Shreshth Srajan लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Shreshth Srajan लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 5 मई 2010

श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता - 9 का परिणाम

प्रतियोगिता संचालन :- - प्रकाश गोविन्द


srajan result 9

प्रिय मित्रों/पाठकों/प्रतियोगियों नमस्कार !!
आप सभी लोगों का हार्दिक स्वागत है

हम 'श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता अंक- 9' का परिणाम लेकर आप के सामने उपस्थित हैं. हमेशा की तरह इस बार भी सभी प्रतिभागियों ने सुन्दर सृजन किया ! बेहद हर्ष के साथ सूचित कर रहे हैं कि इस बार श्रेष्ठ सृजन का चयन डॉ.कुलवंत सिंह जी ने किया है.
***********************************
युवकों का आदर्श भगत सिंह, / हृदयों का सम्राट भगत सिंह /
हर कोख की चाहत भगत सिंह,/ शहादत की मिसाल भगत सिंह .
.
***********************************
ले हथेली शीश था आया,/ नेजे पर वह प्राण था लाया /
अभिमानी था, झुका नही था, / दृढ़ निश्चय था, रुका नही था
***********************************
मोल नही कुछ मान मुकुट का,/मोल नही कुछ सिंहासन का /
जीवन अर्पित करने आया,/ माटी कर्ज़ चुकाने आया. .
***********************************
इन देशभक्ति से परिपूर्ण ओजस्वी पंक्तियों के रचियता डॉ.कुलवंत सिंह जी हैं! हमने जब उनके ब्लॉग पर शहीद भगत सिंह को समर्पित यह काव्य-गाथा पढ़ी तो आँखें भर आयीं ! आप लोग भी कुलवंत जी की यह कालजयी रचना को पढ़कर उस राष्ट्रीयता की भावना को महसूस कीजिये जो आज विलुप्तप्राय हो चली है!

नौ अंकों के इस सफर में हमें बहुत ही अच्छी रचनाएँ प्राप्त हुईं. परिणाम में पारदर्शिता और निष्पक्षता रखने हेतु हर अंक के निर्णायक बदले गए, निर्णायकों को सिर्फ रचनाएँ भेजी जाती थीं. उन्हें निर्णय सार्वजानिक होने तक यह नहीं मालूम होता था कि कौन सी रचना किस ने लिखी है ! आप का सहयोग भी बना रहा और अब तक के सभी अंक निर्विवाद संपन्न हो सके !

इस बार हमें विभिन्न रचनाकारों की कुल अठ्ठारह रचनाएं प्राप्त हुयी थीं ! जिनमें से चार रचनाओं को शामिल कर पाने में हम असमर्थ थे !


पूरी उम्मीद है कि चारों रचनाकार तनिक भी अन्यथा न लेते हुए सदभाव बनाए रखेंगे ! अपने मन के भावों को शालीनता से भी कहा जा सकता है ... इस बार के सृजन में व्यक्ति विशेष पर लिखने की कोई बात ही नहीं थी ... हम तो चाहते थे कि दूषित होते लोकतांत्रिक मूल्यों पर बात कही जाए !

हमें प्रसन्नता है कि इस बार भी अत्यंत खुबसूरत रचनाएं प्राप्त हुयीं ! इस बार प्रथम क्रम पर दुष्यंत जोशी जी की राजस्थानी रचना का चयन किया गया ! द्वितीय और तृतीय क्रम पर क्रमशः सुश्री शुभम जैन जी एवं सुश्री सोनल रस्तोगी जी की रचनाओं को चुना गया !
*********************************

हम सृजन प्रतियोगिता को कुछ समय के लिए स्थगित कर रहे हैं.
कुछ समय पश्चात हम इस सृजन कार्यक्रम को पुनः जारी रखेंगे! इस दौरान क्रिएटिव मंच पर अन्य रचनात्मक व साहित्यिक गतिविधियाँ चलती रहेंगी. आप का सहयोग, स्नेह और प्रोत्साहन आगे भी क्रिएटिव मंच को मिलता रहेगा.

