रविवार, 13 सितंबर 2009

ठहाका एक्सप्रेस - 3

vijay patani
इस बार 'ठहाका एक्सप्रेस- 3' के पायलट हैं -
Laughter is the Best Medicine
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एक युवक शॉपिंग माल में खरीदारी कर रहा था कि तभी उसने लक्ष्य किया एक बूढ़ी औरत काफी देर से लगातार उसके साथ साथ चल रही है और बीच बीच में उसे घूर भी रही है।

''होगी कोई! मुझे क्या ...?'' उसने सोचा और आगे बढ़ गया।
जब वह भुगतान करने के लिये बिल काउंटर की ओर बढ़ा तो वह महिला एकदम से उसके पास गई और बोली - ''बेटा, तुम सोच रहे होगे कि यह औरत मुझे इस तरह क्यों देख रही है ? दरअसल तुम्हें देखकर मुझे अपने बेटे की याद गई जो पिछले साल एक दुर्घटना में मारा गया।'' कहने के साथ बुढ़िया की आंखे छलछला आईं।

लड़का द्रवीभूत हो गया। बोला - ''मांजी, आप मुझे अपना बेटा ही समझिये। कहिये, मैं आपकी कुछ मदद करूं ?''
बुढ़िया ने बिल काउंटर से अपना सामान उठाते हुये कहा - ''नहीं, नहीं बेटा ! मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस तुमने अपने मुंह से मां कह दिया यही बहुत है।'' यह कहकर बुढ़िया चलने लगी।
लड़का भावुक होकर उसकी ओर देखता रहा।
दरवाजे के पास जाकर बुढ़िया ने लड़के की तरफ हाथ हिलाया और बोली - ''अच्छा बेटा, जाती हूं।''
''ठीक है मांजी जाइए। अपना खयाल रखना।'' लड़के ने जोर से कहा। बुढ़िया चली गई।
अब लड़का बिल काउंटर की तरफ मुड़ा।
''कितना हुआ'', उसने पूछा।
''तीन हजार सात सौ रुपये'', क्लर्क ने बताया।
''क्या ? .... पर मेरे सामान की कीमत पांच सौ रुपये से ज्यादा नहीं है !'' लड़का जोर से बोला।
''बिलकुल ! आप सही कह रहे हैं। पर आपकी माँजी बत्तीस सौ रुपये का सामान ले गई हैं।'' क्लर्क ने स्पष्ट किया।


मेजर - ''इतना ज्यादा क्यों पीते हो ? तुम्हें खबर है कि अगर तुम्हारा रिकार्ड अच्छा रहा होता तो अब तक तुम सूबेदार हो गये होते।''

जवान - ''माफ कीजिये सर, मगर बात यह है कि जब दो घूंट मेरे अन्दर पहुंच जाते हैं तो मैं अपने आपको कर्नल समझने लगता हूं।''


एक हवाईजहाज में चार लोग सवार थे - पायलट, एक किशोर, एक बुजुर्ग और एक दार्शनिक। उड़ान के दौरान अचानक विमान के इंजन में खराबी गई पायलट ने घोषणा की कि अब इस विमान का बचना संभव नहीं है और विमान में सिर्फ तीन ही पैराशूट हैं। किसी एक को तो अवश्य ही मरना होगा।

इतना कहकर पायलट फुर्ती से अपने केबिन से निकला और बोला - चूंकि मुझे इस खराबी से संबंधित जानकारी हेडक्वार्टर को देनी होगी अत: मेरा बचना जरूरी है। इतना कहकर उसने एक पैराशूट उठाया और कूद गया

अब दो पैराशूट बचे। दार्शनिक महोदय अपने स्थान से उठे और बोले - मैंने ऑक्सफोर्ड और केम्ब्रिज में पढ़ाई की है। ढेर सारी किताबें लिखीं हैं। मेरे जैसे विद्वान दुनिया में कम ही हैं अभी दुनिया को मेरी विद्वता की बहुत जरूरत है अत: मेरा बचना बहुत जरूरी है इतना कहकर उन्होंने भी एक पैराशूट उठाया और कूद गए।

अब सिर्फ एक पैराशूट बचा था। बुजुर्ग सज्जन ने किशोर की ओर देखा और कहा बेटा मैं अपनी जिंदगी जी चुका हूं और दो-चार साल में वैसे भी मर जाने वाला हूं तुम्हारे सामने अभी पूरी जिंदगी पड़ी है तुम यह पैराशूट उठाओ और कूद जाओ

किशोर बोला - चिन्ता मत करो, हम दोनों ही बच जाएंगे। दुनिया के सबसे बड़े विद्वान व्यक्ति पैराशूट की जगह मेरा कपड़ों का बैग उठाकर कूद गए हैं ......

