गुरुवार, 29 अक्टूबर 2009

श्री जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा की मूर्ति, बंगलोर

क्विज संचालन :- - प्रकाश गोविन्द


नमस्कार !
क्रियेटिव मंच आप सभी लोगों का स्वागत करता है !
आप सभी को बहुत-बहुत बधाई जिन्होने इस पहेली मे हिस्सा लिया !


कल C.M. Quiz – 11 जो प्रश्न पूछा गया था,
उसका सही जवाब है :
यह मूर्ति थी - श्री जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा जी की,
जो कि भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलोर, भारत मे स्थित है।

भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापना 1909 मे श्री जमशेदजी टाटा के दूरदृष्टि के परिणाम स्वरूप ही हुई थी ! आज यह संस्थान एशिया में अनुसंधान व उच्च शिक्षा के लिये सर्वोत्कृष्ट संस्थानों में से एक है।

श्री जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा :
उनका जन्म सन १८३९ में गुजरात के एक छोटे से कस्बे नवसेरी में हुआ था. उनके पिता जी का नाम नुसीरवानजी था व उनकी माता जी का नाम जीवनबाई टाटा था । पारसी पादरियों के खानदान में नुसीरवानजी पहले व्यवसायी थे । भाग्य उन्हें बंबई ले आया जहाँ उन्होने व्यवसाय में कदम रखा । जमशेदजी 14 साल की नाज़ुक उम्र में ही उनका साथ देने लगे । जमशेदजी ने एल्फिंस्टन कालेज में प्रवेश लिया और अपनी पढ़ाई के दौरान ही हीरा बाई दबू से विवाह कर लिया था । वे 1858 में स्नातक हुए और अपने पिता के व्यवसाय से पूरी तरह जुड़ गए।

उद्योग का आरम्भ
वह दौर बहुत कठिन था । 29 साल कि उमर तक जमशेदजी अपने पिता जी के साथ ही काम करते रहे । 1868 में उन्होने 21000 रुपयों के साथ अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया । सबसे पहले उन्होने एक दिवालिया तेल कारखाना ख़रीदा और उसे एक रुई के कारखाने में तब्दील कर दिया और उसका नाम बदल कर रखा - 'एलेक्जेंडर मिल' ! दो साल बाद उन्होने इसे खासे मुनाफे के साथ बेच दिया । इस पैसे के साथ उन्होंने नागपुर में 1874 में एक रुई का कारखाना लगाया । कारखाने का नाम 'इम्प्रेस्स मिल' रखा ।
Jamsetji Tata The first Indian to own a car
महान दूरदर्शी
जमशेदजी एक अलग ही व्यक्तित्व के मालिक थे । वे अपने समय से कहीँ आगे थे । सफलता को कभी केवल अपनी जागीर नही समझा , बल्कि उनके लिए उनकी सफलता उन सब की थी जो उनके लिए काम करते थे। जमशेद जी के अनेक राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी नेताओं से नजदीकी संबंध थे , इन में प्रमुख थे , दादाभाई नौरोजी और फिरोजशाह मेहता । जमशेदजी पर और उनकी सोच पर इनका काफी प्रभाव था।

उनका मानना था कि आर्थिक स्वतंत्रता ही राजनीतिक स्वतंत्रता का आधार है। जमशेद जी के दिमाग में तीन बडे विचार थे - एक , अपनी लोहा व स्टील कंपनी खोलना ; दूसरा, एक जगत प्रसिद्ध अध्ययन केंद्र स्थापित करना, व तीसरा, एक जलविद्युत परियोजना लगाना । दुर्भाग्यवश उनके जीवन काल में तीनों में से कोई भी सपना पूरा ना हो सका । पर वे बीज तो बो ही चुके थे, एक ऐसा बीज जिसकी जड़ें उनकी आने वाली पीढ़ी ने अनेक देशों में फैलायीं ।

जो एक मात्र सपना वे पूरा होता देख सके वह था - होटल ताज महल । यह दिसंबर 1903 में 4,21,00,000 रुपये के शाही खर्च से तैयार हुआ । इसमे भी उन्होने अपनी राष्ट्रवादी सोच को दिखाया था । उन दिनों स्थानीय भारतीयों को बेहतरीन यूरोपियन होटलों में घुसने नही दिया जाता था । ताजमहल होटल इस दमनकारी नीति का करारा जवाब था ।
1904 में जर्मनी में उन्होने अपनी आख़िरी सांस ली ।

