श्री सिद्धगिरी म्यूजियम, कोल्हापुर [महाराष्ट्र] Siddhagiri Museum , Kolhapur [Maharashtra] |
एक ऐसा गाँव जहाँ किसान हल और बैल के साथ खड़े मिलेंगे। गाँव की औरतें कुंए में पानी भरने जाती हुयी दिखेंगी। बच्चे पेड़ के नीचे गुरुकुल शैली में पढ़ाई कर रहे हैं, किसान खेत में भोजन कर रहे हैं और आस-पास पशु चारा चर रहे हैं। गाँव के घरों का घर-आँगन और विभिन्न कार्य करते लोग, लेकिन सब कुछ स्थिर ...ठहरा हुआ फिर भी एकदम सजीव,,,जीवंत। जी हाँ यह सब आपको देखना हो तो महाराष्ट्र के कोल्हापुर जाना होगा। |
महाराष्ट्र में कोल्हापुर को न सिर्फ दक्षिण की ‘काशी,’ बल्कि महालक्ष्मी मां के आवास के रूप में भी जाना जाता है। यहां के प्राचीन मंदिर देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का विषय हैं। कोल्हापुर से केवल दस किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा-सा शांत गांव है - कनेरी, जहां पर  बना है देश के प्राचीनतम मठों में गिना जाने वाला ‘सिद्धगिरी मठ।’ सिद्धगिरी मठ के 27वें मठाधिपति श्री काड़सिद्धेश्वर महाराज के शुभ हाथों से ‘श्री सिद्धगिरी म्यूजियम की नींव रखी गई। जुलाई 2007 में इसका उद्घाटन हुआ। आठ एकड़ के खुले क्षेत्र में फैली यह जगह गांव की दुनिया की झलक दिखलाती है। आज पूरे देश में अपने आप में इकलौता और अनूठा म्यूजियम कहलाता है ये सिद्धगिरी म्यूजियम। यहाँ ग्रामीण जिंदगी की छवियों को मूतिर्यो में समेटने की कोशिश की गई है। इस संग्रहालय की स्थापना लन्दन के मैडम तुसॉद मोम संग्रहालय से प्रेरित होकर की गई है। |
संग्रहालय की स्थापना करने वाले सिद्धगिरि गुरुकुल के प्रमुख काड़सिद्धेश्वर स्वामी का कहना है कि, "यूं तो हमने इसकी प्रेरणा मैडम तुसॉद संग्रहालय से ली है, पर यह संग्रहालय महात्मा गांधी की विचारधारा से प्रभावित है। गांधी जी हर गांव को आत्मनिर्भर देखना चाहते थे। वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अहम स्थान दिलाना चाहते थे। यह संग्रहालय भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की महत्ता को दर्शाता है।" |
संग्रहालय में कई प्राचीन संतों की मूर्तियां हैं। उदाहरण के लिए एक पेड़ के नीचे महर्षि पातंजलि को प्राचीन शैली में कक्षा लेते दिखाया गया है। कुछ ही मीटर की दूरी पर महर्षि कश्यप को एक रोगी का इलाज करते दिखाया गया है। यहां महर्षि कणाद को वैज्ञानिक शोध में लीन देखा जा सकता है, वहीं महर्षि वराहमिहिर ग्रह-नक्षत्रों की दुनिया से अपने शिष्यों को अवगत कराते नजर आते हैं। |
ईंट, पत्थरों से निर्मित इस संग्रहालय में प्रतिमाओं का निर्माण सीमेंट से किया गया है। इसके लिए करीब 80 कुशल मूर्तिकारों की सेवा ली गई। इसके प्रबंधक इसे खुला प्रदर्शन परिसर कहना पसंद करते हैं, जहां की मूर्तियां बारिश, गर्मी आदि को झेलने के बावजूद अपनी चमक बनाए हुई हैं। [समस्त चित्र व जानकारी अंतरजाल से साभार] |
सधन्यवाद
क्रियेटिवमंच
creativemanch@gmail.com
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बहुत अच्छी जगह के बारे में जानकारी दी आपने ..... सारे फोटो बहुत सुंदर ...थैंक यू
जवाब देंहटाएंकई दिनों बाद यहाँ पोस्ट देखकर खुशी हो रही है.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी
बहुत ही बढ़िया जानकारी.
जवाब देंहटाएंसादर
itne din baad yahan chahal-pahal dekhkar bahut hi khushi huyi.
जवाब देंहटाएंis post ko dobaara padhkar bhi achha laga.
regards
plz quiz jaldi hi start kariye
सुन्दर सचित्र झांकी
जवाब देंहटाएंश्री सिद्धगिरी म्यूजियम, कोल्हापुर [महाराष्ट्र]........इस महत्वपूर्ण प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंचित्र भी बहुत अच्छे हैं।
बहुत ही सुन्दर और सचित्र कोल्हापुर का दर्शन , आपने करवाया !बधाई !
जवाब देंहटाएंअच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
जवाब देंहटाएंआपका आलेख जानकारीयुक्त है, अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंबहरहाल, यहां इस उम्मीद में आया था कि शायद अब तक कोई क्विज़ शुरू की होगी आप लोगों ने... लेकिन... खैर, इंतज़ार रहेगा, और उम्मीद है कि ज़्यादा न कराएंगे आप लोग... :-)
यदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
जवाब देंहटाएंआईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये... ध्यान रखें धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कायरता दिखाने वाले दूर ही रहे,
अपने लेख को हिन्दुओ की आवाज़ बनायें.
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सचित्र आलेख ..गांव में ही भारत की आत्मा निवास करती है ..समय के चक्र में तथाकथित विकास की होड में हम अपने गाँव से कब पलायन कर चुके केवल यादें ही रह गयी ...वापस मुढ़ कर देखने की फुर्सत ही कहाँ ..महानगरीय सभ्यता ने गाँव की आत्मा को ढक लिया है...मन को उद्वेलित करने वाले सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति के लिए साधुवाद !!!
जवाब देंहटाएंNice Sir
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