रविवार, 20 फ़रवरी 2011

सी.एम.ऑडियो क्विज़ [क्रमांक- नौ] - "सुनें और बताएं"

'life is short, live it to the fullest'

सभी साथियों/पाठकों/प्रतियोगियों को सप्रेम नमस्कार
'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 9' कार्यक्रम में आप का स्वागत है।

आज इस श्रृंखला की नवीं कड़ी में हम आपको
दो मकबूल शायरों की
ऑडियो क्लिप सुनवा रहे रहे हैं।
आप नीचे दी हुयी दोनों आडियो क्लिप्स को बहुत ध्यान से सुनकर
पूछे गए प्रश्नों के सही जवाब दीजिये।


आधा-अधूरा जवाब मान्य नहीं होगा।
कृपया प्रतियोगी जवाब के रूप में कहीं का भी लिंक न दें।

सही जवाब देने की समय सीमा सोमवार, 21 फरवरी दोपहर 2 बजे तक है।

इन दो आडियो क्लिप्स को ध्यान से सुनकर बताईये कि :
Q.1- यह किस शायर की आवाज है ?
Q.2- यह किस शायर की आवाज है ?
आप दोनों प्रश्नों के जवाब अलग अलग टिप्पणियों में लिख सकते हैं,
जिससे गलत टिप्पणी को प्रकाशित करने में आसानी होगी।
सूचना :
आपका जवाब आपको यहां न दिखे तो कृपया परेशान ना हों ! माडरेशन ऑन रखा गया है, इसलिए केवल ग़लत जवाब ही प्रकाशित किए जाएँगे ! सही जवाबों को समय सीमा से पूर्व प्रकाशित नहीं किया जाएगा ! जवाब देने की समय सीमा कल यानि सोमवार दोपहर 2 बजे तक है ! उसके बाद आये हुए जवाब को प्रकाशित तो किया जाएगा किन्तु परिणाम में शामिल करना संभव नहीं होगा ! क्विज़ का परिणाम कल यानि सोमवार को रात्रि 7 बजे घोषित किया जाएगा !
----- क्रिएटिव मंच


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मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

रेखाओं के अप्रतिम जादूगर--श्री काजल कुमार जी







हमारे देश, समाज और राजनीति को समझाने का जो काम बीसियों पन्‍नों के अख़बार नहीं कर पाते, वो काम एक कार्टूनिस्ट अपने थोड़ी सी जगह में अपने कार्टून के जरिये बेहद सहजता से कह देता है। आम जीवन में हम अगर अखबार के कोने में कार्टून न देखें तो खालीपन सा लगता है। अच्छे कार्टून उस भाषा और समाज को दर्पण दिखाने का काम करते हैं और उसकी प्रगति भी बताते हैं। काटूनों में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक जीवन का जटिल सच, पूरी अर्थवत्ता के साथ शब्दों एवं रेखाओं के माध्यम से व्यक्त होता है। कार्टून, वस्तुतः सबवर्ज़न का एक जरिया है। वह ह्यूमर के जरिये सीधे तौर पर समाज में जो कुछ घट रहा है उस पर विद्रोही दृष्टि डालता है। सर्वोच्च पद पर विराजमान अथवा सत्ता में बैठे किसी भी महत्वपूर्ण व्यक्ति की आलोचना करनी हो, तो कार्टून उसका एक बेहद स्वस्थ और रचनात्मक माध्यम है।

