प्रस्तुति--अल्पना वर्मा
अपने समय से बहुत आगे सोचने वाले कलाकार-
9 जुलाई 1925 में बैंगलोर में पैदा हुए. उनका असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था. कलकत्ता में पढ़े -लिखे. नृत्य से उन्हें बेहद लगाव था. 14 साल की उम्र में उन्होंने कलकत्ता में सारस्वत ब्राह्मणों के समारोह में एक बार सर्प नृत्य किया था. जिसके लिए उन्हें 5 रूपये इनाम मिले थे. पंडित उदय शंकर जी की अकेडमी से मोडर्न नृत्य सिखा. कोलकता में टेलीफोन ओपेरटर नौकरी की और फिर 1944 में पुणे स्थित प्रभात स्टूडियो पहुंचे. वे डांस डायरेक्टर [ कोरियोग्राफर] थे. बेरोज़गारी के दिनों में उन्होंने इलस्ट्रेटेड वीकली, एक स्थानीय अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका के लिए लघु कथाएँ भी लिखीं.
एक बार प्रेसवाले ने देव आनंद और गुरुदत्त की कमीज़ की अदला-बदली कर दी और इस रोचक घटना के द्वारा प्रभात स्टूडियो में उनकी मुलाकात देव आनंद से हुई और दोनों बहुत अच्छे दोस्त बने. उनके मुम्बई आने पर देव आनंद ने अपने वादे के मुताबिक उन्हें नवकेतन बैनर के तहत बनी अपनी फिल्म बाज़ी में रोल दिया. बाज़ी सुपर हिट हुई और जो लोग उस के साथ जुड़े वे भी सभी हिट हो गए.
बाज़ी में कल्पना कार्तिक से जहाँ उनकी देव आनंद से मुलाक़ात हुई वहीँ गीता दत्त और गुरुदत्त की पहली मुलाकात भी हुई,जो उनके प्रेमिका और फिर पत्नी बनीं.फिल्म -बाज़ में उन्होंने पहली बार मुख्य रोल किया. इसी पहली फिल्म से अपना बेनर भी शुरू किया .वहीदा रहमान को पहला ब्रेक गुरुदत्त ने अपनी अगली फिल्म [बतौर निर्माता] 'सी .आई .डी' में दिया.
1957 में रिलीज हुई प्यासा में समाज से निराश नायक 'विजय' को देखकर सभी हैरान हो गए थे. 20 वर्षीय वहीदा को नृतकी 'गुलाबो' के रूप में बतौर अभिनेत्री उनकी पहली फिल्म दी. गुरुदत्त कहते थे फिल्म को दुखद अंत देना परंतु मित्रों की सलाह पर उन्होंने ऐसा नहीं किया.
'तंग आ चुके हैं हम कश्मकशे जिंदगी से हम'हम गमजदा है लाएँ कहाँ से खुशी के गीत,देंगे वही जो पायेंगे इस जिंदगी से हम.
आज़ादी के दस साल भी नहीं हुए और समाज के प्रति इतनी निराशा लिए लीक से हट कर बनी उनकी फिल्म ने कई सवाल खड़े कर दिए. . लगा गुरुदत्त की इस फिल्म के साथ हिंदी सिनेमा भी जाग उठा ! अपने आस पास देखने लगा.
मेकिंग ऑफ प्यासा -
फिल्म में एक संवाद है..
"मुझे शिकायत है उस समाज के उस ढाँचे से जो इंसान से उसकी इंसानियत छीन लेता है' मतलब के लिए अपने भाई को बेगाना बनाता है. दोस्त को दुश्मन बनाता है. बुतों को पूजा जाता है, जिन्दा इंसान को पैरों तले रौंदा जाता है. किसी के दुःख दर्द पर आँसू बहाना बुज़दिली समझा जाता है. छुप कर मिलना कमजोरी समझा जाता है."
'कागज़ के फ़ूल' फिल्म उनकी अपनी बायोग्राफी ही कही जाती है. फिल्म की असफलता पर उन्होंने कहा था 'जिंदगी में और है ही क्या ? सफलता और सफलता ! उसके बीच का कुछ नहीं. व्यवसायिक सफलता न मिलने के कारण उन्होंने अगली फिल्म मनोरंजन के लिए बनाई -प्रेम त्रिकोण पर 'चौदहवीं का चाँद' फिल्म, जो बॉक्स ऑफिस पर कामयाब रही. उस फिल्म की सफलता के बाद भी वह निराश थे कुछ ऐसा था जो उन्हें गुमसुम रखता था .
