C.M.Audio Quiz Result लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
C.M.Audio Quiz Result लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

गायिका परवीन सुल्ताना और नय्यारा नूर

क्विज संचालन ---- प्रकाश गोविन्द


प्रिय साथियों
नमस्कार !!!
हम आप सभी का क्रिएटिव मंच पर अभिनन्दन करते हैं।

'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 8' आयोजन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों और विजेताओं को बधाई। इस बार की क्विज में हमने दो विशिष्ट गायिकाओं की ऑडियो क्लिप सुनवाई थीं। पहली क्लिप में फ़िल्म- कुदरत का गाना था- 'हमें तुमसे प्यार कितना ...' जिसे गाया था- परवीन सुल्ताना जी ने। दूसरी क्लिप में ग़ज़ल थी- 'ए इश्क हमें बर्बाद न कर...' जिसे गाया था - नय्यारा नूर जी ने।

दोनों ही गाने संगीत प्रेमियों के बीच बेहद चर्चित रहे हैं, इसलिए उम्मीद थी कि प्रतियोगिओं को कोई ख़ास दिक्कत नहीं होगी। बिलकुल ऐसा ही हुआ भी और अधिकाँश लोगों ने सही जवाब दिए। गजब की तत्परता दिखाते हुए शेखर सुमनजी ने सबसे पहले सही जवाब देकर प्रथम स्थान हासिल किया। उसके बाद हमारी क्रिएटिव मंच की सदस्या शुभम जैन जी ने इस बार मौका नहीं गंवाया और द्वितीय स्थान सुनिश्चित किया। तीसरे स्थान पर रहे- यशवंत माथुर जी, जिन्हें संगीत में विशेष रूचि है।

इस बार राजेन्द्र स्वर्णकार जी बहुत ही करीब से चूक गए। उन्होंने दोनों ही गायिकाओं को तत्काल ही पहचाना लेकिन अफसोस.. नय्यारा नूर जी की ग़ज़ल का मुखड़ा नहीं पहचान पाए, बाद में सही जवाब देकर उन्हें छठे स्थान से संतोष करना पड़ा। इसी तरह डा० अजमल खान जी के लिए भी दिन सही नहीं रहा और उनके सिस्टम पर ऑडियो क्लिप ही किसी कारणवश नहीं चल पायी। इस तरह शेखर सुमन जी तीसरी जीत के साथ ही अजमल जी की बराबरी पर पहुँच गए। यानी तीन-तीन बार दोनों लोग प्रथम।

आप सभी अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखिये। आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी। अगले रविवार को एक अंतराल लेते हुए 'सी.एम.ऑडियो क्विज' की जगह 'सी.एम.पिक्चर क्विज' पूछी जायेगी। वहीँ आपसे पुनः मुलाकात होगी।

समस्त विजेताओं व प्रतिभागियों को
एक बार पुनः बहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।

**************************************
अब आईये -
''सी.एम.ऑडियो क्विज-8' के पूरे परिणाम के साथ ही क्विज में पूछे गए दोनों विशिष्ट गायकों के बारे में बहुत संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करते हैं :
glitter
1- गायिका परवीन सुल्ताना [Parveen Sultana]
488774984_53b9eb30ff परवीन सुल्ताना एक ऐसी विलक्षण प्रतिभाशाली गायिका हैं जिन्हें 1976 में महज 23 साल की उम्र में (एक रिकार्ड) पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा परवीन सुल्ताना जी को 1972 में क्लियोपेट्रा ऑफ म्यूज़िक, 1980 में गंधर्व कला नीधि, 1986 में मियां तानसेन पुरस्कार तथा 1999 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार के साथ ही अनेकों पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। परवीन सुल्ताना की आवाज़ आज भी सदाबहार बनी हुई है।

