तो संसार की सब समस्याओं से मुक्त हो गए। सन्यासी अपनी जरूरतों के लिए संसार पर निर्भर रहा और त्यागी भी बना रहा। लेकिन ऐसा सन्यास आनंद न बन सका। सन्यास से वे बांसुरी के गीत खो गए जो भगवान श्रीकृष्ण के समय कभी गूंजे होंगे-सन्यास के मौलिक रूप में।'

ओशो सरस संत और प्रफुल्ल दार्शनिक हैं। उनकी भाषा osho1027कवि की भाषा है उनकी शैली में हृदय को द्रवित करने वाली भावना की उच्चतम ऊँचाई भी है और विचारों को झँकझोरने वाली अकूत गहराई भी। उनकी गहराई का जल दर्पण की तरह इतना निर्मल है कि तल को देखने में दिक्कत नहीं होती। उनका ज्ञान अँधकूप की तरह अस्पष्ट नहीं है। कोई साहस करे, प्रयोग करे तो उनके ज्ञान सरोवर के तल तक सरलता से जा सकता है।

osho2103 ओशो ने जीवन में कभी कोई किताब नहीं लिखी। मगर दुनिया भर में हुए संतों और अध्यात्मिक गुरुओ की श्रृंखला में वे एक मात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिनका बोला गया एक-एक शब्द प्रिंट, ऑडिओ और वीडिओ में उपलब्ध है। आज ओशो एक ऐसी शख्सियत हैं जिनको दुनिया भर में सबसे अधिक पढ़ा जाता हैं। उनकी किताबों का सबसे ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

महान दार्शनिक- विचारक ओशो ने प्रचलित धर्मों की व्याख्या osho-viha-meditationकी और व्यक्ति को उसकी अपनी आंतरिक क्षमता से अवगत कराया है और बुद्धत्व का पथ प्रशस्त किया है। उन्होंने आदमी की पिच्छलग्गू प्रवृत्ति को ललकारा और उसकी अदम्य, अनंत ऊर्जा शक्ति को उजागर करके उसे एक गौरव दिया। दुनिया को एकदम नए विचारों से बौद्धिक जगत को हिला देने वाले, भारतीय गुरु ओशो से अमेरिकी सरकार इस कदर प्रभावित हुई कि भय से ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया था

osho_reading ओशों की पुस्तकों के लिए दुनिया की 54 भाषाओं में 2567 प्रकाशन करार हुए हैं। ओशो साहित्य की सालाना बिक्री तीस लाख प्रतियों तक होती है। ओशो की पुस्तकों का पहला मुद्रण 25 हजार तक होना मामूली बात है। ओशो की पुस्तक 'जीवन की अभिनव अंतदृष्टि' सारी दुनिया में बेस्ट सेलर साबित हुयी है। वियतनाम और इंडोनेशिया में इसकी दस लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं। पूरे देश में आज पूना एकमात्र ऐसा शहर है जहाँ से सबसे अधिक कोरियर और डाक विदेश जाती है।
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2- संत मोरारी बापू [Morari Bapu]
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मोरारी बापू का जन्म 25 सितम्बर, 1946 के दिन महुआ के समीप तलगारजा (सौराष्ट्र) में वैष्णव परिवार में हुआ। दादाजी त्रिभुवनदास का रामायण के प्रति असीम प्रेम था। तलगारजा से महुआ वे पैदल विद्या अर्जन के लिए जाया करते थे। 5 मील के इस रास्ते में उन्हें दादाजी द्वारा बताई गई रामायण की 5 चौपाइयाँ प्रतिदिन याद करना पड़ती थीं। इस नियम के चलते उन्हें धीरे-धीरे समूची रामायण कंठस्थ हो गई। दादाजी को ही बापू ने अपना गुरु मान लिया था। 14 वर्ष की आयु में बापू ने पहली बार तलगारजा में 1960 में एक महीने तक रामायण कथा का पाठ किया।

morari_bapu1मोरारी बापू का विवाह सावित्रीदेवी से हुआ। उनके चार बच्चों में तीन बेटियाँ और एक बेटा है। पहले वे परिवार के पोषण के लिए रामकथा से आने वाले दान को स्वीकार कर लेते थे, लेकिन जब यह धन बहुत अधिक आने लगा तो 1977 से प्रण ले लिया कि वे कोई दान स्वीकार नहीं करेंगे। इसी प्रण को वे आज तक निभा रहे हैं। मोरारी बापू मिथ्या आडम्बर और प्रदर्शन से काफी दूर हैं।

सर्वधर्म सम्मान की लीक पर चलने वाले मोरारी बापू की
694morari copyइच्छा रहती है कि कथा के दौरान वे एक बार का भोजन किसी दलित के घर जाकर करें और कई मौकों पर उन्होंने ऐसा किया भी है। बापू ने जब महुआ में पूर्णाहुति के समय हरिजन भाइयों से आग्रह किया कि वे नि:संकोच मंच पर आएँ और रामायण की आरती उतारें। तब कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया और कुछ संत तो चले भी गए, लेकिन बापू ने हरिजनों से ही आरती उतरवाई। सौराष्ट्र के ही एक गाँव में बापू ने हरिजनों और मुसलमानों का मेहमान बनकर रामकथा का पाठ किया।