एक भिखारी भीख मांगने के प्रयोजन से एक घर के दरवाजे पहुंचा और दस्तक दी। अन्दर से एक 46-47 की उम्र की महिला आई।

भिखारी बोला - माताजी, भूखे को रोटी दो।

महिला बोली - शरम नहीं आती, इतने हट्टे-कट्टे हो, कुछ कामधाम किया करो। दो-दो हाथ हैं, पैर हैं, आंखें हैं फिर भी भीख मांगते हो !

अब भिखारी ने भी सुर बदला और बोला - मैडम, आप भी इतनी खूबसूरत है, गोरी-चिट्टी हैं, गजब का फिगर है और अभी आपकी उम्र ही क्या है ? आप मुंबई जाकर हीरोइन क्यों नहीं बन जाती ? घर पर बेकार बैठी हो

महिला बोली - जरा रुको, मैं अभी तुम्हारे लिए हलवा-पूरी लाती हूं।

एक मशहूर समाचार पत्र में छपने वाले साप्ताहिक भविष्यफल की बानगी :

प्रथम सप्ताह - इस हफ्ते आपके जीवन में कोई अनोखी खुशी दस्तक देने वाली है। अचानक धनप्राप्ति के भी योग बन रहे हैं। पूरा सप्ताह मौजमस्ती में गुजरेगा। स्वास्थ्य उत्तम रहेगा।

द्वितीय सप्ताह - इस सप्ताह आप एक नई और अद्भुत शक्ति अपने भीतर महसूस करेंगे। वाणी पर नियंत्रण रखने से शत्रुपक्ष की पराजय सुनिश्चित है। प्रेम के मामले में भाग्यशाली रहेंगे।

तृतीय सप्ताह -
रोमांस के लिए यह समय आपके लिए शुभ रहेगा। इस हफ्ते कोई सुंदरी आपके जीवन में प्रवेश करने वाली है। इस सुंदरी का सानिध्य आपके लिए सफलताओं के नए द्वार खोल सकता है।

चतुर्थ सप्ताह - इस समय आप स्वयं को ठगा-सा महसूस करेंगे। आपको अचानक आभास होगा कि कोई लगातार पिछले तीन सप्ताह से आपको बेवकूफ बना रहा है।




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The End
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गुरुवार, 10 सितंबर 2009

राजेश जोशी की कविताओं का जादू

प्रस्तुति :- प्रकाश गोविन्द


राजेश जोशी


परिचय -
जन्म : 18 जुलाई 1946,
जन्म स्थान : नरसिंहगढ़ (मध्य प्रदेश)

कुछ प्रमुख कृतियाँ :
समरगाथा (लम्बी कविता),
एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा,
दो पंक्तियों के बीच (कविता संग्रह),
पतलून पहना आदमी , धरती का कल्पतरु !

विविध कविता संग्रह "दो पंक्तियों के बीच" के लिये 2002 का साहित्य अकादमी पुरस्कार।

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शासक होने की इच्छा
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वहाँ एक पेड़ था
उस पर कुछ परिंदे रहते थे
पेड़ उनकी आदत बन चुका था

फिर एक दिन जब परिंदे आसमान नापकर लौटे
तो पेड़ वहाँ नहीं था
फिर एक दिन परिंदों को एक दरवाजा दिखा
परिंदे उस दरवाजे से आने-जाने लगे
फिर एक दिन परिंदों को एक मेज दिखी
परिंदे उस मेज पर बैठकर सुस्ताने लगे

फिर परिंदों को एक दिन एक कुर्सी दिखी
परिंदे कुर्सी पर बैठे
तो उन्हें तरह-तरह के दिवास्वप्न दिखने लगे

और एक दिन उनमें
शासक बनने की इच्छा जगने लगी !

बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
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कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह

बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह

काम पर क्‍यों जा रहे हैं बच्‍चे?
क्‍या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्‍या दीमकों ने खा लिया हैं
सारी रंग बिरंगी किताबों को

क्‍या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्‍या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्‍या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्‍म हो गए हैं एकाएक

तो फिर बचा ही क्‍या है इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्‍यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्‍बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजते हुए
बच्‍चे, बहुत छोटे छोटे बच्‍चे
काम पर जा रहे हैं।

माँ कहती है

हम हर रात
पैर धोकर सोते है

करवट होकर।
छाती पर हाथ बाँधकर
चित्त हम कभी नहीं सोते।

सोने से पहले माँ
टुइयाँ के तकिये के नीचे
सरौता रख देती है बिना नागा।

माँ कहती है
डरावने सपने इससे
डर जाते है।

दिन-भर फिरकनी-सी खटती माँ
हमारे सपनों के लिए
कितनी चिन्तित है!

आदिवासी लड़की की इच्छा

लड़की की इच्छा है
छोटी-सी इच्छा
हाट इमलिया जाने की।
सौदा-सूत कुछ नहीं लेना
तनिक-सी इच्छा है-- काजर की
बिन्दिया की।

सौदा-सूत कुछ नहीं लेना
तनिक-सी इच्छा है-- तोड़े की
बिछिया की।
सौदा-सूत कुछ नहीं लेना
तनिक-सी इच्छा है-- सुग्गे की
फुग्गे की।
फुग्गा उड़ने वाला हो
सुग्गा ख़ूब बातूनी हो ।
लड़की की इच्छा है
छोटी-सी।

पेड़ की तरह
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पेड़ की तरह
सोचता हूँ
पेड़ भर
ऊँचा उठकर।

पेड़ भर सोचता हूँ
पेड़ भर
चौड़ा होकर।

इसी से
जंगल नाराज़ है।

गेंद
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एक बच्चा
करीब सात-आठ के लगभग।

अपनी छोटी हथेलियों में
गोल-गोल घुमाता
एक बड़ी गेंद

इधर ही चला आ रहा है
और लो...
उसने गेंद को
हवा में उछाल दिया ! सूरज !
तुम्हारी उम्र
क्या रही होगी उस वक़्त ?

प्रौद्योगिकी की माया
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अचानक ही बिजली गुल हो गयी
और बंद हो गया माइक
ओह उस वक्ता की आवाज का जादू
जो इतनी देर से अपनी गिरफ्त में बांधे हुए था मुझे
कितनी कमजोर और धीमी थी वह आवाज
एकाएक तभी मैंने जाना
उसकी आवाज का शासन खत्म हुआ
तो उधड़ने लगी अब तक उसके बोले गये की परतें

एक कवि कहता है
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नामुमकिन है यह बतलाना कि एक कवि
कविता के भीतर कितना और कितना रहता है

एक कवि है
जिसका चेहरा-मोहरा, ढाल-चाल और बातों का ढब भी
उसकी कविता से इतना ज्यादा मिलता-जुलता सा है
कि लगता है कि जैसे अभी-अभी दरवाजा खोल कर
अपनी कविता से बाहर निकला है

एक कवि जो अक्सर मुझसे कहता है
कि सोते समय उसके पांव अक्सर चादर
और मुहावरों से बाहर निकल आते हैं
सुबह-सुबह जब पांव पर मच्छरों के काटने की शिकायत करता है
दिक्कत यह है कि पांव अगर चादर में सिकोड़ कर सोये
तो उसकी पगथलियां गरम हो जाती हैं
उसे हमेशा डर लगा रहता है कि सपने में एकाएक
अगर उसे कहीं जाना पड़ा
तो हड़बड़ी में वह चादर में उलझ कर गिर जायेगा

मुहावरे इसी तरह क्षमताओं का पूरा प्रयोग करने से
आदमी को रोकते हैं
और मच्छरों द्वारा कवियों के काम में पैदा की गयी
अड़चनों के बारे में
अभी तक आलोचना में विचार नहीं किया गया
ले देकर अब कवियों से ही कुछ उम्मीद बची है
कि वे कविता की कई अलक्षित खूबियों
और दिक्कतों के बारे में भी सोचें
जिन पर आलोचना के खांचे के भीतर
सोचना निषिद्ध है
एक कवि जो अक्सर नाराज रहता है
बार-बार यह ही कहता है
बचो, बचो, बचो
ऐसे क्लास रूम के अगल-बगल से भी मत गुजरो
जहां हिंदी का अध्यापक कविता पढ़ा रहा हो
और कविता के बारे में राजेंद्र यादव की बात तो
बिलकुल मत सुनो.



