प्रिय मित्रों/पाठकों/प्रतियोगियों नमस्कार !! आप सभी लोगों का हार्दिक स्वागत है हम 'श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता अंक- 8' का परिणाम लेकर हाजिर हैं! हमेशा की तरह इस बार भी सभी प्रतिभागियों ने सुन्दर सृजन किया ! इस बार श्रेष्ठ सृजन का चयन आदरणीय सुशीला पुरी जी ने किया है! जब हमने परिणाम को देखा तो स्वतः मुस्कराहट आ गयी! श्रेष्ठ सृजन के प्रथम क्रम पर जो रचना चुनी गयी वो थी अदिति चौहान जी की, जिन्होंने पिछले सृजन परिणाम पोस्ट पर प्रतिक्तिया देते हुए लिखा था - "मेरी सात पीढ़ियों में किसी ने कविता नहीं लिखी. मैंने कम से कम लिखी तो सही"! प्रिय अदिति जी, अब तो आप शान से कह सकती हैं कि न सिर्फ कविता लिखी बल्कि प्रथम स्थान भी हासिल किया! द्वितीय और तृतीय क्रम पर क्रमशः शिवेंद्र सिन्हा जी और सुलभ 'सतरंगी' जी की रचनाओं को चुना गया! जैसा कि हमने पहले भी कहा है -हमारे लिए हर वो प्रतिभागी रचनाकार श्रेष्ठ है जिसने कुछ सृजन का प्रयास किया ! सृजन की यात्रा की निरन्तरता में यह क्षणिक पड़ाव मात्र है, जहाँ रचनाकार आत्म-मंथन कर सृजन धर्म का निर्वहन करते हुए आगे की यात्रा पर निकल पडते हैं...। परिणाम के अंत में आज की श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता अंक- 9 का चित्र दिया गया है ! सर्वश्रेष्ट प्रविष्टि को प्रमाण पत्र दिया जाएगा. पहले की भांति ही 'माडरेशन ऑन' रहेगा. प्रतियोगिता में शामिल होने की समय सीमा है- ब्रहस्पतिवार 29 अप्रैल-शाम 5 बजे तक
सभी सृजनकारों एवं समस्त पाठकों को बहुत-बहुत बधाई/शुभकामनाएं. |
श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता- 8 में 'श्रेष्ठ सृजन' का चयन आदरणीय सुशीला पुरी जी द्वारा |
रचनाकार मित्रों नमस्कार ! आप सभी को शुभ कामनाएं एवं हार्दिक आभार । सादर -- सुशीला |
श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता अंक- 8 का परिणाम |
खच्चर सा जीवन है मेरा बेबस हूँ लाचार हूँ मानो या न मानो लेकिन मै भी एक इंसान हूँ पेट की खातिर क्या न करता क्या घर भर को भूखा रखता महानगर पी गया जवानी मुझ बूढ़े की यही कहानी थकी नहीं है हिम्मत मेरी जिस्म से बस लाचार हूँ मानो या न मानो लेकिन मै भी एक इंसान हूँ |
दूर है अब आदमी से आदमी |
पेट की आग है, रोटी का वास्ता है. |
शीर्षक - किस सदी में हम हैं ? इक्कीसवीं सदी में भी मानव मानव को खींच रहा , अपने हाथों से भींच रहा . उम्र का क्या दौर है, प्रतिदिन कठिन श्रम, वो लोग बहुत से हैं यहाँ , जीता है रख कर यही भ्रम . |
आदमी को देखो , कैसे |
पहुंचाऊं साहिब कहो जहाँ तुम, |
हमारे कालू रिक्शावाले की तो बात ही निराली है, वैसे तो अब शहरों से रिक्शे की प्रजाति लुप्त होने लगी है लेकिन जो थोड़े-मोड़े बचे हैं, उन्हीं को चलाने वालों में एक है कालू रिक्शावाला, उसके रिक्शे पर बैठने वाले अपनी नाक और आँख दोनों बंद कर लेते हैं । उसकी दशा नरोत्तम दास के सुदामा से कम नहीं बिवाई से रिसता रक्त, पसीने से सनी फटी बनियान से निकलती दुर्गन्ध दयालु बने लोगों को यह सब करने के लिए बाध्य कर देते हैं । अपने हक से ज्यादा वह कभी किसी से नहीं लेता, यही गर्व उसे जीने के लिए काफी है । |
