नीलगिरि की पर्वतमाला भारत की कुछ विशिष्ट आदिम जातियों का निवास स्थान है। इस पर्वतमाला की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 6000 से 7000 फीट तक है। यह पर्वतमाला घने वनों से आच्छादित है जिसमें कहीं-कहीं ऊंचा पठार क्षेत्र भी पाया जाता है। यही पठार यहां रहने वाली जनजातियों का निवास स्थान है। यहां की जनजातियों में टोडा, बडागा तथा कोटा प्रमुख हैं। प्रकृति की गोद में साधरण जीवन व्यतीत करने के कारण ये लोग पशु- धन से अपने सामाजिक स्तर का आकलन करते हैं। जिस व्यक्ति के पास अधिक पशु-धन होता है, समाज में उसका स्तर ऊंचा माना जाता है। टोडा लोग समूह में निवास करना पसंद करते हैं। आदिकाल से, बाहरी सम्पर्क से कटे रहने के कारण जिस तरह यहां की जनजातियों ने परस्पर विनिमय का प्रबंध् स्थापित किया है वह अपने आप में अद्वितीय है। बडागा जनजाति यहां मुख्य रूप से कृषि कार्य करती है और कोटा लोग बर्तन, लकड़ी व लोहे के विभिन्न उपकरण आदि बनाते हैं, वहीं टोडा पशुपालकों के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। बडागा तथा कोटा जनजातियां लोगों को अन्न, वस्त्र, बर्तन, घरेलू उपकरण आदि उपलब्ध कराती हैं और उनके बदले दूध्, घी, मक्खन आदि पदार्थ प्राप्त करती हैं।
यह दोनों मुख्य इकाईयां आपस में वैवाहिक संबंध् स्थापित नहीं करती हैं। तेवाल्याल इकाई के लोग ही धर्मिक क्रिया-कलापों को सम्पन्न कराते हैं। इस प्रकार टोडा समाज में उनकी भूमिका कुछ-कुछ हिन्दू पुजारियों जैसी होती है। टोडा जनजाति की भाषा में तमिल भाषा के काफी शब्द पाए जाते हैं और शेष बडागा जनजाति की भाषा से मिलते हुए होते हैं। टोडा लोगों की झोपड़ियों की ऊंचाई आठ से दस फीट होती है परंतु तुलनात्मक दृष्टि से इनकी लम्बाई लगभग दोगुनी होती है। इनकी छत भूमि से एक- दो फीट की ऊंचाई से प्रारम्भ होते हुए अर्ध- गोलाकार रूप में समस्त झोपड़ी को ढक लेती है। इनका मुख्य द्वार आगे से इतना बंद होता है कि झोपड़ी के अंदर रेंगकर जाना पड़ता है और इस द्वार को भी वह रात्रि में लकड़ी के लट्ठे से पूर्णतया बंद करके रखते हैं। झोपड़ी के चारों ओर भी पत्थरों को जोड़कर दो- तीन फीट ऊंची दीवार बनाई जाती है जिसमें अंदर आने के लिए बहुत छोटा सा द्वार छोड़ा जाता है। सम्भवत: वन्य जीवों से स्वयं की रक्षा करने के लिए ही टोडा संस्कृति में इस आकार- प्रकार की झोपड़ियां बनाने की परम्परा का समावेश हुआ है। झोपड़ी में एक चबूतरा होता है जिसे चटाई से ढंक दिया जाता है। इसका प्रयोग सोने के लिए किया जाता है। इसके ठीक दूसरी तरफ खाना पकाने का स्थान होता है। टोडा लोग दैनिक कृत्यों के लिए तो आग जलाने के आधुनिक साधनों जैसे माचिस आदि का प्रयोग करते हैं। लेकिन धर्मिक रीति-रिवाजों के समय व संस्कारों के निर्वहन में लकड़ी रगड़कर आग उत्पत्र करने के पारम्परिक तरीके को अपनाते हैं। टोडा लोग विशेष रूप से अच्छी नस्ल की भरपूर दूध देने वाली भैंसों को पालते हैं। ये लोग स्त्रियों को अपवित्र मानते हैं, इसलिए धर्मिक क्रिया-कलापों तथा दुग्ध्-उत्पादन संबंधी कार्यों में इनकी कम ही भूमिका रहती है। जनजाति के लोग भैंसों को दो समूहों में बांट कर रखते हैं। एक सामान्य पवित्र भैंसें व दूसरी पवित्र भैंसे। साधरण पवित्र भैंसे विभिन्न परिवारों की सम्पत्ति होती हैं, वहीं पवित्र भैंसे पूरे गांव की सम्पत्ति होती हैं। पवित्र भैंसों के लिए गांव से थोड़ा दूर हट कर एक पवित्र स्थान का निर्माण किया जाता है। इस पवित्र स्थान के कार्य संचालन के लिए विशेष संस्कारों का पालन करने वाले एक व्यक्ति को चुना जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में पलोल कहा जाता है। पलोल को पुजारी की भांति पवित्र