अग्निशेखर | परिचय
कश्मीर के विस्थापित कवि, जो अलग रहते हुए भी कश्मीर को अपने दिल से कभी जुदा ना कर सके, अतः कश्मीरी साहित्य को विश्व के सम्मुख लाने मे संल्लग्न हैं ।
हिन्दी में तीन कविता संग्रह हैं : किसी भी समय , मुझसे छीन ली गई मेरी नदी , कालवृक्ष की छाया में । आतंक और आक्रमण के साये में कविता की छाँव फैलाने वाले इन कवि का कवित्व समकालीन सन्दर्भ में विशेष सार्थक है ! |
दस्तकें बन्द दरवाज़ों ने बुलाया दस्तकों को अपने पास घबराया समय और दस्तकों को हुआ कारावास इस तरह हर युग में बन्द दरवाज़े रहे उदास | जोख़िम
एक लड़की करती है किसी से प्यार सड़कों पर दौड़ने लगती हैं दमकलें साइरन बजाते कवि चढ़ता है अपनी छत पर और मुस्कुराता है कुछ पल वह बदल देता है अपनी कविता का शीर्षक बच निकलती है लड़की |
कश्मीरी मुसलमान –1 कितना भीग जाता है मेरा मन खुली-खुली पलकों से आकर टकराता है घर मेरा देश पूरा परिवेश खुलती हैं घुमावदार गलियाँ उनमें खेलने लग पड़ता है बचपन बतियाती हैं पड़ोस की अधेड़ महिलाएँ मज़हब से परे होकर एक बूंद आँसू से धुल जाती हैं शिकायतें जलावतनी में जब देखता हूँ
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कश्मीरी मुसलमान – 2
हमारी एक-दूसरे को सीधे देखने से कतराती हैं आँखें हम एक-दूसरे को नहीं चाहते हैं पहचान पाना इस शहर में दोनों हैं लहुलुहान और पसीने से तर फिर भी ठिठक जाते हैं पाँव कि पूछें, कैसे हो भाई किसी भी कश्मीरी मुसलमान को |
तमस
तमस हर तरफ़ खिंचा-पसरा था जैसे खड़ा था सामने एक भयानक रीछ और हम सहमे हुए थे खो गया था सबका दिशाबोध घड़ियों में बज रहा था कुछ पता नहीं कहाँ पर थे उस वक़्त खड़े हम ख़त्म हो जाने के खिलाफ़ मूक किसी छोर से सूरज उगने तक हमने बचाई किसी तरह जीवन की लौ | हम ही
अनुमान लगा सकते हैं हम किसका शव मिला होगा वितस्ता नदी से किसको दी गई होगी फाँसी सेबों के बाग़ में किसको ले गए होंगे घर से उठाकर आँसू किसके गिरे होंगे ओस की तरह घास पर अनुमान लगा सकते हैं हम यहाँ जलावतनी में |
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The End
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सभी कवितायें गहरे भाव लिये हैं अग्निशेखर जी को बहुत बहुत बधाई।अपका धन्यवाद शेखर जी का परिचय देने के लिये और रचनायें पढवाने के लिये।
जवाब देंहटाएंअनन्त जी कल आपको मेल की थी क्या मिल गयी? मुझे आपने पता नहीं दिया।
अग्नि शेखर जी की कविताओं को पढ़कर स्तब्ध हूँ / बहुत कुछ कहना चाहती हूँ लेकिन नहीं कह पा रही हूँ / भगवान् किसी को ऐसे दिन न दिखाए / एक विस्थापित का दर्द गहराई से समझ में आ रहा है
जवाब देंहटाएंअग्निशेकर जी को शुभकामनाएं
आपको धन्यवाद
अग्नि शेखर जी की कवितायें वास्तव में मर्मस्पर्शीय हैं और दिल को कचोटती भी हैं. अपनी मिट्टी से यूँ दर बदर होने का दर्द वही समझ सकता है जिसने भोगा हो.
जवाब देंहटाएंआभार
anubhutiyon se bharpoor
जवाब देंहटाएंgahri rachnayen
thx 2 u
T.T. Manglam
जोखिम ओर कश्मीरी मुस्लमान -२ बहुत पसंद आयी
जवाब देंहटाएं१-दस्तक कविता गहन भाव लिए है.जीवन को जैसे बहुत करीब से देखा है कवि ने .
जवाब देंहटाएं२-जोखिम -कविता को पढ़ कर मुझे एक हिंदी फिल्म 'शब्द 'याद आगयी--काश इतना आसान होता कुछ भी बदलना.
३-कश्मीरी मुस्लमान --कविता उनके दर्द को खूब बखान कर रही हैं.यह शायद हर विस्थापित का दर्द है.
४-तमस कविता में उम्मीद की रोशनी नज़र आती है.निराशा को आशा अपनी छाया से छुपा लेगी.
५-आखिरी कविता बेहद मर्मस्पर्शी है.
अग्नि शेखर जी को पहली बार पढ़ा..उनकी कवितायों में दर्द है एक कहानी है,कुछ ही शब्दों में बहुत कह देने की ताकत है.
-saath di gayee painting bhee amazing hai.
क्रिएटिव मंच का शुक्रिया इन बेहतरीन रचनाओं को पढ़वाने का और एक अग्नि शेखर जी से रूबरू करवाने का.
यह स्तम्भ अनूठा प्रयास है.शुभकामनायें.
--अल्पना वर्मा
हमारी एक-दूसरे को सीधे
जवाब देंहटाएंदेखने से कतराती हैं आँखें
हम एक-दूसरे को नहीं चाहते हैं
पहचान पाना इस शहर में
दोनों हैं लहुलुहान
और पसीने से तर
फिर भी
ठिठक जाते हैं पाँव
कि पूछें, कैसे हो भाई
किसी भी कश्मीरी मुसलमान को
बहुत ही भाव पुर्ण, अति सुंदर
धन्यवाद
अग्नि शेखर जी को पढना
जवाब देंहटाएंटीस और वेदना के दरिया को पार करने जैसा है,
हर कविता पठनीय है, कहे से ज्यादा अनकहा निहित है जो महसूस होता है ...
प्रकाश गोविन्द जी का आभार
@ निर्मला कपिला जी
जवाब देंहटाएंमुझे आपका मेल प्राप्त हो गया. और आपको मेल भेजा भी है
कृपया आप अपना मेल चेक करिए - धन्यवाद
कविताओं की बहुत अच्छी समझ नहीं है मुझे ! फिर भी ये कवितायें पसंद आयीं ! काश्मीर हम भारत वासियों के दिल से जुडा शब्द है ! आतंकवाद की आग ने वहां के रहने वालों पर कितना गहरा असर डाला ये महसूस होता है और दुःख भी ! अग्नि शेखर जी को शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअग्नि शेखर जी की कवितायेँ वास्तव में ही मर्म स्पर्शीय हैं ... इनमें बहुत गहरा भाव-बोध छुपा है.
जवाब देंहटाएंप्रकाश जी की बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...आभार
इतनी मर्मस्पर्शी कविताएं पढ़वाने के लिये शुक्रिया..जिस दर्द की कोई जुबान नही होती..कोई लिपि नही होती..जलावतनी के उस दर्द को अपने दिल मे धड़कता सा महसूस करता हूँ इसे पढ़ कर.
जवाब देंहटाएंबेहतर कविताएं...
जवाब देंहटाएंअंतस से संवाद करती हुई...
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा ! बहुत बढ़िया और ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है !
जवाब देंहटाएंबहुत मजा आया
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