सोमवार, 24 जनवरी 2011

डा० बशीर बद्र और जावेद अख्तर

क्विज संचालन ---- प्रकाश गोविन्द


musicquiz6
प्रिय साथियों
नमस्कार !!!
हम आप सभी का क्रिएटिव मंच पर अभिनन्दन करते हैं।

'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 6' आयोजन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों और विजेताओं को बधाई। इस बार की क्विज़ में हमने जिनकी आवाजें सुनवाई थीं, वे दोनों ही बेहद प्रसिद्ध शक्सियत हैं - डा० बशीर बद्र और जावेद अख्तर साहब हमें अंदेशा था कि प्रबुद्ध प्रतियोगीगण आसानी से आवाजें पहचान लेंगे अधिकतर लोगों ने जावेद अख्तर साहब को (शायद टीवी चैनल्स पर ज्यादा आने के कारण) पहचानने में देर नहीं की किन्तु बशीर बद्र जी की आवाज को बहुत से प्रतियोगी नहीं पहचान सके

हमको डा० अजमल खान जी का सबसे पहले सही जवाब प्राप्त हुआ शेखर सुमन जी बहुत करीब से चूक गए और द्वितीय स्थान प्राप्त किया गीत संगीत जी ने तृतीय स्थान पर कब्ज़ा जमाया

आप सभी अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखिये। आप की प्रतिक्रिया और सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी। आप से अब अगले रविवार 'सी.एम.ऑडियो क्विज- 7' के साथ मुलाकात होगी।
समस्त विजेताओं व प्रतिभागियों को
एक बार पुनः बहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।

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अब आईये -
''सी.एम.ऑडियो क्विज-6' के पूरे परिणाम के साथ ही क्विज में पूछे गए दोनों विशिष्ट शख्सियतों के बारे में बहुत संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करते हैं :
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1- डॉ.बशीर बद्र [Dr. Basheer Badra]
Dr. Bashir Badr
डॉ. बशीर बद्र (जन्म 15 फ़रवरी 1936) को उर्दू का वह शायर माना जाता है जिसने कामयाबी की बुलन्दियों को फतेह कर बहुत लम्बी रेंज के लोगों के दिलों की धड़कानों को अपनी शायरी में उतारा है। इनका पूरा नाम सैयद मोहम्मद बशीर है। भोपाल से ताल्लुकात रखने वाले बशीर बद्र का जन्म कानपुर में हुआ था। आज के मशहूर शायर और गीतकार नुसरत बद्र इनके सुपुत्र हैं।

डॉ. बशीर बद्र 56 साल से हिन्दी और उर्दू में देश के सबसे मशहूर शायर हैं। दुनिया के दो दर्जन से ज्यादा मुल्कों में मुशायरे में शिरकत कर चुके हैं। बशीर बद्र आम आदमी के शायर हैं ज़िंदगी की आम बातों को बेहद ख़ूबसूरती और सलीके से अपनी ग़ज़लों में कह जाना बशीर बद्र साहब की ख़ासियत है। उन्होंने उर्दू ग़ज़ल को एक नया लहजा दिया। यही वजह है कि उन्होंने श्रोता और पाठकों के दिलों में अपनी ख़ास जगह बनाई है।

डॉक्टर साहेब के अनेकों शेर ऐसे हैं जो मीर-ओ-गालिब के शेरों की तरह मशहूर हैं :

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए।

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दुश्मनी जमकर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिन्दा न हों।
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कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, यों ही कोई बेवफ़ा नहीं होता।
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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में।
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मुसाफिर है हम भी, मुसाफिर हो तुम भी, किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी।
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दुश्मनी का सफर, एक कदम-दो कदम, तुम भी थक जाओगे, हम भी थक जाएँगे।