माना जाता है और उसके द्वारा ब्रहाचर्य का पालन करना आवश्यक माना जाता है। यदि वह विवाहित होता है तो उसे अपनी पत्नी को छोड़ना पड़ता है। आदिकाल से टोडा जनजाति में बहुपति प्रथा का प्रचलन रहा है। जब भी किसी व्यक्ति का विवाह सम्पन्न होता है तो उसकी पत्नी को स्वत: ही उस व्यक्ति के भाईयों की पत्नी मान लिया जाता है। परंतु संतानोत्पत्ति के समय यह आवश्यक नहीं है कि जो व्यक्ति उस स्त्री को ब्याह कर लाया हो वही उस संतान का पिता कहलाए। इसलिए सामाजिक व पारिवारिक कर्तव्यों के निर्वाह के लिए टोडा समाज में पिता निर्धारित करने की एक विशेष परम्परा है। इसके अनुसार गर्भ के सातवें महीने में जो भी भाई अपनी पत्नी को पत्ती और टहनी से बना एक प्रतीकात्मक धनुष-बाण भेंट करता है, वही उसकी होने वाली संतान का पिता कहलाता है। हालांकि इतना अवश्य है कि यदि बड़ा भाई जीवित हो तो अक्सर वही उस स्त्री को प्रतीकात्मक धनुष-बाण भेंट करते हुए परम्परा का निर्वाह करता है। टोडा स्त्रियां व पुरुष दोनों ही सफेद रंग का लाल व नीली धरियों वाला वस्त्र धरण करते हैं। टोडा स्त्रियों का अधिकतर समय सिर में तेल लगाने, बाल बनाने, कढ़ाई करने व भोजन तैयार करने में जाता है। यौवनकाल आरम्भ होने से पहले ही टोडा युवतियों में गोदना करवाने की परम्परा भी पाई जाती है। इसके लिए ये लोग कांटे का प्रयोग करते हैं और गोदने के बाद इसमें लकड़ी के कोयले से रंग भर देते हैं। टोडा पुरुषों की लम्बाई औसत से कुछ अधिक होती है और वे मजबूत कद-काठी के होते हैं। सम्भवत: हर पुरुष के दाहिने कंधे पर पुराने घाव का निशान या गांठ पाई जाती है। यह कंधे को जलती लकड़ी से दागने से बन जाती है, जिसे कि एक संस्कार के रूप में हर बालक पर बनाया जाता है जब उसकी आयु बारह वर्ष की होती है। उस समय से वह भैंसों का दूध् दुहना प्रारम्भ करता है। टोडा लोगों का मानना है कि इससे दूध् दुहने के समय दर्द व थकान नहीं होती है। इसी प्रकार गर्भवती स्त्रियों की अंगुलियों के जोड़ों व कलाई पर तेल में भीगे जलते हुए कपड़े से एक बिन्दु बनाया जाता है। इस सम्बन्ध् में उनका मानना है कि इससे गर्भ के दौरान स्वास्थ्य की रक्षा होती है और वह किसी बुरी छाया से बची रहती हैं। टोडा जनजाति प्राकृतिक संसाधनो पर निर्भर होने के कारण टोडा लोगों को नीलगिरि की पहाड़ियों में अक्सर ही पशु चारे के लिए घास के नए मैदानों की खोज करनी पड़ती है। ऐसी स्थिति में कभी-कभी पूरा गांव ही अपने सदस्य परिवारों के साथ स्थानांतरित हो जाता है। इसके अतिरिक्त, टोडा लोग कई बार अपने त्यागे गए रहने के पुराने स्थानों की भी धर्म भाव से यात्रा करते हैं। इन यात्राओं में वे अपने परिवारों व पशु-धन को साथ ले जाते हैं।
[समस्त जानकारी अंतरजाल से साभार] |
ज़मीर जी और अन्य सभी विजेताओं को मुबारकबाद
जवाब देंहटाएंतोडा जनजाति के बारे में विस्तार से जानकारी देने के लिए आभार
बहुत सुन्दर पोस्ट बनाते हैं आप लोग
congratulation to all winners
जवाब देंहटाएंand participants
and thanks to creative manch for nice program
ज़मीर जी, मोहसिन जी और शमीम जी & anya vijetao ko badhai ho badhai (^_^)
जवाब देंहटाएंआपके इस कोशिश की कैसे तारीफ करे। बहुत अच्छा प्रयास। हम भी क्विज में भाग लेने के ख्वाहिशमंद हैं।
जवाब देंहटाएंज़मीर जी और अन्य विजेताओं को बधाई.
जवाब देंहटाएंविजेताओं को बहुत बहुत बधाई ! अनन्त शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंज़मीर जी, मोहसिन जी, शमीम जी और अन्य सभी विजेताओं को बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंतोडा जनजाति के बारे जानकारी देने के लिए आभार
बहुत सुन्दर पोस्ट
sabhi quiz players ko bahut badhayi.