बापू की रामकथा का उद्देश्य है- समाज की उन्नति और भारत की गौरवशाली संस्कृति के प्रति लोगों के भीतर ज्योति जलाने की तीव्र इच्छा। मोरारी बापू अपनी कथा में शेरो-शायरी का भरपूर उपयोग करते हैं, ताकि उनकी बात आसानी से लोग समझ सकें। वे कभी भी अपने विचारों को नहीं थोपते और धरती पर मनुष्यता कायम रहे, इसका प्रयास करते रहते हैं। उनकी इच्छा थी कि पाकिस्तान जाकर रामकथा का पाठ करें, लेकिन वीजा और सुरक्षा कारणों से ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है।

0 आज जिस सच्चे पथ-प्रदर्शक की जरूरत महसूस‍ की जा रही है, उसमें सबसे पहले मोरारी बापू का नाम ही जुबाँ पर आता है, जो सामाजिक मूल्यों के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का अलख जगाए हुए हैं। बापू का कथन है- किसी भी समस्या को सुलझने का पहला और अंतिम रास्ता संवाद ही होता है। जब शस्त्र से काम न बने तो शास्त्रों का सहारा लेना चाहिए। प्रेम और करूणा अंतर्मन से प्रवाहित होती हैं। अगर ये चीजें अंतर्मन से प्रवाहित न हो तो आतंक बढ़ जाता है।

रामचरित मानस को सरल, सहज और सरस 3_morari_bapu_420x315तरीके से प्रस्तुत करने वाले 62 वर्षीय बापू की सादगी का कोई सानी नहीं है। जहाँ पर कथा होती है, वहाँ लाखों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहते हैं। बापू की वाणी में ऐसा जादू है, जो श्रोताओं को बाँधे रखता है। खासियत तो यह है कि उनकी कथा में न केवल बुजुर्ग महिला-पुरुष मौजूद रहते हैं, बल्कि युवा वर्ग भी काफी संख्या में मौजूद रहता है। वे न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी रामकथा की भागीरथी को प्रवाहित कर रहे हैं।
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क्विज में दिए गए दोनों प्रबुद्ध विचारकों / संतों की वाणी
ओशो रजनीश
मोरारी बापू
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"सी.एम.ऑडियो क्विज़- 10" के विजेता प्रतियोगियों के नाम
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जिन प्रतियोगियों ने एक जवाब सही दिया
समय सीमा निकल जाने के उपरान्त हमें कृति बाजपेयी जी का भी एक सही जवाब प्राप्त हुआ.
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विजताओं को बधाईयाँ
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आशा है जो इस बार सफल नहीं हुए वो आगामी क्विज में अवश्य सफल होंगे
आप सभी का हार्दिक धन्यवाद

यह आयोजन मनोरंजन के साथ साथ ज्ञानवर्धन का एक प्रयास मात्र है !

अगर आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें ज़रूर ई-मेल करें!
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का पुनः आभार व्यक्त करते हैं
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया.
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6 मार्च 2011, रविवार को हम ' प्रातः दस बजे' एक नई क्विज के साथ यहीं मिलेंगे !

सधन्यवाद
क्रियेटिव मंच
The End
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रविवार, 27 फ़रवरी 2011

सी.एम.ऑडियो क्विज़ [ क्रमांक- दस ] - "सुनें और बताएं"

'life is short, live it to the fullest'

सभी साथियों/पाठकों/प्रतियोगियों को सप्रेम नमस्कार
'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 10' कार्यक्रम में आप का स्वागत है।

आज इस श्रृंखला की दसवीं कड़ी में हम आपको
दो प्रबुद्ध अध्यात्मिक संतों की
ऑडियो क्लिप सुनवा रहे रहे हैं।
आप नीचे दी हुयी दोनों आडियो क्लिप्स को बहुत ध्यान से सुनकर
पूछे गए प्रश्नों के सही जवाब दीजिये।


आधा-अधूरा जवाब मान्य नहीं होगा।
कृपया प्रतियोगी जवाब के रूप में कहीं का भी लिंक न दें।

सही जवाब देने की समय सीमा सोमवार, 28 फरवरी दोपहर 2 बजे तक है।
इन दो आडियो क्लिप्स को ध्यान से सुनकर बताईये कि :
Q.1- यह किस अध्यात्मिक/दार्शनिक/संत की आवाज है ?
Q.2- यह किस प्रबुद्ध अध्यात्मिक संत की आवाज है ?
आप दोनों प्रश्नों के जवाब अलग अलग टिप्पणियों में लिख सकते हैं,
जिससे गलत टिप्पणी को प्रकाशित करने में आसानी होगी।
सूचना :
आपका जवाब आपको यहां न दिखे तो कृपया परेशान ना हों ! माडरेशन ऑन रखा गया है, इसलिए केवल ग़लत जवाब ही प्रकाशित किए जाएँगे ! सही जवाबों को समय सीमा से पूर्व प्रकाशित नहीं किया जाएगा ! जवाब देने की समय सीमा कल यानि सोमवार दोपहर 2 बजे तक है ! उसके बाद आये हुए जवाब को प्रकाशित तो किया जाएगा किन्तु परिणाम में शामिल करना संभव नहीं होगा ! क्विज़ का परिणाम कल यानि सोमवार को रात्रि 7 बजे घोषित किया जाएगा !
----- क्रिएटिव मंच

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