सभी सृजनकारों एवं समस्त पाठकों को बहुत-बहुत बधाई/शुभकामनाएं.

securedownload
श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता- 9 में 'श्रेष्ठ सृजन' का चयन
डॉ.कुलवंत सिंह जी द्वारा
kulvant ji सुश्री मानवी जी एवं क्रिएटिव मंच से संबंधित आप सब मित्रों को सादर नमस्कार..

अति सुंदर कार्य के लिये..मेरा नमन...

प्रविष्टियों को क्रम देना......... एक कठिन कार्य है !
फिर भी दायित्व तो निभाना ही है ........

यथा-संभव चित्र से तालमेल, लय, शव्द शिल्प, भाव, गेयता, इत्यादि को ध्यान में रखते हुये...यह क्रम दिया गया है !

आप समस्त रचनाकारों को हार्दिक शुभ कामनाएं !

आभार
- कुलवंत
श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता अंक- 9 का परिणाम
पिछले अंक का चित्र
adhunik loktantra
1. दुष्यंत जोशी जी
dushyant joshi
सोने सूं मूंगो हुवे,
फूलां रो गळ हार,
हार गल़े रो फूटरो,
चावे नर अर नार.

मो' माया रे जाळ में ,
फंस्या पड्या है लोग,
सत्ता जिण रे हाथ में ,
हुवे भाग संजोग.

जण साजे उण ने घणों,
जिण रे हाथां साज,
उण रे गल़े में हार है,
अर उण रे माथे ताज.

-- दुष्यंत जोशी, हनुमानगढ़ जं., राजस्थान

*********************************
* ये राजस्थानी कविता.......... इसमें कहा गया है कि गले के लिए फूलों का हार सोने से भी महंगा होता है.. लोग मोह और माया के जाल में फंसे हुए हैं. जिसके भाग्य में होता है.. सत्ता उसी के हाथ होती है. और जनता भी केवल उसी का सम्मान करती है... जिसके हाथ में राज-पाट होता है. उसी के गले में हार पहनाया जाता है और उसी को ताज पहनाया जाता है...
राजस्थानी शब्दों के अर्थ :-
मूंगो = महंगा, फूटरो = सुन्दर, चावे = चाहते, मो' माया = मोह माया, जाळ = झंझट, फंस्या = फंसे हुए , पड्या = पड़े , जिण = जिसके, हुवे = होता है, संजोग = संयोग, जण = जनता, उण = उसे, घणों = ज्यादा,
securedownload
एक तरफ सिर स्वर्ण मुकुट है
दूजे नंगी खाल है,
माया की वर्षा है इन पर
जनता भूखी बेहाल है/

गले फूल का हार पहन ये
खुद को प्रभु सा जाना है,
भला बुरा सब भूल कर बंधू
माया ज्ञान बखाना है/

प्रजातंत्र का राग सुना कर
अच्छा रास रचाया है,
भ्रस्टाचार और आतंकवाद को
नेताओ ने ही बढाया है/

आज के नेता देखो लोगो
नया शिगूफा गाते है,
देश महान कहो ना कहो
ये खुद को महान बताते है/
shubham jain ji
securedownload
sonal rastogi
ताज रक्खा या रखवाया
प्रदर्शन है शक्ति का
सत्ता का मद स्वयं में
विषय है आसक्ति का

ये आडम्बर की रीत तो
सदियों से जारी है
सदा मंच पर पुरुष था होता
अबकी बारी नारी है
securedownload
यह माया का लोकतंत्र
या लोकतंत्र की माया है
लोक हुआ नदारद देखो
दिखती महज काया है !!
मनुवाद के सीने चढ़कर
सिंहासन तक पहुंचे जो
आज उन्ही के रंग-ढंग में
मनुवाद का ओढा साया है !!
राजनीति के खेल ने बंधु
एक रंग में रंग डाला
चाल-चरित्र-चेहरे का अंतर
सबमें एक सा पाया है !!
aditi chauhan ji
securedownload
sulabh satrangi


