रविवार, 15 नवंबर 2009

धार्मिक मान्यताएं और वैज्ञानिक आधार (1)

-- इंजीनियर श्री सी० पी० सक्सेना

sindoor

मांग में सिन्दूर भरना आवश्यक क्यों ?


सुषमणा नाड़ी ह्रदय से सीधी मस्तक के सामने से होती हुयी ब्रह्म-रंध्र में पहुंचती है ! ब्रह्म-रंध्र और अधिप नामक मर्म के ठीक ऊपर भाग पर सिन्दूर लगाया जाता है ! मांग को सिर के बीचों-बीच निकालने का चलन इसीलिए बनाया गया है ! सिन्दूर में पारा धातु पर्याप्त मात्रा में रहता है ! मर्म स्थान में रोम छिद्रों द्वारा पारे का कुछ अंश सुषमणा नाड़ी की सतह तक पहुंचता रहता है ! जनेन्द्रियों को क्षति पहुंचाने वाले कीटाणु जब मर्म स्थान से सुषमणा नाड़ी में रक्त के साथ प्रवाहित होते हैं तब पारा उन्हें नष्ट कर देता है ! फलस्वरूप बुद्धिमान एवं स्वस्थ बच्चे का जन्म होता है !

बच्चों की देखभाल, अन्य घरेलू कार्य तथा बालों को सुखाने में समय लगने के कारण स्त्रियों को नित्य सिर धो पाना संभव नहीं हो पाता है, जिसके कारण सिर में जूं एवं लीखें पड़ जाती हैं ! मांग में सिन्दूर रहने पर जूं इत्यादि का खतरा नहीं रहता चूंकि पारा जूं की अचूक औषधि है ! सिन्दूर से सौंदर्य बढ़ जाता है ! परन्तु उपरोक्त गुणों के अतिरिक्त सिन्दूर में एक गुण यह भी है कि यह महिलाओं में उत्तेजना पैदा करता है ! इसीलिये कुँवारी कन्याओं एवं विधवाओं को सिन्दूर लगाना वर्जित है !


विशेषज्ञों के अनुसार विशिष्टियों (मानक) के अनुसार सिन्दूर बनाने का कोई भी कारखाना भारत में नहीं है जो कि खेद का विषय है ! आजकल बाजार में सामान्यतः जो सिन्दूर बिकता है वह सेलखड़ी, खडिया पीस कर या आरारोट में विभिन्न रंग मिलाकर उसमें कुछ मातृ में लेडआक्साईड मिलाकर बनाया जा रहा है ! लेडआक्साईड त्वचा के लिए अत्यंत हानिकारक है ! कैंसर जैसे रोग होने की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है ! शासन एवं समाजसेवी संस्थाओं को इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है !



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The End
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21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर जानकारी, अगर भारत मै कोई भी सिंदुर की कमपनी नही तो क्या सारा सिंदुर नकली है,

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  2. इंजिनियर साहब ने बहुत ज्ञानवर्धक जानकारी दी.
    आमतौर पर लोगों को वैज्ञानिक आधार नहीं पता होता जो की बहुत आवश्यक है. मुझे भी नहीं पता था ... आज पता चला इसके लिए आपका धन्यवाद

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  3. सिन्दूर में पारा धातु पर्याप्त मात्रा में रहता है !

    goya, mercury sehat ke liye acchha hai aur lead oxide kharaab?

    Mese hisaab se to mercury jyada kharatnaak hai? Yeh jaankaari aapko kahan se mili?

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  4. ऎसी जानकारी यहाँ देने का कोई फायदा नहीं......अभी पश्चिमपरस्त कमियाँ निकालने आ जाएंगें ।

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  5. महत्वपूर्ण जानकारी...ये तो पता था कि हमारे सभी धार्मिक मान्यताओं का वैज्ञानिक आधार है..परन्तु इतनी सुंदर विवेचना के लिए धन्यवाद

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  6. बहुत ख़ुशी हुयी जानकार.
    हमें अपने धार्मिक प्रतीक, रीति-रिवाज, पर्व मालूम तो होते हैं किन्तु उनके पीछे छुपे निहितार्थ नहीं पता होते.
    आपने वैज्ञानिक आधार बताकर बहुत अच्छा किया. क्या आप इसी तरह की और जानकारियाँ भी दे सकते हैं ?