"आदमी ही आदमी को पालता है , आदमी ही आदमी का रक्त चूस लेता है शरीर से ! पेट की आग नहीं बुझती पसीने से भी , जंग लड़े तब कोई कैसे तक़दीर से ? छोड़ता बना के कोई जानवर , आदमी को आदमी से जानवर, दौलत के दम से ; जुते मजबूर … जानवर की जगह , चमकाए तक़दीर मैले फ़टे लीर-झीर से !" |
9. अजय सोनी जी | दो जूण री रोटी खातर सारै दिन ढ़ोनो पडे वजन जरुरी है पेट पालण खातर नीं तो टाबर भूखा सोसी सोसी टाबरां री माँ म्है तो छेकड़ कर लेस्यूं गुजारो पण टाबर भूखा नीं सोवै म्है तो भूखो रै लेस्यूं दो जूण री रोटी खातर. ******************************** टाबर (बच्चे), सोसी (सोयेंगे) छेकड़ (आखिर), लेस्यूं (लूँगा) |
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कृपया प्रतियोगी रचना लिखते समय ध्यान रखें कि किसी राजनेता के नाम का उल्लेख न हो और किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप न हों. अमर्यादित शब्दों वाली प्रविष्टि स्वीकार नहीं की जायेगी ! |
प्रतियोगियों के लिए 1- इस सृजन प्रतियोगिता का उद्देश्य मात्र मनोरंजन और मनोरंजन के साथ कुछ सृजनात्मक करना भी है. 2- यहाँ किसी प्रकार की प्रतिस्पर्धा नही है. 3- आपको चित्र के भावों का समायोजन करते हुए अधिकतम 100 शब्दों के अन्दर रचनात्मक पंक्तियाँ लिखनी हैं, जिसे चयनकर्ता अपनी पसंद और श्रेष्ठता के आधार पर क्रम देंगे और वह निर्णय अंतिम होगा. 4- प्रतियोगिता संबंधी किसी भी प्रकार के विवाद में क्रिएटिव मंच टीम का निर्णय ही सर्वमान्य होगा. 5- चित्र को देख कर लिखी गयी रचना मौलिक होनी चाहिए. परिणाम के बाद भी यह पता चलने पर कि पंक्तियाँ किसी और की हैं, विजेता का नाम निरस्त कर दिया जाएगा. 6- प्रत्येक प्रतियोगी की सिर्फ एक प्रविष्टि पर विचार किया जाएगा, इसलिए अगर आप पहली के बाद दूसरी अथवा तीसरी प्रविष्टि देते हैं तो पहले की भेजी हुयी प्रविष्टि पर विचार नहीं किया जाएगा. प्रतियोगी की आखिरी प्रविष्टि को प्रतियोगिता की प्रविष्टि माना जाएगा. 7- 'पहले अथवा बाद का' इस प्रतियोगिता में कोई चक्कर नहीं है अतः आप इत्मीनान से लिखें. 'माडरेशन ऑन' रहेगा. आप से अनुरोध है कि अपनी प्रविष्टियाँ यहीं कॉमेंट बॉक्स में दीजिये. ------------------------------------- प्रतियोगिता में शामिल होने की समय-सीमा ब्रहस्पतिवार 29 अप्रैल शाम 5 बजे तक है. "श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता- 9" का परिणाम 5 मई रात्रि सात बजे प्रकाशित किया जाएगा !!! |
The End |
सभी को बधाई.
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं बढ़िया हैं.
जवाब देंहटाएंअदिति जी, सुलभ जी और अल्पना जी समेत सभी को बहुत बधाई.
कुछ फिर से लिखने की कोशिश करते हैं
इस बार आपने सर्जन चित्र बहुत सुन्दर लगाया है :)
apni pravishti baad men bhejunga
जवाब देंहटाएंdhanyavad
Aditi Chauhan ji ko badhayiyan
जवाब देंहटाएंanya sabhi ko bhi badhayi aur shubh kamnayen.
SABHI NE SUNDAR RACHNAYEN LIKHI.
जवाब देंहटाएंSABHI KO BADHAYI.