अगर कार्टून कला का इतिहास देखा जाए तो भारत में कार्टून कला की शुरुआत ब्रिटिश काल में मानी जाती है और केशव शंकर पिल्लई को भारतीय कार्टून कला का पितामह कहा जाता है। शंकर ने 1932 में हिंदुस्तान टाईम्स में कार्टून बनाना प्रारम्भ किए। शंकर के अलावा कुट्टी मेनन, रंगा, आर.के. लक्ष्मण, काकदृष्टि, चंदर, सुधीर दर, अबू अब्राहम, प्राण कुमार शर्मा, आबिद सुरती, सुधीर तैलंग, राजेंद्र धोड़पकर, इरफान, पवन, मंजुल इत्यादि ऐसे नाम है जिन्होंने भारतीय कार्टून कला को आगे बढाया और पहचान दी। आज भारत में हर प्रान्त और भाषा में कार्टूनिस्ट काम कर रहे हैं।
सीधी रेखाओं को यहाँ-वहाँ घुमा कर गागर में सागर भर देने की काबिलियत रखने वाले एक सवेंदनशील कार्टूनिस्ट जिनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इनके कार्टूनों में समय, समाज और राजनीति की सटीक अनुगूंज हमें मिलती हैं। इनके सृजन का पैनापन बेहद प्रभावशाली होता है।
जी हाँ,
ये हैं बेहद चर्चित हम सबके लिए सुपरिचित कार्टूनिस्ट काजल कुमार जी, जिनका हमने हाल ही में साक्षात्कार लिया। एक कार्टूनिस्‍ट को हर रोज़ एक अलग आइडिया से पाठकों को गुदगुदाना होता है। इस तरह एक कार्टूनिस्ट का काम सृजनात्मक भी है और चुनौती भरा भी। हमने बातचीत के जरिये काजल जी के इस रोचक सफर में झाँकने की कोशिश की। लीजिये आप भी पढिये हमारे सवाल और उनके जवाब -
परिचय
जन्म स्थान : ऊना, हिमाचल प्रदेश
वर्तमान निवास : नई दिल्ली
विशेष अभिरुचियाँ : कार्टून, कुछ हिन्दी पत्रिकाएं, इन्टरनेट सर्फिंग, आउटडोर खेल, लॉन्ग ड्राइव सैर, ढेर सारा विविध संगीत, खूब सोना.....



कार्टून
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सवाल : आप कार्टून कब से बना रहे हैं ?
0- कार्टून बनाना मैंने कालेज के ज़माने में शुरू किया. हालांकि चित्रकला में रूचि बचपन से ही थी पर कार्टून बनाने के बारे में कभी नहीं सोचा था.

सवाल : आपके कार्टूनिस्ट बनने की कहानी क्या है ?

0- हा हा हा… इसके पीछे कोई कहानी नहीं है. वास्तव में ही कोई कहानी नहीं है. सिवा इसके कि ‘विचार’ बिजली की सी मार करने वाला होता है अब आप इसे चाहे कविता/ग़ज़ल में कह लें, या फिर इसके ठीक उलट, चाहे गाली में. ठीक यही इन्टेंसिटी कार्टून बनाने के पीछे होती है. इसके बाद, कुछ आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचनी भर आनी चाहिये….बस्स.

सवाल : अब तक आप लगभग कितने कार्टून बना चुके होंगे ?

उ0 - आह ! कुछ पता नहीं … शायद हज़ारों.

सवाल : वैसे तो आपके बनाए बेशुमार कार्टून हैं जिनकी तारीफ़ की गई, फिर भी जहन में अपना बनाया कोई ख़ास कार्टून जिसे ख़ास सराहना मिली हो, कोई याद आता है ?
0- नहीं ऐसा कुछ विशेष तो याद नहीं आता…पर हां, समय-समय पर अलग-अलग कार्टून अपनी महत्ता रखते आए हैं. (मैं यूं भी याददाश्त को ज़्यादा कष्ट देने में खास भरोसा नहीं रखता :-)).

सवाल : क्या आप हमें बताएँगे कि आपके कार्टून कहाँ-कहाँ प्रकाशित हो चुके हैं ?
0- ये सबसे कठिन सवालों में से एक है. कहां से शुरू करूं …लगभग 25 साल तक तो हिन्दी साप्ताहिक पत्रिका ‘लोटपोट’ के लिए ही दो फ़ीचर ‘चिंप्पू’ और ‘मिन्नी’ लगातार बनाए. साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सारिका, नवनीत, सत्यकथा, मेला, बाल भारती, Children’s World…. और भी न जाने कहां-कहां बल्कि सच तो यह है कि जिस भी पत्र-पत्रिका को फ़्रीलांसरों से परहेज़ नहीं होता था वहां-वहां कार्टून छपते ही रहते थे. वह भी एक समय था जब कार्टून बनाना एक नशे की तरह था :-)

सवाल : आप किसी कार्टून का सृजन कैसे करते हैं .. मतलब प्रोसीजर क्या है ? क्या कोई ख्याल आते ही कुछ नोट्स वगैरह लिख लेते हैं या तुरंत ही निर्माण में जुट जाते हैं ?
0- आमतौर से विचार को नोट करके रख लेना और फिर बाद में आराम से, जब भी मूड हो, कार्टून बनाना ही मेरी रचना प्रक्रिया का पर्याय है. लेकिन हां, कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आप उसी वक्त कार्टून बनाना चाहते हैं.

