शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

निर्मला कपिला जी की श्रेष्ठ रचनाएं

प्रस्तुति :- प्रकाश गोविन्द



परिचय


स्वास्थ कल्यान विभाग मे चीफ फार्मासिस्ट के पद से सेवानिवृ्त् होने के बाद लेखन कार्य के लिये समर्पित हैं ! 'कला साहित्य प्रचार मंच’ की अध्य़क्ष हैं !

2004 से विधिवत लेखन प्रारंभ ! अनेक पत्र पत्रिकायों मे प्रकाशन, विविध-भारती जालंधर से कहानी का प्रसारण !
तीन पुस्तकें प्रकाशित व अन्य दो पुस्तकें प्रकाशन की दिशा में अग्रसर
1. सुबह से पहले---कविता संग्रह
2. वीरबहुटी---कहानी संग्रह
3. प्रेम सेतु---कहानी संग्रह

सम्मान : पँजाब सहित्य कला अकादमी जालन्धर से सम्मान, ग्वालियर सहित्य अकादमी ग्वालियर की से ‘शब्द-माधुरी’ सम्मान, ‘शब्द भारती सम्मान व विशिष्ठ सम्मान, इसके अतिरिक्त कई कवि सम्मेलनो़ मे सम्मानित ! अंतरजाल पर निरंतर सक्रिय हैं और ब्लॉग संचालन भी करती हैं !

मेरी तलाश

मुझे तलाश थी एक प्यास थी
तुम मे आत्मसात हो जाने की
डूबते सूरज की एक किरण को
आत्मा मे संजोये निकली थी
तुम्हें ढूँढने / मैने देखा
कई बडे बडे देवों मुनियों को
किन्हीं अपसराओं मेनकाओं पर
आसक्त होते
तेरे नाम पर लडते झगडते
लूटते और लुटते तेरे नाम पर
खून की नदियाँ बहाते
अब कई साधु सँतों की दुकानों पर
तेरा नाम भी बिकने लगा है
फिर मन मे सवाल उठते
कैसे तुम भरमाते हो जानती हूँ
मेरी प्यास के लिये भी
तुम नित नये कूयेँ दिखा देते हो
डूबती नित मगर प्यास
फिर भी शेष रहती
तुम्हें पाने की तुम मे
आत्मसात हो जाने की
इसलिये तुम्हारी सब तस्वीरों को
राम-कृ्ष्ण-खुदा-गाड
सब को एक फ्रेम मे
बँद कर दिया है
ताकि तुम आपस मे
सुलझ लो और खुद लौट आयी हूँ
अपने अन्तस मे
और यहाँ आ कर मैने जाना की
तेरे किसी रूप को चेतना नहीं है
बल्कि तुम सब की सी
चेतना को चेतना है
तुझे पूजना नहीं है
तुम सा जूझना है
त्तुम्हें जपना नहीं
तुम सा तपना है
तुम्हारी साधना नहीं
खुद को साधना है
कितना सुन्दर है
धर्म से अध्यात्म का पथ
जहाँ तू मैं सब एक है
और अब मेरी प्यास शाँत हो गयी है !!
****************


क्या पाया

ये कैसा शँख नाद, कैसा निनाद
नारी मुक्ति का
उसे पाना है अपना स्वाभिमान
उसे मुक्त होना है
पुरुष की वर्जनाओ़ से
पर मुक्ति मिली क्या?
स्वाभिमान पाया क्या?
हाँ मुक्ति मिली बँधनों से
मर्यादायों से कर्तव्य से...
सहनशीलता..सहिष्णुता से...
सृ्ष्टि सृ्जन के कर्तव्यबोध से..
स्नेहिल भावनाँओं से
मगर पाया क्या
स्वाभिमान या अभिमान
गर्व या दर्प
जीत या हार
सम्मान या अपमान
इस पर हो विचार क्यों कि
कुछ गुमराह बेटियाँ
भावोतिरेक मे
अपने आवेश मे
दुर्योधनो की भीड मे
खुद नँगा नाच दिखा रही हैँ
मदिरोन्मुक्त जीवन को
धूयें मे उडा रही हैं
पारिवारिक मर्यादा भुला रही हैं
देवालय से मदिरालय का सफर
क्या यही है तेरी उडान
डृ्ग्स देह व्यापार
अभद्रता खलनायिका
क्या यही है तेरी पह्चान
क्या तेरी संपदायें
पुरुष पर लुटाने को हैँ
क्या तेरा लक्ष्य
केवल उसे लुभाने मे है
उठ उन षडयँत्रकारियों को पहचान
जो नहीं चाहते
समाज मे हो तेरा सम्मान
बस अब अपनी गरिमा को पहचान
और पा ले अपना स्वाभिमान
बँद कर ये शँखनाद
बँद कर ये निनाद् !!
**********************

