प्रिय मित्रों/पाठकों/प्रतियोगियों नमस्कार !!
आप सभी लोगों का हार्दिक स्वागत है
हम 'श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता अंक- 9' का परिणाम लेकर आप के सामने उपस्थित हैं. हमेशा की तरह इस बार भी सभी प्रतिभागियों ने सुन्दर सृजन किया ! बेहद हर्ष के साथ सूचित कर रहे हैं कि इस बार श्रेष्ठ सृजन का चयन डॉ.कुलवंत सिंह जी ने किया है.
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युवकों का आदर्श भगत सिंह, / हृदयों का सम्राट भगत सिंह /
हर कोख की चाहत भगत सिंह,/ शहादत की मिसाल भगत सिंह . .
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ले हथेली शीश था आया,/ नेजे पर वह प्राण था लाया /
अभिमानी था, झुका नही था, / दृढ़ निश्चय था, रुका नही था
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मोल नही कुछ मान मुकुट का,/मोल नही कुछ सिंहासन का /
जीवन अर्पित करने आया,/ माटी कर्ज़ चुकाने आया. .
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इन देशभक्ति से परिपूर्ण ओजस्वी पंक्तियों के रचियता डॉ.कुलवंत सिंह जी हैं! हमने जब उनके ब्लॉग पर शहीद भगत सिंह को समर्पित यह काव्य-गाथा पढ़ी तो आँखें भर आयीं ! आप लोग भी कुलवंत जी की यह कालजयी रचना को पढ़कर उस राष्ट्रीयता की भावना को महसूस कीजिये जो आज विलुप्तप्राय हो चली है!
नौ अंकों के इस सफर में हमें बहुत ही अच्छी रचनाएँ प्राप्त हुईं. परिणाम में पारदर्शिता और निष्पक्षता रखने हेतु हर अंक के निर्णायक बदले गए, निर्णायकों को सिर्फ रचनाएँ भेजी जाती थीं. उन्हें निर्णय सार्वजानिक होने तक यह नहीं मालूम होता था कि कौन सी रचना किस ने लिखी है ! आप का सहयोग भी बना रहा और अब तक के सभी अंक निर्विवाद संपन्न हो सके !
इस बार हमें विभिन्न रचनाकारों की कुल अठ्ठारह रचनाएं प्राप्त हुयी थीं ! जिनमें से चार रचनाओं को शामिल कर पाने में हम असमर्थ थे !
पूरी उम्मीद है कि चारों रचनाकार तनिक भी अन्यथा न लेते हुए सदभाव बनाए रखेंगे ! अपने मन के भावों को शालीनता से भी कहा जा सकता है ... इस बार के सृजन में व्यक्ति विशेष पर लिखने की कोई बात ही नहीं थी ... हम तो चाहते थे कि दूषित होते लोकतांत्रिक मूल्यों पर बात कही जाए !
हमें प्रसन्नता है कि इस बार भी अत्यंत खुबसूरत रचनाएं प्राप्त हुयीं ! इस बार प्रथम क्रम पर दुष्यंत जोशी जी की राजस्थानी रचना का चयन किया गया ! द्वितीय और तृतीय क्रम पर क्रमशः सुश्री शुभम जैन जी एवं सुश्री सोनल रस्तोगी जी की रचनाओं को चुना गया !
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हम सृजन प्रतियोगिता को कुछ समय के लिए स्थगित कर रहे हैं.
कुछ समय पश्चात हम इस सृजन कार्यक्रम को पुनः जारी रखेंगे! इस दौरान क्रिएटिव मंच पर अन्य रचनात्मक व साहित्यिक गतिविधियाँ चलती रहेंगी. आप का सहयोग, स्नेह और प्रोत्साहन आगे भी क्रिएटिव मंच को मिलता रहेगा.
सभी सृजनकारों एवं समस्त पाठकों को बहुत-बहुत बधाई/शुभकामनाएं.
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श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता- 9 में 'श्रेष्ठ सृजन' का चयन
डॉ.कुलवंत सिंह जी द्वारा |
सुश्री मानवी जी एवं क्रिएटिव मंच से संबंधित आप सब मित्रों को सादर नमस्कार.. अति सुंदर कार्य के लिये..मेरा नमन...