सवाल : कई बार कोई कार्टून विवाद का मुद्दा भी बन जाता है ! यह अनायास ही हो जाता है या लाईम लाईट में आने अथवा सनसनी बनाने के लिए क्रियेट किया जाता है ?
0- लाईम लाईट में आने का सही तरीक़ा केवल ईमानदारी से मेहनत करना ही है पर हां, आज के बदल रहे परिवेश में सनसनी टाइप काम करने से भी लोगों को परहेज़ नहीं होता है, भले ही व्यक्तिगत रूप से मैं इसे दु:खद मानता हूं.

सवाल : हर कलाकार का कोई न कोई आईडियल होता है. आप किससे प्रभावित रहे ?
0- हम्म्म… शायद मैं इस मामले में कुछ स्वतंत्र सा रहा हूं पर हां मारियो मिरांडा व अजीत नैनन का काम मुझे नि:संदेह बहुत पसंद आता है. मैं इनके काम का फ़ैन हूं. केवल रेखाचित्र ही नहीं, उनका pun भी बीहड़ रहता आया है. लेकिन यह तय है कि मैं इनकी जितनी मेहनत नहीं कर सकता :-)

सवाल : क्या किसी पुराने कार्टूनिस्ट का कोई ऐसा कार्टून है जो आपके दिलो दिमाग में आज भी बसा हो ?
0- मुझे तो कई बार अपने ही बनाए कार्टून देख कर हैरानी होती है… अरे ! ये कब बनाया ! कुछ मुश्किल सा है इस समय याद करना. वास्तव में, एक समय के बाद आप किसी की भी कला-शैली के अभ्यस्त हो जाते हैं, ऐसे में किसी चित्र-विशेष का कोई बहुत अधिक महत्व नहीं रह जाता.

सवाल : कार्टूनिस्ट के रूप में लम्बी और सशक्त पारी खेलने का मूल-मंत्र क्या है ?
0- आपके भीतर एक ग़ज़ब का गुस्सैल लेकिन शरारती और एकदम मस्त बच्चा हमेशा खेलता रहना चाहिये …बस्सस. साथ ही साथ, हर रोज़ सीखते रहने से भी कार्टूनिंग में मज़ा बना रहता है.

सवाल : एक अच्छे कार्टूनिस्ट की परिभाषा आपके दृष्टिकोण से क्या है ?
0- जो piercing धारदार बात कहता हो, उठा कर धड़ाम से पटक देता हो चारों-खाने चित.

सवाल : हमने सुना है कि आप आवाज़ की दुनिया से भी जुड़े हैं .क्या यह सच है ?
0- :-) अब मैं स्वयं को कई बातों के संदर्भ में भूतपूर्व मानता हूं व नए लोगों के नए-नए प्रयोगों में खूब आनंद लेता हूं. प्रसारण भी एक ऐसी ही विधा रही जिससे जुड़ कर, एक समय मैंने पर्याप्त आनंद पाया. आजकल मैं एक अच्छा श्रोता हूं.