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The End
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बुधवार, 9 सितंबर 2009

दक्षिणेश्वर काली मंदिर – कोलकाता

क्विज संचालन :- प्रकाश गोविन्द


नमस्कार !
क्रियेटिव मंच आप सभी लोगों का स्वागत करता है !

आप सभी को बहुत-बहुत बधाई जिन्होने इस पहेली मे हिस्सा लिया !
C.M. Quiz 4 – में जो सवाल पूछा गया था, उसका सही जवाब है :

दक्षिणेश्वर काली मंदिर – कोलकाता
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दक्षिणेश्वर काली मंदिर :
कोलकाता के उत्तर में विवेकानंद पुल के पास दक्षिणेश्वर काली मंदिर स्थित यह मंदिर बीबीडी बाग से 20 किलोमीटर दूर है। दक्षिणेश्वर मंदिर का निर्माण सन 1847 में प्रारंभ हुआ था। सन 1855 में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ। यह मंदिर 25 एकड़ क्षेत्र में स्थित है ! दक्षिणेश्वर मंदिर देवी माँ काली के लिए ही बनाया गया है। भीतरी भाग में चाँदी से बनाए गए कमल के फूल जिसकी हजार पंखुड़ियाँ हैं, पर माँ काली शस्त्रों सहित भगवान शिव के ऊपर खड़ी हुई हैं। काली माँ का मंदिर नवरत्न की तरह निर्मित है और 46 फुट चौड़ा तथा 100 फुट ऊँचा है।

विशेष आकर्षण यह है कि इस मंदिर के पास पवित्र गंगा नदी जो बंगाल में हुगली नदी के नाम से जानी जाती है, बहती है। इस मंदिर में 12 गुंबद हैं । इस विशाल मंदिर के चारों ओर भगवान शिव के बारह मंदिर स्थापित किए गए हैं।

रामकृष्ण परमहंस ने माँ-काली के मंदिर में देवी की आध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त की थी । माँ काली का मंदिर विशाल इमारत के रूप में चबूतरे पर स्थित है। ऊपर की दो मंजिलों पर नौ गुंबद समान रूप से फैले हुए हैं। गुंबदों की छत पर सुन्दर आकृतियाँ बनाई गई हैं। देवी की प्रतिमा जिस स्थान पर रखी गई है उसी पवित्र स्थल के आसपास भक्त बैठे रहते हैं तथा आराधना करते हैं !
क्विज रिजल्ट
इस बार की क्विज भी कठिन नहीं थी, फिर भी कई लोग मंदिर की बनावट को देखकर 'कन्फ्यूज' हो गए ! इसीलिये हलकान जी ने आते ही घोषित कर दिया कि यह मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा या चर्च नहीं है ! खैर ! आशा है जो इस बार सफल नहीं हुए, अगली बार अवश्य सफल होंगे ! सीमा जी ने एक बार फिर बहुत जल्दी सही जवाब दिया, साथ ही मंदिर के बारे में विस्तृत जानकारी भी दी ! सीमा जी अब "क्रियेटिव मंच" की पहली चैम्पियन बनने से सिर्फ एक कदम दूर हैं ! उसके बाद सही जवाब दिया निर्मला कपिला जी ने और फिर मंदिर के विषय में सटीक जानकारी के साथ अल्पना जी ने सही जवाब दिया !

आईये देखते हैं प्रतियोगिता का पूरा परिणाम :
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द्वितीय स्थान : - सुश्री निर्मला कपिला जी
Nirmla Kapila
alpana verma ji

चौथा स्थान : - सुश्री शुभम जैन

पांचवा स्थान : - श्री विजय पाटनी जी
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Shaheen Mirja
applauseapplause विजेताओं को बधाईयाँapplauseapplause
applauseapplauseapplauseapplause
सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई !

सभी प्रतियोगियों और पाठकों को शुभकामनाएं !

