रविवार, 20 सितंबर 2009

ठहाका एक्सप्रेस - 4

shubham jain
इस बार 'ठहाका एक्सप्रेस- 4' की पायलट हैं -
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संता एक बार अपने रिश्तेदार से मिलने उसके शहर गया। वहां जब उसे नाश्ता दिया गया तो उसने प्लेट में गंदगी लगी देखी उसने पूछा - प्लेटें सही ढंग से धुलती तो हैं ?
रिश्तेदार बोला - हां, बिल्कुल ये प्लेटें वाटर से जितनी साफ हो सकती हैं, हो जाती हैं।
दोपहर को जब खाने पर गंदी थाली देखी तो संता ने फिर वही सवाल किया। फिर वहीं जवाब मिला - वाटर से थालियां जितनी साफ हो सकतीं हैं, हो जाती हैं।
शाम को जब संता बाहर घूमने निकला तो दरवाजे पर बंधा पालतू कुत्ता भौंकने लगा। रिश्तेदार कुत्ते को डपटते हुए बोला - चुप रहो वाटर ! संताजी तो अपने घर के आदमी हैं .....


एक जापानी पर्यटक भारत की सैर पर आया हुआ था। आखिरी दिन उसने एयरपोर्ट जाने के लिए एक टैक्सी ली और ड्राइवर बन्ता सिंह को चलने को कहा।
यात्रा के दौरान एक 'होण्डा' बगल से गुज़र गयी। जापानीज़ ने उत्तेजित होकर खिड़की से सिर निकाला और चिल्लाया : "होण्डावेरी फास्ट ! मेड इन जापान!"
कुछ देर बाद एक 'टोयोटा' तेज़ी से टैक्सी के पास से गुज़र गयीऔर फिर जापानी बाहर झुका और चिल्लाया"टोयोटावेरी फास्ट ! मेड इन जापान!"
और फिर एक 'मित्सुबिशी' टैक्सी की बगल से गुज़री। तीसरी बार जापानी खिड़की की ओर झुकते हुए चिल्लाया"मित्सुबिशीवेरी फास्ट ! मेड इन जापान!"
बन्ता थोड़ा ग़ुस्से में गया, मगर चुप रहा। और कई सारी कारें गुज़रती रहीं। आखिरकार टैक्सी एयरपोर्ट तक पहुँच गयी।
किराया 800 रु. बना। जापानी चीखा"क्या? . . . इतना ज़्यादा!"
अब बन्ता के चिल्लाने की बारी थी : "मीटरवेरी फास्ट ! मेड इन इंडिया।"


तीन आदमी एक देहाती सड़क के किनारे पर काम कर रहे थे। एक आदमी 2-3 फीट गहरा गङ्ढा खोदता था और दूसरा उसे फिर मिट्टी से भर देता था। तब तक पहला आदमी नया गङ्ढा खोद लेता था और दूसरा आदमी उसे भी मिट्टी से भर देता था। काफी देर से यही क्रम चल रहा था। तीसरा आदमी सड़क किनारे ही एक पेड़ की छाया में बैठा था।
एक राहगीर जो सुस्ताने के लिये पास ही एक पेड़ के नीचे रुका था, काफी देर से इस कार्यक्रम को देख रहा था। आखिरकार उससे रहा नहीं गया और उसने उनके नजदीक जाकर पूछ ही लिया - यहां क्या काम हो रहा है ?
हम सरकारी काम कर रहे हैं - उनमें से एक आदमी ने बताया !
वो तो मैं देख ही रहा हूं। लेकिन तुम लोग गङ्ढा खोदते हो फिर उसे भर देते हो फिर खोदते हो फिर भर देते हो। आखिर इस काम से हासिल क्या हो रहा है। क्या यह देश के धन की बर्बादी नहीं है ? राहगीर ने थोड़ा गुस्से से कहा

जी नहीं, आप समझे नहीं श्रीमान हम तो अपना काम पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं। देखिये मैं आपको समझाता हू” - पहले आदमी ने अपना पसीना पोंछते हुये कहा
यहां हम कुल तीन आदमियों की डयूटी है। मैं, मोहन और वह जो पेड़ की छाया में बैठा है श्याम। हम लोग यहां पौधारोपण कार्य के लिये लगाये गये हैं। मेरा काम है गङ्ढा खोदना, श्याम का काम है उसमें पौधा लगाना और मोहन का काम है उस गङ्ढे में मिट्टी डालना

अब चूंकि श्याम की तबीयत आज खराब है तो इसका मतलब यह तो नहीं कि हम दोनों भी अपना काम करें।


