इस बार 'ठहाका एक्सप्रेस- 4' की पायलट हैं - |
Laughter
| is the Best
| Medicine |
संता एक बार अपने रिश्तेदार से मिलने उसके शहर गया। वहां जब उसे नाश्ता दिया गया तो उसने प्लेट में गंदगी लगी देखी । उसने पूछा - प्लेटें सही ढंग से धुलती तो हैं न ? रिश्तेदार बोला - हां, बिल्कुल । ये प्लेटें वाटर से जितनी साफ हो सकती हैं, हो जाती हैं। दोपहर को जब खाने पर गंदी थाली देखी तो संता ने फिर वही सवाल किया। फिर वहीं जवाब मिला - वाटर से थालियां जितनी साफ हो सकतीं हैं, हो जाती हैं। शाम को जब संता बाहर घूमने निकला तो दरवाजे पर बंधा पालतू कुत्ता भौंकने लगा। रिश्तेदार कुत्ते को डपटते हुए बोला - चुप रहो वाटर ! संताजी तो अपने घर के आदमी हैं .....
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एक जापानी पर्यटक भारत की सैर पर आया हुआ था। आखिरी दिन उसने एयरपोर्ट जाने के लिए एक टैक्सी ली और ड्राइवर बन्ता सिंह को चलने को कहा। यात्रा के दौरान एक 'होण्डा' बगल से गुज़र गयी। जापानीज़ ने उत्तेजित होकर खिड़की से सिर निकाला और चिल्लाया : "होण्डा‚ वेरी फास्ट ! मेड इन जापान!" कुछ देर बाद एक 'टोयोटा' तेज़ी से टैक्सी के पास से गुज़र गयी‚ और फिर जापानी बाहर झुका और चिल्लाया‚ "टोयोटा‚ वेरी फास्ट ! मेड इन जापान!" और फिर एक 'मित्सुबिशी' टैक्सी की बगल से गुज़री। तीसरी बार जापानी खिड़की की ओर झुकते हुए चिल्लाया‚ "मित्सुबिशी‚ वेरी फास्ट ! मेड इन जापान!" बन्ता थोड़ा ग़ुस्से में आ गया, मगर चुप रहा। और कई सारी कारें गुज़रती रहीं। आखिरकार टैक्सी एयरपोर्ट तक पहुँच गयी। किराया 800 रु. बना। जापानी चीखा‚ "क्या? . . . इतना ज़्यादा!" अब बन्ता के चिल्लाने की बारी थी : "मीटर‚ वेरी फास्ट ! मेड इन इंडिया।" |
तीन आदमी एक देहाती सड़क के किनारे पर काम कर रहे थे। एक आदमी 2-3 फीट गहरा गङ्ढा खोदता था और दूसरा उसे फिर मिट्टी से भर देता था। तब तक पहला आदमी नया गङ्ढा खोद लेता था और दूसरा आदमी उसे भी मिट्टी से भर देता था। काफी देर से यही क्रम चल रहा था। तीसरा आदमी सड़क किनारे ही एक पेड़ की छाया में बैठा था। एक राहगीर जो सुस्ताने के लिये पास ही एक पेड़ के नीचे रुका था, काफी देर से इस कार्यक्रम को देख रहा था। आखिरकार उससे रहा नहीं गया और उसने उनके नजदीक जाकर पूछ ही लिया - यहां क्या काम हो रहा है ? हम सरकारी काम कर रहे हैं - उनमें से एक आदमी ने बताया ! वो तो मैं देख ही रहा हूं। लेकिन तुम लोग गङ्ढा खोदते हो फिर उसे भर देते हो फिर खोदते हो फिर भर देते हो। आखिर इस काम से हासिल क्या हो रहा है। क्या यह देश के धन की बर्बादी नहीं है ? राहगीर ने थोड़ा गुस्से से कहा ।
“जी नहीं, आप समझे नहीं श्रीमान । हम तो अपना काम पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं। देखिये मैं आपको समझाता हू” - पहले आदमी ने अपना पसीना पोंछते हुये कहा । यहां हम कुल तीन आदमियों की डयूटी है। मैं, मोहन और वह जो पेड़ की छाया में बैठा है श्याम। हम लोग यहां पौधारोपण कार्य के लिये लगाये गये हैं। मेरा काम है गङ्ढा खोदना, श्याम का काम है उसमें पौधा लगाना और मोहन का काम है उस गङ्ढे में मिट्टी डालना ।
अब चूंकि श्याम की तबीयत आज खराब है तो इसका मतलब यह तो नहीं कि हम दोनों भी अपना काम न करें।
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नेताजी - “क्या आपके अखबार ने यह छापा था कि मैं झूठा और बेईमान हूं ?” संपादक - “नहीं ।” नेताजी - “इस शहर के किसी अखबार ने ऐसा जरूर छापा है । मेरे लोग मुझे गलत सूचना नहीं दे सकते । संपादक - हो सकता है किसी अखबार ने छाप दिया हो। हम लोग पुरानी खबरें कभी नहीं छापते
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एक जीवविज्ञानी मेंढ़कों के व्यवहार का अध्ययन कर रहा था। वह अपनी प्रयोगशाला में एक मेंढ़क लाया, उसे फर्श पर रखा और बोला - ''चलो कूदो !'' मेंढ़क उछला और कमरे के दूसरे कोने में पहुंच गया। वैज्ञानिक ने दूरी नापकर अपनी नोटबुक में लिखा - ''मेंढ़क चार टांगों के साथ आठ फीट तक उछलता है।'' फिर उसने मेंढ़क की अगली दो टांगें काट दी और बोला - ''चलो कूदो, चलो !'' मेंढ़क अपने स्थान से उचटकर थोड़ी दूर पर जा गिरा। वैज्ञानिक ने अपनी नोटबुक में लिखा - ''मेंढ़क दो टांगों के साथ तीन फीट तक उछलता है।'' इसके बाद वैज्ञानिक ने मेंढ़क की पीछे की भी दोनों टांगे काट दीं और मेंढ़क से बोला - 'चलो कूदो !'' मेंढ़क अपनी जगह पड़ा था। वैज्ञानिक ने फिर कहा - ''कूदो ! कूदो ! चलो कूदो !'' पर मेंढ़क टस से मस नहीं हुआ। वैज्ञानिक ने बार बार आदेश दिया पर मेंढ़क जैसा पड़ा था वैसा ही पड़ा रहा । वैज्ञानिक ने अपनी नोटबुक में अंतिम निष्कर्ष लिखा - ''चारों टांगें काटने के बाद मेंढ़क बहरा हो जाता है।''
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एस एम एस फंडा
मोहब्बत एक से हो तो ‘भोलापन’ है दो से हो तो ‘अपनापन’ है तीन से हो तो ‘दीवानापन’ है चार से हो तो ‘पागलपन’ है फिर भी "काउंटिंग" न रुके तो ‘कमीनापन’ है !
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