8A7CB60DD5B388C579F178_Large.psd संगीत को अपनी अंतरात्मा मानने वाली शास्त्रीय गायिका परवीन सुल्ताना जी की जन्म-भूमि असम और कर्म-भूमि मुम्बई रही है। इनका सम्बन्ध पटियाला घराने से है। असमिया पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाली परवीन सुल्ताना ने पटियाला घराने की गायकी में अपना अलग मुकाम बनाया है। उनके परिवार में कई पीढ़ियों से शास्त्रीय संगीत की परम्परा रही है। परवीन सुल्ताना के गुरुओं में आचार्य चिन्मय लाहिरी और उस्ताद दिलशाद ख़ान प्रमुख रहे हैं।

उस्ताद दिलशाद खान साहब से गायकी के क्षेत्र में शिक्षा ले चुकी परवीन ने 1975 में दिलशाद खान साहब से शादी की। कई फिल्मों में गा चुकी परवीन इन दिनों अपने पति दिलशाद के साथ मिलकर सारे विश्व में कई कांसर्ट का हिस्सा बन चुकी है। यूं तो गायकी की शुरूआत संगीत सम्राज्ञी परवीन नें महज़ पांच वर्ष की उम्र से की मगर फिल्मों में गायकी की शुरूआत फिल्म “पाकिजा" से की। सोलह वर्ष की उम्र में परवीन मुंबई आईं और इत्तेफाक से नौशाद साहब ने परवीन की गायकी को एक शो में देख लिया था, उसी से प्रभावित होकर उन्होंने परवीन को एक खूबसूरत मौका फिल्म “पाकिजा" में दिया।

नौशाद साहब के इस ऑफर के बाद फिल्मों में परवीन 406531743_2ea1073aafजी की गायकी के लिए दरवाज़े खुल गए। फिल्म “पाकिजा" के संगीत के हिट होने के बाद मदन मोहन ने फिल्म “परवाना" के लिए एक गीत को गानें का ऑफर दिया। परवीन सुल्ताना ने नौशाद, मदन मोहन के अलावा लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, शंकर जयकिशन तथा आर. डी. बर्मन के लिए भी गाने गाये। मज़रूह सुल्तानपुरी द्वारा लिखे गये और आर० डी० वर्मन साहब द्वारा स्वरबद्ध किये गये फ़िल्म 'कुदरत' के गीत - 'हमें तुम से प्यार कितना ..' के लिए परवीन सुल्ताना को 1981 में बेस्ट महिला पार्श्वगायिका का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था। संगीत प्रेमियों को अपनी गायकी का दीवाना बना चुकी परवीन ने अनिल शर्मा की सुपर हिट फिल्म “गदर" में एक ठुमरी भी गाई थी। चुनिंदा फिल्मों में अपनी दिलकश आवाज़ का जादू बिखेरने वाली बेगम परवीन सुल्ताना ने विक्रम भट्ट की आगामी फिल्म “1920" में एक खूबसूरत प्रेम गीत गाया है। इस गीत में क्लासिकल के साथ प्लेबैक सिंगिंग का उत्कृष्ट संगम है।

परवीन सुल्ताना जी अपनी आवाज़ के साथ किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं करतीं। वो हमेशा ऐसे गानों को अपनी आवाज़ देना पसंद करती है जिनमें न सिर्फ संगीत बल्कि गीत भी बेहतरीन हो। परवीन जी का मानना है कि गाने में कुछ ऐसा होना चाहिए जिससे मुझे भी संतुष्टि मिले और श्रोता भी खुश हों।

3855380877_d7990a875f आज के गायकों के बारे में परवीन जी कहती हैं - "आज के गायक रियाज़ के बिना दूसरों की गायकी को सिर्फ रटते हैं। बिना शास्त्रीय संगीत के संगीत सीखना बिना व्याकरण के अंग्रेज़ी बोलने के बराबर है। कुछ भी सीखने के लिए शॉर्टकट नहीं है। आज हर माता पिता अपने बच्चे को टेलीविजन के परदे पर देखना चाहते हैं। प्रसिद्दी और पैसे को लेकर आज युवा वर्ग में जो होड मची हुई है वो बेहद चिंतनीय है।"

