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आप सभी को नमस्कार ! क्रियेटिव मंच आप सभी का स्वागत करता है ! आप सभी प्रतियोगियों एवं पाठकों को बहुत-बहुत बधाई जिन्होने इस पहेली मे हिस्सा लिया ! कल C.M.Quiz -30 के अंतर्गत तीन वन्दनीय महिलाओं के चित्र दिखाकर प्रतियोगियों से उन्हें पहचानने को कहा था ! जब मैंने यह क्विज बनायीं तो मुझे लगा कि क्विज बहुत ही आसान हो गयी ! लेकिन सारे अनुमान धरे के धरे रह गए ! सिर्फ चार दिग्गजों ने ही सही जवाब देकर हमें कृतार्थ किया ! इस बार सबको चकित करते हुए आदरणीय राज भाटिया जी ने सर्व प्रथम जवाब देते हुए प्रथम स्थान हासिल किया ! रामकृष्ण जी जरा देर से आते हैं लेकिन जवाब देने का अंदाज हमेशा खुबसूरत होता है ! वत्स जी ने बीच में एक गैप लेते हुए सही जवाब देने का सिलसिला बनाए रखा ! अल्पना जी और रेखा जी के लिए खतरे की घंटी ! क्यूंकि अब पहले राउंड की सिर्फ पांच क्विज ही बाकी हैं ! बस थोड़ी मेहनत और ..... एक-एक जीत का ही सवाल है ... आल इज वेल :) सभी विजेताओं को हमारी तरफ से बहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं अब आईये क्विज के पूरे परिणाम के साथ ही क्विज में दी गयी तीनों अद्वितीय श्रेष्ठ नारियों का संक्षिप्त परिचय देखते हैं : |
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कस्तूरबा गांधी महात्मा गांधी की पत्नी जो भारत में बा के नाम से विख्यात है। पोरबंदर नगर में 11 अप्रैल, 1869 में जन्म, उनके पिता गोकुलदास मकनजी साधारण स्थिति के व्यापारी थे। कस्तूरबा उनकी तीसरी संतान थीं। सात साल की अवस्था में 6 साल के मोहनदास के साथ उनकी सगाई कर दी गई। तेरह साल की आयु में उन दोनों का विवाह हो गया। इंग्लैंड प्रवास से लौटने के बाद शीघ्र ही बापू को अफ्रीका चला जाना पड़ा। जब 1896 में वे भारत आए तब बा को अपने साथ ले गए। तब से बा बापू के पद का अनुगमन करती रहीं। भारत आने के बाद बापू ने जितने भी काम उठाए, उन सबमें उन्होंने एक अनुभवी सैनिक की भाँति हाथ बँटाया। चंपारन के सत्याग्रह के समय बा भी गाँवों में घूमती और दवा वितरण करती रहीं। इसी प्रकार खेड़ा सत्याग्रह के समय बा स्त्रियों में घूम घूमकर उन्हें उत्साहित करती रही। उन्होंने गांधी जी के गिरफ्तारी के विरोध में विदेशी कपड़ों के त्याग के लिए लोगों का आह्वान किया। बापू का संदेश सुनाने नौजवानों की तरह गुजरात के गाँवों में घूमती फिरीं। 1930 में दांडी कूच और धरासणा के धावे के दिनों में बापू के जेल जाने पर बा एक प्रकार से बापू के अभाव की पूर्ति करती रहीं। वे पुलिस के अत्याचारों से पीड़ित जनता की सहायता करती, धैर्य बँधाती फिरीं। 1932 और 1933 का अधिकांश समय उनका जेल में ही बीता। तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो उनका व्यक्तित्व गांधीजी को चुनौती देता प्रतीत होता है। स्वयं गांधीजी इस बात को स्वीकार करते हुए कहते हैं: ‘‘जो लोग मेरे और बा के निकट संपर्क में आए हैं, उनमें अधिक संख्या तो ऐसे लोगों की है, जो मेरी अपेक्षा बा पर अनेक गुनी अधिक श्रद्धा रखते हैं।’’ यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि गांधीजी को महात्मा बनाने में बा का बहुत बड़ा हाथ था।
