गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

"श्री सिद्धगिरी म्यूजियम कोल्हापुर, महाराष्ट्र"

श्री सिद्धगिरी म्यूजियम, कोल्हापुर [महाराष्ट्र]
Siddhagiri Museum , Kolhapur [Maharashtra]
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एक ऐसा गाँव जहाँ किसान हल और बैल के साथ खड़े मिलेंगे। गाँव की औरतें कुंए में पानी भरने जाती हुयी दिखेंगी। बच्चे पेड़ के नीचे गुरुकुल शैली में पढ़ाई कर रहे हैं, किसान खेत में भोजन कर रहे हैं और आस-पास पशु चारा चर रहे हैं। गाँव के घरों का घर-आँगन और विभिन्न कार्य करते लोग, लेकिन सब कुछ स्थिर ...ठहरा हुआ फिर भी एकदम सजीव,,,जीवंत। जी हाँ यह सब आपको देखना हो तो महाराष्ट्र के कोल्हापुर जाना होगा।
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महाराष्ट्र में कोल्हापुर को न सिर्फ दक्षिण कीकाशी,’ बल्कि महालक्ष्मी मां के आवास के रूप में भी जाना जाता है। यहां के प्राचीन मंदिर देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का विषय हैं। कोल्हापुर से केवल दस किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा-सा शांत गांव है - कनेरी, जहां पर
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बना है देश के प्राचीनतम मठों में गिना जाने वाला सिद्धगिरी मठ। सिद्धगिरी मठ के 27वें मठाधिपति श्री काड़सिद्धेश्वर महाराज के शुभ हाथों से ‘श्री सिद्धगिरी म्यूजियम की नींव रखी गई। जुलाई 2007 में इसका उद्घाटन हुआ। आठ एकड़ के खुले क्षेत्र में फैली यह जगह गांव की दुनिया की झलक दिखलाती है। आज पूरे देश में अपने आप में इकलौता और अनूठा म्यूजियम कहलाता है ये सिद्धगिरी म्यूजियम। यहाँ ग्रामीण जिंदगी की छवियों को मूतिर्यो में समेटने की कोशिश की गई है। इस संग्रहालय की स्थापना लन्दन के मैडम तुसॉद मोम संग्रहालय से प्रेरित होकर की गई है।
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संग्रहालय की स्थापना करने वाले सिद्धगिरि गुरुकुल के प्रमुख काड़सिद्धेश्वरShree S.S. Kadsiddheshwar Maharaj, Siddhagiri Math
स्वामी का कहना है कि, "यूं तो हमने इसकी प्रेरणा मैडम तुसॉद संग्रहालय से ली है, पर यह संग्रहालय महात्मा गांधी की विचारधारा से प्रभावित है। गांधी जी हर गांव को आत्मनिर्भर देखना चाहते थे। वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अहम स्थान दिलाना चाहते थे। यह संग्रहालय भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की महत्ता को दर्शाता है।"
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संग्रहालय में कई प्राचीन संतों की मूर्तियां हैं। उदाहरण के लिए एक पेड़ के नीचे महर्षि पातंजलि को प्राचीन शैली में कक्षा लेते दिखाया गया है। कुछ ही मीटर की दूरी पर महर्षि कश्यप को एक रोगी का इलाज करते दिखाया गया है। यहां महर्षि कणाद को वैज्ञानिक शोध में लीन देखा जा सकता है, वहीं महर्षि वराहमिहिर ग्रह-नक्षत्रों की दुनिया से अपने शिष्यों को अवगत कराते नजर आते हैं।
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ईंट, पत्थरों से निर्मित इस संग्रहालय में प्रतिमाओं का निर्माण सीमेंट से किया गया है। इसके लिए करीब 80 कुशल मूर्तिकारों की सेवा ली गई। इसके प्रबंधक इसे खुला प्रदर्शन परिसर कहना पसंद करते हैं, जहां की मूर्तियां बारिश, गर्मी आदि को झेलने के बावजूद अपनी चमक बनाए हुई हैं।
[समस्त चित्र जानकारी अंतरजाल से साभार]
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सधन्यवाद
क्रियेटिवमंच
creativemanch@gmail.com
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The End

