सोमवार, 31 जनवरी 2011

गायक तलत महमूद और गायिका जगजीत कौर

किसी कारणवश 'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 7' के
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कृपया आप इस लिंक पर जाकर परिणाम देख सकते हैं !

धन्यवाद

गायक तलत महमूद और गायिका जगजीत कौर

क्विज संचालन ---- प्रकाश गोविन्द


प्रिय साथियों
नमस्कार !!!
हम आप सभी का क्रिएटिव मंच पर अभिनन्दन करते हैं।

'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 7' आयोजन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों और विजेताओं को बधाई। इस बार की क्विज पुरानी फिल्मों के दौर के दो सदाबहार सुपरहिट गानों पर आधारित थी। जिनमें से एक गाना था- 'बेरहम आसमाँ मेरी मंज़िल बता...' जिसे तलत महमूद ने फ़िल्म - 'बहाना' के लिए गाया था। दूसरा गाना था- 'तुम अपना रंज--ग़म...' जिसे जगजीत कौर ने फ़िल्म - 'शगुन' के लिए गाया था।

सभी प्रतियोगियों ने जिस उत्साह और रूचि से क्विज़ में हिस्सा लिया, उससे अत्यंत प्रसन्नता हुयी। सर्वप्रथम सही जवाब आदरणीय दर्शन बवेजा जी ने देकर प्रथम स्थान पर कब्ज़ा किया। उसके उपरान्त क्रमशः शेखर सुमन जी और गजेन्द्र सिंह जी ने सही जवाब देकर द्वितीय एवं तृतीय स्थान हासिल किया। इस तरह यह क्विज़ स्पर्धा बेहद दिलचस्प होती जा रही है। अजमल खान जी, शेखर सुमन जी, शुभम जैन जी के अलावा अब दर्शन बवेजा भी सीधे मुकाबले में गए हैं। देखना दिलचस्प होगा कि 25 क्विज़ के प्रथम चरण में कौन बढ़त हासिल करता है।

यहाँ बहुत से सशक्त प्रतियोगी ऐसे हैं जो व्यस्तता के चलते अथवा अन्य किसी कारणवश 'सी.एम.ऑडियो क्विज़' में शामिल नहीं हो पाते या फिर समय से नहीं पाते। ऐसे मेधा संपन्न लोगों से आग्रह है कि समय निकालकर यहाँ अवश्य आयें और हमारा सम्मान बढायें।

आप सभी अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखिये। आप की प्रतिक्रिया और सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी। आप से अब अगले रविवार 'सी.एम.ऑडियो क्विज- 8' के साथ मुलाकात होगी।
समस्त विजेताओं व प्रतिभागियों को
एक बार पुनः बहुत-बहुत बधाई और शुभ कामनाएं।

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अब आईये -
''सी.एम.ऑडियो क्विज-7' के पूरे परिणाम के साथ ही क्विज में पूछे गए दोनों विशिष्ट गायकों के बारे में बहुत संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करते हैं :
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1- गायक तलत महमूद [Talat Mahmood]
talat-mahmood तलत महमूद (24 फरवरी, 1924 - 9 मई, 1998) एक भारतीय गायक तथा अभिनेता थे। अपनी थरथराती आवाज़ से मशहूर उनको गजल की दुनिया का राजा भी कहा जाता है। उनका जनम 24 फरवरी 1924 को लखनऊ में हुआ था। वे अपनी माता तथा गायक पिता की छठी संतान थे। घर में संगीत और कला का सुसंस्कृत परिवेश मिला। बुआ को तलत की आवाज की लरजिश (कंपन) पसंद थी। तलत प्रोत्साहन पाकर गायन के प्रति आकर्षित होने लगे। इसी रुझान के चलते मोरिस संगीत विद्यालय (वर्तमान में भातखंडे संगीत विद्यालय) में दाखिला लिया। सोलह साल की उम्र में तलत को कमल दासगुप्ता का गीत 'सब दिन एक समान नहीं' गाने का मौका मिला। यह गीत प्रसारित होने के बाद लखनऊ में बहुत लोकप्रिय हुआ