C.M. Quiz – 11 का पूरा परिणाम :

इस बार की क्विज कठिन न होते हुए भी प्रतियोगियों ने कठिन मान लिया ! पहली बार प्रतियोगियों ने ऐसा निराशाजनक प्रदर्शन किया ! हिंट देने के बावजूद भी प्रतियोगी इन महान व्यक्तित्व को पहचान नहीं कर पा रहे थे ! सिर्फ एक प्रतियोगी श्री उड़न तस्तरी जी ने क्विज का पूर्णतयः सही जवाब दिया ! श्री उड़न तश्तरी जी ने भी अपना जवाब क्विज के प्रकाशित होने के आठ घंटे पच्चीस मिनट बाद दिया ! (देर से सही जवाब मिलने का यह भी एक रिकार्ड है )

सुश्री शुभम जी और सुश्री अल्पना जी ने मूर्ति तो पहचान ली किन्तु यह मूर्ति कहाँ स्थित है, बताने में असफल रहे ! यही कारण है कि श्री उड़न तस्तरी जी देर से शामिल होने के बावजूद भी प्रथम विजेता बनने में सफल हुए !

आप तीनों ही आज के विजेताओं को क्रियेटिव मंच की तरफ से बहुत-बहुत बधाई !
प्रथम स्थान : - श्री उड़न तश्तरी जी



applauseapplauseapplause विजेताओं को बधाईयाँ applause applause applause applause applause applause applause applause applause

सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई !
सभी प्रतियोगियों और पाठकों को शुभकामनाएं !

आप लोगों ने उम्मीद से बढ़कर प्रतियोगिता में शामिल होकर
इस आयोजन को सफल बनाया, जिसकी हमें बेहद ख़ुशी है !

आप सभी लोगों का धन्यवाद,
Murari Pareek ji , anand sagar ji, Purnima ji,
शुभम जैन जी, अल्पना वर्मा जी, दिगम्बर नासवा जी,
मियां हलकान जी, shilpi jain ji, Udan Tashtari ji,
Ishita ji, Purnima ji, shivendra sinha ji,
seema gupta ji,

यह आयोजन हम सब के लिये मनोरंजन ओर ज्ञानवर्धन का माध्यम है !
आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें जरूर -मेल करें !
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का आभार व्यक्त करते हैं,
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया !

सधन्यवाद
क्रियेटिव मंच
creativemanch@gmail.com

बुधवार, 28 अक्टूबर 2009

C.M.Quiz -11 [यह मूर्ती किसकी, और कहाँ स्थित है]

क्विज संचालन :- - प्रकाश गोविन्द


CREATIVE MANCH final.psd.psd

आप सभी को नमस्कार !
क्रियेटिव मंच आप सभी का स्वागत करता है !
बुधवार को सवेरे 9.00 बजे पूछी जाने वाली
क्विज में एक बार हम फिर हाजिर हैं !

सुस्वागतम
WELCOME



लीजिये
एक बहुत ही आसान क्विज आपके सामने है !

************************************************************************

नीचे चित्र को ध्यान से देखिये और जवाब दीजिये :

1. यह किसकी मूर्ति है ?
2. यह कहाँ पर स्थित है ?


तो बस जल्दी से दोनों सवालों के जवाब दीजिये और बन जाईये
C.M. Quiz - 11 के विजेता !

************************************************************************

जवाब अलग-अलग देने पर आखिरी सही जवाब के
समय को ही दर्ज किया जाएगा !
पूर्णतयः सही जवाब न मिलने की स्थिति में अधिकतम सही जवाब
देने वाले प्रतियोगी को विजयी माना जाएगा !

सूचना :

माडरेशन ऑन रखा गया है इसलिए आपकी टिप्पणियों को प्रकाशित होने में समय लग सकता है ! सभी प्रतियोगियों के जवाब देने की समय सीमा रात 9.00 तक है ! क्विज का परिणाम कल सवेरे 9.00 बजे घोषित किया जाएगा !

---- क्रियेटिव मंच

विशेष सूचना :
क्रियेटिव मंच की टीम ने निर्णय लिया है कि विजताओं को प्रमाणपत्र तीन श्रेणी में दिए जायेंगे ! कोई भी प्रतियोगी तीन बार प्रथम विजेता [हैट्रिक होना जरूरी नहीं है] बनता है तो उसे 'चैम्पियन' का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा !

