गुरुवार, 10 सितंबर 2009

राजेश जोशी की कविताओं का जादू

प्रस्तुति :- प्रकाश गोविन्द


राजेश जोशी


परिचय -
जन्म : 18 जुलाई 1946,
जन्म स्थान : नरसिंहगढ़ (मध्य प्रदेश)

कुछ प्रमुख कृतियाँ :
समरगाथा (लम्बी कविता),
एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा,
दो पंक्तियों के बीच (कविता संग्रह),
पतलून पहना आदमी , धरती का कल्पतरु !

विविध कविता संग्रह "दो पंक्तियों के बीच" के लिये 2002 का साहित्य अकादमी पुरस्कार।

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शासक होने की इच्छा
===========
वहाँ एक पेड़ था
उस पर कुछ परिंदे रहते थे
पेड़ उनकी आदत बन चुका था

फिर एक दिन जब परिंदे आसमान नापकर लौटे
तो पेड़ वहाँ नहीं था
फिर एक दिन परिंदों को एक दरवाजा दिखा
परिंदे उस दरवाजे से आने-जाने लगे
फिर एक दिन परिंदों को एक मेज दिखी
परिंदे उस मेज पर बैठकर सुस्ताने लगे

फिर परिंदों को एक दिन एक कुर्सी दिखी
परिंदे कुर्सी पर बैठे
तो उन्हें तरह-तरह के दिवास्वप्न दिखने लगे

और एक दिन उनमें
शासक बनने की इच्छा जगने लगी !

बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
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कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह

बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह

काम पर क्‍यों जा रहे हैं बच्‍चे?
क्‍या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्‍या दीमकों ने खा लिया हैं
सारी रंग बिरंगी किताबों को

क्‍या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्‍या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्‍या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्‍म हो गए हैं एकाएक

तो फिर बचा ही क्‍या है इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्‍यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्‍बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजते हुए
बच्‍चे, बहुत छोटे छोटे बच्‍चे
काम पर जा रहे हैं।

माँ कहती है

हम हर रात
पैर धोकर सोते है

करवट होकर।
छाती पर हाथ बाँधकर
चित्त हम कभी नहीं सोते।

सोने से पहले माँ
टुइयाँ के तकिये के नीचे
सरौता रख देती है बिना नागा।

माँ कहती है
डरावने सपने इससे
डर जाते है।

दिन-भर फिरकनी-सी खटती माँ
हमारे सपनों के लिए
कितनी चिन्तित है!

आदिवासी लड़की की इच्छा

लड़की की इच्छा है
छोटी-सी इच्छा
हाट इमलिया जाने की।
सौदा-सूत कुछ नहीं लेना
तनिक-सी इच्छा है-- काजर की
बिन्दिया की।

सौदा-सूत कुछ नहीं लेना
तनिक-सी इच्छा है-- तोड़े की
बिछिया की।
सौदा-सूत कुछ नहीं लेना
तनिक-सी इच्छा है-- सुग्गे की
फुग्गे की।
फुग्गा उड़ने वाला हो
सुग्गा ख़ूब बातूनी हो ।
लड़की की इच्छा है
छोटी-सी।

पेड़ की तरह
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पेड़ की तरह
सोचता हूँ
पेड़ भर
ऊँचा उठकर।

पेड़ भर सोचता हूँ
पेड़ भर
चौड़ा होकर।

इसी से
जंगल नाराज़ है।

गेंद
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एक बच्चा
करीब सात-आठ के लगभग।

अपनी छोटी हथेलियों में
गोल-गोल घुमाता
एक बड़ी गेंद

इधर ही चला आ रहा है
और लो...
उसने गेंद को
हवा में उछाल दिया ! सूरज !
तुम्हारी उम्र
क्या रही होगी उस वक़्त ?