बतौर निर्माता उनकी आखिरी फिल्म एक बंगाली उपन्यास पर आधारित फिल्म- 'साहब बीवी और गुलाम' थी. जिसका हर किरदार यादगार है. कला की उंचाईयों को छूती हुई भावनाओं में लिपटी थी यह फिल्म. और यह उनकी आखिरी फिल्म थी. उनका कहना था -''ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है ! कहने वाले गुरुदत्त इस दुनिया से बेजार हो चुके थे. 'कागज़ के फ़ूल जहाँ खिलते हैं बैठ न उन गुलज़ारों में'.. यही कहते -कहते वो महकता हुआ सच्चा फ़ूल 10 अक्टूबर 1964 के दिन 39 वर्ष की अल्पायु में ही हमेशा के लिए मुरझा गया.
"एक हाथ से देती है दुनिया सौ हाथों से ले लेती है यह खेल है कब से जारी!''
I Recommend these videos to fans of Gurudutt sahib , please Watch them-
Part-1 | Part-2 |
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प्रस्तुति--अल्पना वर्मा
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creative मंच को पुन: सक्रिय देखकर ख़ुशी हुई साथ में गुरुदत्त जी से जुडी जानकारिया तो बढ़िया है ही
जवाब देंहटाएंबहुत ही जबरदस्त जानकारी कईं नयी बाते पता चली
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक आलेख
धन्यवाद
गुरुदत्त सच में समय से बहुत आगे थे..सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंI am also an old time fan of Gurudatt, but did not know this much about him... Thanks.
जवाब देंहटाएंबेहद शानदार ..जानकारी भी और रोचक भी ..
जवाब देंहटाएंमेरे सवादे-शौक़ का ख़ुरशीदे-नीमशब
अज़्मे-शिकस्ते-माहज़बीनाँ लिये हुये
दर्से-सुकूनो-सब्र ब-ईं-एहतमामे-नाज़
नश्तरज़नीं-ए-जुंबिशे-मिज़गाँ लिये हुये............मजाज़ लखनवी..
बेहद शानदार ..जानकारी भी और रोचक भी ..
जवाब देंहटाएंमेरे सवादे-शौक़ का ख़ुरशीदे-नीमशब
अज़्मे-शिकस्ते-माहज़बीनाँ लिये हुये
दर्से-सुकूनो-सब्र ब-ईं-एहतमामे-नाज़
नश्तरज़नीं-ए-जुंबिशे-मिज़गाँ लिये हुये............मजाज़ लखनवी
हिंदी सिनेमा के सर्व कालिक महान निर्देशक गुरुदत्त के बारे में जानकारी बहुत अच्छी लगी ,कितना दुखद था एक बेहतरीन फनकार का बहुत कम उम्र में दुनिया को अलविदा कहना ,जब तक सिनेमा रहेगा ,गुरुदत्त रहेगे यादो में
जवाब देंहटाएंबेहद रोचक जानकारी का धन्यवाद
शानदार एंट्री मारी है क्रियेटिव मंच ने। बहुत बहुत बधाई शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंगुरुदत्त निःसंदेह महान कलाकार थे ! समय से आगे की सोच रखने वाले इस अज़ीम शख्सियत को उनकी सृजनात्मक और कलात्मक फिल्मों के लिए हमेशा याद रखा जायेगा !
जवाब देंहटाएं-
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गुरुदत्त बेहतरीन फ़िल्म निर्माता और निर्देशक तो थे ही साथ ही में उनमें साहित्य, कला और संगीत की समझ भी खूब थी ! गुरुदत्त की तीन क्लासिक फिल्मों को टेक्स्ट बुक का दर्जा हासिल होता है. वे हैं 'प्यासा', 'कागज़ के फ़ूल', और 'साहिब, बीबी और गुलाम' !
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अल्पना जी आपने गुरुदत्त के बहुआयामी व्यक्तित्व को दर्शाती बहुत खुबसूरत पोस्ट तैयार की है !
बहुत बहुत बधाई
आभार !!!
Bahut khoob, Badhai!
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट कल 12/7/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा - 938 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
Sonal ji,darshan,prakash ji,dibaag virk ji,Nirmala ji,Pratibha ji,Govind Parmaar ji,Dheeraj ji,Praveen ji aur aakroshit Mn ji
जवाब देंहटाएंआप सभी को पोस्ट पसंद आई.
