एक वक्त था जब हमारे देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था, पर आज हम अपने देश को इस नाम के साथ पुकार पाने में कितना असमर्थ हैं, इसे हर कोई जानता है. क्या हमने इसका कारण कभी सोचा है कि आज हम अपने देश को ऐसा क्यों नहीं कह सकते ? इसका कारण यह है कि भारत जब सोने की चिड़िया थी तो वह अपने गाँवों की संपन्नता के कारण थी. देश पर विदेशी आक्रमण हुए, अंग्रेजों ने इसे गुलाम बनाया जिससे देश की ग्रामीण सम्पन्नता धीरे-धीरे चरमराने लगी. देश आजाद हुआ और जब देश पुनः अपनी सम्पन्नता प्राप्त करने लगा तो कई लालची व खुदगर्ज लोगों के कारण इस देश की स्थिति सुधर ना पाई. इस बीच भारत के बड़े शहरों का विकास जरुर हुआ, बड़े-बड़े कारखाने स्थापित हुए, विज्ञान के बढ़ते आरामदायक अविष्कारों के चलते ग्रामीण व्यक्तियों का रुझान शहरों की और बढ़ा. कई ग्रामवासी अपनी जन्म- भूमी को छोड़ रोजगार की प्राप्ति के लिए शहरों की और रवाना हो गए और वहीं बस गए. और गाँवों की स्थिति दयनीय होती चली गयी. आज देश की बिगडती स्थिति और शहरों में बढती जनसंख्या को रोकना परम आवश्यक हो गया है. और इसके लिए आवश्यक है कि हम अपनें गाँवों का विकास करें. हम अपने गाँव का विकास क्या दूसरों के भरोसे रहकर कर सकते है ........? बिलकुल नहीं ....यदि हमें अपने गाँव का विकास करना है तो हमें खुद ही कुछ सोचना होगा, हमें ही कुछ निर्णय लेने होंगे, हमें ही इस दिशा में कदम आगे बढ़ाना होगा. या हम यूं कहे कि हमें अपने देश के हर गाँव में स्वराज लाना होगा. आखिर हम कब तक दूसरों के भरोसे रहकर हाथ पे हाथ धरे बैठे रहेंगे.....? क्या हमारे देश के नेता ये परिवर्तन ला सकते है .......? बिलकुल भी नहीं. आज आवश्यकता इस बात की है हम ग्रामवासी आगे आये और खुद गाँव के लिए कुछ करें ,उसे विकास के मार्ग पर आगे बढ़ाएं...................... क्या आप देश को चलाने वाली सरकार की सहायता के बगैर अपने गाँव में स्वराज ला सकते है...........? जी हाँ हम ला सकते है. ऐसे गाँव की कल्पना करना शायद आपको कठिन लगे.. लेकिन हमारे भारत देश में ही एक ऐसा गाँव है जहाँ जहाँ पूर्ण स्वराज है. आइये आपको स्वराज के दर्शन कराते हैं........... |
देश के महाराष्ट्र राज्य में अहमदनगर जिले में एक ऐसा गाँव जिसके गलियों में कदम रखते ही आपको ऐसा लगेगा कि आप किसी गाँव में नहीं अपितु किसी स्वप्नलोक में अपने सपनो के भारत का दर्शन कर रहे हों. और इस गाँव का नाम है हिवरे बाजार. एक ऐसा गाँव जहाँ हर एक व्यक्ति अपने गाँव के विकास के प्रति समर्पित है, एक ऐसा गाँव, जिसे देश को हिला कर रख देने वाली मंदी छू भी ना सकी, एक ऐसा गाँव जहाँ कोई भी व्यक्ति शराब नहीं पीता. ये भारत का ऐसा गाँव है जहाँ से कोई भी व्यक्ति रोजगार की तलाश में अपने गाँव को छोडकर बाहर नहीं जाता , यहाँ हर एक व्यक्ति के पास स्वयं का रोजगार है. ये एक ऐसा गांव है जहां गांव के एकमात्र मुस्लिम परिवार के लिये भी मस्जिद है, यह उस गांव के हाल हैं जहां सत्ता दिल्ली जैसे बड़े शहरो में बैठी किसी सरकार द्वारा नहीं चलाई जाते बल्कि उसी गांव के लोगों द्वारा संचालित होती है. जहाँ गाँव का खुद का संसद है, जहाँ निर्णय भी गाँव के लोग ही लेते हैं. एक ऐसा गाँव है जो पूर्ण आत्मनिर्भर है. क्या इस गाँव के साथ कोई चमत्कार हुआ है?... या यहाँ की ये स्थित प्रकृति की देन है ?..... जवाब है- नहीं . आज से बीस दशक पहले यह गाँव सूखाग्रस्त था, अत्यल्प वर्षा के कारण यहाँ की फासले बर्बाद हो जाती थी. पूरा गाँव सूखे की चपेट में आ जाने के कारण बंजर सा हो गया था इस स्थिति में यहाँ अनैतिक कार्य होने लगा....गाँव का लगभग हर एक घर शराब की भट्टियों में तब्दील हो चुका था...