प्रौद्योगिकी की माया
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अचानक ही बिजली गुल हो गयी
और बंद हो गया माइक
ओह उस वक्ता की आवाज का जादू
जो इतनी देर से अपनी गिरफ्त में बांधे हुए था मुझे
कितनी कमजोर और धीमी थी वह आवाज
एकाएक तभी मैंने जाना
उसकी आवाज का शासन खत्म हुआ
तो उधड़ने लगी अब तक उसके बोले गये की परतें

एक कवि कहता है
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नामुमकिन है यह बतलाना कि एक कवि
कविता के भीतर कितना और कितना रहता है

एक कवि है
जिसका चेहरा-मोहरा, ढाल-चाल और बातों का ढब भी
उसकी कविता से इतना ज्यादा मिलता-जुलता सा है
कि लगता है कि जैसे अभी-अभी दरवाजा खोल कर
अपनी कविता से बाहर निकला है

एक कवि जो अक्सर मुझसे कहता है
कि सोते समय उसके पांव अक्सर चादर
और मुहावरों से बाहर निकल आते हैं
सुबह-सुबह जब पांव पर मच्छरों के काटने की शिकायत करता है
दिक्कत यह है कि पांव अगर चादर में सिकोड़ कर सोये
तो उसकी पगथलियां गरम हो जाती हैं
उसे हमेशा डर लगा रहता है कि सपने में एकाएक
अगर उसे कहीं जाना पड़ा
तो हड़बड़ी में वह चादर में उलझ कर गिर जायेगा

मुहावरे इसी तरह क्षमताओं का पूरा प्रयोग करने से
आदमी को रोकते हैं
और मच्छरों द्वारा कवियों के काम में पैदा की गयी
अड़चनों के बारे में
अभी तक आलोचना में विचार नहीं किया गया
ले देकर अब कवियों से ही कुछ उम्मीद बची है
कि वे कविता की कई अलक्षित खूबियों
और दिक्कतों के बारे में भी सोचें
जिन पर आलोचना के खांचे के भीतर
सोचना निषिद्ध है
एक कवि जो अक्सर नाराज रहता है
बार-बार यह ही कहता है
बचो, बचो, बचो
ऐसे क्लास रूम के अगल-बगल से भी मत गुजरो
जहां हिंदी का अध्यापक कविता पढ़ा रहा हो
और कविता के बारे में राजेंद्र यादव की बात तो
बिलकुल मत सुनो.



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The End
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12 टिप्‍पणियां:

  1. सभी कविताये बहुत सुंदर लगी, लेकिन क्योनहि एक एक कविता रोजाना दो तो बहुत से लोग मजे से पढेगे.

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  2. SHABDO MEIN KUCHH KAHNA
    KAVITA KE SATH NAYAY NAHI.
    AUR KUCHH NA KAHNA AAPKE SATH AUR AAPKI KALAM SE NAYAY NAHI.
    EXCELLENT
    KIRPYA EMIAL SUVIDHA SHURU KARE.
    DHANYAVAD

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  3. कमाल है
    सचमुच जादू ही है राजेश जोशी की कलम में

    एक-एक कविता को ध्यान से कई बार पढ़ा, सिर्फ ये जानने की उत्सुकता में कि आखिर इनका इतना नाम क्यों है
    थोडा बहुत अहसास हुआ ..लेकिन उसे बयान कर पाना मेरे लिए मुश्किल है

    क्या कवितायें लिखते हैं .....वाह
    सारी की सारी कवितायें जो आपने प्रस्तुत की सब लाजवाब हैं

    ख़ास तौर पर "बच्चे काम पर जा रहे हैं" ...:"मां कहती है"..."आदिवासी लड़की की इच्छा" हमेशा याद रहेंगी
    आपको दिल की गहराईयों से धन्यवाद

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  4. bahut hi saargarbhit aur bemisaal kavitaayen hain

    mai to raajesh joshi ji ka naam dekh kar hi yahan chala aaya
    shkriya dost ...dil khush kar diya

    A. Kishore

    जवाब देंहटाएं
  5. bahut achchhi lagi kavitayein. Inki prastuti ke liye aapko bahut bahut dhanyawad.
    Navnit Nirav

    जवाब देंहटाएं
  6. आभार ..बहुत ही अच्छी रचनाएँ ...प्रभावी

    जवाब देंहटाएं
  7. कविताये बहुत ही अच्छी है रोज एक पोस्ट करनी चहिये
    आभार :)

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर कवितायें हैं जादू है उन्की कलम मे मगर भाटिया जी सही कह रहे हैं एक ही बार मे इतनी कवितायें पढ कर एक भी याद नहीं रहती । एक एक कविता कर के दो तो अच्छा है आभार्

    जवाब देंहटाएं
  9. राजेश जी हमारे वरिष्ठ कवि हैं । बेहतरीन कवितायें है उनकी - शरद कोकास

    जवाब देंहटाएं
  10. Aapki kavitaein to bas jadu kar deti hain padhne wale par.

    --Mayank

    जवाब देंहटाएं

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