नेताजी - “क्या आपके अखबार ने यह छापा था कि मैं झूठा और बेईमान हूं ?”
संपादक - “नहीं
नेताजी - “इस शहर के किसी अखबार ने ऐसा जरूर छापा है मेरे लोग मुझे गलत सूचना नहीं दे सकते
संपादक - हो सकता है किसी अखबार ने छाप दिया हो। हम लोग पुरानी खबरें कभी नहीं छापते


एक जीवविज्ञानी मेंढ़कों के व्यवहार का अध्ययन कर रहा था। वह अपनी प्रयोगशाला में एक मेंढ़क लाया, उसे फर्श पर रखा और बोला - ''चलो कूदो !''
मेंढ़क उछला और कमरे के दूसरे कोने में पहुंच गया। वैज्ञानिक ने दूरी नापकर अपनी नोटबुक में लिखा - ''मेंढ़क चार टांगों के साथ आठ फीट तक उछलता है।''
फिर उसने मेंढ़क की अगली दो टांगें काट दी और बोला - ''चलो कूदो, चलो !'' मेंढ़क अपने स्थान से उचटकर थोड़ी दूर पर जा गिरा। वैज्ञानिक ने अपनी नोटबुक में लिखा - ''मेंढ़क दो टांगों के साथ तीन फीट तक उछलता है।''
इसके बाद वैज्ञानिक ने मेंढ़क की पीछे की भी दोनों टांगे काट दीं और मेंढ़क से बोला - 'चलो कूदो !''
मेंढ़क अपनी जगह पड़ा था। वैज्ञानिक ने फिर कहा - ''कूदो ! कूदो ! चलो कूदो !''
पर मेंढ़क टस से मस नहीं हुआ।
वैज्ञानिक ने बार बार आदेश दिया पर मेंढ़क जैसा पड़ा था वैसा ही पड़ा रहा
वैज्ञानिक ने अपनी नोटबुक में अंतिम निष्कर्ष लिखा - ''चारों टांगें काटने के बाद मेंढ़क बहरा हो जाता है।''

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एस एम एस फंडा

मोहब्बत एक से हो तो ‘भोलापन’ है
दो से हो तो ‘अपनापन’ है
तीन से हो तो ‘दीवानापन’ है
चार से हो तो ‘पागलपन’ है
फिर भी "काउंटिंग" न रुके तो ‘कमीनापन’ है !


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क्रियेटिव मंच
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शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

शबनम शर्मा जी की भावपूर्ण कवितायें

प्रस्तुति :- प्रकाश गोविन्द


शबनम शर्माshabnam_sharma परिचय -
जन्म तिथि : 20 जनवरी 1956 को नाहन में।
शिक्षा : बी.ए., बी.एड.
संप्रति : अध्यापन।
प्रकाशित रचनाएँ : अनमोल रत्न तथा काव्य कुंज दो कविता संग्रह प्रकाशित।
कार्यक्षेत्र : अध्यापन व लेखन। ग़ज़लें, कविताएँ, लेख, कहानियों व लघुकथाओं सहित लगभग 600 रचनाएँ प्रकाशित।

आकाशवाणी शिमला व दूरदर्शन से ग़ज़लें व कविताएँ प्रसारित। भारत के अनेक कवि सम्मेलनों में भागीदारी।