सहस्त्र पुष्पमालाओं का वृत्त
राजसी मुकुट रूप मुखरित
पद प्रतिष्ठा आलिशान है
लोकतंत्र का भव्य सम्मान है.
securedownload
पराजित है लोकतंत्र
पराजित है जीवन मंत्र
संचालक हैं नेता
कठपुतली है जनता
आरोप है-प्रत्यारोप है
मिट रही आस है
टूटते विश्वास हैं
धार्मिक उन्माद है
जातिगत संकीर्णता है
क्रीड़ा बेशर्मों की
पीड़ा मासूमों की
हाय ............
औंधा पड़ा लोकतंत्र
पराजित लोकतंत्र
shivendra
securedownload
amit tyagi
चाहे कहे कोई कुछ कहानी
देश में तो मैं ही हूँ रानी
कभी पहनूं हार कभी मुकुट
जितने मुंह उतनी कहानी
दलित की बेटी का उत्थान
नहीं देख सकते लोग
इसलिए लगाते हैं
गलत आक्षेप लोग

माला पहनूं, हार पहनूं या पहनूं मुकुट
तुम सामने चिढ़ते रहो चिरकुट
जब तक जनता है मेरे साथ
तुम करते रहो उलटी सीधी बात

कोई फर्क नहीं पड़ता मुझे
जब तक सत्ता में हूँ,
चरण पूजना पड़ेगा तुझे.
securedownload
'नाम के नेता'
=============
नेताओं की बात करें क्या ,
नेता तो अभिनेता हैं.
फूलों की माला वो पहने,
चाहे नोटों की माला,
जनता की परवाह नहीं करते
करते हैं ये घोटाला ,

जो भी करता इनका वंदन,
बड़े बड़े पद पा जाएँ.
जो मुंह खोले, इन्हें टटोले ,
समझ निवाला खा जाएँ.
नेताओं की बात करें क्या,
'नाम' के ही ये नेता हैं!
alpana ji
securedownload
9. सुश्री कमलेश्वरी जी
kamleshwari ji
आधुनिक यह लोकतन्त्र,
इसका गहरा जान मन्त्र.
जग जीते ख़ुद जीत,
बन फिर सबका मीत.
चेहरे पर मुस्कान,
रख अपनों का ध्यान.
जहाँ जहाँ ही जाएगा,
हार- ताज तूं पाएगा.
प्रजातंत्र के नाम पे रचा अनूठा स्वांग
फूलों की माला से स्वागत नेताओं की मांग
नेताओं की मांग, मांग कुछ समझ न आए
कैसी है यह "माया" जो जनता को खाए
खुद बैठे 'बिल्डिंग' में 'पब्लिक' गटर में जाए
'एसी' में ये बैठे, हमको 'हवा' न आए
'माला' की माला ये रटते, करें दिखावा घोर
भाई-'बहनजी' का है नाता, चाहे कर लो शोर
ramkrishn gautam
securedownload
roshni ji
'हमारी प्यारी रानी'
================
ओ हमारी रानी
कब बनोगी सायानी?
कभी पहनती फूलों की माला
तो कभी नोटों की
कभी बनवाती मूर्तियाँ अपनी
पैसा बहाती जनता की
कभी सवारी हाथियों की
तो कभी जनता की
पर याद रखो ओ रानी
करना न मनमानी
जनता ने जो प्यार दिया
करो उसका सम्मान
उनकी बातों को सुनो रानी
जिनकी कोई ना सुनता है
उन वर्गों का नेतृत्व करो
जो गलत राह को चुनता है
उन्हें सही राह पर लाना है
भटकने से बचाना है
जो जिम्मेदारी तुम्हें मिली है
उसे तुम्हें निभाना है
securedownload
पहले राज,
फिर ताज,
बाद में बाज,
यही है
राजनीति का राज..
12. रितुप्रिया शर्मा जी
ritu priya sharma
securedownload
deen dayal sharma