BAHUT SUNDAR CREATIVE PROGRAM
REGARDS
congratulations to all
जवाब देंहटाएंis baar aapne mayavati ji ki pic. lagakar aayojan ko interesting bana diya hai.
my wishes
अरे वाह !अदिति अब तो आप नियमित कविताएँ लिखा करीय.सृजन प्रतियोगिता से आप को अपनी इस प्रतिभा का परिचय हुआ.
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं.एक ही चित्र पर कितनी ही तरह के भाव सृजित हो सकते हैं.यह मंच इस का प्रमाण है.
बहुत ही सार्थक प्रयास.
सुशीला जी को धन्यवाद.
अरे हाँ,राजस्थानी भाषा में भी प्रविष्टि देख कर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंइस बार विषय रोचक है.जल्दी ही अपनी एंट्री भेजूंगी.
जवाब देंहटाएंaditi chauhan ji aur sabhi ko badhayi evam shubh kamnayen
जवाब देंहटाएं===x===x===x===
waaaah is baar Behan ji
my favorite leader ~~~~~~~
Maanvi ji ek baat samajh me nahi aayi. jab mayavati ji ki photo lagayi hai to unka naam rachna men kyun nahi likha ja sakta ?
जवाब देंहटाएंsabhi rachnaye sreshth hai...aditi ji aur anay sabhi pratiyogiyo hardik badhai....
जवाब देंहटाएंये तो सही में कमाल हो गया. मैंने सवेरे ही देख लिए था लेकिन विश्वास नहीं हो रहा था. मैंने तो यूँ ही कुछ लाईनें लिख दी थीं
जवाब देंहटाएंमै तो बहुत खुश हूँ - बहुत खुश
मैंने तो कई लोगों को दिखा भी दिया ये बताने के लिए की मुझे अब हल्के में न ले कोई.
हा,,हा,हा,
बस डर ये है की लोग सचमुच मुझे लेखिका न समझ लें
भैया ने तो आशीर्वाद भी दे डाला - जा महादेवी भवः
हमने हँसते हुए कहा महादेवी नहीं मायादेवी भवः कहिये
सभी लोगों को बहुत-बहुत-बहुत-बहुत बधाईयाँ
और धन्यवाद
Manavi ji mera certificate kahan hai ?
जवाब देंहटाएंmujhe kab milega ?
प्रजातंत्र के नाम पे रचा अनूठा स्वांग...
जवाब देंहटाएंफूलों की माला से स्वागत नेताओं की मांग...
नेताओं की मांग, मांग कुछ समझ न आए...
कैसी है यह "माया" जो जनता को खाए...
खुद बैठे 'बिल्डिंग' में 'पब्लिक' गटर में जाए...
'एसी' में ये बैठे, हमको 'हवा' न आए...
'माला' की माला ये रटते, करें दिखावा घोर...
भाई-'बहनजी' का है नाता, चाहे हो कोई चोर...
(इसमें न तो मैंने किसी का नाम लिखा है और न ही कोई अपशब्द कहे हैं... मैंने उन्ही शब्दों का प्रयोग किया है जो बोलचाल में भी आम हैं और किसी व्यक्तिगत के अहित में नहीं हैं!!!)
आपका
"रामकृष्ण गौतम"
प्रिय अदिति जी
जवाब देंहटाएंआपको खुश देखकर हम भी बहुत खुश हैं !
पुनः बधाई !
जिस मेल से आपने संपर्क किया है, उस मेल पर ही आपको प्रमाण-पत्र शीघ्र ही भेज दिया जाएगा !
स्नेह व आशीष के साथ
--------------------- मानवी
अदिति जी की ख़ुशी में मेरी भी ख़ुशी शामिल है ।
जवाब देंहटाएंअदितिजी को प्रथम स्थान की बधाई !
राजेन्द्र स्वर्णकार
ek baat mai kahna bhool gayi thi.
जवाब देंहटाएंyun to sabhi ki rachnayen sundar thi, lekin mujhe sulabh ji ki likhi rachna kuchh vishesh lag rahi thi-
पेट की आग है, रोटी का वास्ता है.
श्रम की मांग है, हाथ में रिक्शा है.
अर्थ का उत्पादन, समीकरण देखो.
समाज का वर्गीकरण, संतुलन देखो.
@ alpana ji mai to aapki fan hun
aaj aapse badhayi paakar achha laga.