जवाब देंहटाएंitni jaldi maine Answer diya tha fir bhi meri 10th place :(
anant ji aapne ne bahut achhe se Toda tribe ki jankari di hai. inka cultur padhkar bahut hairani huyi. inka ghar kitna sundar hota hai.
congratulation to all winners
जवाब देंहटाएंi m also in winner list
good
धन्यवाद और अन्य विजेताओं को बधाई .
जवाब देंहटाएंआदर्णीय अनंत जी भी बधाई के पात्र हैं. अच्छी Quiz और साथ ही जानकारी भी.
ज़मीर जी सहित सभी विजेताओं को बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंतोडा जनजाति के बारे में पहली बार इसी मंच से जानकारी मिली.आशचर्य होता है इस आधुनिक युग में भी ये
बाहरी दुनिया से जुड़ने के बाद भी अपनी संस्कृति को बचे हुए हैं.इनके बारे में एक और जानकीर मुझे नेट पर मिली कि
बिश्नोई और तोडा जनजाति ही मात्र दो ऐसी जनजातियाँ हैं जो शाकाहारी हैं.
किसी ने इन पर अपनी रिसर्च पेपर में यह भी लिखा है कि अपनी जनजाति की जनसँख्या बढ़ाने के प्रयास के रूप में अब इस जातिके लोगों ने अपनी लड़कियों को बाहरी लोगों से संतान उत्पत्ति की अनुमति दी है.
आभार आप का इस जानकारी हेतु.
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aapke presentation ki jitni bhi taarif karun kam hi hogi. bahut hi sundar aur bahut hi gyanvardhak post.
जवाब देंहटाएंthnx
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jin logon ne bhi participate kiya un sabhi ko wishes
बेहतरीन ब्लॉग
जवाब देंहटाएंअनोखी जानकारियां
सबको बधाई
ज़मीर जी और अन्य सभी विजेताओं को बधाई.
जवाब देंहटाएंसभी विनरों तथा संचालक महोदय को बधाई .
जवाब देंहटाएंज़मीर जी, मोहसिन जी और शमीम जी को हार्दिक बधाई, आप लोगों ने बहुत ही जल्दी जवाब दे दिया, अन्य सभी ने भी अच्छा किया पर समय से पिछड़ गए... :)
जवाब देंहटाएंकाफी रोचक अनुभव रहा, दो-तीन दिनों पहले ही रोशनी साहू जी के ब्लॉग से इस प्रतियोगिता वाले ब्लॉग की जानकारी हुई, और मैंने तो पहली बार ही भाग लिया और कुल मिला कर काफी आनंददायक अनुभव रहा...
jamir ji sahit sabhi vijetao ko hardik badhai...
जवाब देंहटाएंज़मीर जी और अन्य विजेताओं को बधाई.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन जानकारियां
जमीर जी सहित सभी विजेताओं को बधाई.
जवाब देंहटाएंपुनः ज्ञानवर्धन हुआ. आभार.
Sabhi vijetaao ko hardik badhayi..
जवाब देंहटाएंसभी विजेताओं को बहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं!
जवाब देंहटाएंCreative manch toda janjati ki jankari prapt huii accha laga.
jab bhi aapko mouka mile to aap kya aap aadiwasi kalakriti par bhi koi lekh prakashit kar sakte hain?
isse kalakaron ko bahut madad milegi apni bhartiy kalakrtiyon ke bare men janne se.
Aabhar
Dhanywad
@ प्रिय रौशनी जी
जवाब देंहटाएंहम अवश्य इस तरह की सामग्री प्रकाशित करने की कोशिश करेंगे! क्रिएटिव मंच का वास्तविक उद्देश्य ही यही है! विभिन्न संस्कृतियों, परम्पराओं, लोक कलाओं एवं उत्कृष्ट साहित्य इत्यादि से पाठकों को परिचित कराना! पहले भी हम प्रयास करते रहे हैं!
इधर प्रतियोगिताओं के कारण समस्या आ रही थी ! जैसे ही C.M.Quiz का पहला राउंड समाप्त होगा, हम कुछ और बेहतर करने की कोशिश करेंगे ! आप भी सामग्री देकर अपना विशिष्ट योगदान दे सकती हैं ! हमें ख़ुशी होगी !
ई-मेल द्वारा संपर्क बनाये रखिये !
-----------------क्रिएटिव मंच
ज़मीर जी को बह्त बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंमोहसिन जी और शमीम जी को भी मुबारकबाद !
क्रिएटिव मंच द्वारा स्वस्थ प्रतिस्पर्धाओं का संयोजन निस्संदेह एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण कर रहा है , इसमें अवरोध नहीं आना चाहिए ।
-राजेन्द्र स्वर्णकार