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  7. फलस्वरूप बुद्धिमान एवं स्वस्थ बच्चे का जन्म होता है ! - इस हिसाब से सारे बुद्धिमान सिर्फ भारत में जन्मने चाहिए ..अफ़सोस ऐसा है नही
    मांग में सिन्दूर रहने पर जूं इत्यादि का खतरा नहीं रहता चूंकि पारा जूं की अचूक औषधि है- इस तर्क पर कोई भी मनुष्य सिर्फ हँस सकता है देहातों में १०० प्रतिशत महिलाएं सिंदूर लगाती है ..और लिखों जुओं की कोई कमी इस कारण नही होती.
    आपकी आस्था की मैं कद्र करती हूँ ..जबरजस्ती कर्मकांडों में वैज्ञानिकता घुसाने की कोशिश मुझे समझ नही आई.

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    1. first you should read the full article, in which it was clearly mentiond that the pure form of "sindoor" is not available these days.
      the effects was discussed of "sindoor" due to the presence of mercury.
      all effects are of ideal nature.

      "doodh peene se height bhadti hai" every mom used to teach this lesson to their children, but what if their children are of 4 feet tall.

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  8. (प्रतिक्रियायों के जवाब में जैसा श्री सी०पी० सक्सेना जी ने कहा)

    @ राज भाटिया जी, यह अपने आप में सत्य है कि आज भारत में मानकों के मुताबिक एक भी सिन्दूर बनाने का कारखाना नहीं है ! एक कारखाना पश्चिमी बंगाल में था, वो भी बंद हो चूका है ! जैसा कि आलेख में लिखा है : "सिन्दूर बनाने का कोई भी कारखाना भारत में नहीं है जो कि खेद का विषय है ! आजकल बाजार में सामान्यतः जो सिन्दूर बिकता है वह सेलखड़ी, खडिया पीस कर या आरारोट में विभिन्न रंग मिलाकर उसमें कुछ मात्रा में लेडआक्साईड मिलाकर बनाया जा रहा है !"

    @ नीरज रोहिल्ला जी पारा अगर शरीर के भीतर चला जाए तो बहुत खतरनाक हो सकता है, अत्यंत गंभीर बीमारियाँ भी हो सकती हैं किन्तु शरीर के बाहरी संपर्क से कोई हानि नहीं होती अपितु लाभ ही होता है !

    @ लवली जी जब असली सिन्दूर उपलब्ध ही नहीं है तो आपका सवाल बेमानी हो जाता है !

    पाठकों में से किसी के मन में कोई संदेह है तो मेल द्वारा संपर्क कर सकता है ! उसको इंजिनियर सी०पी० सक्सेना जी का फोन नंबर उपलब्ध करा दिया जाएगा ताकि आपके सभी संदेह का निवारण हो सके !
    --- क्रियेटिव मंच

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  9. सुन्दर और ज्ञानवर्धक जानकारी
    आपको धन्यवाद

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  10. हम तो यह बातें बचपन से ही सुनते आ रहे हैं कि सिन्दूर लगाना आवश्यक और लाभदायक है किन्तु वैज्ञानिक आधार नहीं मालूम था ... कोई तर्क नहीं था.
    आज आपके लेख के माध्यम से अछि जानकारी मिल पायी
    थैंक्स

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  11. meri samjh se to yeh sirf ek dikhawa hai. sindoor sirf isliye lagaya jata taki pata chal sake ki stri shadishuda hai.