परवीन सुल्ताना जी आजकल के संगीतकारों में अदनान सामी, उत्तम सिंह, इल्लै राजा और ए. आर. रहमान से काफी प्रभावित हैं। उनके अनुसार ये संगीतकार बदलते संगीत का खूबसूरती के साथ इस्तेमाल कर रहे हैं यही कारण है कि एक बार नहीं अनेक बार वह इनके साथ काम करने को तत्पर हैं। श्रोताओं की कसौटी पर हमेशा खरा उतरने की चाहत रखने वाली परवीन जी सिर्फ आवाज़ के बल पर नाम कमाने में विश्वास नहीं करती यही कारण है कि आज भी क्लासिकल को उन्होंने अपनी पहचान बना रखा है।

glitter
2- गायिका नय्यारा नूर [Nayyara Noor]
नय्यारा नूर को गीतों की दुनिया का 'ट्रेजेडी क्वीन' भी कहा जाता है। 'नय्यारा' का जन्म 1950 में असम में हुआ था। वैसे रहने वाली मूलतः अमृतसर की थीं। पिता व्यवसायी थे और उसी सिलसिले में बाद में असम जा बसे थे। "नय्यारा" के अब्बाजान की गिनती मुस्लिम लीग के अगली पंक्ति के सदस्यों में की जाती थी। शायद इसी कारण से इनका परिवार 1958 में पाकिस्तान चला गया था।

NAYYARA NOOR.jpeg
संगीत की दुनिया में नय्यारा नूर का आना एकदम अप्रत्याशित सा था ये बात 1968 की है। उस वक़्त नय्यारा जी लाहौर के नेशनल आर्ट्स कालेज में टेक्स्टाईल डिजाईन में डिप्लोमा कर रही थीं। उस दौरान कालेज में कई कार्यक्रम होते रहते थे। किसी एक कार्यक्रम में इस्लामिया कालेज के प्रोफ़ेसर इसरार ने इन्हें गाते हुए सुन लिया। प्रोफ़ेसर साहब ने इनसे युनिवर्सिटी के रेडियो पाकिस्तान के कार्यक्रमों के लिए गाने का अनुरोध किया...उसके बाद तो उन्होंने मुड़कर नहीं देखा और नय्यारा नूर गायकी में शोहरत की बुलंदियों की तरफ बढती चली गयीं।

1971 आते-आते , नय्यारा ने टीवी और फिल्मों के लिए गाना शुरू कर दिया था। "घराना" और "तानसेन" जैसी अनेक फिल्मों ने इन्हें आगे बढने का मौका दिया। पीटीवी के एक कार्यक्रम "सुखनवर" में इनके द्वारा रिकार्ड की गई गज़ल 'ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज मुक़ाबिल आ जाए, मंज़िल के लिए दो गाम चलूँ सामने मंज़िल आ जाए' ने इनकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए।NAYYARA

नय्यारा नूर बेग़म अखर से काफ़ी प्रभावित थीं। कालेज के पुराने दिनों में भी वो बेग़म अख्तर की गज़लें और नज़्में खूब गाया करती थीं। उन गज़लों ने हीं नय्यारा को लोगों की नज़रों में चढाया था। बेगम अख्तर की गायिकी का नय्यारा पर इस कदर गहरा असर था कि वो बेग़म की गज़लें पुराने तरीके से आर एम पी ग्रामोफ़ोन रिकार्ड प्लेयर्स पर हीं सुना करती थीं, जबकि आडियो कैसेट्स बाज़ार में आने लगे थे।