उन दिनों में पार्श्व गायन का शुरुआती दौर था। अधिकतर अभिनेता अपने गाने खुद गाते थे। कुन्दन लाल सहगल की लोकप्रियता से प्रेरित होकर तलत भी गायक–अभिनेता बनने के लिए सन 1944 में कलकत्ता जा पहुंचे, जो उस समय इन गतिविधियों का प्रधान केन्द्र था । कलकत्ता में संघर्ष के बीच तलत की शुरुआत बांग्ला गीत गाने से हुई। रिकार्डिंग कंपनी ने गायक के रूप में उनको तपन कुमार नाम से गवाया । तपन कुमार के गाए सौ से ऊपर गीत रेकॉर्डों में आए। न्यू थियेटर्स ने 1945 में बनी राजलक्ष्मी में तलत को नायक–गायक बनाया। संगीतकार राबिन चटर्जी के निर्देशन में इस फ़िल्म में उनके गाए जागो मुसाफ़िर जागो ने भरपूर सराहना बटोरी। उत्साहित होकर वे मुंबई जाकर अनिल विश्वास से मिले। अनिल दा ने यह कहकर लौटा दिया कि अभिनेता बनने के लिए वे बहुत दुबले हैं। तलत वापस कलकत्ता चले गए¸ जहां उन्हें 1949 तक कुल दो फ़िल्में ही और मिली- 'समाप्ति' और 'तुम और वो' ।

जब लगा कि नायक की छवि में सच्चे गायक की प्रतिभा छटपटा रही है तब सिर्फ गायन को ही ध्येय बनाया। कोलकाता में बनी फिल्म स्वयंसिद्धा (1945) में पहली बार उन्होंने पार्श्वगायन किया। मुंबई में प्रदर्शित फिल्म ‘राखी’ (1949), ‘अनमोल रतन (1950) और ‘आरजू’ (1950) से उनके कैरियर को विशेष चमक मिली। फिल्म ‘आरजू’ की गजल ‘ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो...’ ने अपार लोकप्रियता अर्जित की। यहीं से तलत और दिलीपकुमार का अनूठा संयोग बना जो कई फिल्मों में दोहराया गया।

गजल गायकी को तलत ने सम्माननीय ऊँचाई प्रदान की। हमेशा उत्कृष्ट शब्दावली की गजलें ही चयनित कीं। सस्ते बोलों वाले गीतों से उन्हें हमेशा परहेज रहा। यहाँ तक कि गीतकार-संगीतकार उन्हें रचना देने से पहले इस बात को लेकर आशंकित रहते थे कि तलत उसे पसंद करेंगे या नहीं। मदनमोहन, अनिल बिस्वास और खय्याम की धुनों पर सजे उनके तराने बरबस ही दिल मोह लेते हैं। मुश्किल से मुश्किल बंदिशों को सूक्ष्मता से तराश कर पेश करना उनकी खासियत थी। लरजती, सलोनी, मखमली आवाज के जादूगर तलत महमूद हमारे बीच में नहीं हैं, किंतु उनके सैकड़ों रसीले-नशीले नगमे फिजाँ में आज भी घुलकर संगीतप्रेमियों को मदहोश कर रहे हैं।

तलत महमूद के लोकप्रिय नगमें
जाएँ तो जाएँ कह..(टैक्सी ड्राइवर), सब कुछ लुटा के होश..(एक साल), फिर वही शाम, वही गम...(जहाँआरा), मेरा करार ले जा..(आशियाना), शामे गम की कसम..(फुटपाथ), हमसे आया न गया..(देख कबीरा रोया), प्यार पर बस तो नहीं..(सोने की चिड़िया), जिंदगी देने वाले सुन..(दिल--नादान), अंधे जहान के अंधे रास्ते..(पतिता), इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा..(छाया), आहा रिमझिम के ये..(उसने कहा था), दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है..(मिर्जा गालिब)
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2- गायिका जगजीत कौर [Jagjeet Kaur]
Singer Jagjit Kaur
कुछ आवाज़ें भुलाई नहीं भूलती। ये आवाज़ें भले ही बहुत थोड़े समय के लिए या फिर बहुत चुनिंदा गीतों में ही गूंजी, लेकिन इनकी गूंज इतनी प्रभावी थी कि ये आज भी हमारी दिल की वादियों में प्रतिध्वनित होती रहती हैं। जगजीत कौर के बारे में जानना ज़रूरी है कि वे संगीतकार ख़ैयाम की पत्नी हैं और बहुत ही कमाल की गायिका हैं। जगजीत जी ने फ़िल्मों के लिए बहुत कम गीत गाए हैं लेकिन उनका गाया हर एक गीत अच्छे संगीत के रसिकों के दिलों में ख़ास मुकाम रखता है