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत अच्छी जानकारी है आज कल सब कुछ नकली है तो सिन्दूर कैसे असली हो सकता है। धन्यवाद इस जानकारी के लिये

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  13. .
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    इंजीनियर सी० पी० सक्सेना जी,

    अत्यन्त आदर से कहना चाहूँगा, कि

    "सुषमणा नाड़ी ह्रदय से सीधी मस्तक के सामने से होती हुयी ब्रह्म-रंध्र में पहुंचती है ! ब्रह्म-रंध्र और अधिप नामक मर्म के ठीक ऊपर भाग पर सिन्दूर लगाया जाता है !"
    यह सब कपोल कल्पना है, हृदय से ऐसी कोई ARTERY, VEIN, NERVE नहीं निकलती जो मस्तक के सामने से होकर किसी रंध्र (FORAMEN) के माध्यम से दिमाग तक पहुंचती हो।

    रही बात बुद्धिमान और स्वस्थ बच्चे होने की तो प्रमाणित बात है कि अमेरिका जैसा देश जहां अधिसंख्य महिलायें सिन्दूर जैसा कुछ भी नहीं लगाती वहाँ हम से ज्यादा बुद्धिमान और स्वस्थ बच्चे पैदा होते हैं। कोई शक हो तो उनके नोबेल विजेताओं और ओलंपिक विजेताओं की संख्या की तुलना हमारे से कर लें। अपने देश में ही सिंदूर लगाने वाले हिंदूओं के बच्चों और न लगाने वाले ईसाईयों के बच्चों के स्वास्थ्य और बुद्धि में भी कोई अंतर नहीं पायेंगे आप।

    जूंओं के बारे में लवली जी ने आपको जवाब दे ही दिया है।

    "परन्तु उपरोक्त गुणों के अतिरिक्त सिन्दूर में एक गुण यह भी है कि यह महिलाओं में उत्तेजना पैदा करता है !"

    जरा तफसील से बतायेंगे कि कहाँ से यह पता चला आपको, क्या जो औरतें सिन्दूर नहीं लगाती उन्हें उत्तेजना नहीं होती ? और हिन्दू धर्म जो हर चीज में संयम का सम्मान करता है क्यों कर अपनी ब्याहताओं को हर वक्त उत्तेजित (आपके ही शब्दों मे) रखना चाहता है।

    "विशेषज्ञों के अनुसार विशिष्टियों (मानक) के अनुसार सिन्दूर बनाने का कोई भी कारखाना भारत में नहीं है जो कि खेद का विषय है !"

    आपसे अनुरोध करूंगा कि मानक के अनुसार सिंदूर का कंपोजिशन क्या है ज्ञान वर्धन करें। क्योंकि "today vermilion (sindoor or mercuric sulfide, HgS) is most commonly artificially produced by reacting mercury with molten sulfur. Most naturally produced vermilion comes from cinnabar mined in China, giving rise to its alternative name of China red."

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  14. kya avaygaanik tarike se aapne vaigyanikata ghusane ka raasta dhoondha hai muslaman striyo ke bare me aap kya tark denge jo maang meabhrak jaisi cheej bharati hai aapne apne tarko ko kis leboratery se nikala hai raam jaane isi prakaar se 300 dino tak N-E me sone par aapne kahan se likh maara hai