सवाल : भारत में आज भी इस कला को वह पहचान नहीं मिली जो विदेशों में इस कला को मिली है,ऐसा क्यूँ ? उदाहरण के लिए दुबई में ग्लोबल विलेज में हमारा एक रंगीन कार्टून ओन स्पोट बना कर देने वाले कलाकार प्रति व्यक्ति साठ दिरहम चार्ज करते हैं.
0- शायद खुद पर हंसना, हमें अभी भी सीखना है. हमारे यहां लोग कार्टूनिस्ट से अपना कार्टून बनवाने की ज़िद तो कर लेते हैं पर अधिकांशत: मन में पोर्टेट देखने की इच्छा रखते हैं. इसके अलावा भी बहुत से कारण हैं जैसे, हमारे यहां किसी भी चीज़ की मार्केटिंग का रिवाज नहीं रहा है. मसलन प्रकाशकों को ही ले लीजिए, वे बस कुछ भी छाप देना भर ही इतिश्री मान लेते हैं जबकि विकसित देशों में प्रकाशन से कहीं ज़्यदा पैसा, नीति के अंतर्गत, किताब के प्रचार-प्रसार में लगाया जाता है यही हाल कार्टूनिंग का है. कार्टून-प्रदर्शनी से कार्टून ख़रीद कर कोई अपने दफ़्तर/ड्राईंगरूम में लगाएगा, सोचना मुश्किल लगता है, कई सीमाएं भी हैं इस कला की.

कार्टून चरित्र को प्रचारित करने में भी अथाह मेहनत की उम्मीद की जाती है. मुझे याद नहीं कि किसी पत्रिका की डमी में कार्टून भी रखा जाता हो. संपादकीय लिखने वालों का स्थान समाचार-पत्र में खासा अच्छा होता है पर एक कार्टून में पूरा संपादकीय कह देने वाले कार्टूनिस्ट को वही स्थान देने की सोच स्वीकार करने में ही बहुत समय लग जाता है. प्रकाशन-प्रसारण के धंधे वाले लोगों में कार्टूनिंग के प्रति समुचित रूचि नहीं दिखती. इस क्षेत्र में सिंडीकेशन के बारे में लोग सोचते तो हैं पर कोई समुचित प्रयास नहीं किया जाता कि पूरे देश के विभिन्न प्रकाशनों में इन्हें समुचित रूप से वितरित भी किया जाए. सिंडीकेशन भी आधा-अधूरा प्रयास होता है, न कि व्यवसायिक उपक्रम. लोग उम्मीद करते हैं कि कार्टूनिस्ट ख़ुद ही सिंडीकेशन भी चलाए. कामिक्स तक को प्रचारित करने का कोई समुचित प्रयास नहीं किया जाता. हैरी पाटर को आज पूरी दुनिया जानती है, चंद्रकांता संतति को हिन्दी भाषी ही जान लें तो भी बहुत…दोनों ही कल्पना की उड़ान हैं, बस मार्केटिंग का आंतर है.

सवाल : एक रोचक बात ओब्सेर्व की गयी है कि अधिकतर कार्टूनिस्ट पुरुष ही हैं महिलाएं नहीं ,ऐसा क्यूँ ?
0- मैंने तो कभी ध्यान ही नहीं दिया था इस बात पर. लेकिन आपकी बात है सही. उंहु… पर कुछ नहीं कह सकता कि ऐसा क्यों है. पेंटिंग में तो एक से एक बढ़िया महिला कलाकार हैं. नि:संदेह महिलाओं को इस क्षेत्र में भी अवश्य आना चाहिये.

सवाल : नई तकनीक आने के बाद अब एक कार्टूनिस्ट का काम कितना आसान हुआ है ?
0- जी एकदम. कार्टूनिंग में कुछ काम ऐसे हैं जिन्हे करना मैंने कभी पसंद नहीं किया जैसे चित्र के चारों ओर की लाइनें खींचना, कार्टूनों में संवाद लिखना व संवादों के चारों ओर balloon बनाना. तकनीक ने इस नीरस काम से मुझे उबार लिया है. इसी तरह, चित्रों को रंगीन करना भी कहीं अधिक सुगम हो गया है. मुझ जैसे आरामपसंद आदमी के लिए तो यह तकनीक एक वरदान है. आज चित्रों को स्कैन कर ई-मेल से भेजना कहीं अधिक आसान रास्ता है, मूल कार्टून भी आपके पास ही रहता है, वर्ना पहले डाक में ही कार्टून की भद पिट जाती थी. कंप्यूटर व इनके साफ़्टवेयर बनाने वालों को बहुत बहुत धन्यवाद. भगवान इन्हें हर सुख दे :-)