किसी को मिले हार,
किसी के गले हार,
किसी पे गिरे गाज़,
किसी ने पहना ताज,
सब ईश्वर की माया है,
कहीं धूप कहीं छाया है.
securedownload
ना कोई परी ना मै कोई हूर हूँ
आप गलत न समझे
मै सच मे बेकसूर हूँ
ये ताज भी मुझसे ,
न उठाया जा रहा है
देखो यहाँ जबरन ,
मेरा फोटॊ खिंचवाया जा रहा है
रोक नही पा रही हूँ -हँसी
दिख रहे है दाँत-थोडे बडॆ हैं
आप भी देखकर हँस रहे होंगे...
क्योंकि ये कैसे माला पकडे खडे हैं...
archana ji
securedownload
securedownload
चलते चलते एक निवेदन
****************************

हमने हमारी पोस्ट की प्रकृति और आवश्यकता के अनुसार 'मोडरेशन' लगाया हुआ है ! एक भी प्रतिक्रिया (अपशब्द वाली प्रतिक्रियाओं को छोड़कर) को कभी हटाया या छुपाया नहीं ! क्रिएटिव मंच पर कटु से कटु आलोचनाओं / समालोचना का भी सदैव स्वागत है, परन्तु निरर्थक निराधार आलोचना से हम भी आहत होते हैं !

हम कैसे और बेहतर हो सकते हैं इसके लिए अपने सुझाव और सहयोग दें ! अनामी / बेनामी आलोचकों से यही निवेदन है कि अगर आप हमारी मेहनत और प्रयास को सराह नहीं सकते, तो कम से कम हतोत्साहित करने की कोशिश तो करें !

स्नेह सहित
The End

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता - 8 का परिणाम

प्रतियोगिता संचालन :- - प्रकाश गोविन्द


srajan 8.result
प्रिय मित्रों/पाठकों/प्रतियोगियों नमस्कार !!
आप सभी लोगों का हार्दिक स्वागत है

हम 'श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता अंक- 8' का परिणाम लेकर हाजिर हैं! हमेशा की तरह इस बार भी सभी प्रतिभागियों ने सुन्दर सृजन किया ! इस बार श्रेष्ठ सृजन का चयन आदरणीय सुशीला पुरी जी ने किया है! जब हमने परिणाम को देखा तो स्वतः मुस्कराहट आ गयी! श्रेष्ठ सृजन के प्रथम क्रम पर जो रचना चुनी गयी वो थी अदिति चौहान जी की, जिन्होंने पिछले सृजन परिणाम पोस्ट पर प्रतिक्तिया देते हुए लिखा था - "मेरी सात पीढ़ियों में किसी ने कविता नहीं लिखी. मैंने कम से कम लिखी तो सही"!

प्रिय अदिति जी, अब तो आप शान से कह सकती हैं कि न सिर्फ कविता लिखी बल्कि प्रथम स्थान भी हासिल किया! द्वितीय और तृतीय क्रम पर क्रमशः शिवेंद्र सिन्हा जी और सुलभ 'सतरंगी' जी की रचनाओं को चुना गया!

जैसा कि हमने पहले भी कहा है -हमारे लिए हर वो प्रतिभागी रचनाकार श्रेष्ठ है जिसने कुछ सृजन का प्रयास किया ! सृजन की यात्रा की निरन्तरता में यह क्षणिक पड़ाव मात्र है, जहाँ रचनाकार आत्म-मंथन कर सृजन धर्म का निर्वहन करते हुए आगे की यात्रा पर निकल पडते हैं...।

परिणाम के अंत में आज की श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता अंक- 9 का चित्र दिया गया है ! सर्वश्रेष्ट प्रविष्टि को प्रमाण पत्र दिया जाएगा. पहले की भांति ही 'माडरेशन ऑन' रहेगा. प्रतियोगिता में शामिल होने की समय सीमा है-

ब्रहस्पतिवार 29 अप्रैल-शाम 5 बजे तक

सभी सृजनकारों एवं समस्त पाठकों को बहुत-बहुत बधाई/शुभकामनाएं.
securedownload
श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता- 8 में 'श्रेष्ठ सृजन' का चयन
आदरणीय सुशीला पुरी जी द्वारा
sushila puri .