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  15. @प्रवीण शाह जी,
    इसे अन्यथा न लें परन्तु मुझे लगता है कि आप पश्चिम की उपलब्धियों या कहें कि पश्चिमी जगत के आभामंडल से इतने ज्यादा प्रभावित हैं कि अपनी प्रत्येक उपलब्धि "घर कि मुर्गी दाल बराबर" जैसी लगती है. आप भी भारत को संपेरों का देश ही समझते हैं जैसा कि पश्चिमी जगत ने प्रचारित कर रखा है जबकि स्वयं अमरीकी राष्ट्रपति भारतीय प्रतिभाओं से डरकर अपने युवाओं को परिश्रम करने की नसीहत दे रहे हैं.
    उपलब्धियां पुरस्कारों से नहीं आंकी जाती वरना पश्चिम के लोग योग, आंवला, नीम , करेला, हल्दी, जामुन जैसी भारत की देसी चीजों का पेटेंट कराने के लिए न दौड़ रहे होते. भारतीय मनीषियों ने जो कुछ खोजा उसे विश्व कल्याण के लिए उन्मुक्त कर दिया परन्तु पश्चिम तो आपके मुंह के निवाले का भी पेटेंट कराने पर आमादा है.
    मैकाले ने गोरी चमड़ी के जिस जातीय अहंकार का ओछा प्रदर्शन करते हुए हुन्कारकर कहा था- "भारत के समस्त साहित्य का मूल्य अंग्रेजी साहित्य के ग्रंथालय की एक अलमारी के एक खाने पर रखी पुस्तकों के के बराबर भी नहीं है"- क्या आप उसी को पुष्ट नहीं कर रहे हैं?

    गणित एवं विज्ञान के जिन मूलभूत सिद्धांतो के लिए प्रारंभिक पश्चिमी वैज्ञानिकों ने नोबेल पुरस्कार प्राप्त किये क्या वे भारतीय गणितज्ञों ने अपनी पुस्तकों में पहले ही नहीं दर्ज कर रखे थे?
    शून्य एवं अंकों की दशमलव प्रणाली, पैथागोरस का सूत्र, पाई का मान, ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, पथ, चाल, दूरी, प्रभाव आदि का वर्णन उन पुस्तकों में मौजूद है. इनमे से बहुतों को भारतीय वैज्ञानिकों ने पहले ही खोज लिया था और कुछ को स्वयं ज्ञात किया (पूर्वज्ञाताओं के संपर्क में आये बगैर). तो आप किस बिना पर यह कह सकते हैं की सारे विद्वान और ज्ञानी पश्चिम में ही पैदा हुए?

    सिन्धु घाटी की सभ्यता में जितनी खोज की जा सकी है उसमे जिस स्तर का नगर नियोजन, निर्माण और उसकी तकनीक का उद्घाटन हुआ है वह आज भी विश्व के लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ है.

    तर्कवादी और विज्ञान आग्रही होना अच्छी बात है परन्तु पूर्वाग्रही होना सही नहीं क्योंकि यह विचार क्षमता को एक संकीर्ण दायरे में सीमित कर देता है.
    शेष फिर कभी......

    जवाब देंहटाएं
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    .
    आदरणीय निशाचर जी,

    मैं आपकी टिप्पणी का स्वागत करता हूँ, आप की ही तरह मुझे भी भारतीय होने का गर्व है, कोई विदेशी अगर मेरे देश को कुछ भी गलत कहेगा तो विश्वास कीजिये कि मेरी प्रतिक्रिया आपसे ज्यादा उग्र और आक्रामक होगी, परन्तु यदि मुझे लगता है कि ब्लॉग पर नितांत अतार्किक और अवैज्ञानिक बातें लिखी गई हैं तो क्या आप चाहते हैं कि मैं प्रतिवाद भी न करूं।

    मैं भी चाहूँ तो अन्यों की तरह "सुन्दर जानकारी", "अति सुन्दर जानकारी", "महत्वपूर्ण जानकारी", "ज्ञानवर्धक" आदि आदि टिप्पणियां कर सकता हूँ, इससे विवाद में भी नहीं उलझूंगा और आप जैसे मित्रों का कोपभाजन भी नहीं होउंगा, पर क्या वाकई में हम सब का यह देश आगे बढ़ जायेगा। मुझे अपनी किसी भी त्रुटि को सार्वजनिक तौर पर स्वीकारने में तनिक भी संकोच नहीं है, ऊपर भी जो कुछ मैंने लिखा है, आप या ब्लॉग लेखक यदि उसमें कोई भी बात को प्रमाण के साथ गलत साबित करता है तो मुझे क्षमा मांगने में भी कोई शर्म नहीं।

    और हाँ, मैं पूर्वाग्रही कतई नहीं बल्कि पूर्वाग्रह के विरूद्ध ही रहा हूँ आज तक तो, कल का क्या किसको पता...

