यशुदास केरल की उन विभूतियों मे से हैं जिन्होंने हिन्दी फिल्म संगीत पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। गायक कट्टास्सरी जॊसेफ़ यशुदास का जन्म 10 जनवरी 1940 को कोचिन में पिता आगस्टिन जोजफ और माँ एलिसकुट्टी के घर हुआ था। उनके पिता जो एक रंगमंच कलाकार और उनके पहले गुरु भी थे। येसुदास का बचपन बहुत गरीबी में बीता। ऐसा भी समय था कि वो अपने संगीत अकादमी की फीस भी बमुश्किल भर पाते थे। शुरुआत में तो 'आल इंडिया रेडिओ, त्रिवेन्द्रम' से यह भी सुनना पड़ा कि उनकी आवाज़ प्रसारण के लिए उपयुक्त नहीं है।
दक्षिण के सुर सम्राट यशुदास ने भारतीय और विदेशी भाषाओं में कुल 40,000 से उपर गानें गाए हैं। उन्हे 7 बार सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है, जो किसी पार्श्वगायक के लिए सब से अधिक बार है। मलयालम के कई फ़िल्मों में उन्होने बतौर संगीतकार भी काम किया है। 1955 में मलयालम फ़िल्म कालापदुकल से येसुदास ने बतौर गायक अपना कैरियर शुरू किया। 70 के दशक से लेकर 90 के दशक के शुरआती वर्षों तक उन्होने हिंदी फ़िल्म जगत में एक से एक बेहतरीन गानें गाए।
सलिल दा ने सबसे पहले उनसे सन 1975 में फिल्म 'छोटी सी बात' का गीत गवाया था। फ़िर रविन्द्र जैन के निर्देशन में उन्होंने 'चितचोर' के गीत गाये। येसुदास को पहचान फ़िल्म- 'स्वामी' के गीत से ही मिली। बंगला उपन्यास पर बनी यह फ़िल्म और गीत दोनों मशहूर हुए। हिंदी फ़िल्मों के लिए उन्होने जितने भी गानें गाए हैं, उनकी गुणवत्ता सौ फीसदी रही है और उनके गाये सभी गीत अत्यंत सुरीले हैं। यशुदास ने कभी भी कोई सस्ता गीत नहीं गाया, कभी भी व्यावसायिक्ता के होड़ में आकर अपने स्तर को गिरने नहीं दिया। आज जब हम उनके गाए गीतों को याद करते हैं, तो हर गीत लाजवाब, हर गीत बेमिसाल पाते हैं।
मातृभाषा मलयालम होने के बावज़ूद यशुदास जी का हिन्दी-उच्चारण बहुत लाज़वाब है। उनके गाये गीतों को सुनने के बाद विश्वास करना मुश्किल है कि यशुदास जी को हिन्दी नहीं आती। यशुदास की पवित्र सी लगने वाली आवाज गजब ढाती है…उन्होंने हिन्दी फ़िल्मों में कम ही गाया है। बड़े खेद का विषय है कि हिन्दी फ़िल्म जगत उनकी विलक्षण गायकी और असीमित प्रतिभा का उपयोग नहीं कर सका। शास्त्रीय़ संगीत की गहरी समझ रखने वाले यशुदास को संभवतः हिन्दी फ़िल्मों और गीतों का अधिक लाभ इसलिए नहीं मिल पाया, क्योंकि उनकी विशिष्ट आवाज नायकों की वास्तविक आवाज पर फिट नहीं बैठती थी। कारण जो भी हो यशुदास की अमृत सरीखी आवाज से श्रोताओं को वंचित होना पडा है।
यशुदास के गाये बेहतरीन गानों में - 'का करूँ सजनी, आए न बालम', eYesudas 'मधुबन खूशबू देता है', 'कहाँ से आए बदरा', 'दिल के टुकड़े-टुकड़े करके', 'सुरमई अंखियों में', 'ए जिन्दगी गले लगा ले', 'चाँद जैसे मुखड़े पे', 'आज से पहले आज से ज्यादा', 'गोरी तेरा गाँव बडा प्यारा', 'माना हो तुम बेहद हसीं', 'जब दीप जले आना', 'इन नज़ारों को तुम देखो', 'खुशियाँ ही खुशियाँ हों दामन में जिसके', 'ए मेरे उदास मन'...ये ऐसे गीत हैं जो संग्रहणीय हैं। यशुदास की मख़मली जैसी आवाज़ अंतरतम की गहराईयों में छा जाती है। एक खुश्बू सी बिखर जाती है और हमें मानों किसी और ही दुनिया में खींच ले जाती है।
येसुदास की पत्नी का नाम प्रभा है और उनके तीन बेटे हैं- विनोद, विजय और विशाल। इनके पुत्र विजय को श्रेष्ठ पार्श्वगायन के लिए 2007 में केरल राज्य फ़िल्म पुरस्कार दिया गया। 1992 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय संसद में सदस्यता, कई बार राज्य स्तरीय सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का पुरस्कार /1999 में यूनेस्को में सम्मानित। उन्होंने 1980 में त्रिवेन्द्रम में 'तरंगिनी स्टूडियो' की स्थापना भी की और 1998 में अमेरिका में भी इसकी शाखा शुरू हुई। यशुदास को 1973 में पद्मश्री एवं वर्ष 2002 में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। |