सवाल : आज के दौर में 'एज ए प्रोफेशन' कार्टूनिस्ट का क्या स्कोप है ?
0- भारत में आज भी इसका स्कोप कोई बहुत बेहतर तो नहीं ही है हां, नए नए प्रयोग होते रहने के चलते openings पहले से ज़्यादा हैं. लेकिन, लोगों को अभी भी समझने में समय लगेगा कि चुटकुला और कार्टून, दो एकदम अलग चीजें हैं. यह एक बहुत stressful काम है इसलिए संयत बने रहने के प्रति जागरूकता बहुत ज़रूरी है.
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नीचे आप काजल जी द्वारा बनाए गए कुछ और बेहतरीन कार्टून स्लाईड शो के माध्यम से देख सकते हैं :>

काजल कुमार जी ने जिस आत्मीयता के साथ हमें साक्षात्कार में सहयोग दिया और कार्टून से सम्बंधित आवश्यक जानकारी दी, उसके लिए क्रिएटिव मंच ह्रदय से काजल जी का आभार व्यक्त करता है
हार्दिक शुभ-कामनाएं
The End

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर

क्विज संचालन ---- प्रकाश गोविन्द


आप सभी को नमस्कार !
क्रियेटिव मंच आप सभी का स्वागत करता है !

आप सभी प्रतियोगियों एवं पाठकों को बहुत-बहुत बधाई जिन्होने इस पहेली मे हिस्सा लिया। कल 'C.M.Picture Quiz-42' में हमने प्रतियोगियों के समक्ष दो बच्चों की तस्वीरें पेश की थीं, और उन बच्चों को पहचानने को कहा था। एक-दो प्रतियोगियों ने आपत्ति जाहिर की की कोई हिंट देना चाहिए था। मित्रों जब हमने पहले ही कह दिया था कि क्विज़ सामयिक होगी तो बताईये तो भला आज क्रिकेट वर्ल्ड कप से बड़ी सामयिक बात क्या है ?
क्विज का सही जवाब था "1- वीरेंद्र सहवाग' और 2- गौतम गंभीर"

भारत में क्रिकेट धर्म का स्वरुप ले चुका है और मामला क्रिकेट वर्ल्ड कप का हो तो भला कौन इसके बुखार से बच सकता है। अभी से धडकनें तेज हो चुकी हैं, रेडिओ और टीवी का बाजार जोरों पर है। लोगों में अभी से सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। हम भी कैसे बचते ? बस दो धुरंधर खिलाड़ियों की तस्वीरें आपके सामने रख दीं। तस्वीरें भी उनकी, जिनके ऊपर पूरे देश वासियों की निगाहें रहेंगी। घरेलू परिस्थतियों और दर्शकों के अपार सहयोग को देखते हुए भारत इस बार विश्व चैंपियन बन सकता है। कोई शक नहीं है कि विश्व कप में भारत की सफलता काफी हद तक सलामी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर की फार्म पर निर्भर करेगी।

इस बार का क्विज परिणाम अप्रत्याशित रहा। हमें ऐसी आशा जरा भी नहीं थी क्योंकि सही जवाब बहुत ही कम प्रतियोगियों ने दिए। सर्वप्रथम सही जवाब देकर आशीष मिश्रा जी ने प्रथम स्थान हासिल किया। उसके उपरान्त क्रमशः दर्शन बवेजा जी और शिवेंद्र सिन्हा जी ने द्वितीय एवं तृतीय स्थान अर्जित किया।

सभी विजेताओं को हमारी तरफ से बहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं


अब आईये -
क्विज परिणाम में प्रतियोगियों के विजेता क्रम जानने के साथ ही दोनों
विलक्षण खिलाड़ियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करते हैं :
वीरेंद्र सहवाग [viirendra Sehvag]
माँ की यादों में वीरू का बचपन
सहवाग को घर में प्यार से वीरू कहा जाता था। बचपन से ही वीरू बड़ा शरारती था। दूध का तो खास तौर पर बहुत शौक़ीन था। आये दिन वो दुसरे के हिस्से का भी दूध पी जाया करता था। दूध उसे आज भी बहुत अच्छा लगता है।