इसी तरह अगर कोई प्रतियोगी छह बार प्रथम विजेता बनता है तो उसे 'सुपर चैम्पियन' का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा !

किसी प्रतियोगी के दस बार प्रथम विजेता बनने पर क्रियेटिव मंच की तरफ से 'जीनियस' का प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा !

---- क्रियेटिव मंच

सोमवार, 26 अक्टूबर 2009

ठहाका एक्सपेस - 8

anand sagar

इस बार 'ठहाका एक्सप्रेस- 8' के पायलट हैं -
Laughter is the Best Medicine
images (23) images (17) images (12)

एक बार एक अमरीकी, एक रूसी एवं बंता सिंह एक सज्जन के यहां चाय पर आमंत्रित थे। अमरीकी ने चाय पी कर अपना कप प्लेट में उल्टा करके रख दिया। रूसी ने चाय पीकर अपना कप प्लेट में सीधा रख दिया।

बंता सिंह, जो अब तक उनके टेबल मैनर्स की नकल कर रहा था, उसने कुछ सोच कर अपना कप प्लेट में आड़ा लिटा कर रख दिया। उसकी इस क्रिया को देख कर अमरीकी ने बंता से प्रश्न किया-

"भाई बंता आपने अपना कप प्लेट में आड़ा क्यों लिटा दिया है ?"
बंता ने कहा - "पहले आप बताइये कि आपने अपना कप उल्टा क्यों रख दिया ?"
अमरीकी ने कहा - `क्योंकि मुझे चाय और नहीं चाहिए थी।´
अब बंता ने रूसी से पूछा, `आपने अपना कप सीधा क्यों रखा था ?"
रूसी बोला - "क्योंकि मुझे और चाय चाहिए।"
रूसी और अमरीकी ने अब बंता से पूछा - "लेकिन आपने अपना कप आड़ा क्यों लिटा रखा है .. अब आप तो जवाब दें !"
बंता ने कहा - "यदि चाय और होगी तो मिल जायेगी, वरना कोई बात नहीं !"

संता सिंह एक वकील के पास गया। उसने अपनी पूरी कहानी बताई। वकील ने कहा - "बेफिक्र रहो ! हालांकि तुमने काम बहुत बुरा किया है, लेकिन तुम बच जाओगे। कोई कानून तुम्हें फंसा नहीं सकता। तुम सुनिश्चित छूट जाओगे। इसका मैं तुम्हें आश्वासन देता हूं।"

संता उठ कर खड़ा हो गया और जाने लगा तो वकील ने पूछा- "कहां जाते हो ? क्या मुकदमे की तैयारी नहीं करनी ?"

संता ने कहा - अब क्या फायदा ! क्योंकि मैंने कहानी अपने विरोधी आदमी की सुनाई थी। अगर उसकी जीत निश्चित ही है तो नाहक तुम्हें फीस देने से क्या फायदा !
************************************************************
aviator
भारतीय वैज्ञानिकों ने नयी मिसाईल ईजाद की !
************************************************************

निखट्टू जीजा को ताने देती हुयी साली बोली -
"आपकी भी कोई जिंदगी है ? मकान मां का है, दीदी के भेजे हुए कपडे पहनते हैं ! चाचा राशन का सामान भिजवा देती हैं और मैं आपके बच्चों की फीस भारती हूँ ....कितने शर्म की बात है !"


निखट्टू जीजा टस से मस नहीं हुए - "शर्म की बात तो है ही ! इसी शहर में तुम्हारे तीन भाई हैं, मगर आज तक उन्होंने एक पैसा भी नहीं भेजा !"

घड़ी की मरम्मत करने वाला एक कारीगर एक बड़ी लम्बी सीढी लगाकर घंटाघर की घड़ी ठीक करने लगा ! जब वह बहुत देर बाद उस लम्बी सीढी से उतरकर आया तों बुरी तरह थक चुका था !
एक महिला पास खड़ी उसे उतरते देख रही थी ! वह पूछ बैठी - "कहिये, घड़ी में कोई खराबी थी क्या ?"
चिढ़कर कारीगर ने कहा - "जी नहीं ... मुझे कम दिखता है इसलिए देखने गया था कि कितने बजे हैं !"