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प्रश्न
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मैं भी तुम्हारी तरह
सुबह से शाम तक खटती, nothing-to-something
देखती कई उतार-चढ़ाव,
सहती अनगिनत अप्रिय शब्द,
लौटती घर पूरी तरह
निचोड़ी गई किसी चूनरी की तरह,
पर शायद तुम ज़्यादा थक जाते,
निच्छावर करती संपूर्ण अस्तित्व
तुम्हें खुश रखने हेतू,
बनना चाहती अच्छी माँ, पत्नि, बहन,
एक अच्छी व्यवसायिका भी,
परंतु एक सवाल सदैव झंझोड़ता
कि तुम मुझसे ज़्यादा क्यों थकते हो,
शायद समाज का बोझ तुम पर ज़्यादा है,
और तुम अबला कह कर,
मुझे कितनी सबला बना, पीस जाते हो
समाज की लोह चक्की में।
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बेटियाँ
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शायद पल भर में ही KwanYinIIIBBNNBB
सयानी हो जाती हैं - बेटियाँ,
घर के अंदर से
दहलीज़ तक कब
आ जाती हैं बेटियाँ
कभी कमसिन, कभी
लक्ष्मी-सी दिखती हैं – बेटियाँ।
पर हर घर की तकदीर,
इक सुंदर तस्वीर होती हैं – बेटियाँ।
हृदय में लिए उफान,
कई प्रश्न, अनजाने
घर चल देती हैं बेटियाँ,
घर की, ईंट-ईंट पर,
दरवाज़ों की चौखट पर
सदैव दस्तक देती हैं – बेटियाँ।
पर अफ़सोस क्यों सदैव
हम संग रहती नहीं - ये बेटियाँ।
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मुसाफ़िर
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ममता, फ़र्ज़ और समय के द्वंद्व में
किस तरह मैंने अपनी कश्ती खींची।
कई बार ममता के थपेड़ों
को पीछे हटा फ़र्ज़ निभाया,
समय का पहिया
घूमता रहा अपना धुरी पर
कई कष्ट झेले हैं
मेरी अंदर की औरत ने,
मेरी माँ रोई है कई बार,
मेरी औरत तड़पती है अँधेरी रातों में,
परंतु समय के पतवार
अपने चप्पू चलाते रहे,
कश्ती लिए किनारे तक
आ ही गई, उतर गए मुसाफ़िर,
चल दिए मंज़िलों की तरफ़,
कह कर कि कश्ती का सफ़र भी कोई सफ़र था।
इल्ज़ाम
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मैं चल रही हूँ
या वक्त खड़ा है
दोनों ही सवाल
सही हैं
शायद बलवान है वक्त,
जो मेरी ज़िंदगी के
हिंडोले को कभी
हल्का-सा हिलाता
तो कभी झिंझोड़ जाता।
महसूस करती वक्त
के थपेड़ों को मैं
कभी हँसकर तो कभी रो कर
इल्ज़ाम देती कि वक्त
ख़राब है शायद इसलिए
कि अपने सिर इल्ज़ाम
लेना इंसान की
फ़ितरत नहीं।
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बाबूजी के बाद
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घर का दरवाज़ा खुलते ही
ठिठकते कदम, रात गहराई
पी भी ली थोड़ी ज़्यदा,
बाबूजी की डाँट
फिर बहू से कहना
''मत देना इसे खाना,
निकाल दे घर से बाहर''
व खुद ही खाँसते-खाँसते
साँकल भी चढ़ा देना।
तिरछी निगाहों से
देख भी जाना, कि
खाकर सोया भी हूँ,
सुबह रूठा-सा चेहरा बनाना
और बड़बड़ाते रहना,
बच्चा-सा बना देता था मुझे।
आज, खाली कुरसी, खाली कमरा,
देखते ही बरस पड़े हैं मेरे नयन।
बड़ा हो गया हूँ मैं,
महसूस कर सकता हूँ
उनकी छटपटाहट जब
आज मेरा नन्हा बेटा
काग़ज़ को मरोड़
सिगरेट का कश भरता है
और कोकाकोला गिलास में भरकर
चियर्स कहता है तोतले शब्दों में।


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The End
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गुरुवार, 17 सितंबर 2009

हजरतबल मस्जिद - श्रीनगर

क्विज संचालन :- प्रकाश गोविन्द


नमस्कार !
क्रियेटिव मंच आप सभी लोगों का स्वागत करता है !

आप सभी को बहुत-बहुत बधाई जिन्होने इस पहेली मे हिस्सा लिया !
कल C.M. Quiz – में जो सवाल पूछा गया था, उसका सही जवाब है :
हजरतबल मस्जिद - श्रीनगर
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हजरतबल मस्जिद, श्रीनगर
हजरतबल मस्जिद श्रीनगर में स्थित प्रसिद्ध डल झील के किनारे स्थित है। इसका निर्माण पैगम्बर मोहम्मद मोई-ए-मुक्कादस के सम्मान में करवाया गया था। इस मस्जिद को कई अन्य नामों जैसे हजरतबल, अस्सार-ए-शरीफ, मादिनात-ऊस-सेनी, दरगाह शरीफ और दरगाह आदि के नाम से भी जाना जाता है। इस मस्जिद के समीप ही एक खूबसूरत बगीचा और इश्‍रातत महल है।

जिसका निर्माण 1623 ई. में सादिक खान ने करवाया था। विश्व प्रसिद्ध हजरतबल दरगाह की तरफ। ये एक खूबसूरत मस्जिद है जो डल झील के किनारे बनी है। डल इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है। इस मस्जिद में हजरत मोहम्मद की दाढी का बाल [मोय ऐ मुक़्क़्द्दस] रखा गया है, इसलिए इसे बेहद पवित्र माना जाता है। साल में एक बार इस बाल के दर्शन आम जनता को करवाये जाते है।

पूरी इमारत सफेद संगमरमर से बनी है। अन्दर मुख्य हाल में लकडी का सुन्दर काम किया गया है। मस्जिद का पूरबी छोर डल झील की तरफ है। इस ओर से देखने पर मस्जिद की विशालता नजर आती है। यहां से शिकारा लेकर चार चिनार देखने के लिए जाया जा सकता है।

क्विज रिजल्ट
इस बार की क्विज का चयन रमजान के पवित्र माह को देखते हुए किया गया था ! उम्मीद थी की प्रतियोगी आसानी से पहचान लेंगे ! ऐसा ही हुआ भी ... अल्पना जी और सीमा जी ने आते ही इमारत को पहचानने में कोई गलती नहीं की !

