साहस और मानव सेवा की मिसाल ------------------------------------------------- कैप्टेन डा० लक्ष्मी सहगल भारत की उन महान महिलाओं में से एक थीं, जो बहादुरी और सेवा भावना के साथ-साथ महिला सशक्तिकरण के लिए जीवन पर्यंत याद की जायेंगी ! डा० सहगल अदभुत मिसाल थीं, जिसे देश कई मामलों में भारत के इतिहास की प्रथम महिला के रूप में कभी नहीं भूल पायेगा ! 98 साल की उम्र में भी डा० सहगल ने मरीजों की सेवा करने की नई इबारत लिखी ! समाज सेवा और देश के लिए कुछ करने का ज़ज्बा इन्हें अपने परिवार से विरासत में मिला था ! पिता डाक्टर एस.स्वामीनाथन मद्रास हाईकोर्ट में मशहूर वकील थे और मां एवी अम्माकुट्टी समाज सेवा के कारण पूरे मद्रास में अम्मुकुट्टी के नाम से जानी जाती थीं !
डा० सहगल के संघर्ष की शुरुआत 1940 से हुई ! मद्रास मेडिकल कालेज से 1938 में डाक्टरी की पढाई करने के दो वर्ष बाद वह सिंगापुर चली गयीं ! गरीबों का इलाज करने के लिए वहां एक क्लीनिक खोली ! द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो चुका था ! सिंगापुर में उन्हें ब्रिटिश सेना से बचने के लिए जंगलों तक में रहना पड़ा ! तब वे सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज की कमांडर बन गई थीं ! सिंगापुर में हर वक़्त पकडे जाने का डर लगा रहता था, लेकिन डा० सहगल की कोशिश होती कि अपने वतन से आये लोगों की सेवा करती रहें ! मरीजों का इलाज करना और देश को आजाद कराना उनका लक्ष्य बन गया था ! मलायां पर हमले के बाद उन्हें जंगलों तक में भटकना पड़ा ! एक बार तो दो दिन तक जंगलों में पानी तक नसीब नसीब नहीं हुआ, लेकिन उन्होंने हौसला नहीं खोया ! ब्रिटिश सेनाओं ने स्वतंत्रता सेनानियों की धरपकड़ में उन्हें भी 4 मार्च 1946 को पकड़ कर जेल में डाल दिया गया !
कम लोग जानते हैं कि डा० लक्ष्मी सहगल का पहला विवाह 1936 में बी.के.राव के साथ हुआ था, लेकिन यह सम्बन्ध सिर्फ 6 माह ही चल सका और दोनों अलग हो गए ! राव चाहते थे कि डा० लक्ष्मी सहगल एक गृहणी बने, पर वे इसके लिए तैयार नहीं थीं ! 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह करने के बाद वह कानपुर आकर बस गयीं, आर्यनगर की पतली सी गली में अपनी क्लीनिक जरिये पांच दशकों तक मरीजों की सेवा की ! डा० सहगल 1984 के दंगों से बहुत आहत रहीं ! इस दंगे ने कई दिन तक उन्हें क्लीनिक से घर तक आने-जाने में मुश्किल खड़ी की थीं ! पर उन्हें इस बात की संतुष्टि थी कि उस दौरान हर मरीज की सेवा करने का मौका मिला !
पदम् विभूषण से सम्मानित डा० सहगल जनवादी महिला समिति की संस्थापक सदस्य रहीं ! सार्वजनिक मंचों और क्लीनिक पर डा० लक्ष्मी सहगल महिलाओं को नसीहत देती रहती थीं कि संघर्ष महिलाओं का गहना है, उसे तो बेटी, बहन, पत्नी और मां बन कर जीने और लड़ने की आदत हो जाती है ! यही उसकी ताकत है, जो सदियों से समाज को संस्कार और जिंदगी जीने का फलसफा बता रही है ! |