रचनाकार मित्रों

नमस्कार !

आप सभी को शुभ कामनाएं एवं हार्दिक आभार


सादर -- सुशीला
श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता अंक- 8 का परिणाम
पिछले अंक का चित्रCalcutta_rickshaw
aditi chauhan ji
खच्चर सा जीवन है मेरा
बेबस हूँ लाचार हूँ
मानो या मानो लेकिन
मै भी एक इंसान हूँ
पेट की खातिर क्या करता
क्या घर भर को भूखा रखता
महानगर पी गया जवानी
मुझ बूढ़े की यही कहानी
थकी नहीं है हिम्मत मेरी
जिस्म से बस लाचार हूँ
मानो या मानो
लेकिन मै भी एक इंसान हूँ
securedownload


दूर है अब आदमी से आदमी
ढ़ो रहा है आदमी को आदमी
पत्थरों को पूजता है ये जहाँ
हर तरफ दरबदर है आदमी

shivendra ji
securedownload
sulabh satrangi ji

पेट की आग है, रोटी का वास्ता है.
श्रम की मांग है, हाथ में रिक्शा है.
अर्थ का उत्पादन, समीकरण देखो.
समाज का वर्गीकरण, संतुलन देखो.

securedownload

शीर्षक - किस सदी में हम हैं ?

इक्कीसवीं सदी में भी

मानव मानव को खींच रहा ,
किस्मत को मुट्ठी में बाँधे

अपने हाथों से भींच रहा .
जानता है भूख, ग़रीबी नहीं देखती

उम्र का क्या दौर है,
दो जून रोटी के लिए करता है

प्रतिदिन कठिन श्रम,
मानव अधिकारों की बात करें,

वो लोग बहुत से हैं यहाँ ,
एक दिन बदलेंगे तक़दीर वो ही,

जीता है रख कर यही भ्रम .

alpana ji
securedownload
deen dayal sharma ji

आदमी को देखो , कैसे
खींच रहा आदमी.
मजबूरी का मारा है ,
बेबस बेचारा है /
ज़िन्दगी को खून से,
सींच रहा आदमी...

securedownload

पहुंचाऊं साहिब कहो जहाँ तुम,
बस रहो बैठे सीना तान,
सवारी रहेगी ये बड़ी सुहानी,
जब तक है मुझमें प्राण,
धुप चिलमिलाये, धुल उड़े,
छलकती रहे फिर चाहे स्वेद-कण,
नहीं थकेंगे, हम खींचते रहेंगे,
आये ना जब तक मक़ाम,
चक्कर है जग का देखो अनोखा,
खींचे इक को दूजा कोई इंसान!

Dinesh Saroj  ji
securedownload
manoj ji
हमारे कालू रिक्शावाले की
तो बात ही निराली है,
वैसे तो अब शहरों से
रिक्शे की प्रजाति लुप्त होने लगी है
लेकिन जो थोड़े-मोड़े बचे हैं,
उन्हीं को चलाने वालों में
एक है कालू रिक्शावाला,
उसके रिक्शे पर बैठने वाले
अपनी नाक और आँख
दोनों बंद कर लेते हैं ।
उसकी दशा नरोत्तम दास के
सुदामा से कम नहीं
बिवाई से रिसता रक्त,
पसीने से सनी फटी बनियान से
निकलती दुर्गन्ध
दयालु बने लोगों को
यह सब करने के लिए
बाध्य कर देते हैं ।
अपने हक से ज्यादा वह
कभी किसी से नहीं लेता,
यही गर्व उसे जीने के लिए काफी है ।