अमर कवितायें

कुछ कवितायें कहीं लिखी नहीं जाती
कही नहीं जाती
बस महसूस की जाती हैं
किसी कोख मे
वो कवियत्री सीख् लेती है
कुछ शब्द उकेरने
भाई की कापी किताब से
जमीन पर उंगलियों से
खींच कर कुछ लकीरें
लिखना चाह्ती है कविता
बिठा दी जाती है डोली मे
दहेज मे नहीं मिलती कलम
मिलता है सिर्फ फर्ज़ो का संदूक
फिर जब कुलबुलाते हैं
कुछ शब्द उसके ज़ेहन मे
ढुढती है कलम
दिख जाता है घर मे
बिखरा कचरा,कुछ धूल
और कविता कर्तव्य बन समा जाती है
झाडू मे और सजा देती है
घर के कोने कोने को
उन शब्दों से फिर आते हैं कुछ शब्द
कलम ढूढती है पर दिख जाती हैं
दो बूढी बीमार आँखें
दवा के इंतजार मे
बन जाती है कविता करुणा
समा जाते हैं शब्द
दवा की बोतल मे
जीवनदाता बन कर
शब्द तो हर पल कुलबुलाते
कसमसाते रहते हैं
पर बनाना है खाना
काटने लगती है प्याज़
बह जाते हैं शब्द
प्याज की कडुवाहट मे
ऐसे ही कुछ शब्द बर्तनों की
टकराहत मे हो जाते है घायल
बाकी धूँए की परत से धुंधला जाते हैं
सुबह से शाम तक चलता रहता है
ये शब्दों का सफर्
रात में थकचूर कर
कुछ शब्द बिस्तर की सलवटों
मे पडे कराहते तोड देते हैं दम
पर नहीं मिलती कलम
नही मिलता वक्त
बरसों तक चलता रहता है
ये शब्दों का सफर
बेटे को सरहद पर भेज
फुरसत मे लिखना चाहती है
वीर रस मे
दहकती सी कोई कविता
पर तभी आ जाती है
सरहद पर शहीद बेटे की लाश
मूक हो जाते हैं शब्द
मर जाती है कविता एक माँ की
अंतस मे समेटे शहादत
की गरिमा ऐसे ही
कितनी ही कवियत्रियों को
नहीं मिलती कलम
नहीं मिलता वक्त
नहीं मिलता नसीब
हाथ की लकीरों पर ही
तोड देती हैं दम जन्म से पहले
जो ना लिखी जाती हैं, ना पढी जाती हैं
बस महसूस की जाती हैं
शायद यही हैं वो अमर कवितायें !!
**********************************

25 टिप्‍पणियां:

  1. निर्मला जी की कविताओं को पढना एक सुखद अहसास है,
    रचनाओं में जो सन्देश है वो हमारी सांस्कृतिक मूल्यों को दर्शाता है.
    निर्मलाजी के लेखन को प्रणाम
    आभार सहित

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  2. निर्मला जी के बारे में ये सब जानकर अच्छा लगा...मुझे तो निर्मला जी के लेखन में अमृता प्रीतम जी नज़र आती हैं...


    जय हिंद...

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  3. अत्यंत विचार प्रधान और भावपूर्ण कवितायें
    निर्मला जी की रचनाओं में परिपक्वता है
    उनसे परिचय कराने के लिए आपको धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. निर्मला जी का लेखन यथार्थ पर आधारित है। वे मानव मन की गहराइयों तक जाती हैं। वे ब्लाग जगत की अनूठी उपलब्धि हैं।

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  5. निर्मला जी के बारे में जानकारी देकर श्रेष्‍ठ कार्य किया है। वे सुलझे हुए विचारों की रचनाकार है, उन्‍हें मेरी बधाई।

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  6. निर्मला जी की श्रेष्ठ रचनाओं में
    श्रेष्ठ सामजिक मूल्य भी दिखाई देते हैं !
    बहुत अच्छा लगा पढ़कर
    धन्यवाद

