तलत महमूद (
24 फरवरी, 1924 - 9 मई, 1998)
एक भारतीय गायक तथा अभिनेता थे। अपनी थरथराती आवाज़ से मशहूर उनको गजल की दुनिया का राजा भी कहा जाता है। उनका जनम 24
फरवरी 1924
को लखनऊ में हुआ था। वे अपनी माता तथा गायक पिता की छठी संतान थे। घर में संगीत और कला का सुसंस्कृत परिवेश मिला। बुआ को तलत की आवाज की लरजिश (
कंपन)
पसंद थी। तलत प्रोत्साहन पाकर गायन के प्रति आकर्षित होने लगे। इसी रुझान के चलते मोरिस संगीत विद्यालय (
वर्तमान में भातखंडे संगीत विद्यालय)
में दाखिला लिया। सोलह साल की उम्र में तलत को कमल दासगुप्ता का गीत '
सब दिन एक समान नहीं'
गाने का मौका मिला। यह गीत प्रसारित होने के बाद लखनऊ में बहुत लोकप्रिय हुआ । उन दिनों में पार्श्व गायन का शुरुआती दौर था। अधिकतर अभिनेता अपने गाने खुद गाते थे। कुन्दन लाल सहगल की लोकप्रियता से प्रेरित होकर तलत भी गायक–अभिनेता बनने के लिए सन 1944 में कलकत्ता जा पहुंचे, जो उस समय इन गतिविधियों का प्रधान केन्द्र था । कलकत्ता में संघर्ष के बीच तलत की शुरुआत बांग्ला गीत गाने से हुई। रिकार्डिंग कंपनी ने गायक के रूप में उनको
तपन कुमार नाम से गवाया । तपन कुमार के गाए सौ से ऊपर गीत रेकॉर्डों में आए। न्यू थियेटर्स ने 1945 में बनी राजलक्ष्मी में तलत को नायक–गायक बनाया। संगीतकार
राबिन चटर्जी के निर्देशन में इस फ़िल्म में उनके गाए जागो मुसाफ़िर जागो ने भरपूर सराहना बटोरी। उत्साहित होकर वे मुंबई जाकर
अनिल विश्वास से मिले। अनिल दा ने यह कहकर लौटा दिया कि अभिनेता बनने के लिए वे बहुत दुबले हैं। तलत वापस कलकत्ता चले गए¸ जहां उन्हें 1949 तक कुल दो फ़िल्में ही और मिली- '
समाप्ति' और '
तुम और वो' ।
जब लगा कि नायक की छवि में सच्चे गायक की प्रतिभा छटपटा रही है तब सिर्फ गायन को ही ध्येय बनाया। कोलकाता में बनी फिल्म
स्वयंसिद्धा (1945) में पहली बार उन्होंने पार्श्वगायन किया। मुंबई में प्रदर्शित फिल्म ‘
राखी’ (1949), ‘
अनमोल रतन (1950) और ‘
आरजू’ (1950) से उनके कैरियर को विशेष चमक मिली। फिल्म ‘
आरजू’ की गजल ‘ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो...’ ने अपार लोकप्रियता अर्जित की। यहीं से
तलत और दिलीपकुमार का अनूठा संयोग बना जो कई फिल्मों में दोहराया गया।
गजल गायकी को तलत ने सम्माननीय ऊँचाई प्रदान की। हमेशा उत्कृष्ट शब्दावली की गजलें ही चयनित कीं। सस्ते बोलों वाले गीतों से उन्हें हमेशा परहेज रहा। यहाँ तक कि गीतकार-संगीतकार उन्हें रचना देने से पहले इस बात को लेकर आशंकित रहते थे कि तलत उसे पसंद करेंगे या नहीं।
मदनमोहन,
अनिल बिस्वास और
खय्याम की धुनों पर सजे उनके तराने बरबस ही दिल मोह लेते हैं। मुश्किल से मुश्किल बंदिशों को सूक्ष्मता से तराश कर पेश करना उनकी खासियत थी। लरजती, सलोनी, मखमली आवाज के जादूगर तलत महमूद हमारे बीच में नहीं हैं, किंतु उनके सैकड़ों रसीले-नशीले नगमे फिजाँ में आज भी घुलकर संगीतप्रेमियों को मदहोश कर रहे हैं।
तलत महमूद के लोकप्रिय नगमें
जाएँ तो जाएँ कह..(
टैक्सी ड्राइवर), सब कुछ लुटा के होश..(
एक साल), फिर वही शाम, वही गम...(
जहाँआरा), मेरा करार ले जा..(
आशियाना), शामे गम की कसम..(
फुटपाथ), हमसे आया न गया..(
देख कबीरा रोया), प्यार पर बस तो नहीं..(
सोने की चिड़िया), जिंदगी देने वाले सुन..(
दिल-ए-नादान), अंधे जहान के अंधे रास्ते..(
पतिता), इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा..(
छाया), आहा रिमझिम के ये..(
उसने कहा था), दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है..(
मिर्जा गालिब)