Nayyara-Noorनय्यारा गायिकी की दूसरी विधाओं की तुलना में गज़लों को बेहतर मानती हैं। उनके मुताबिक़ "गज़लें श्रोताओं पर गहरा असर करती हैं और यह असर दीर्घजीवी होता है।" नय्यारा ने बेशुमार गज़लें गाई है। उनमें से कुछ हैं- "अंदाज़ हु-ब-हु तेरी आवाज़-ए-पा का था", "रात यूँ दिल में तेरी खोई हुई याद आई", "ऐ इश्क़ हमें बरबाद न कर", "कहाँ हो तुम", "वो जो हममें तुममें करार था", "रूठे हो तुम, तुमको कैसे मनाऊँ पिया".... नय्यारा पाकिस्तान के जाने-माने गायक और संगीत-निर्देशक "मियाँ शहरयार ज़ैदी" की बीवी हैं। नय्यारा नूर को पाकिस्तानी संगीत कोंफेरेंस की तरफ से तीन स्वर्ण पदक और सर्वश्रेष्ठ गायिका का निगार एवार्ड भी मिल चुका है।

नवोदित गायक ज़फ़र और नादे अली उनके बेटे हैं। जो तेज़ी से संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बना रहे हैं। नय्यरा नूर की दिलकश आवाज़ आप जब सुन रहे हों तो क्या मजाल कि बीच में छोड़ कर उठ जाँय... इतनी सधी और मीठी आवाज़ कि बार बार सुनने को जी चाहे ... एक अजीब सी खनक लिये नय्यरा नूर की आवाज़ आपको भीतर तक गुलजार कर देती है और आप मदहोश होते चले जाते हैं
glitter
क्विज में दिए गए दोनों बेहतरीन गानों के वीडिओ
गाना - हमें तुमसे प्यार कितना...
गाना - ऐ इश्क़ हमें बरबाद न कर...
glitter
"सी.एम.ऑडियो क्विज़- 8" के विजेता प्रतियोगियों के नाम
glitter
जिन प्रतियोगियों ने एक जवाब सही दिया
applause applause applause समस्त
विजताओं को बधाईयाँ
applause applause applause
applause applause applause applauseapplauseapplauseapplause applause applause applause
आशा है जो इस बार सफल नहीं हुए वो आगामी क्विज में अवश्य सफल होंगे
आप सभी का हार्दिक धन्यवाद

यह आयोजन मनोरंजन के साथ साथ ज्ञानवर्धन का एक प्रयास मात्र है !
अगर आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें ज़रूर ई-मेल करें!
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का पुनः आभार व्यक्त करते हैं
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया.
th_Cartoon
13 फरवरी 2011, रविवार को हम ' प्रातः दस बजे'एक नई क्विज के साथ यहीं मिलेंगे !
सधन्यवाद
क्रियेटिव मंच
The End
===================================================

सोमवार, 31 जनवरी 2011

गायक तलत महमूद और गायिका जगजीत कौर

क्विज संचालन ---- प्रकाश गोविन्द


प्रिय साथियों
नमस्कार !!!
हम आप सभी का क्रिएटिव मंच पर अभिनन्दन करते हैं।

'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 7' आयोजन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों और विजेताओं को बधाई। इस बार की क्विज पुरानी फिल्मों के दौर के दो सदाबहार सुपरहिट गानों पर आधारित थी। जिनमें से एक गाना था- 'बेरहम आसमाँ मेरी मंज़िल बता...' जिसे तलत महमूद ने फ़िल्म - 'बहाना' के लिए गाया था। दूसरा गाना था- 'तुम अपना रंज--ग़म...' जिसे जगजीत कौर ने फ़िल्म - 'शगुन' के लिए गाया था।

सभी प्रतियोगियों ने जिस उत्साह और रूचि से क्विज़ में हिस्सा लिया, उससे अत्यंत प्रसन्नता हुयी। सर्वप्रथम सही जवाब आदरणीय दर्शन बवेजा जी ने देकर प्रथम स्थान पर कब्ज़ा किया। उसके उपरान्त क्रमशः शेखर सुमन जी और गजेन्द्र सिंह जी ने सही जवाब देकर द्वितीय एवं तृतीय स्थान हासिल किया। इस तरह यह क्विज़ स्पर्धा बेहद दिलचस्प होती जा रही है। अजमल खान जी, शेखर सुमन जी, शुभम जैन जी के अलावा अब दर्शन बवेजा भी सीधे मुकाबले में गए हैं। देखना दिलचस्प होगा कि 25 क्विज़ के प्रथम चरण में कौन बढ़त हासिल करता है।