एक बार, जब वीरू बहुत छोटा था तब टीवी पर कपिल देव की माँ का इंटरव्यू आ रहा था। सब बच्चे फिल्म देखना चाहते थे लेकिन वीरू अड़ गया कि मुझे यही देखना है।
फिर वह माँ का हाथ पकड़ कर लाया और बोला, 'एक दिन तू भी ऐसे ही इंटरव्यू देगी'. उसकी इस बात पर घर के सभी बच्चें हँस दिए थे।

इसी तरह एक दिन जब सहवाग की माँ स्कूल की टीचर से मिलकर लौटी तो माँ ने वीरू से कहा, तेरी बहनों की टीचर से मिलकर मैं चौड़ी होकर घर आती थी पर तू ने तो मेरा दूध फीका कर दिया।
तब वीरू ने बड़े आत्मविश्वास से कहा था...तू चिंता मत कर एक दिन मैं तेरे दूध का मान रखूँगा।
sehvag भारत का एक बल्लेबाज जिससे दुनिया का हर गेंदबाज खौफ खाता है, वो है वीरेंद्र सहवाग। यह मानना है इमरान खान से लेकर रिचर्ड हेडली और बॉब विलिस के दिल में खौफ पैदा करने वाले विवियन रिचर्ड्स का। अभी हाल ही में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ युसूफ पठान ने यादगार तूफानी पारो खेलने के बाद पत्रकारों से कहा कि- 'वीरेंद्र सहवाग के बेखौफ अंदाज ने उन्हें इस कदर खेलने के लिए प्रेरित किया।' आज सहवाग के बल्ले का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता है। तभी तो अपने समय के आक्रामक बल्लेबाज श्रीकांत के बेटे की बात करें या फिर क्रिकेट के भगवान सचिन के बेटे की, दोनों ही सहवाग के जबरदस्त प्रशंसक हैं। वीरेंद्र सहवाग की आक्रामक बल्लेबाज़ी को समूचा क्रिकेट जगत सलाम करता है।

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सहवाग को 2008 में अपने शानदार प्रदर्शन के लिए ‘विजडन लीडिंग क्रिकेटर इन द वर्ल्ड’ से सम्मानित किया गया. सहवाग ने इस पुरस्कार को 2009 में भी अपने नाम किया। इसके अलावा वीरू को 2002 में अर्जुन पुरस्कार का सम्मान मिल चुका है।

भारतीय टीम के विस्फोटक बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग ने जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में प्रवेश किया तो विश्लेषकों ने उन्हें सचिन तेंडुलकर की शैली में खेलने वाला बल्लेबाज कहा। जल्द ही सहवाग ने खुद की पहचान बना ली और एक समय वह भी आया, जब उन्हें भारतीय क्रिकेट का भविष्य कहा जाने लगा। आज सहवाग भारत के बेहद सफल सलामी बल्लेबाज हैं। सहवाग टेस्ट क्रिकेट में दो बार 300 से ज्यादा रनों की पारी खेल चुके हैं। यह कारनामा करने वाले वे भारत के एक मात्र बल्लेबाज हैं। उनके नाम सबसे तेज तिहरा शतक लगाने का विश्व रिकॉर्ड भी है। नजफगढ़ के नवाब के नाम से मशहूर वीरेंद्र सहवाग भारतीय क्रिकेट के अपनी स्टाइल अनोखे खिलाड़ी हैं। सहवाग का बल्ला जब गरजता है तो अच्छे-अच्छे खिलाड़ियों और टीमों के हौसले पस्त हो जाते हैं।

Virender-Sehwagवीरेंद्र सहवाग के अन्तराष्ट्रीय स्तर पर चमकने के बाद पूरे देश के ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले परिवारों में यह विश्वास जगा कि उनके बच्चे भी सहवाग की तरह क्रिकेट में नाम कमा सकते हैं। सहवाग के क्रिकेट कैरियर को संवारने में उनके स्कूली कोच अमरनाथ शर्मा की अहम भूमिका रही।