बीना ने रमा से पूछा - "तुम्हारे पतिदेव तो रात को बहुत देर से लौटा करते थे ? आजकल तो मैं देखती हूँ बहुत जल्दी लौट आया करते हैं, तुमने किया क्या ?"


रमा हंसती हुयी बोली - "इलाज कर दिया ! एक रात वो ग्यारह बजे लौटकर आये तो मैंने दरवाजे के अन्दर से ही कहा - "आओ विनोद बड़ी देर कर दी आज तुमने ! अब तो वो भी आते ही होंगे !
तुम तो जानती हो कि मेरे उनका नाम जयंत है
!"

************************************************************
tata_1_car
टाटा की नयी कार "पचास हजारा"

************************************************************
एस एम एस फंडा

मुझे जैसे शख्स को क्या चाहिए ?
एक लड़की जो प्यार दे !
एक लड़की जो अच्छा खाना बनाये !
एक लड़की जो पैसा कमाए !

और ऐसा नसीब कि
तीनों लड़कियां एक दुसरे से मिल न पायें !

***********************************************************

आप भी अगर कोई जोक्स, हास्य कविता या दिलचस्प संस्मरण भेजना चाहते हैं तो हमें मेल कर सकते हैं ,,,, आपका स्वागत है ! रचना को आपके नाम व परिचय के साथ प्रकाशित किया जाएगा !
क्रियेटिव मंच
creativemanch@gmail.com

शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009

निर्मला कपिला जी की श्रेष्ठ रचनाएं

प्रस्तुति :- प्रकाश गोविन्द



परिचय


स्वास्थ कल्यान विभाग मे चीफ फार्मासिस्ट के पद से सेवानिवृ्त् होने के बाद लेखन कार्य के लिये समर्पित हैं ! 'कला साहित्य प्रचार मंच’ की अध्य़क्ष हैं !

2004 से विधिवत लेखन प्रारंभ ! अनेक पत्र पत्रिकायों मे प्रकाशन, विविध-भारती जालंधर से कहानी का प्रसारण !
तीन पुस्तकें प्रकाशित व अन्य दो पुस्तकें प्रकाशन की दिशा में अग्रसर
1. सुबह से पहले---कविता संग्रह
2. वीरबहुटी---कहानी संग्रह
3. प्रेम सेतु---कहानी संग्रह

सम्मान : पँजाब सहित्य कला अकादमी जालन्धर से सम्मान, ग्वालियर सहित्य अकादमी ग्वालियर की से ‘शब्द-माधुरी’ सम्मान, ‘शब्द भारती सम्मान व विशिष्ठ सम्मान, इसके अतिरिक्त कई कवि सम्मेलनो़ मे सम्मानित ! अंतरजाल पर निरंतर सक्रिय हैं और ब्लॉग संचालन भी करती हैं !

मेरी तलाश

मुझे तलाश थी एक प्यास थी
तुम मे आत्मसात हो जाने की
डूबते सूरज की एक किरण को
आत्मा मे संजोये निकली थी
तुम्हें ढूँढने / मैने देखा
कई बडे बडे देवों मुनियों को
किन्हीं अपसराओं मेनकाओं पर
आसक्त होते
तेरे नाम पर लडते झगडते
लूटते और लुटते तेरे नाम पर
खून की नदियाँ बहाते
अब कई साधु सँतों की दुकानों पर
तेरा नाम भी बिकने लगा है
फिर मन मे सवाल उठते
कैसे तुम भरमाते हो जानती हूँ
मेरी प्यास के लिये भी
तुम नित नये कूयेँ दिखा देते हो
डूबती नित मगर प्यास
फिर भी शेष रहती
तुम्हें पाने की तुम मे
आत्मसात हो जाने की
इसलिये तुम्हारी सब तस्वीरों को
राम-कृ्ष्ण-खुदा-गाड
सब को एक फ्रेम मे
बँद कर दिया है
ताकि तुम आपस मे
सुलझ लो और खुद लौट आयी हूँ
अपने अन्तस मे
और यहाँ आ कर मैने जाना की
तेरे किसी रूप को चेतना नहीं है
बल्कि तुम सब की सी
चेतना को चेतना है
तुझे पूजना नहीं है
तुम सा जूझना है
त्तुम्हें जपना नहीं
तुम सा तपना है
तुम्हारी साधना नहीं
खुद को साधना है
कितना सुन्दर है
धर्म से अध्यात्म का पथ
जहाँ तू मैं सब एक है
और अब मेरी प्यास शाँत हो गयी है !!
****************