कोई भी सज्जन व्यक्ति इस गाँव में आना पसंद नहीं करता था ,... लेकिन शराब जैसी स्त्यानाशक इस गाँव की स्थिति भला कैसे सुधार सकती थी. फिर यहाँ के 1989 में पढ़े-लिखे युवाओं ने इस गाँव की दशा को सुधारने के लिए सोचा. इन पढ़े-लिखे नौजवानों के सामूहिक रूप से निर्णय लिया कि हम मिलकर इस गाँव को सुधारेंगे ...हालंकि कुछ बड़े-बुजुर्गों ने इस बात का विरोध किया... लेकिन इस गाँव के उज्जवल भविष्य के लिए उन्होंने इस बात को स्वीकार किया. और उन्होंने इस गाँव की सत्ता एक साल के लिए इन्हें सौप दी. और यही एक साल ने पुरे गाँव को बदलना शुरू कर दिया. इस एक साल की सत्ता में हुए परिवर्तन से इन युवाओं को अगले 5 वर्ष के लिए सत्ता दे दी. पोपटराव पवार को इस समूह का निर्विरोध सरपंच बनाया गया और उनके नेतृत्व में विभिन्न योजनाएं बनायी गय. जो इस प्रकार थी- 1. गाँव के इन नवयुवको ने शिक्षा को गाँव के विकास के लिए एक आवश्यक अंग समझा इसलिए इन लोगों ने गाँव के बड़े-बुजुर्गो से अपील की, कि वे अपनी बंजर जमीन विद्यालय खोलने क लिए प्रदान करें. उस समय यहाँ के मास्टर छात्रों को पढाने के बजाए शराब पीया करते थे. उस समय स्कूल में पढने के लिए ना तो तो ढंग की चारदीवारी थी और ना ही बच्चो के खेलने के लिए मैदान. गाँव के दो परिवारों ने इस कार्य के लिए अपनी बंजर जमीन दी और वहाँ सामुदायिक प्रयास से दो कमरों का निर्माण किया गया. आज के समय में यह आस-पास के सभी बड़े विद्यालयों से श्रेष्ठ है. यहाँ शिक्षकों की नित्य उपस्थिति अनिवार्य है. 2. गाँव में कृषि की दशा को सुधारने की दिशा में अनेक नए फैसले लिए गए. यह तय किया गया कि गाँव में उन फसलों के उत्पादन में वृद्धी की जाएगी जिनके लिए कम पानी लगता है. गाँव में भूमिगत जल का स्तर उस समय काफी नीचे था, लेकिन गाँव वालों के सामूहिक प्रयास से 1995 में गाँव में आदर्श गाँव योजना तहत जल संचय के लिए कई बांध बनाये गये | 4 लाख से भी ज्यादा पेड़ लगाये गये| गाँव में ऐसी फसल उअगायी जाती जिसमे पानी कम लगता हो | जिससे ज़मीं का पानी 50 फीट से उठ कर 5-10 फीट तक आ गया | 3. इस गाँव में सबसे अलग व्यवस्था ये कि गयी कि यहाँ एक ग्राम संसद बनाया गया, जहाँ आयोजित सभा में गाँव के सभी लोग जुटते हैं और गाँव के विकास संबंधी उपाय तथा अपनी समस्या को सामने रखते हैं. इस संसद में ग्राम विकास के लिए प्राप्त धनराशि एवं उनके खर्च का ब्यौरा पारदर्शी रूप से लिखा होता है, जिसे कोई भी देख सकता है, अर्थात ये गाँव किसी भी प्रकार के धन घोटाले से पूर्णतः मुक्त है. 4. बीस साल पहले इस गाँव से एक-एक करके पूरा परिवार रोजगार के लिए बड़े शहरों की और पलायन कर रहा था, लेकिन आज के समय में आत्मनिर्भता के कारण इस गाँव की प्रति व्यक्ति सालाना औसत आय 1.25 लाख रुपये है. 5. ये गाँव स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अन्य गाँवों से श्रेष्ठ है, यहाँ सामूहिक अस्पताल में डॉक्टर भी अपना काम पूरी ईमानदारी से करते हैं, यदि ये कोई गलती करते हैं तो उन्हें इसका जवाब ग्राम संसद में देना पडता है, गाँव के सभी लोग परिवार नियोजन को अपनाते है. इस गाँव की ऐसी और खूबियाँ हैं जिन्हें आप दिए गए दो वीडियो देखकर समझ सकते हैं. |
अब आपकी इच्छा हो रही होगी कि क्यों ना हम इसी गाँव में जाकर जमीन खरीद कर बस जाएँ .........पर जनाब आप यहाँ जमीन नहीं खरीद सकते, क्योकि गाँव की ग्राम संसद द्वारा ये निर्णय लिया गया है कि यहाँ की जमीन किसी को भी नहीं बेची जायेगी. लेकिन यदि हम अपने गाँव को हिवरे बाजार जैसा बना दें तो ......... बस जरूरत है एक पहल की..... क्यों ना हम भी पोपटराव पवार की तरह आगे आयें और अपने गाँव में स्वराज लाएं. हमारी ये छोटी सी पहल पुरे गाँव को उस मुकाम पर पहुंचा देगी जिसकी कल्पना गांधी जी किया करते थे. आइये आप और हम मिलकर अपने गाँवों में स्वराज लाएं |
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