बहुत -बहुत शुक्रिया.
यूँ तो गुरुदत्त जी के बारे में यह बहुत ही संक्षेप में जानकारी दी गयी है.
एक सफल और दूरदर्शी निर्माता - निर्देशक के रूप में ही अगर उनके
फ़िल्मी जीवन को देखें तो उनके बारे में जितना लिखा जाए कम ही होगा.
आभार .
comment recieved on Facebook -
जवाब देंहटाएंBy -Ahmad Kamal Siddiqui :
Bahut Bahut Dhanyvaad..
Gurudat ka may hamesha Fan raha hun .
Aaj unkey baarey mey Puri Jankari Mil Paye
Jo Bhaut Hi Importent hai.
Ek Baar Pahir Bahut Shukriya....
Amir Roy Says on facebook for this post-
जवाब देंहटाएंnaayaab information hai gurudatt ke baare me.
bahut pasand ayi / thank
गुरु दत्त जी के बारे ए विस्तार से इतनी जानकारी बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंइस मंच का फिर से सक्रिय होना भी बहुत अच्छा लगा।
सादर
कल 13/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत सुन्दर जानकारी दी है |
जवाब देंहटाएंआशा
बढ़िया जानकारी
जवाब देंहटाएंitne dino baad aaj achanak creative manch ki post dekhkar bahut hi khushi huyi. hamesha ki tarah ye post bhi bahut sundar lagi. hamne gurudatt ji ki 3 films hi dekhi. teeno hi achi thi. alpana ji ne gurudatt ke bare me bahut sari jankari di. thanks
जवाब देंहटाएं[CM Quiz kab start hogi ?]
गुरुदत्त तो गुरुदत्त हैं...
जवाब देंहटाएंशानदार आलेख...
सादर।
Very nice post.....
जवाब देंहटाएंAabhar!
Mere blog pr padhare.
gurudutt ji ke bare me bahut si jankari mili. aabhar.
जवाब देंहटाएंबहुत ही महत्त्वपूर्ण और रोचक जानकारी ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय अल्पना मैम आपने गुरुदत्त के बारे में बहोत ही अच्छी एवं सारगर्भित जानकारी दी है. क्रिएटिव मंच पर इतने दिनों बाद पोस्ट देखकर बहोत ही खुशी हुई. सादर आभार.
जवाब देंहटाएं[हम भी जानना चाह्ते है क्विज की शुरुआत कब होगी]
@आशीष और आदिती ,ईश्वर ने चाहा तो नयी क्विज़ जल्द ही शुरू होगी.
जवाब देंहटाएंक्विज़ हेतु आप अगर कोई ख़ास दिन रखना चाहते हैं तो अपने सुझाव दें.
आभार.
बहुत बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
गुरुदत्त जी से जुडी रोचक जानकारी दी आपने...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
गुरुदत्त जी और उनके संघर्ष से सम्बंधित अत्यंत रोचक जानकारी युक्त भाव पूर्ण सुन्दर आलेख ..शुभ कामनाएं एवं आभार !!!
जवाब देंहटाएंआपने की है अच्छी भली गवेषणा |
जवाब देंहटाएंअध्ययन की आप की कमाल की ईषिणा ||
साधुवाद !!
समाज के सही रूप को प्रस्तुत करने का एक अच्छा माध्यम चल चित्र भी है | आप ने एक बहुत अच्छे नायक की याद दिलाई है ,जो आदर्शवादी कलाकार था तथा शोषण के विरुद्ध भी |
जवाब देंहटाएंमनोभावों को पर्दे पर सफलता पूर्वक वह अपने थोड़े से जीवन में सफल हुआ और अपनी अमिट
छाप छोड़ गया |
समाज के सही रूप को प्रस्तुत करने का एक अच्छा माध्यम चल चित्र भी है | आप ने एक बहुत अच्छे नायक की याद दिलाई है ,जो आदर्शवादी कलाकार था तथा शोषण के विरुद्ध भी |
जवाब देंहटाएंमनोभावों को पर्दे पर सफलता पूर्वक वह अपने थोड़े से जीवन में सफल हुआ और अपनी अमिट
छाप छोड़ गया |
THANKS , APNE KITNA HI ACHHA LIKHA HAI
जवाब देंहटाएंbAHUT bAHUT dHANYABAD AUR APKO ESKE BISAY ME BAHUT HI ACHHI JANKARI HAI fROM sUNIL kUMAR paNDEY
जवाब देंहटाएंNice Sir
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