आप लोगों ने उम्मीद से बढ़कर प्रतियोगिता में शामिल होकर
इस आयोजन को सफल बनाया, जिसकी हमें बेहद ख़ुशी है !



seema gupta ji , Nirmla Kapila ji, अल्पना वर्मा जी,
मियां हलकान जी, Vivek Rastogi ji, शुभम जैन जी,

shivendra sinha ji, Shaheen ji, Aditi Chauhan ji,
Anil Pusadkar ji, विजय पाटनी जी, ज़ाकिर अली ‘रजनीश’जी,
M.A.Sharma "सेहर" जी

आप सभी लोगों का धन्यवाद,

विशेष सूचना :
क्रियेटिव मंच की टीम ने निर्णय लिया है कि विजताओं को प्रमाणपत्र तीन श्रेणी में दिए जायेंगे ! कोई भी प्रतियोगी तीन बार प्रथम विजेता बनता है तो उसे 'चैम्पियन' का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा !

इसी
तरह अगर कोई प्रतियोगी छह बार प्रथम विजेता बनता है तो उसे 'सुपर चैम्पियन' का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा ! किसी प्रतियोगी के दस बार प्रथम विजेता बनने पर क्रियेटिव मंच की तरफ से 'जीनियस' का प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा !

---- क्रियेटिव मंच


यह आयोजन हम सब के लिये मनोरंजन ओर ज्ञानवर्धन का माध्यम है !

आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें जरूर ई-मेल करें !
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का आभार व्यक्त करते हैं,

जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया !

अगले बुधवार को एक नयी क्विज़ के साथ हम यहीं मिलेंगे !


सधन्यवाद
क्रियेटिव मंच
creativemanch@gmail.com

C.M.Quiz -4 [इस प्रसिद्द ईमारत को पहचानिए]

क्विज संचालन :- प्रकाश गोविन्द


आप सभी को नमस्कार !
क्रियेटिव मंच आप सभी का स्वागत करता है !
बुधवार को सवेरे 9.00 बजे पूछी जाने वाली क्विज में
एक बार हम फिर हाजिर हैं !
सुस्वागतम
Welcome

लीजिये इस बार एक आसान सी क्विज है आपके सामने !
नीचे तस्वीर को ध्यान से देखिये और पहचानिये
इस इमारत को और बताईये कि -

यह क्या है और कहाँ है ???
quiz-4
तो बस जल्दी से जवाब दीजिये और बन जाईये
आज के C.M. Quiz-4 चैम्पियन


सूचना :
माडरेशन ऑन रखा गया है इसलिए आपकी टिप्पणियों को प्रकाशित होने में समय लग सकता है ! सभी प्रतियोगियों के जवाब देने की समय सीमा रात 9.00 तक है ! क्विज का परिणाम कल सवेरे 9.00 बजे घोषित किया जाएगा !
---- क्रियेटिव मंच

विशेष सूचना :

क्रियेटिव मंच की टीम ने निर्णय लिया है कि विजताओं को प्रमाणपत्र तीन श्रेणी में दिए जायेंगे ! कोई भी प्रतियोगी तीन बार प्रथम विजेता बनता है तो उसे 'चैम्पियन' का प्रमाण पत्र दिया जाएगा ! इसी तरह अगर कोई प्रतियोगी छह बार प्रथम विजेता बनता है तो उसे 'सुपर चैम्पियन' का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा ! किसी प्रतियोगी के दस बार प्रथम विजेता बनने पर क्रियेटिव मंच की तरफ से 'जीनियस' का प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा !

C.M.Quiz के अंतर्गत अलग-अलग तीन राउंड (चक्र) होंगे ! प्रत्येक राउंड में 35 क्विज पूछी जायेंगी ! प्रतियोगियों को अपना लक्ष्य इसी नियत चक्र में ही पूरा करना होगा !

---- क्रियेटिव मंच

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

मनीषा कुलश्रेष्ठ की यादगार कवितायें

प्रस्तुति :- प्रकाश गोविन्द


मनीषा कुलश्रेष्ठmanishak
परिचय -
जन्म : 26 अगस्त 1967, जोधपुर
शिक्षा : बी एस सी, विशारद ( कथक)
एम. . ( हिन्दी साहित्य) एम. फिल.