यहाँ बहुत से सशक्त प्रतियोगी ऐसे हैं जो व्यस्तता के चलते अथवा अन्य किसी कारणवश 'सी.एम.ऑडियो क्विज़' में शामिल नहीं हो पाते या फिर समय से नहीं पाते। ऐसे मेधा संपन्न लोगों से आग्रह है कि समय निकालकर यहाँ अवश्य आयें और हमारा सम्मान बढायें।

आप सभी अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखिये। आप की प्रतिक्रिया और सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी। आप से अब अगले रविवार 'सी.एम.ऑडियो क्विज- 8' के साथ मुलाकात होगी।
समस्त विजेताओं व प्रतिभागियों को
एक बार पुनः बहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।

**************************************
अब आईये -
''सी.एम.ऑडियो क्विज-7' के पूरे परिणाम के साथ ही क्विज में पूछे गए दोनों विशिष्ट गायकों के बारे में बहुत संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करते हैं :
glitter
1- गायक तलत महमूद [Talat Mahmood]
talat-mahmood तलत महमूद (24 फरवरी, 1924 - 9 मई, 1998) एक भारतीय गायक तथा अभिनेता थे। अपनी थरथराती आवाज़ से मशहूर उनको गजल की दुनिया का राजा भी कहा जाता है। उनका जनम 24 फरवरी 1924 को लखनऊ में हुआ था। वे अपनी माता तथा गायक पिता की छठी संतान थे। घर में संगीत और कला का सुसंस्कृत परिवेश मिला। बुआ को तलत की आवाज की लरजिश (कंपन) पसंद थी। तलत प्रोत्साहन पाकर गायन के प्रति आकर्षित होने लगे। इसी रुझान के चलते मोरिस संगीत विद्यालय (वर्तमान में भातखंडे संगीत विद्यालय) में दाखिला लिया। सोलह साल की उम्र में तलत को कमल दासगुप्ता का गीत 'सब दिन एक समान नहीं' गाने का मौका मिला। यह गीत प्रसारित होने के बाद लखनऊ में बहुत लोकप्रिय हुआ

उन दिनों में पार्श्व गायन का शुरुआती दौर था। अधिकतर अभिनेता अपने गाने खुद गाते थे। कुन्दन लाल सहगल की लोकप्रियता से प्रेरित होकर तलत भी गायक–अभिनेता बनने के लिए सन 1944 में कलकत्ता जा पहुंचे, जो उस समय इन गतिविधियों का प्रधान केन्द्र था । कलकत्ता में संघर्ष के बीच तलत की शुरुआत बांग्ला गीत गाने से हुई। रिकार्डिंग कंपनी ने गायक के रूप में उनको तपन कुमार नाम से गवाया । तपन कुमार के गाए सौ से ऊपर गीत रेकॉर्डों में आए। न्यू थियेटर्स ने 1945 में बनी राजलक्ष्मी में तलत को नायक–गायक बनाया। संगीतकार राबिन चटर्जी के निर्देशन में इस फ़िल्म में उनके गाए जागो मुसाफ़िर जागो ने भरपूर सराहना बटोरी। उत्साहित होकर वे मुंबई जाकर अनिल विश्वास से मिले। अनिल दा ने यह कहकर लौटा दिया कि अभिनेता बनने के लिए वे बहुत दुबले हैं। तलत वापस कलकत्ता चले गए¸ जहां उन्हें 1949 तक कुल दो फ़िल्में ही और मिली- 'समाप्ति' और 'तुम और वो' ।

