स्वतंत्रता संग्राम की यह दुर्लभ कवितायें हमें क्रिएटिव मंच के लिये विनीता यशस्वी ने उपलब्ध करायी हैं। हम अपनी पूरी टीम की तरफ से उनका धन्यवाद करते हैं और उम्मीद करते हैं कि भविष्य में भी वो अपना योगदान हमें देती रहेंगी।
महात्मा गाँधी जी सभा को संबोधित करते हुए 1857 से लेकर 1947 यानी आजाद होने तक के जब्त साहित्य का कोई सिलसिलेबार ब्योरा उपलब्ध नहीं है ! कुछ बिखरा पड़ा है, जिसे तलाश कर पुस्तक रूप में प्रकाशित किया जाना अभी शेष है ! यह काम इसलिए भी होना जरूरी है, क्योंकि अब तक उपलब्ध अधिकाँश तत्कालीन इतिहास अंग्रेजों या उनके प्रभाव के भारतीयों द्बारा विरचित है और इसकी राष्ट्रीय व्याख्या तभी संभव हो सकती है जब हम उन देश भक्त अमर शहीदों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों द्बारा लिखित रचनाओं को तलाश कर निकालें ! इससे हमारी नयी पीढी को यह तालीम भी मिल सकेगी कि जिस आजाद माहौल में वे आज सांस ले रहे हैं -- दरअसल वह एक लम्बी लडाई और तमाम कुर्बानियों के नतीजतन ही है !
हम कुछ ऐसे गीतों की झलक आपको दिखा रहे हैं जो आजादी की लडाई के दिनों बहुत लोकप्रिय थे ये वो समय था जब ब्रिटिश हुकूमत आजादी से प्रेरित साहित्य का चुन-चुनकर दमन कर रही थी ! इन गीतों को पूर्णतयः प्रतिबंधित कर दिया गया था !
प्रस्तुत है 1857 के क्रांतिकारी सिपाहियों का झंडा गीत - जिसकी रचना क्रांतिवीर अजीमुल्ला ने की थी :हम हैं इसके मालिक, हिंदुस्तान हमारा
पाक वतन है कॉम का, जन्नत से भी प्यारा
ये है हमारी मिल्कियत, हिंदुस्तान हमारा
इसकी रूहानियत से रोशन है जग सारा
कितना कदीम, कितना नईम, सन दुनियों से न्यारा
करती है जरखेज जिसे गंगो-जामुन की धारा
मेरा वतन
[यह गीत आजादी की लडाई के दौरान सबकी जुबान पर मुखरित होता था ! मेरा वतन 'इकबाल' का दूसरा ऐसा गीत था, जो कौमी एकता का सशक्त प्रतीक था ]
चिश्ती ने जिस जमीं में पैगामें हक सुनाया,
नानक ने जिस चमन में वहदत का गीत गाया,
तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया,
जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुडाया,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वतन वही
अहद
[सागर निजामी दुश्मनों के हर जुल्म को सहने के लिए तैयार रहने का सन्देश अपनी रचनाओं द्वारा भारतवासियों को देते रहते थे, उनका यह गीत उन दिनों बेहद प्रसिद्द था ]
ऐ वतन ! जब तुझपे दुश्मन गोलियां बरसाएंगे,
सुर्ख बादल जब फिजाओं पे तेरी छ जायेंगे,
जब समंदर आग के बुर्जों से टक्कर खाएँगे,
ऐ वतन ! उस वक्त भी मैं तेरे नग्में गाऊंगा
तेरे नग्में गाऊंगा और आग पर सो जाऊँगा
गोलियां चारों तरफ से घेर लेंगी जब मुझे,
और तनहा छोड़ देगा जब मिरा मरकब मुझे,
और संगीनों पे चाहेंगे उठाना सब मुझे,
ऐ वतन ! उस वक्त भी मैं तेरे नग्में गाऊंगा
मैं उनके गीत गाता हूँ
[उन दिनों देश के लिए कुर्बान होना आम बात थी बहादुर देशवासियों के लिए कितने सशक्त गीतों एवं गजलों की रचना कवियों ने की थी, वे जोशीले गीत आज हमारी धरोहर बनकर रह गए हैं, जां निसार 'अख्तर' का यह गीत अविस्मर्णीय है ]
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ !
जो शाने पर बगावत का आलम लेकर निकलते हैं,
किसी जालिम हुकूमत के धड़कते दिल पे चलते हैं,
मैं उनके गीत गाता हूँ, मैं उनके गीत गाता हूँ
आह्वान
[भारतीय क्रांतिकारी आन्दोलन के इतिहास में अशफाक उल्ला का नाम बड़े ही गौरव के साथ लिया जाता है ! आजादी की लडाई में उनका यह आह्वान - गीत अंग्रेजी हुकूमत ने जब्त कर लिया था किन्तु यह गीत गली-गली में गाया जाता था ]
कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएँगे,
आजाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे
हटने के नहीं पीछे, डर कर कभी जुल्मों से,
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढा देंगे
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधान मंत्री के रूप में नेहरू जी का शपथ ग्रहण समारोह मैं क्रिऐटिव मंच की पूरी टीम को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें देती हूं साथ ही धन्यवाद भी करती हूं कि उन्होंने मुझे अतिथि संपादक के रूप में इस मंच में बुलाया और यह मेरे लिये गर्व की बात है कि इस ब्लॉग की पहली पोस्ट भी मेरे ही द्वारा लिखी जा रही है।
क्रिएटिव मंच की पूरी टीम को इस ब्लॉग की सफलता के लिये शुभकामनायें।वन्दे मातरम्
-----विनीता यशस्वी