वीरेंद्र सहवाग सही मायनों में मैच विनर हैं। विकेट पर पहुंचते ही उनका एकमात्र मकसद गेंदों की धुनाई लगाना होता है। इस कारण यह माना जाता है कि वह यदि 18-20 ओवर विकेट पर टिक गए तो मैच का किसी हद तक रुख तय हो जाता है। रनों की रफ्तार धीमी करना शायद सहवाग की डिक्शनरी में नहीं है और यही कारण है कि वह अर्धशतक के करीब हों या शतक के करीब, रन बनाने की रफ्तार एक ही रहती है।

सहवाग की सबसे बड़ी ताकत हमेशा आक्रामक अंदाज में images.jpegबल्लेबाजी करना है और वह किसी भी गेंदबाज को 2-3 ओवरों में ठुकाई लगाकर आक्रमण से हटवाने का माद्दा रखते हैं। जिन गेंदों को आमतौर पर बल्लेबाज डिफेंसिव अंदाज में खेलते हैं, उन्हें भी वह सीमारेखा के बाहर पहुंचाने का दम रखते हैं। वह यदि रंगत में खेल रहे हों तो किसी भी टीम की उनको लेकर बनाई गई रणनीति टांय-टांय फिस्स हो जाती है। अक्सर विकेट पर मौजूदगी से साथी ओपनर का भी अच्छा प्रदर्शन करने के लिए मनोबल बढ़ता है। वह छोटी पारी खेलें या लंबी पर अपने ऊपर कभी भी गेंदबाज को हावी होने की छूट नहीं देते हैं और इस कारण अक्सर गेंदबाज उनके सामने असहाय नजर आते हैं। कितने ही रिकॉर्ड उनकी झोली में हैं। बल्ले के साथ-साथ गेंदबाजी से भी वीरू ने दूसरी देशों के बल्लेबाजों को परेशान किया है।

रिचर्डस का तो यहां तक मानना है कि वर्ल्ड क्रिकेट में उनके बाद यदि कोई विस्फोटक बैट्समैन पैदा हुआ है, तो वो है भारत का विस्फोटक सलामी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग। क्रिकेट की दुनिया में यही परिचय है सहवाग का और यह माना जाता है कि सहवाग जबतक क्रीज पर मौजूद हैं तो, कोई भी असंभव सा लगने वाला स्कोर बनाया जा सकता है। इस विश्व कप में दुनिया के इस सबसे खतरनाक बल्लेबाज पर भारतीय टीम का सारा दारोमदार होगा। अगर वे क्रीज पर 20-25 ओवर भी टिक गये तो मैच का रुख किस तरफ जाएगा इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।

sewhag1वन डे मैचों में 100 से अधिक का स्ट्राइक रेट रखने वाले वीरु के दमदार प्रदर्शन से ही विश्व कप में भारत का भाग्य तय होगा, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। खुद सहवाग का भी वर्ल्ड कप के बार में कहना है कि कि- 'हमारी टीम की बल्लेबाजी और गेंदबाजी काफी शानदार है और मैं चाहता हूं कि भारतीय टीम की विश्वकप खिताब जीतने की मुहिम में मैं भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकूं।'

हमें उम्मीद है कि वीरू इस विश्व कप में अपने बल्ले का कमाल जरूर दिखाएँगे।
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गौतम गंभीर [Gautam Gambhir]
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गौतम गंभीर क्रिकेट की दुनिया में नित नयी उंचाईयों को छू रहे हैं
उनके अन्दर एक आग है जो विपक्षी गेंदबाजों की धज्जियाँ उड़ाने और विजयी होकर मैदान से बाहर निकलने पर ही शांत होती है गंभीर जब ओपनिंग करने आते हैं तो वह एक सैनिक की तरह खुद को महसूस करते हैं, जिसका लक्ष्य अपने देश के लिए जीतना होता है उनके अन्दर की यही भावना उन्हें साथी खिलाड़ियों से अलग दिखाती है