क्या पाया

ये कैसा शँख नाद, कैसा निनाद
नारी मुक्ति का
उसे पाना है अपना स्वाभिमान
उसे मुक्त होना है
पुरुष की वर्जनाओ़ से
पर मुक्ति मिली क्या?
स्वाभिमान पाया क्या?
हाँ मुक्ति मिली बँधनों से
मर्यादायों से कर्तव्य से...
सहनशीलता..सहिष्णुता से...
सृ्ष्टि सृ्जन के कर्तव्यबोध से..
स्नेहिल भावनाँओं से
मगर पाया क्या
स्वाभिमान या अभिमान
गर्व या दर्प
जीत या हार
सम्मान या अपमान
इस पर हो विचार क्यों कि
कुछ गुमराह बेटियाँ
भावोतिरेक मे
अपने आवेश मे
दुर्योधनो की भीड मे
खुद नँगा नाच दिखा रही हैँ
मदिरोन्मुक्त जीवन को
धूयें मे उडा रही हैं
पारिवारिक मर्यादा भुला रही हैं
देवालय से मदिरालय का सफर
क्या यही है तेरी उडान
डृ्ग्स देह व्यापार
अभद्रता खलनायिका
क्या यही है तेरी पह्चान
क्या तेरी संपदायें
पुरुष पर लुटाने को हैँ
क्या तेरा लक्ष्य
केवल उसे लुभाने मे है
उठ उन षडयँत्रकारियों को पहचान
जो नहीं चाहते
समाज मे हो तेरा सम्मान
बस अब अपनी गरिमा को पहचान
और पा ले अपना स्वाभिमान
बँद कर ये शँखनाद
बँद कर ये निनाद् !!
**********************

अमर कवितायें

कुछ कवितायें कहीं लिखी नहीं जाती
कही नहीं जाती
बस महसूस की जाती हैं
किसी कोख मे
वो कवियत्री सीख् लेती है
कुछ शब्द उकेरने
भाई की कापी किताब से
जमीन पर उंगलियों से
खींच कर कुछ लकीरें
लिखना चाह्ती है कविता
बिठा दी जाती है डोली मे
दहेज मे नहीं मिलती कलम
मिलता है सिर्फ फर्ज़ो का संदूक
फिर जब कुलबुलाते हैं
कुछ शब्द उसके ज़ेहन मे
ढुढती है कलम
दिख जाता है घर मे
बिखरा कचरा,कुछ धूल
और कविता कर्तव्य बन समा जाती है
झाडू मे और सजा देती है
घर के कोने कोने को
उन शब्दों से फिर आते हैं कुछ शब्द
कलम ढूढती है पर दिख जाती हैं
दो बूढी बीमार आँखें
दवा के इंतजार मे
बन जाती है कविता करुणा
समा जाते हैं शब्द
दवा की बोतल मे
जीवनदाता बन कर
शब्द तो हर पल कुलबुलाते
कसमसाते रहते हैं
पर बनाना है खाना
काटने लगती है प्याज़
बह जाते हैं शब्द
प्याज की कडुवाहट मे
ऐसे ही कुछ शब्द बर्तनों की
टकराहत मे हो जाते है घायल
बाकी धूँए की परत से धुंधला जाते हैं
सुबह से शाम तक चलता रहता है
ये शब्दों का सफर्
रात में थकचूर कर
कुछ शब्द बिस्तर की सलवटों
मे पडे कराहते तोड देते हैं दम
पर नहीं मिलती कलम
नही मिलता वक्त
बरसों तक चलता रहता है
ये शब्दों का सफर
बेटे को सरहद पर भेज
फुरसत मे लिखना चाहती है
वीर रस मे
दहकती सी कोई कविता
पर तभी आ जाती है
सरहद पर शहीद बेटे की लाश
मूक हो जाते हैं शब्द
मर जाती है कविता एक माँ की
अंतस मे समेटे शहादत
की गरिमा ऐसे ही
कितनी ही कवियत्रियों को
नहीं मिलती कलम
नहीं मिलता वक्त
नहीं मिलता नसीब
हाथ की लकीरों पर ही
तोड देती हैं दम जन्म से पहले
जो ना लिखी जाती हैं, ना पढी जाती हैं
बस महसूस की जाती हैं
शायद यही हैं वो अमर कवितायें !!
**********************************