securedownload

"आदमी ही आदमी को पालता है ,
आदमी ही आदमी का रक्त चूस लेता है शरीर से !
पेट की आग नहीं बुझती पसीने से भी ,
जंग लड़े तब कोई कैसे तक़दीर से ?
छोड़ता बना के कोई जानवर ,
आदमी को आदमी से जानवर,
दौलत के दम से ;
जुते मजबूर … जानवर की जगह ,
चमकाए तक़दीर मैले फ़टे लीर-झीर से !"
rajendra swarnkar ji
securedownload
ajay kumar soni ji
दो जूण री रोटी खातर
सारै दिन ढ़ोनो पडे वजन
जरुरी है पेट पालण खातर
नीं तो टाबर भूखा सोसी
सोसी टाबरां री माँ
म्है तो छेकड़ कर लेस्यूं गुजारो
पण टाबर भूखा नीं सोवै
म्है तो भूखो रै लेस्यूं
दो जूण री रोटी खातर.
********************************

टाबर (बच्चे), सोसी (सोयेंगे)

छेकड़ (आखिर), लेस्यूं (लूँगा)

securedownload
securedownload
srajan 9
आईये अब चलते हैं "श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता - 9" की तरफ ! नीचे ध्यान से देखिये चित्र को ! क्या इसको देखकर आपके दिल में कोई भाव ...कोई विचार ... कोई सन्देश उमड़ रहा है ? तो बस चित्र से सम्बंधित भावों को शब्दों में व्यक्त कर दीजिये ... आप कोई सुन्दर सी तुकबंदी ... कोई कविता - अकविता... कोई शेर...कोई नज्म..कोई दिल को छूती हुयी बात कह डालिए !
---- क्रियेटिव मंच
adhunik loktantraकृपया प्रतियोगी रचना लिखते समय ध्यान रखें कि किसी राजनेता के नाम का उल्लेख न हो और किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप न हों. अमर्यादित शब्दों वाली प्रविष्टि स्वीकार नहीं की जायेगी !
प्रतियोगियों के लिए

1- इस सृजन प्रतियोगिता का उद्देश्य मात्र मनोरंजन और मनोरंजन के साथ कुछ सृजनात्मक करना भी है.
2- यहाँ किसी प्रकार की प्रतिस्पर्धा नही है.
3- आपको चित्र के भावों का समायोजन करते हुए अधिकतम 100 शब्दों के अन्दर रचनात्मक पंक्तियाँ लिखनी हैं, जिसे चयनकर्ता अपनी पसंद और श्रेष्ठता के आधार पर क्रम देंगे और वह निर्णय अंतिम होगा.
4- प्रतियोगिता संबंधी किसी भी प्रकार के विवाद में क्रिएटिव मंच टीम का निर्णय ही सर्वमान्य होगा.
5- चित्र को देख कर लिखी गयी रचना मौलिक होनी चाहिए. परिणाम के बाद भी यह पता चलने पर कि पंक्तियाँ किसी और की हैं, विजेता का नाम निरस्त कर दिया जाएगा.
6- प्रत्येक प्रतियोगी की सिर्फ एक प्रविष्टि पर विचार किया जाएगा, इसलिए अगर आप पहली के बाद दूसरी अथवा तीसरी प्रविष्टि देते हैं तो पहले की भेजी हुयी प्रविष्टि पर विचार नहीं किया जाएगा. प्रतियोगी की आखिरी प्रविष्टि को प्रतियोगिता की प्रविष्टि माना जाएगा.
7- 'पहले अथवा बाद का' इस प्रतियोगिता में कोई चक्कर नहीं है अतः आप इत्मीनान से लिखें. 'माडरेशन ऑन' रहेगा. आप से अनुरोध है कि अपनी प्रविष्टियाँ यहीं कॉमेंट बॉक्स में दीजिये.
-------------------------------------
प्रतियोगिता में शामिल होने की समय-सीमा ब्रहस्पतिवार 29 अप्रैल शाम 5 बजे तक है. "श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता- 9" का परिणाम 5 मई रात्रि सात बजे प्रकाशित किया जाएगा !!!

The End