प्रकाशित कृतियां -
बौनी होती परछांई ( कहानी संग्रह)
कठपुतलियां ( कहानी संग्रह)
कई विदेशी रचनाओं का हिन्दी अनुवाद

2001 में कथाक्रम द्वारा आयोजित भारतीय युवा कहानीकार प्रतियोगिता में विशेष पुरस्कार से सम्मानित।

10061
प्रेम बनाम प्रकृति
============
प्रेम और लिखना बंद करो अब!
पर क्यों ?
हाँ‚ ठीक ही तो कहते हो।
तीस पार कर अब क्या प्रेम !
तो फिर लिखूं‚
उन सत्यों पर जो
किरकिराते हैं पैर के नीचे ?
या अपने ही लोगों के
दोहरे मापदण्डों पर ?
अपने नाम के आगे
श्रीमती लगाने की बहस पर
या
स्त्रियों के समूह में ही
'च्च बेचारी… दो बेटियों की माँ '
होने की व्यर्थ की बेचारगी झेलने पर‚
किस पर लिखूँ ?
बलात्कारों पर‚
कानून की नाक के नीचे होती
दहेज हत्याओं पर ?
ये सारी कविताएं
लड़की होने की पीड़ाओं
से ही जुड़ती हैं क्या ?
अभी ही तो जागी हूँ‚
मीठी स्वप्निल नींद से
और अब
न नष्ट होती प्रकृति पर
लिखने को शेष है
और प्रेम की भी स्थिति वही है
संवेदनहीन और नष्टप्रायः।
अनकण्डीशनल
===========
कुछ रिश्ते
जो अनाम होते हैं
नहीं की जाती व्याख्या जिनकी
जिन्हें लेकर
नहीं समझी जाती
ज़रूरत किसी विश्लेषण की

इनके होने की शर्तें बेमानी होती हैं
बहुत चाव से इन्हें
' अनकण्डीशनल '
' निःस्वार्थ ' होने की संज्ञा दी जाती है
बस फिर कहां रह जाती है
गुंजाइश किसी अपेक्षा की

बस वे होते हैं‚ होने भर को
पड़े रहते हैं कहीं
अपनी – अपनी प्राथमिकताओं
के अनुसार सबसे पीछे
लगभग भुला दिये जाने को
या वक्त ज़रूरत पड़ने पर
उन्हें तोड़ – मरोड़ कर
इस्तेमाल कर लिये जाने को

सखा‚ बन्धु‚ अराध्य‚ प्रणयी …
और भी बहुत तरह से
इतना कुछ होकर भी
इन रिश्तों में
कुछ भी स्थायी नहीं होता

हालांकि इन रिश्तों से
होती है रुसवाई
खिसका देते हैं ये रिश्ते
पैरों के नीचे की ज़मीन
बहुत भुरभुरे होती हैं इनकी दीवारें

कभी भूल से भी इनसे
टिक कर खड़े न हो जाना !
सच कहना …
================
क्या क्या विस्मृत किये बैठे हो तुम
भूल गये पलाश के फाल्गुनी रंग
चटख धूप में मुस्कुराते अमलताश
और टूटी चौखट वाली खिड़की पर
चढ़ी वो चमेली और उसकी मादक गंध ?
पकते सुनहले गेहूं के खेत
वह सिके भुट्टों की भूख जगाती सौंधी खुश्बू ?
मुझसे तो कुछ भी नहीं भूला गया
न वो किले की टूटी दीवार पर
साथ बैठ गन्ने खाना
कैसे भूल जाती वो होली के रंग
साथ साथ बढ़ती बेल सी
हमारी कच्ची दूधिया उमर
और आर्थिक अभावों की कठोर सतहें
बड़ी संजीदगी से पढ़ते थे तुम
मैं वही आंगन में तुम्हारी बहनों के साथ
रस्सा टापती‚ झूला झूलती
भरसक ध्यान खींचती थी तुम्हारा खिलखिला कर
अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाती तुम्हें
तुम पर धुन सवार थी
अभाव काट बड़ा बनने की
क्यों
जानकर अनजान रहे मेरे प्रेम से ?
मैं क्यों रातों तुम्हें
अपनी सांसों में पाती थी
विधना ने तो रचा ही था
बिछोह हमारे मस्तकों पर‚
तुमने भी वही दिन चुना परदेस जाने का
जिस दिन मेरे हाथों में
पराई मेंहदी रची थी सगाई की
मैं आज तक न जान सकी
कि तुम्हारे बड़ा बनने में
मेरा क्या कुछ टूट कर बिखर गया
जिसे आज भी सालों बाद
भरी पूरी गृहस्थी का सुख न जोड़ सका
सच कहना याद आती है न …
मेरी नहीं उन पकते खेतों की…

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The End
===========