    चलते-चलते, क्योंकि यह बात आप ही ने पहले उठाई:-
    "योग, आंवला, नीम , करेला, हल्दी, जामुन, शून्य एवं अंकों की दशमलव प्रणाली, पैथागोरस का सूत्र, पाई का मान, ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति, पथ, चाल, दूरी व प्रभाव, सिन्धु घाटी की सभ्यता, नगर नियोजन, निर्माण और उसकी तकनीक"

    उपरोक्त १२ में से कोई भी चीज ऐसी है जिसे हम भारतीयों ने विगत १०० वर्षों में खोजा हो? विचार कीजिये....

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  17. @प्रवीण शाह जी, निशाचर जी.,

    आप दोनों ने जो तार्किक बात ही कही है. वो साक्ष्य मानता है. साक्ष्य मिल जाने का एक मतलब यह नहीं है की वही एकमात्र तथ्य है और वही सत्य है.

    विभिन्न काल खण्डों में जिस प्रकार वैज्ञानिक विकास हुए हैं. उनमे साम्य ढूँढना या श्रेष्ठता साबित करना जबरदस्ती है. यह बात सर्वविदित है की साधनो और वैज्ञानिक पद्धतियों के अभाव में भी अतीत में जितने कलात्मक, औषधीय, शारीर-नक्षत्र विज्ञान, साहित्यिक और आत्मिक चिंतन भारत वर्ष में हुए हैं उतने कहीं और नहीं हुए.

    प्रवीण जी के कथनानुसार "उपरोक्त १२ में से कोई भी चीज ऐसी है जिसे हम भारतीयों ने विगत १०० वर्षों में खोजा हो? विचार कीजिये...."

    बात सिर्फ उपरोक्त १२ चीज़े की नहीं है और भी आस पास बहुत से विचार करने वाले मुद्दे हैं. पिछले सौ वर्षों में सहज और साजिश के तहत पश्चिमी प्रभाव जिस प्रकार बढ़ा है. हम कहीं के नहीं रहें. आपकी यह बात बिलकुल सही है की पश्चिमी देशों में हाल के ३-४ शताब्दियों में ज्यादा उन्नति और शोध कार्य हुए हैं. हमारे यहाँ के सरकार, समाज, और संस्थान उच्च शिक्षा और शोध कार्यों पर विशेष ध्यान नहीं देती. (कारण बहुत से हैं. यहाँ गिनाने से फायदा नहीं है)

    और एक बात, विकसित देश होने का यह मतलब नहीं है की वे विकासशील देशों से ज्ञान-विज्ञान, बुद्धिमता और चिंतन में आगे हैं. ऐसा उन्होंने ने (पश्चमी विकसित देशों ने) प्रबंधन कौशल से प्राप्त किया है. पूर्व में भी वे इसी स्किल के साथ हिन्दुस्तान में व्यापार करने आये और आज भी भारत एवं अन्य देशो के प्रतिभाओं को ससम्मान बुलाते हैं (खरीद लेना कहना ज्यादा प्रासंगिक होगा).

    - Sulabh Jaiswal

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  18. क्रिएटिव मंच आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी। साथ में आप के पोस्ट की टिप्पणियाँ भी लाज़वाब हैं। हम अभी ज्यादा और कुछ नही बोल सकते,
    बस इतना ही कहेंगे ...
    "बिना जाने स्वीकार करने " या कहे "मानना" या "आस्था" -->इनसे शंका होती है, फ़िर भय पैदा होता है फलस्वरूप थकान होती है।
    "जानकर स्वीकार करने" या कहे "जानना"-->इससे विश्वास उत्पन्न होता है और विश्राम मिलता है ।
    लिखते रहें। आपका स्वागत है ....

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