प्रविष्टियों को क्रम देना......... एक कठिन कार्य है !
फिर भी दायित्व तो निभाना ही है ........
यथा-संभव चित्र से तालमेल, लय, शव्द शिल्प, भाव, गेयता, इत्यादि को ध्यान में रखते हुये...यह क्रम दिया गया है !
आप समस्त रचनाकारों को हार्दिक शुभ कामनाएं !
आभार
- कुलवंत
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श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता अंक- 9 का परिणाम
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1. दुष्यंत जोशी जी
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सोने सूं मूंगो हुवे,
फूलां रो गळ हार, हार गल़े रो फूटरो, चावे नर अर नार.
मो' माया रे जाळ में ,
फंस्या पड्या है लोग, सत्ता जिण रे हाथ में , हुवे भाग संजोग.
जण साजे उण ने घणों,
जिण रे हाथां साज, उण रे गल़े में हार है, अर उण रे माथे ताज.
-- दुष्यंत जोशी, हनुमानगढ़ जं., राजस्थान
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* ये राजस्थानी कविता.......... इसमें कहा गया है कि गले के लिए फूलों का हार सोने से भी महंगा होता है.. लोग मोह और माया के जाल में फंसे हुए हैं. जिसके भाग्य में होता है.. सत्ता उसी के हाथ होती है. और जनता भी केवल उसी का सम्मान करती है... जिसके हाथ में राज-पाट होता है. उसी के गले में हार पहनाया जाता है और उसी को ताज पहनाया जाता है... राजस्थानी शब्दों के अर्थ :- मूंगो = महंगा, फूटरो = सुन्दर, चावे = चाहते, मो' माया = मोह माया, जाळ = झंझट, फंस्या = फंसे हुए , पड्या = पड़े , जिण = जिसके, हुवे = होता है, संजोग = संयोग, जण = जनता, उण = उसे, घणों = ज्यादा, |
एक तरफ सिर स्वर्ण मुकुट है
दूजे नंगी खाल है, माया की वर्षा है इन पर जनता भूखी बेहाल है/
गले फूल का हार पहन ये
खुद को प्रभु सा जाना है, भला बुरा सब भूल कर बंधू माया ज्ञान बखाना है/
प्रजातंत्र का राग सुना कर
अच्छा रास रचाया है, भ्रस्टाचार और आतंकवाद को नेताओ ने ही बढाया है/
आज के नेता देखो लोगो
नया शिगूफा गाते है, देश महान कहो ना कहो ये खुद को महान बताते है/ |
2. शुभम जैन जी
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ताज रक्खा या रखवाया
प्रदर्शन है शक्ति का सत्ता का मद स्वयं में विषय है आसक्ति का
ये आडम्बर की रीत तो
सदियों से जारी है सदा मंच पर पुरुष था होता अबकी बारी नारी है |
यह माया का लोकतंत्र या लोकतंत्र की माया है लोक हुआ नदारद देखो दिखती महज काया है !! मनुवाद के सीने चढ़कर सिंहासन तक पहुंचे जो आज उन्ही के रंग-ढंग में मनुवाद का ओढा साया है !! राजनीति के खेल ने बंधु एक रंग में रंग डाला चाल-चरित्र-चेहरे का अंतर सबमें एक सा पाया है !! |
सहस्त्र पुष्पमालाओं का वृत्त
राजसी मुकुट रूप मुखरित पद प्रतिष्ठा आलिशान है लोकतंत्र का भव्य सम्मान है. |
पराजित है लोकतंत्र
पराजित है जीवन मंत्र संचालक हैं नेता कठपुतली है जनता आरोप है-प्रत्यारोप है मिट रही आस है टूटते विश्वास हैं धार्मिक उन्माद है जातिगत संकीर्णता है क्रीड़ा बेशर्मों की पीड़ा मासूमों की हाय ............ औंधा पड़ा लोकतंत्र पराजित लोकतंत्र |
चाहे कहे कोई कुछ कहानी देश में तो मैं ही हूँ रानी कभी पहनूं हार कभी मुकुट जितने मुंह उतनी कहानी दलित की बेटी का उत्थान नहीं देख सकते लोग इसलिए लगाते हैं गलत आक्षेप लोग माला पहनूं, हार पहनूं या पहनूं मुकुट तुम सामने चिढ़ते रहो चिरकुट जब तक जनता है मेरे साथ तुम करते रहो उलटी सीधी बात कोई फर्क नहीं पड़ता मुझे जब तक सत्ता में हूँ, चरण पूजना पड़ेगा तुझे. |