चाहे कहे कोई कुछ कहानी
जवाब देंहटाएंदेश में तो मैं ही हूँ रानी
कभी पहनूं हार कभी मुकुट
जितने मुंह उतनी कहानी
दलित की बेटी का उत्थान नहीं देख सकते लोग
इसलिए लगाते हैं गलत आक्षेप लोग
माला पहनूं, हार पहनूं या पहनूं मुकुट
तुम सामने चिढ़ते रहो चिरकुट
जब तक जनता है मेरे साथ
तुम करते रहो उलटी सीधी बात
कोई फर्क नहीं पड़ता मुझे
जब तक सत्ता में हूँ, चरण पूजना पड़ेगा तुझे.
अदिति जी और सभी को मेरी ओर से बधाई.
जवाब देंहटाएंअदिति मन छूती पंक्तियों के लिए बधाई ,सुलभ जी और अल्पना जी को भी बधाई ,सभी रचनाये मन को भा गई
जवाब देंहटाएं.@ अदिति तुम्हारी खिलखिलाहट और आँखों की चमक तुम्हारी टिपण्णी में महसूस कर रही हूँ ....लिखती रहो
आदरणीय सुशीला पूरी जी को यहाँ देख अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंअदिति चौहान जी की को बहुत बहुत बधाई! सीधी बात, ख़ूबसूरत रचना के लिए.
बाकी सभी ने अच्छा सृजन किया.... सभी को बधाई!!
अजय सोनी जी के द्वारा रचित राजस्थानी पंक्तिया भली लगी.
अदिति, मेरी पंक्तियों को सराहने के लिए आपका शुक्रिया...!
जवाब देंहटाएंहमेशा खुश रहे, और नियमित सृजन करती रहें.
क्रिएटिव मंच ने प्र.9 का फोटो लगा कर अचंभित कर दिया...! इस बार सृजन में नयी बात देखने को मिलेगी.
धन्यवाद!
- सुलभ
अदिति जी को हार्दिक बधाई, बहुत ही सुन्दर एवं सजीव रचना का सृजन किया है आपने, मैं तो सोच ही रहा था की शायद आप की रचना ही सर्वश्रेष्ट चुनी जाएगी, और चुनी भी गयी...
जवाब देंहटाएंमनोज कुमार जी ने भी काफी दयनीय स्थित प्रकट किया है...
अन्य सभी को भी बधाई..
बेहतरीन तरीके से श्रेष्ठ सृजन चयन करने के लिए सुशीला पूरी जी को धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंसभी प्रतिभागियों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं बधाई ।
जवाब देंहटाएंभई, अदिति ने बहुत सुन्दर कविता लिखी है..निर्णायकों का निर्णय शिरोधार्य... मैं भी एक इन्सान हूँ..बहुत अच्छे.. टीम और अदिति दोनों को हार्दिक बधाई. .
जवाब देंहटाएं"श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता- 9"
जवाब देंहटाएंसहस्त्र पुष्पमालाओं का वृत्त
राजसी मुकुट रूप मुखरित
पद प्रतिष्ठा आलिशान है
लोकतंत्र का भव्य सम्मान है.
- सुलभ
किसी को मिले हार,
जवाब देंहटाएंकिसी के गले हार,
किसी पे गिरे गाज़,
किसी ने पहना ताज,
सब ईश्वर की माया है,
कहीं धूप कहीं छाया है.
Creative Manch ki aur se Pratiyogita 9 ke liye उक्त कविता मौलिक और अप्रकाशित है...आपका शुभेच्छु, दीनदयाल शर्मा.
deen.taabr@gmail.com, http://deendayalsharma.blogspot.com , Date : 22 April, 2010. Time : 13:44
सोने सूं मूंगो हुवे,
जवाब देंहटाएंफूलां रो गळ हार,
हार गल़े रो फूटरो,
चावे नर अर नार.
मो' माया रे जाळ में ,
फंस्या पड्या है लोग,
सत्ता जिण रे हाथ में ,
हुवे भाग संजोग.
जण साजे उण ने घणों,
जिण रे हाथां साज,
उण रे गल़े में हार है,
अर उण रे माथे ताज.
दुष्यंत जोशी, हनुमानगढ़ जं. , राजस्थान.