किसी भी शेर को लोकप्रिय होने के लिए जिन बातों की ज़रूरत होती है, वे सब इन अशआर में हैं। ज़बान की सहजता, जिन्दगी में रचा-बसा मानी, दिल को छू सकने वाली संवेदना, बोलचाल की सुगम-सरल भाषा उनके अशआर की लोकप्रियता का सबसे बड़ा आधार है। डॉ बशीर बद्र स्वयं ही कहते हैं- 'मैं उर्दू-हिन्दी भाषा का शायर नहीं हूं, मैं सिर्फ गज़ल की भाषा का शायर हूँ। शायरी की जुबान दिल की जुबान होती है। शायरी वह इल्म है जिसके लिए जिंदगी आनी चाहिए।' डॉ साहब ने इस सिलसिले में अंग्रेज़ी से भी कोई परहेज नहीं किया हैं। उन्होंने पहली बार उन अंग्रेज़ी शब्दों को गज़ल में प्रयोग किया जो हमारी भाषा का हिस्सा हो गये थे।


सिर्फ भाषा के स्तर पर ही नहीं, अपितु गज़ल को युगीन चेतना से युक्त बौद्धिक प्रतीक धर्मिता से जोड़ कर भी डॉ बशीर बद्र ने एक बुनियादी काम किया हैं। बशीर बद्र ने ग़ज़ल को पारम्परिक क्लिष्टता और अपरिचित अरबी-फ़ारसी के बोझ से मुक्त करके जनभाषा में जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया है। बशीर बद्र इस ज़बान के जादूगर हैं।’ उनकी ग़ज़लें आदमी की हंसी-खुशी, आशाओं, आकांक्षाओं, चिंताओं, उद्वेगों, आवेगों का मूर्त बोध कराती हैं। उन्होंने शब्दों में अपनी जमीन के संस्कार बो दिए हैं।

अबुल फ़ैज़ सहर ने यहाँ तक कहा है कि "आलमी सतह पर बशीर बद्र से पहले किसी भी ग़ज़ल को यह मक़बूलियत नहीं मिली। मीरो, ग़ालिब के शेर भी मशहूर हैं लेकिन मैं पूरे एतमाद से कह सकता हूँ कि आलमी पैमाने पर बशीर बद्र की ग़ज़लों के अश्आर से ज़्यादा किसी के शेर मशहूर नहीं हैं। वो इस वक़्त दुनिया में ग़ज़ल के सबसे मशहूर शायर हैं।""

साहित्य और नाटक आकेदमी में किए गये योगदानो के लिए उन्हें 1999 में भारत सरकार द्वारा 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया। अपनी पुस्तक "आस" के लिए उसी साल इन्हें "साहित्य अकादमी पुरस्कार" से भी नवाज़ा गया।
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2- जावेद अख्तर [Javed Akhtar]
Javed-Akhtar-1जावेद अख़्तर का नाम देश का बहुत ही जाना-पहचाना नाम हैं। जावेद अख्तर शायर, फिल्मों के गीतकार और पटकथा लेखक तो हैं ही, सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में भी एक प्रसिद्ध हस्ती हैं। इनका जन्म 17 जनवरी 1945 को ग्वालियर में हुआ था। वह एक ऐसे परिवार के सदस्य हैं जिसके ज़िक्र के बिना उर्दु साहित्य का इतिहास अधुरा रह जायगा। शायरी तो पीढियों से उनके खून में दौड़ रही है।

पिता जान निसार अखतर प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि और माता सफिया अखतर मशहूर उर्दु लेखिका तथा शिक्षिका थीं। ज़ावेदजी प्रगतिशील आंदोलन के एक और सितारे लोकप्रिय कवि मजाज़ के भांजे भी हैं। अपने दौर के प्रसिद्ध शायर मुज़्तर ख़ैराबादी जावेद जी के दादा थे। पर इतना सब होने के बावजूद जावेद का बचपन विस्थापितों सा बीता. छोटी उम्र में ही माँ का आंचल सर से उठ गया और लखनऊ में कुछ समय अपने नाना नानी के घर बिताने के बाद उन्हें अलीगढ अपने खाला के घर भेज दिया गया जहाँ के स्कूल में उनकी शुरूआती पढाई हुई। वालिद ने दूसरी शादी कर ली और कुछ दिन भोपाल में अपनी सौतेली माँ के घर रहने के बाद भोपाल शहर में उनका जीवन दोस्तों के भरोसे हो गया. यहीं कॉलेज की पढाई पूरी की, और जिन्दगी के नए सबक भी सीखे।