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गंभीर से जब ब्रेडमैन के रिकार्ड की बराबरी करने में बारे में पूछा गया, उन्होंने कहा, मैं लक्ष्य या रिकार्ड तय नहीं करता। यदि मैं लक्ष्य तय करूंगा और उन्हें हासिल नहीं कर पाया तो मुझ पर दबाव बनेगा। मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता कि मैं ब्रेडमैन का रिकार्ड तोड़ रहा हूं या नहीं। मेरे दिमाग में सिर्फ एक लक्ष्य होता है कि मैं हर संभव कोशिश करके भारत को जीत दिलाऊं और इसी के लिए मैं टीम में शामिल हूं। मैं भाग्यशाली हूं जो देश के लिए खेल रहा हूं और मैं अपने देश की तरफ से अधिक से अधिक रन बनाकर अच्छी शुरुआत देना चाहता हूं।

गौतम गंभीर शहीद भगत सिंह से बहुत प्रभावित हैं उन्हें देश की रक्षा में जुटे सैनिकों से बहुत प्यार है और उनका कहना है कि 'अगर मुझे आज सेना में जाने का मौका मिले तो मैं क्रिकेट छोड़ने को भी तैयार हूँ' यही वजह है कि सामने चाहे शाहिद अफरीदी हों या शेन वाटसन या फिर कोई भी वह भिड़ने से झिझकते नहीं
Gautam-Gambhir उनके कैरियर को संवारने में उनके मामा पवन गुलाटी की बड़ी भूमिका रही है. गंभीर को जगजीत सिंह की ग़ज़लें सुनना अच्छा लगता है गौतम ने सफलता के लिए एक ही मन्त्र अपनाया है कि कड़ी से कड़ी मेहनत करते रहो. वह निरंतर अभ्यास में यकीन रखते हैं और उनकी कोशिश यही रहती है कि कभी अभ्यास से दूरी न बनाओ। टीम में बने रहना है तो रनों का अम्बार लगाते रहो।

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यही कारण है कि गंभीर आईसीसी टेस्ट रेंकिंग में नंबर एक पर पहुंचे. 2009 में आईसीसी के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बने, वन डे में भारतीय टीम की कप्तानी की व क्रिकेट के तीनों फार्मेट टेस्ट, वन डे और 20-20 में अपनी बल्लेबाजी का लोहा मनवाने में सफल रहे. इसी वजह से वह आईपीएल-4 की नीलामी में सबसे ऊंचे दाम 11.04 करोड़ रुपये पाने में सफल रहे कप्तानी हो या बल्लेबाजी वह जो भी करते हैं पूरे विश्वास से करते हैं वह साथी खिलाड़ियों के लिए लड़ने वाले 'टीम मैन' हैं इस विश्व कप में उनसे भारतीय टीम के लिए अहम भूमिका भूमिका निभाने की उम्मीद की जा रही है और यह गलत भी नहीं है
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सी. एम. पिक्चर क्विज - 42
प्रतियोगिता का परिणाम :
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देर से मिले सही जवाब
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समय सीमा समाप्त हो जाने के उपरान्त हमको सुश्री अदिति चौहान जी के दोनों जवाब सही प्राप्त हुए थे. इसके अलावा राज रंजन जी का भी एक सही जवाब हमको देर में प्राप्त हुआ था. प्रतियोगियों से अनुरोध है कि समय सीमा के भीतर ही क्विज का जवाब देने की कृपा करें. बाद में सही जवाब देने वाले प्रतियोगियों के नाम परिणाम में शामिल करना बहुत असुविधाजनक तो होता ही है साथ ही नियम के विपरीत भी है.
सादर व सस्नेह
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applause applause applause समस्त
विजताओं को बधाईयाँ
applause applause applause
applause applause applause applauseapplauseapplauseapplause applause applause applause
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आशा है जो इस बार सफल नहीं हुए वो आगामी क्विज में अवश्य सफल होंगे
आप लोगों ने प्रतियोगिता में शामिल होकर
इस आयोजन को सफल बनाया जिसकी हमें बेहद ख़ुशी है

आप सभी लोगों का हार्दिक धन्यवाद
यह आयोजन हम सब के लिये मनोरंजन ओर ज्ञानवर्धन का माध्यम है !
आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें जरूर ई-मेल करें!
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का आभार व्यक्त करते हैं
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया
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20 फरवरी 2011, रविवार को हम ' प्रातः दस बजे' एक नई क्विज के साथ
यहीं मिलेंगे !


सधन्यवाद
क्रियेटिव मंच
The End
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