मंगलवार, 15 मार्च 2011

गायक येशुदास और जसपाल सिंह

क्विज संचालन ---- प्रकाश गोविन्द


प्रिय साथियों
नमस्कार !!!
हम आप सभी का क्रिएटिव मंच पर अभिनन्दन करते हैं।

''सी.एम.ऑडियो क्विज़- 12' के आयोजन में भाग लेने वाले
सभी प्रतिभागियों और विजेताओं को हार्दिक बधाई एवं शुभ कामनाएं ।

इस बार हमने दो सुमधुर कर्णप्रिय गानों की ऑडियो क्लिप्स सुनवाई थीं और प्रतियोगियों से गायक और फ़िल्म के नाम बताने को कहा था। गाने थोड़े पुराने थे, फिर भी संगीत प्रेमियों ने सही जवाब देने में देर नहीं की। पहली क्लिप में फ़िल्म 'मान-अभिमान' का गाना था, जिसे 'येशुदास जी' ने गाया था। दूसरी क्लिप में फ़िल्म 'सावन को आने दो' का गाना था, जिसे 'जसपाल सिंह' जी ने गाया था।

पिछली बार हमने शेखर सुमन जी से जरा सा मजाक क्या कर लिया वो तो बिलकुल सीरियस ही हो गए। लगता है इस बार पूरी तैयारी के साथ बैठे थे :)
'सी.एम.ऑडियो क्विज -12' में सबसे पहले सही जवाब देकर शेखर सुमन जी ने एक बार फिर अपना लोहा मनवाया और प्रथम स्थान पर कब्ज़ा किया। इसके उपरान्त द्वितीय और तृतीय स्थान पर क्रमशः शुभम जैन जी और दर्शन बवेजा जी रहे।

कई प्रतियोगियों ने आधे-अधूरे जवाब भेजे। किसी ने गायक बताया तो फ़िल्म का नाम नहीं, तो किसी ने फ़िल्म का नाम बताया तो गायक का नाम नहीं। इस कारण उनका नाम विजेता लिस्ट में शामिल नहीं हो सका। राजेन्द्र स्वर्णकार जी इस बार बहुत ही करीब से चूक गए। आशीष जी दुसरे प्रश्न का जवाब देना ही भूल गए। कृतिका जी ने शायद सवाल ही नहीं पढ़ा और गायक का नाम बताने की जगह गाने के बोल लिख दिए। खैर कोई बात ....... इस बार न सही तो अगली बार सही .........

क्विज संचालन सम्पूर्ण आयोजन में अत्यंत श्रम और समय लगता है। व्यस्तता के कारण हम कुछ समय का अंतराल ले रहे हैं। अगले क्विज आयोजन की सूचना आप सभी को समय-पूर्व दे दी जायेगी। फिलहाल थोड़े दिन क्विज आयोजन स्थगित रहेगा।
आप सभी अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखिये। आप की प्रतिक्रिया और सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी।

समस्त विजेताओं प्रतिभागियों को
एक बार पुनः बहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।

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अब आईये - -
''सी.एम.ऑडियो क्विज-12' के पूरे परिणाम के साथ ही क्विज में पूछे गए दोनों विलक्षण गायकों के बारे में बहुत संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करते हैं :
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1- यशुदास [Yeshudaas]
यशुदास केरल की उन विभूतियों मे से हैं जिन्होंने हिन्दी फिल्म संगीत पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। गायक कट्टास्सरी जॊसेफ़ यशुदास का जन्म 10 जनवरी 1940 को कोचिन में पिता आगस्टिन जोजफ और माँ एलिसकुट्टी के घर हुआ था। उनके पिता जो एक रंगमंच कलाकार और उनके पहले गुरु भी थे। येसुदास का बचपन बहुत गरीबी में बीता। ऐसा भी समय था कि वो अपने संगीत अकादमी की फीस भी बमुश्किल भर पाते थे। शुरुआत में तो 'आल इंडिया रेडिओ, त्रिवेन्द्रम' से यह भी सुनना पड़ा कि उनकी आवाज़ प्रसारण के लिए उपयुक्त नहीं है।