जब लगा कि नायक की छवि में सच्चे गायक की प्रतिभा छटपटा रही है तब सिर्फ गायन को ही ध्येय बनाया। कोलकाता में बनी फिल्म स्वयंसिद्धा (1945) में पहली बार उन्होंने पार्श्वगायन किया। मुंबई में प्रदर्शित फिल्म ‘राखी’ (1949), ‘अनमोल रतन (1950) और ‘आरजू’ (1950) से उनके कैरियर को विशेष चमक मिली। फिल्म ‘आरजू’ की गजल ‘ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो...’ ने अपार लोकप्रियता अर्जित की। यहीं से तलत और दिलीपकुमार का अनूठा संयोग बना जो कई फिल्मों में दोहराया गया।

गजल गायकी को तलत ने सम्माननीय ऊँचाई प्रदान की। हमेशा उत्कृष्ट शब्दावली की गजलें ही चयनित कीं। सस्ते बोलों वाले गीतों से उन्हें हमेशा परहेज रहा। यहाँ तक कि गीतकार-संगीतकार उन्हें रचना देने से पहले इस बात को लेकर आशंकित रहते थे कि तलत उसे पसंद करेंगे या नहीं। मदनमोहन, अनिल बिस्वास और खय्याम की धुनों पर सजे उनके तराने बरबस ही दिल मोह लेते हैं। मुश्किल से मुश्किल बंदिशों को सूक्ष्मता से तराश कर पेश करना उनकी खासियत थी। लरजती, सलोनी, मखमली आवाज के जादूगर तलत महमूद हमारे बीच में नहीं हैं, किंतु उनके सैकड़ों रसीले-नशीले नगमे फिजाँ में आज भी घुलकर संगीतप्रेमियों को मदहोश कर रहे हैं।

तलत महमूद के लोकप्रिय नगमें
जाएँ तो जाएँ कह..(टैक्सी ड्राइवर), सब कुछ लुटा के होश..(एक साल), फिर वही शाम, वही गम...(जहाँआरा), मेरा करार ले जा..(आशियाना), शामे गम की कसम..(फुटपाथ), हमसे आया न गया..(देख कबीरा रोया), प्यार पर बस तो नहीं..(सोने की चिड़िया), जिंदगी देने वाले सुन..(दिल--नादान), अंधे जहान के अंधे रास्ते..(पतिता), इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा..(छाया), आहा रिमझिम के ये..(उसने कहा था), दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है..(मिर्जा गालिब)
glitter
2- गायिका जगजीत कौर [Jagjeet Kaur]
Singer Jagjit Kaur
कुछ आवाज़ें भुलाई नहीं भूलती। ये आवाज़ें भले ही बहुत थोड़े समय के लिए या फिर बहुत चुनिंदा गीतों में ही गूंजी, लेकिन इनकी गूंज इतनी प्रभावी थी कि ये आज भी हमारी दिल की वादियों में प्रतिध्वनित होती रहती हैं। जगजीत कौर के बारे में जानना ज़रूरी है कि वे संगीतकार ख़ैयाम की पत्नी हैं और बहुत ही कमाल की गायिका हैं। जगजीत जी ने फ़िल्मों के लिए बहुत कम गीत गाए हैं लेकिन उनका गाया हर एक गीत अच्छे संगीत के रसिकों के दिलों में ख़ास मुकाम रखता है

जगजीत कौर 1948-49 में बम्बई गईं थीं। उन्होने संगीतकार श्याम सुंदर के साथ फ़िल्म 'लाहौर' के गीतों, "नज़र से...", "बहारें फिर भी आएँगी..." आदि की रिहर्सल की थीं, लेकिन बाद में वे गीत लता जी से गवा लिए गए। इसी तरह 'जाल' फ़िल्म का मशहूर गीत "ये रात ये चांदनी फिर कहाँ" भी पहले जगजीत कौर गाने वाली थीं, लेकिन एक बार फिर यह गीत लता जी की झोली में डाल दिया गया।