4 अक्टूबर 1964 को जावेद ने मुंबई शहर में कदम रखा। 6 दिन बाद ही पिता का घर छोड़ना पड़ा और फिर शुरू हुई संघर्ष की एक लम्बी दास्ताँ। 5 मुश्किल सालों के थका देने वाला संघर्ष भी जावेद का सर नहीं झुका पाया। जब कमियाबी बरसी तो कुछ यूँ जम कर बरसी कि चमकीले दिनों और जगमगाती रातों की एक सुनहरी दास्तान बन गयी. एक के बाद एक लगातार बारह हिट फिल्में, पुरस्कार, तारीफें.....जैसे जिंदगी भी एक सिल्वर स्क्रीन पर चलता हुआ ख्वाब बन गयी, पर हर ख्वाब की तरह इसे भी तो एक दिन टूटना ही था। जब टूटा तो टुकडों में बिखर गयी जिंदगी. कुछ असफल फिल्में, हनी (पत्नी) से अलग होना पड़ा, सलीम के साथ लेखनी की जोड़ी भी टूट गयी। जावेद शराब के आदी हो गए।

1976 में जब जानिसार अख्तर खुदा को प्यारे हुए तो जावेद सुलह कर लेते हैं अपनी विरासत और मरहूम वालिद से यहाँ साथ मिलता है मशहूर शायर कैफी आज़मी की बेटी शबाना का और जन्म होता है एक नए रिश्ते का। फिल्मों में उनकी शायरी सराही गयी, 'साथ साथ' के खूबसूरत गीतों में 'सागर', 'मिस्टर इंडिया', के बाद 'तेजाब' में उनके लिखे गीतों को बेहद लोकप्रियता मिली, फिर आई '1942- लव स्टोरी' जिसके गीतों ने उन्हें स्थापित कर दिया जिसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड कर नहीं देखा।

आज उनका बेटा फरहान और बेटी जोया दोनों ही फिल्म निर्देशन में हैं, अपने बच्चों की सफलता में उनका योगदान अमूल्य है. शबाना आज़मी बेहद सफल अभिनेत्री हैं। फरहान और जोया की वालिदा हनी ईरानी भी एक स्थापित पठकथा लेखिका हैं। जावेद साहब अब तक अनेकों पुरस्कार और सम्मान अर्जित कर चुके हैं : पांच बार राष्ट्रीय पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ गीतकार, सात बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ पटकथा, सात बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ गीतकार, चार बार स्क्रीन पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ गीतकार, पांच बार ज़ी सिने पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ गीतकार, तीन बार IIFA पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ गीतकार, इस के अलावा और भी न जाने कितने ही पुरस्कार ..........................................

जावेद साहब की कविताओं, नज्मों, ग़ज़लों का का बहुत सा संकलन गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया में भी उपलब्ध है। उनकी पुस्तक तरकश खुद उनकी अपनी आवाज़ में ऑडियो फॉर्मेट में उपलब्ध है. जगजीत ने उनकी बहुत सी ग़ज़लों और नज्मों को अपनी आवाज़ दी है।
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बशीर बद्र
जावेद अख्तर
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"सी.एम.ऑडियो क्विज़- 6" के विजेता प्रतियोगियों के नाम
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जिन प्रतियोगियों ने एक जवाब सही दिया
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विजताओं को बधाईयाँ
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आशा है जो इस बार सफल नहीं हुए वो आगामी क्विज में अवश्य सफल होंगे
आप सभी का हार्दिक धन्यवाद

यह आयोजन मनोरंजन के साथ साथ ज्ञानवर्धन का एक प्रयास मात्र है !

अगर आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें ज़रूर ई-मेल करें!
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का पुनः आभार व्यक्त करते हैं
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया.
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30 जनवरी 2011, रविवार को हम ' प्रातः दस बजे' एक नई क्विज के साथ यहीं मिलेंगे !

सधन्यवाद
क्रियेटिवमंच
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