बा ने एक साधारण महिला होते हुए भी असाधारण तरीके से काम किया। बा में अद्भुत नेतृत्व क्षमता थी। बा को भीषण ब्रोंकाइटिस था। इस पर भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तारी ने उनकी बीमारी को बढ़ा दिया और उनकी सेहत गिरने लगी। निमोनिया की चपेट में आने के कारण उनकी हालत और खराब हो गयी। 22 फरवरी 1944 को उन्हें भयंकर दिल का दौरा पड़ा और उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा उन्होंने बापू की गोद में अपने प्राण त्यागे। |
27 अगस्त 1910 को यूगोस्लाविया के स्कोपये नामक कस्बे में आल्वेनियन किसान दम्पति के घर मानवता को समर्पित इस मंजुल मूर्ति ने जन्म् लिया था। बचपन में वे 'एगनेस' के नाम से पुकारी जाती रही थीं। 18 वर्ष की आयु में उन्होंने दीन-दुखियों की सेवा का व्रत लिया और घर छोड़ दिया। तब से वे मानव-सेवा में ऐसी लीन हुई कि उन्होंने पीछै मुडकर एक क्षण को भी नहीं देखा।
अपने सेवामय जीवन का आरंभ उन्होंने डबलिन में नन के रुप में किया। बाद में वे कलकत्ता के 'लोरेटो स्कूल' में भूगोल की अध्यापिका बनकर आई और 17 वर्ष तक वे अध्यापन करती रहीं। यहीं गरीब-अमीर के बीच की गहरी खाई, पीड़ितों दीन-दुखियों की उपेक्षा, भूखे-नंगों के प्रति समाज का हीन-भाव आदि नजदीक से देखा। अत: 8 अगस्त 1948 को उन्होंने अपनी कुल जमा-पूंजी पांच रुपये लेकर एक मोटी सफेद धोती पहनकर अपने आपको मानवता की सेवा के ध्येय से मिशन की सेवा से मुक्ति का प्रार्थना पत्र देकर बिदा ले ली ! मदर टेरेसा की 5 रुपये की पूंजी ने तुरंत सहायता के लिए अनगिनत हाथ आगे बढ़वा दिये। कलकत्ता के लोअर सरक्युलर मार्ग पर बेसहारा बीमार बच्चों के लिए 'निमर्ल शिशु भवन' नामक संस्था संचालित है! इसके माध्यम से देश भर की इसकी शाखाओं में हजारों बच्चे पल रहे हैं। उन्हें सुयोग्य नागरिक बनने की शिक्षा दीक्षा के लिए इन केन्द्रों में पर्याप्त प्रबंध है। कलकत्त्ते के पास ही शांतिनगर में कुछ रोगियों के लिए 34 एकड़ भूमि में इलाज के लिए पुनर्वास और रोजगार के लिए साधन जुटाये है। इस तरह के 67 केन्द्रों के द्वारा 44,000 से भी अधिक कुष्ठियों की चिकित्सा तथा रोजगार की व्यवस्था की जाती है। निर्धन व असहाय लोगों की सेवा में मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
चेहरे पर झुर्रियाँ, लगभग पाँच फुट लंबी, गंभीर व्यक्तित्व वाली यह महिला असाधारण सी थी। पैर में साधारण सी चप्पल पहने तथा कंधे पर दवाइयों का झोला टाँगे मदर टेरेसा असाध्य बीमारियों से पीडि़त लोगों को दवाइयाँ देकर उनकी सेवा करती थीं। सेवा भावना की अनूठी मिसाल मदर टेरेसा ने 5 सितम्बर 1997 को दुनिया को अलविदा कह दिया। मदर का पार्थिव शरीर 'मदर हाउस' में दफनाया गया।
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प्रथम स्थान | द्वितीय स्थान |
तृतीय स्थान | चौथा स्थान |
आप लोगों ने प्रतियोगिता में शामिल होकर इस आयोजन को सफल बनाया जिसकी हमें बेहद ख़ुशी है
आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें जरूर ई-मेल करें!
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का आभार व्यक्त करते हैं
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया
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The End |