संगीतकार ग़ुलाम मोहम्मद ने उन्हे सब से पहले 1953 की फ़िल्म 'दिल--नादान' में गवाया था - "ख़ामोश ज़िंदगी को एक अफ़साना मिल गया" और "चंदा गाए रागिनी छम छम बरसे चांदनी" यहीं से उनकी फ़िल्मी गायन की शुरुआत हुई थी।

जगजीत कौर के गाए उल्लेखनीय और यादगार गीतों में फ़िल्म 'बाज़ार' का गीत "देख लो आज हमको जी भर के" और फ़िल्म 'शगुन' का गीत "तुम अपना रंज--ग़म अपनी परेशानी हमें दे दो" सब से उपर आता है। इनके अलावा उनके गाए गीतों में मुख्य गानें हैं फ़िल्म 'चंबल की क़सम' का "बाजे शहनाई रे बन्नो तोरे अंगना", फ़िल्म 'शगुन' का ही "गोरी ससुराल चली डोली सज गई", फ़िल्म 'हीर रांझा' का गीत "नाचे अंग वे", जिसमें उन्होने नूरजहाँ और शमशाद बेग़म जैसे लेजेन्डरी सिंगर्स के साथ अपनी आवाज़ मिलाई थी फ़िल्म 'उमरावजान' का गीत "काहे को ब्याही बिदेस", फ़िल्म 'शोला और शबनम' का गीत "लड़ी रे लड़ी तुझसे आँख जो लड़ी" और "फिर वही सावन आया", फ़िल्म 'प्यासे दिल' का "सखी री शरमाए दुल्हन सा बनके" आदि। सचमुच उनकी आवाज़ में इस मिट्टी की ख़ुशबू है जो हौले हौले दिल पर असर करती है, जिसका नशा आहिस्ता-आहिस्ता चढ़ता है। उनकी आवाज़ में एक सादगी और एक नमी है उनके ये मुट्ठी भर गीत संगीत के क़द्रदानों के लिए अनमोल दौलत की तरह हैं
khaiyyam and jagjit kaur
खैय्याम साहब का स्वयं भी कहना है 'मैं आज यहां जिस कामयाबी तक पहुंचा हूँ उसमें जगजीत का बहुत ही बड़ा हाथ है जब भी मैं किसी फ़िल्म का संगीत तैयार करता हूं तो जगजीत मुझे मदद करती है. जब मैं फ़िल्म 'उमराव जान' का संगीत तैयार कर रहा था तब भी हम आपस में बहुत बहस करते थे तब जाकर कोई धुन बनती थी. 'जिन्दगी तेरी बज्म में' फ़िल्म 'उमराव जान' की ग़ज़ल को वास्तव में जगजीत ने ही बनाया है'
glitter
क्विज में दिए गए दोनों बेहतरीन गानों के वीडिओ
गाना - बेरहम आसमां......
गाना - तुम अपना रंजोग़म......
glitter
"सी.एम.ऑडियो क्विज़- 7" के विजेता प्रतियोगियों के नाम
glitter
जिन प्रतियोगियों ने एक जवाब सही दिया
applause applause applause समस्त
विजताओं को बधाईयाँ
applause applause applause
applause applause applause applauseapplauseapplauseapplause applause applause applause
आशा है जो इस बार सफल नहीं हुए वो आगामी क्विज में अवश्य सफल होंगे
आप सभी का हार्दिक धन्यवाद

यह आयोजन मनोरंजन के साथ साथ ज्ञानवर्धन का एक प्रयास मात्र है !

अगर आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें ज़रूर ई-मेल करें!
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का पुनः आभार व्यक्त करते हैं
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया.
th_Cartoon
6 फरवरी 2011, रविवार को हम ' प्रातः दस बजे' एक नई क्विज के साथ यहीं मिलेंगे !

सधन्यवाद
क्रियेटिव मंच
The End
===================================================