K._J._Yesudas_300 दक्षिण के सुर सम्राट यशुदास ने भारतीय और विदेशी भाषाओं में कुल 40,000 से उपर गानें गाए हैं। उन्हे 7 बार सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है, जो किसी पार्श्वगायक के लिए सब से अधिक बार है। मलयालम के कई फ़िल्मों में उन्होने बतौर संगीतकार भी काम किया है। 1955 में मलयालम फ़िल्म कालापदुकल से येसुदास ने बतौर गायक अपना कैरियर शुरू किया। 70 के दशक से लेकर 90 के दशक के शुरआती वर्षों तक उन्होने हिंदी फ़िल्म जगत में एक से एक बेहतरीन गानें गाए।

सलिल दा ने सबसे पहले उनसे सन 1975 में फिल्‍म 'छोटी सी बात' का गीत गवाया था। फ़िर रविन्द्र जैन के निर्देशन में उन्होंने 'चितचोर' के गीत गाये। येसुदास को पहचान फ़िल्म- 'स्वामी' के गीत से ही मिली। बंगला उपन्यास पर बनी यह फ़िल्म और गीत दोनों मशहूर हुए। हिंदी फ़िल्मों के लिए उन्होने जितने भी गानें गाए हैं, उनकी गुणवत्ता सौ फीसदी रही है और उनके गाये सभी गीत अत्यंत सुरीले हैं। यशुदास ने कभी भी कोई सस्ता गीत नहीं गाया, कभी भी व्यावसायिक्ता के होड़ में आकर अपने स्तर को गिरने नहीं दिया। आज जब हम उनके गाए गीतों को याद करते हैं, तो हर गीत लाजवाब, हर गीत बेमिसाल पाते हैं।

Hits-of-YESUDAS मातृभाषा मलयालम होने के बावज़ूद यशुदास जी का हिन्दी-उच्चारण बहुत लाज़वाब है। उनके गाये गीतों को सुनने के बाद विश्वास करना मुश्किल है कि यशुदास जी को हिन्दी नहीं आती। यशुदास की पवित्र सी लगने वाली आवाज गजब ढाती है…उन्होंने हिन्दी फ़िल्मों में कम ही गाया है। बड़े खेद का विषय है कि हिन्दी फ़िल्म जगत उनकी विलक्षण गायकी और असीमित प्रतिभा का उपयोग नहीं कर सका। शास्त्रीय़ संगीत की गहरी समझ रखने वाले यशुदास को संभवतः हिन्दी फ़िल्मों और गीतों का अधिक लाभ इसलिए नहीं मिल पाया, क्योंकि उनकी विशिष्ट आवाज नायकों की वास्तविक आवाज पर फिट नहीं बैठती थी। कारण जो भी हो यशुदास की अमृत सरीखी आवाज से श्रोताओं को वंचित होना पडा है।

यशुदास के गाये बेहतरीन गानों में - 'का करूँ सजनी, आए न बालम', eYesudas 'मधुबन खूशबू देता है', 'कहाँ से आए बदरा', 'दिल के टुकड़े-टुकड़े करके', 'सुरमई अंखियों में', 'ए जिन्दगी गले लगा ले', 'चाँद जैसे मुखड़े पे', 'आज से पहले आज से ज्यादा', 'गोरी तेरा गाँव बडा प्यारा', 'माना हो तुम बेहद हसीं', 'जब दीप जले आना', 'इन नज़ारों को तुम देखो', 'खुशियाँ ही खुशियाँ हों दामन में जिसके', 'ए मेरे उदास मन'...ये ऐसे गीत हैं जो संग्रहणीय हैं। यशुदास की मख़मली जैसी आवाज़ अंतरतम की गहराईयों में छा जाती है। एक खुश्‍बू सी बिखर जाती है और हमें मानों किसी और ही दुनिया में खींच ले जाती है।