आज बहुत ही थोड़े समय से सीमा जी चूक गयीं ! सीमा जी अभी भी "चैम्पियन" के खिताब से एक जीत दूर हैं ! तीसरे नंबर पर विजेता बनीं "शुभम जैन जी !

इस तरह नारी शक्ति ने एक बार फिर से परचम लहराकर अपना वर्चस्व कायम रखा है ! आशा है जो इस बार सफल नहीं हुए, अगली बार अवश्य सफल होंगे !


आईये देखते हैं प्रतियोगिता का पूरा परिणाम :
alp final
द्वितीय स्थान : - सुश्री सीमा गुप्ता जी
seema gupta
तृतीय स्थान : - सुश्री शुभम जैन जी
चौथा स्थान : - श्री विजय पाटनी जी
vijay patni
पांचवा स्थान : - सुश्री श्रद्धा जैन जी
shrddha
छठा स्थान : - दिगम्बर नासवा जी
applauseapplause विजेताओं को बधाईयाँapplauseapplause
applauseapplauseapplauseapplause


सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई !
सभी प्रतियोगियों और पाठकों को शुभकामनाएं !

आप लोगों ने उम्मीद से बढ़कर प्रतियोगिता में शामिल
होकर इस आयोजन को सफल बनाया, जिसकी हमें बेहद ख़ुशी है !



Seema Gupta ji , अल्पना वर्मा जी, Shivendra Sinha ji,
शुभम जैन जी, Purnima Ji, Mithilesh Dubey ji, Shilpi Jain ,

Ram Ji, विजय पाटनी जई, राज भाटिय़ा जी, Shrddha Ji,
Pt.डी.के.शर्मा"वत्स"जी !!!

आप सभी लोगों का धन्यवाद,
यह आयोजन हम सब के लिये मनोरंजन ओर ज्ञानवर्धन का माध्यम है !
आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें जरूर ई-मेल करें !
अंत में हम सभी प्रतियोगियों और पाठकों का आभार व्यक्त करते हैं,
जिन्होंने क्रियेटिव मंच की क्विज़ में शामिल होकर हमारा उत्साह बढाया !

अगले बुधवार को एक नयी क्विज़ के साथ हम यहीं मिलेंगे !

सधन्यवाद
क्रियेटिव मंच
creativemanch@gmail.com

बुधवार, 16 सितंबर 2009

C.M.Quiz -5 [इस प्रसिद्द ईमारत को पहचानिए]

क्विज संचालन :- प्रकाश गोविन्द


आप सभी को नमस्कार !
क्रियेटिव मंच आप सभी का स्वागत करता है !

बुधवार को सवेरे 9.00 बजे पूछी जाने वाली क्विज में
एक बार हम फिर हाजिर हैं !

सुस्वागतम
WELCOME



लीजिये फिर एक बार आसान सी क्विज है आपके सामने !
नीचे तस्वीर को ध्यान से देखिये और पहचानिये
इस इमारत को और बताईये कि -

यह क्या है और कहाँ है ???
quiz - 5
[आपको इमारत का नाम और जगह बतानी है]
तो बस जल्दी से जवाब दीजिये और बन जाईये
आज के C.M. Quiz विजेता !
सूचना :

माडरेशन ऑन रखा गया है इसलिए आपकी टिप्पणियों को प्रकाशित होने में समय लग सकता है ! सभी प्रतियोगियों के जवाब देने की समय सीमा रात 9.00 तक है ! क्विज का परिणाम कल सवेरे 9.00 बजे घोषित किया जाएगा !

---- क्रियेटिव मंच


विशेष सूचना :

क्रियेटिव मंच की टीम ने निर्णय लिया है कि विजताओं को प्रमाणपत्र तीन श्रेणी में दिए जायेंगे ! कोई भी प्रतियोगी तीन बार प्रथम विजेता बनता है तो उसे 'चैम्पियन' का प्रमाण पत्र दिया जाएगा ! इसी तरह अगर कोई प्रतियोगी छह बार प्रथम विजेता बनता है तो उसे 'सुपर चैम्पियन' का प्रमाण-पत्र दिया जाएगा ! किसी प्रतियोगी के दस बार प्रथम विजेता बनने पर क्रियेटिव मंच की तरफ से 'जीनियस' का प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा !

C.M.Quiz के अंतर्गत अलग-अलग तीन राउंड (चक्र) होंगे ! प्रत्येक राउंड में 35 क्विज पूछी जायेंगी ! प्रतियोगियों को अपना लक्ष्य इसी नियत चक्र में ही पूरा करना होगा !

--- क्रियेटिव मंच