जगजीत कौर 1948-49 में बम्बई गईं थीं। उन्होने संगीतकार श्याम सुंदर के साथ फ़िल्म 'लाहौर' के गीतों, "नज़र से...", "बहारें फिर भी आएँगी..." आदि की रिहर्सल की थीं, लेकिन बाद में वे गीत लता जी से गवा लिए गए। इसी तरह 'जाल' फ़िल्म का मशहूर गीत "ये रात ये चांदनी फिर कहाँ" भी पहले जगजीत कौर गाने वाली थीं, लेकिन एक बार फिर यह गीत लता जी की झोली में डाल दिया गया।

संगीतकार ग़ुलाम मोहम्मद ने उन्हे सब से पहले 1953 की फ़िल्म 'दिल--नादान' में गवाया था - "ख़ामोश ज़िंदगी को एक अफ़साना मिल गया" और "चंदा गाए रागिनी छम छम बरसे चांदनी" यहीं से उनकी फ़िल्मी गायन की शुरुआत हुई थी।

जगजीत कौर के गाए उल्लेखनीय और यादगार गीतों में फ़िल्म 'बाज़ार' का गीत "देख लो आज हमको जी भर के" और फ़िल्म 'शगुन' का गीत "तुम अपना रंज--ग़म अपनी परेशानी हमें दे दो" सब से उपर आता है। इनके अलावा उनके गाए गीतों में मुख्य गानें हैं फ़िल्म 'चंबल की क़सम' का "बाजे शहनाई रे बन्नो तोरे अंगना", फ़िल्म 'शगुन' का ही "गोरी ससुराल चली डोली सज गई", फ़िल्म 'हीर रांझा' का गीत "नाचे अंग वे", जिसमें उन्होने नूरजहाँ और शमशाद बेग़म जैसे लेजेन्डरी सिंगर्स के साथ अपनी आवाज़ मिलाई थी फ़िल्म 'उमरावजान' का गीत "काहे को ब्याही बिदेस", फ़िल्म 'शोला और शबनम' का गीत "लड़ी रे लड़ी तुझसे आँख जो लड़ी" और "फिर वही सावन आया", फ़िल्म 'प्यासे दिल' का "सखी री शरमाए दुल्हन सा बनके" आदि। सचमुच उनकी आवाज़ में इस मिट्टी की ख़ुशबू है जो हौले हौले दिल पर असर करती है, जिसका नशा आहिस्ता-आहिस्ता चढ़ता है। उनकी आवाज़ में एक सादगी और एक नमी है उनके ये मुट्ठी भर गीत संगीत के क़द्रदानों के लिए अनमोल दौलत की तरह हैं
khaiyyam and jagjit kaur
खैय्याम साहब का स्वयं भी कहना है 'मैं आज यहां जिस कामयाबी तक पहुंचा हूँ उसमें जगजीत का बहुत ही बड़ा हाथ है जब भी मैं किसी फ़िल्म का संगीत तैयार करता हूं तो जगजीत मुझे मदद करती है. जब मैं फ़िल्म 'उमराव जान' का संगीत तैयार कर रहा था तब भी हम आपस में बहुत बहस करते थे तब जाकर कोई धुन बनती थी. 'जिन्दगी तेरी बज्म में' फ़िल्म 'उमराव जान' की ग़ज़ल को वास्तव में जगजीत ने ही बनाया है'
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क्विज में दिए गए दोनों बेहतरीन गानों के वीडिओ
गाना - बेरहम आसमां......
गाना - तुम अपना रंजोग़म......
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"सी.एम.ऑडियो क्विज़- 7" के विजेता प्रतियोगियों के नाम
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जिन प्रतियोगियों ने एक जवाब सही दिया
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विजताओं को बधाईयाँ
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आशा है जो इस बार सफल नहीं हुए वो आगामी क्विज में अवश्य सफल होंगे
आप सभी का हार्दिक धन्यवाद

यह आयोजन मनोरंजन के साथ साथ ज्ञानवर्धन का एक प्रयास मात्र है !

अगर आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें ज़रूर ई-मेल करें!
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का पुनः आभार व्यक्त करते हैं
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया.
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6 फरवरी 2011, रविवार को हम ' प्रातः दस बजे' एक नई क्विज के साथ यहीं मिलेंगे !

सधन्यवाद
क्रियेटिव मंच
The End
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