'नाम के नेता'
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नेताओं की बात करें क्या ,
नेता तो अभिनेता हैं. फूलों की माला वो पहने, चाहे नोटों की माला, जनता की परवाह नहीं करते करते हैं ये घोटाला , जो भी करता इनका वंदन, बड़े बड़े पद पा जाएँ. जो मुंह खोले, इन्हें टटोले , समझ निवाला खा जाएँ. नेताओं की बात करें क्या, 'नाम' के ही ये नेता हैं! |
9. सुश्री कमलेश्वरी जी
| आधुनिक यह लोकतन्त्र, इसका गहरा जान मन्त्र. जग जीते ख़ुद जीत, बन फिर सबका मीत. चेहरे पर मुस्कान, रख अपनों का ध्यान. जहाँ जहाँ ही जाएगा, हार- ताज तूं पाएगा. |
प्रजातंत्र के नाम पे रचा अनूठा स्वांग फूलों की माला से स्वागत नेताओं की मांग नेताओं की मांग, मांग कुछ समझ न आए कैसी है यह "माया" जो जनता को खाए खुद बैठे 'बिल्डिंग' में 'पब्लिक' गटर में जाए 'एसी' में ये बैठे, हमको 'हवा' न आए 'माला' की माला ये रटते, करें दिखावा घोर भाई-'बहनजी' का है नाता, चाहे कर लो शोर |
10. रामकृष्ण गौतम जी
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11. रोशनी साहू जी
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'हमारी प्यारी रानी'
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ओ हमारी रानीकब बनोगी सायानी? कभी पहनती फूलों की माला तो कभी नोटों की कभी बनवाती मूर्तियाँ अपनी पैसा बहाती जनता की कभी सवारी हाथियों की तो कभी जनता की पर याद रखो ओ रानी करना न मनमानी जनता ने जो प्यार दिया करो उसका सम्मान उनकी बातों को सुनो रानी जिनकी कोई ना सुनता है उन वर्गों का नेतृत्व करो जो गलत राह को चुनता है उन्हें सही राह पर लाना है भटकने से बचाना है जो जिम्मेदारी तुम्हें मिली है उसे तुम्हें निभाना है |
13. दीनदयाल शर्मा जी
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किसी को मिले हार,
किसी के गले हार, किसी पे गिरे गाज़, किसी ने पहना ताज, सब ईश्वर की माया है, कहीं धूप कहीं छाया है. |
ना कोई परी ना मै कोई हूर हूँ आप गलत न समझे मै सच मे बेकसूर हूँ ये ताज भी मुझसे , न उठाया जा रहा है देखो यहाँ जबरन , मेरा फोटॊ खिंचवाया जा रहा है रोक नही पा रही हूँ -हँसी दिख रहे है दाँत-थोडे बडॆ हैं आप भी देखकर हँस रहे होंगे... क्योंकि ये कैसे माला पकडे खडे हैं... |
14. सुश्री अर्चना जी
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चलते चलते एक निवेदन
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हमने हमारी पोस्ट की प्रकृति और आवश्यकता के अनुसार 'मोडरेशन' लगाया हुआ है ! एक भी प्रतिक्रिया (अपशब्द वाली प्रतिक्रियाओं को छोड़कर) को कभी हटाया या छुपाया नहीं ! क्रिएटिव मंच पर कटु से कटु आलोचनाओं / समालोचना का भी सदैव स्वागत है, परन्तु निरर्थक व निराधार आलोचना से हम भी आहत होते हैं !
हम कैसे और बेहतर हो सकते हैं इसके लिए अपने सुझाव और सहयोग दें ! अनामी / बेनामी आलोचकों से यही निवेदन है कि अगर आप हमारी मेहनत और प्रयास को सराह नहीं सकते, तो कम से कम हतोत्साहित करने की कोशिश तो न करें !
स्नेह सहित
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The End
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