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  7. " बेहतरीन एक से बढ़कर एक रचना है ....किसको श्रष्ठ कहे ये कहेना मुस्किल बन गया | आदरणीय निर्मलाजी को हमारी और से बधाई |"

    ----- एकसाच्चाई { आवाज़ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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  8. धन्यवाद, इस जानकारी के लिये

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  9. अंत जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचनाओं से पाठकों को रुबरू करवाने के लिये। और सभी पाठकों का धन्यवाद मेरे रचनाओं को सराहने के लिये और खुशदीप जी से कहूँगी कि मुझे अमृ्ता जी की जगह पहुँचने मे शायद कई जन्म लेने होंगे फिर भी उन्हों ने इतना बडा सम्मान दिया उनकी तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। सभी का फिर से धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  10. खुशदीप भाई ने बहुत हद तक सच कहा है,,, मैं समर्थन करता हूँ...

    जवाब देंहटाएं
  11. निर्मला जी की कविताओं से गुजरना एक सतत आत्मिक यात्रा है..और हाँ..ब्लॉगजगत में पोस्ट और कमेंट्स ही हैं जिनसे किसी को जाना जा सकता है तो इस आधार पर कह सकता हूँ कि निर्मला जी बेहद आत्मीय रही हैं..निर्मला जी को अनगिन बधाइयाँ...

    जवाब देंहटाएं
  12. निर्मला जी की रचनाएँ गहन भाव लिए होती हैं.यहाँ प्रस्तुत सभी रचनाएँ पसंद आयीं.
    इन अद्भुत रचनाओं को पढ़वाने के लिए निर्मला जी और सीएम टीम का आभार.

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  13. निर्मला जी की रचनाओं का जबाब नहीं .. बहुत बढिया लिखती हैं वो .. फिर से पढवाने का शुक्रिया !!

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  14. आपके माध्‍यम से इन रचनाओं को आज दुबारा पढ़ने का अवसर प्राप्‍त हुआ, आभार सहित बधाई ।

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  15. बहुत धीर-गंभीर रचनाएं हैं
    निर्मला जी की कविताओं में बहुत गहराई है
    एक सम्पूर्ण चिंतन का भाव है
    अत्यंत पठनीय रचनाएं ... आपके इस स्तम्भ की वजह से हम अच्छे रचनाकारों से मिल कर उन्हें जान पाते हैं, इसके लिए आपका आभार

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  16. श्रीश पाठक 'प्रखर', जी से पूरी तरह सहमत हूँ कि 'निर्मला जी की कविताओं से गुजरना एक सतत आत्मिक यात्रा है..'
    बहुत अच्छा लगा निर्मलाजी को जानना और रचनाओं को पढना ..आपको बहुत धन्यवाद

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  17. बहुत विस्तृत जानकारी दी आपने आदरणीय निर्मला जी के बारे में,
    उनकी रचनाओं का मैं सदैव प्रशंसक रहा हूँ........

    आपका हार्दिक आभार उनकी तमाम रचनाओं / कविताओं से रूबरू करवाने के लिए........

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  18. bahut bahut shukria;
    aapka manch aur isse jude rachanakaar aur unki rachnayein sabhi qabile-tareef hein.

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  19. निर्मला जी की कविताएँ ब्लॉग पर पढ ही रहे है यहाँ भी पढ़कर अच्छा लगा ।

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  20. अब कई साधु सँतों की दुकानों पर
    तेरा नाम भी बिकने लगा है.nice

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  21. Nirmala ji ke baare mein padh kar bahut achcha laga
    hamesha hi unki kavitayen man ko bheetar tak chhuti rahi hai
    ue bhi bahut pasand aayi

    जवाब देंहटाएं
  22. हर कविता में एक ज़िन्दगी है,उसकी बोलती साँसें हैं........बहुत ही अच्छा लगा उन्हें सुनना

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  23. निर्मला जी को कई बार अंतर्जाल पर पढ़ा, पर यहाँ पर उनके बारे में जाना भी...आभार.

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  24. निर्मला जी की इतनी बेहतरीन कविताएं पढ़वाने के लिये आभारी हूँ..सारी एक से एक हैं..खासतौर पे पहली वाली तो बार-बार पढ़ने का जी करता है

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  25. निर्मला कपिला जी की कवितायें पठनीय तो हैं ही साथ ही प्रेरणादायक भी !
    'क्या पाया' और 'अमर कवितायेँ' बेहतरीन हैं !
    आभार

    जवाब देंहटाएं

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