येसुदास की पत्नी का नाम प्रभा है और उनके तीन बेटे हैं- विनोद, विजय और विशाल। इनके पुत्र विजय को श्रेष्ठ पार्श्वगायन के लिए 2007 में केरल राज्य फ़िल्म पुरस्कार दिया गया। 1992 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय संसद में सदस्यता, कई बार राज्य स्तरीय सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का पुरस्कार /1999 में यूनेस्को में सम्मानित। उन्होंने 1980 में त्रिवेन्द्रम में 'तरंगिनी स्टूडियो' की स्थापना भी की और 1998 में अमेरिका में भी इसकी शाखा शुरू हुई। यशुदास को 1973 में पद्मश्री एवं वर्ष 2002 में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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2- जसपाल सिंह [Jaspal Singh]
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1975 में राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म 'गीत गाता चल' आयी थी। इसमें मुख्य अभिनय किया था सचिन और सारिका ने, संगीत दिया था रविन्द्र जैन ने और उन्होंने ही इस फिल्म के गीत भी लिखे थे। गीत और संगीत दोनों ही मधुर थे। इस फ़िल्म में एक ऐसे गायक को अवसर दिया गया था, जो सचिन के ऊपर काफी हद तक फिट भी बैठता था, उस गायक का नाम था जसपाल सिंह।

जसपाल सिंह ने बेहतरीन पार्श्वगायक के रूप में हिंदी फिल्मों में बहुत से गाने गाये, जिनमें बहुत से हिट हुए और कई तो आज भी उतने ही मधुर और ताजगी भरे लगते हैं जितने कल थे। जसपाल सिंह ने गीतों के रीमिक्स ही नहीं बल्कि ग़ज़ल,भजन और पारम्परिक शास्त्रीय संगीत आदि भी गाये हैं। देश-विदेश में स्टेज शो के द्वारा प्रसिद्धि भी पायी है। अपने दौर की लोकप्रिय पार्श्व गायिकाओं हेमलता, आरती मुखर्जी आदि गायिकाओं के साथ बहुत ही सुन्दर गाने दिए।

गायक जसपाल सिंह के गाये अनेकों गीत अविस्मर्णीय हैं। जिन फिल्मों में जसपाल जी ने सदाबहार गाने गाये थे, उनमें प्रमुख हैं - 'नदिया के पार', 'अंखियों के झरोखों से', 'गीत गाता चल', 'सावन को आने दो', 'श्याम तेरे कितने नाम', 'पायल की झंकार', 'जिद' 'दो यारों की यारी' इत्यादि।

साथियों बहुत आश्चर्य की बात है कि जसपाल जी जैसे सुरीले और मधुर गीत गाने वाले गायक के बारे अंतर्जाल पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। यहाँ तक की उनकी तस्वीर तक उपलब्ध नहीं हैं। वे आजकल कहाँ हैं? उनकी आखिरी फिल्म कौन सी थी जिसमें उन्होंने पार्श्वगायन किया? आजकल क्या कर रहे हैं? इस सम्बन्ध में कोई भी जानकारी नहीं मिल पा रही है। अगर आप संगीत प्रेमियों के पास गायक जसपाल जी के बारे में कुछ नयी जानकारों हो तो कृपया हमें अवगत कराएं। आपकी दी जानकारी आपके नाम से इसी पोस्ट पर अपडेट कर दी जायेगी।
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क्विज में दिए गए दोनों गायकों के गानों के वीडिओ
एक बुत से मोहब्बत करके - ' 'येसुदास'
गगन ये समझे चाँद सुखी है - 'जसपाल सिंह '
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"सी.एम.ऑडियो क्विज़- 12" के विजेता प्रतियोगियों के नाम
समय-सीमा पश्चात हमें विवेक रस्तोगी जी का भी पूर्णतयः सही जवाब प्राप्त हुआ
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जिन प्रतियोगियों ने एक जवाब सही दिया
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आप सभी का हार्दिक धन्यवाद
यह आयोजन मनोरंजन के साथ साथ ज्ञानवर्धन का एक प्रयास मात्र है !
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का पुनः आभार व्यक्त करते हैं
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया.
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फिलहाल हम विदा लेते हैं
आगामी क्विज़ आयोजन की पूर्व-सूचना आप सभी को दे दी जायेगी


सधन्यवाद
क्रियेटिव मंच
The End
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