ताज रक्खा या रखवाया
जवाब देंहटाएंप्रदर्शन है शक्ति का
सत्ता का मद स्वयं में
विषय है आसक्ति का
ये आडम्बर की रीत तो
सदियों से जारी है
सदा मंच पर पुरुष था होता
अबकी बारी नारी है
आवश्यक सूचना :
जवाब देंहटाएंजिन प्रतियोगियों की प्रोफाईल बनी हुयी है, सिर्फ उनकी ही प्रविष्टियाँ स्वीकार की जायेंगी ! कृपया जिनकी प्रोफाईल नहीं बनी हैं वो बना लें !
राजस्थानी भाषा में एक प्रविष्टि प्राप्त हुयी है, भेजने वाले रचनाकार से निवेदन है कि वो अपनी प्रोफाईल शीघ्र ही बना लें एवं रचना में प्रयुक्त कुछ शब्दों के अर्थ हिंदी में भी देने का कष्ट करें !
आदर के साथ
-------------------क्रिएटिव मंच
"स्रजन का उद्द्येश्य मात्र मनोरंजन"
जवाब देंहटाएंना कोई परी ना मै कोई हूर हूँ
आप गलत न समझे
मै सच मे बेकसूर हूँ
ये ताज भी मुझसे ,
न उठाया जा रहा है
देखो यहाँ जबरन ,
मेरा फोटॊ खिंचवाया जा रहा है
रोक नही पा रही हूँ -हँसी
दिख रहे है दाँत-थोडे बडॆ हैं
आप भी देखकर हँस रहे होंगे...
क्योंकि ये कैसे माला पकडे खडे हैं.......
पहले राज,
जवाब देंहटाएंफिर ताज,
बाद में बाज,
यही है
राजनीति का राज..
रितुप्रिया शर्मा
are wah Aditi ji aapne to kamal kar diya. aapko aur sabhi vijetaon ko badhaii...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपराजित है लोकतंत्र
जवाब देंहटाएंपराजित है जीवन मंत्र
संचालक हैं नेता
कठपुतली है जनता
आरोप है-प्रत्यारोप है
मिट रही आस है
टूटते विश्वास हैं
धार्मिक उन्माद है
जातिगत संकीर्णता है
क्रीड़ा बेशर्मों की
पीड़ा मासूमों की
हाय ........
औंधा पड़ा लोकतंत्र
पराजित लोकतंत्र
'नाम' के नेता
जवाब देंहटाएं-------------
नेताओं की बात करें क्या ,
नेता तो अभिनेता हैं.
फूलों की माला वो पहने,
चाहे नोटों की माला,
जनता की परवाह नहीं करते
करते हैं ये घोटाला ,
जो भी करता इनका वंदन,
बड़े बड़े पद पा जाएँ.
जो मुंह खोले, इन्हें टटोले ,
समझ निवाला खा जाएँ.
नेताओं की बात करें क्या,
'नाम' के ही ये नेता हैं!
--written on 24-april-2010 for this picture srijan pratiyogita.
आधुनिक यह लोकतन्त्र,
जवाब देंहटाएंइसका गहरा जान मन्त्र.
जग जीते ख़ुद जीत,
बन फिर सबका मीत.
चेहरे पर मुस्कान,
रख अपनों का ध्यान.
जहाँ जहाँ ही जाएगा,
हार- ताज तूं पाएगा.
-कमलेश्वरी
श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता - 9
जवाब देंहटाएं====================
यह माया का लोकतंत्र
या लोकतंत्र की माया है
लोक हुआ नदारद देखो
दिखती महज काया है !!
मनुवाद के सीने चढ़कर
सिंहासन तक पहुंचे जो
आज उन्ही के रंग-ढंग में
मनुवाद का ओढा साया है !!
राजनीति के खेल ने बंधु
एक रंग में रंग डाला
चाल-चरित्र-चेहरे का अंतर
सबमें एक सा पाया है !!
एक तरफ सिर स्वर्ण मुकुट है दूजे नंगी खाल है, माय की वर्षा है इन पर वो भूखे बेहाल है/
जवाब देंहटाएंगले फूल का हार पहन ये खुद को प्रभु जाना है, भला बुरा सब भूल कर बंधू माया ज्ञान बखाना है/
प्रजातंत्र का राग सुना कर अच्छा रास रचाया है, भ्रस्टाचार और आतंकवाद को नेताओ ने ही बढाया है/
आज के नेता देखो लोगो नया शिगूफा गाते है, देश महान कहो ना कहो ये खुद को महान बताते है/